Saturday, July 09, 2016

कश्मीर घाटी में हिजबुल कमांडर आतंकी बुरहान के शव पर उमड़ी उन्मादी भीड़ !

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' वतन की मिटटी में ये नफरत फैलाने वालों को सजदा सच में ईद मुबारक जैसा है ' इस्लाम में ख से खुदा होता है बरखुरदार ख से खून नही !!!
कश्मीर में महबूबा और अच्छे दिन / भाजपा की साझा सरकार में ये वतनपरस्ती का जलसा है ! बुरहान को सजदा करते देशभक्त !! भारत माता अमर रहेगी ???

तस्वीर साभार - शाहनवाज मलिक की वाल से-




प्रवासनामा डेस्क - देश में राष्ट्रभक्ति का दंभ भरने वाली प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की केंद्र सरकार को यह तस्वीर देखनी चाहिए ! यह ईद की नमाज नहीं है ! हिजबुल कमांडर आतंकी बुरहान के मारे जाने से सदमे में आये कश्मीरी लोग इस जलसे से देशभक्ति कर रहे है शायद ? 96 पुलिस कर्मियों की म्रत्यु और 200 स्थानीय लोगो के जख्मी होने का ये तांडव भी अच्छे दिन वाली सरकार के लिए सबक है ! गौरतलब है की घाटी में इंटरनेट / मोबाइल सेवा बंद है फ़िलहाल ! वही अमरनाथ यात्री भी रातसे में रोक दिए गए है ! हालत बेकाबू और अपराधिक ताकतों को दबंग साबित करने के लिए काफी है ! सैकड़ो बसे और वाहन आग के हवाले कर दिए गए है ! बुरहान की ये मौत गर देशभक्ति के कारनामे में हुई है तो कोफ़्त है लेकिन अगर यह आतंकवाद की खेप में पनपती पाठशाला का एक पन्ना जला है तो यकीनन पूरी किताब जलना चाहिए ! लगता नही की वतन  का नमक खाकर गद्दारी करने वालों की कमी इस देश में सरहद से संसद तक कभी कम होगी ! 

सात दिन में सत्तर गाँव जलयात्रा के बुंदेलखंड से लखनऊ तक

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सात दिवसीय जलयात्रा ' तालाब एवं भूदान चारागाह मुक्ति अभियान ' समापन सत्र विमर्श 

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सातदिवसीयजलयात्रासमापनदिवस‬ ‪#‎प्रवासनामाखबरविमोचनस्मृतिदिवस‬ -
प्रवासनामा डेस्क / लखनऊ - 
बाँदा - सात दिनों से बुंदेलखंड में शुरू हुई लौच्क्नो तक की जलयात्रा का समापन आठ जुलाई को लखनऊ प्रेस क्लब में सम्पन्न हुआ . ' तालाब एवं भूदान चारागाह मुक्ति अभियान ' के सौजन्य से अन्नदाता की आखत / प्रवास ने यह जलयात्रा इलाहाबाद केन्द्रीय विश्वविद्यालय के युवा छात्र / छात्रा के और सामाजिक लोगो के साथ आयोजित की थी ! इस दौरान ये जलयात्रा बाँदा,महोबा - चरखारी , राठ - हमीरपुर, उरई - कालपी , कानपुर देहात - कानपुर नगर होते हुए उन्नाव के रस्ते सात जुलाई को राजधानी लखनऊ पहुंची थी ! सैट दिन में सत्तर गाँव की चौपाल में अध्ययन करने के बाद इनकी तलाश आगे भी जारी रहेगी . गौरतलब है देश,प्रदेश और प्रान्त में तालाबों / भूदान में दान की गई सार्वजनिक भमि में अवैध कब्जे किये गए है यह तब है जब एक के बाद सुप्रीम कोर्ट , उच्च न्यायलय और एनजीटी के आदेश इन्ही अवैध कब्जों को हटाने के लिए आये है ! हाल ही में मथुरा - जवाहर नगर काण्ड के बाद उत्तर प्रदेश के राज्यपाल रामनाइक ने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से सार्वजानिक जमीन पर अतिक्रमण के सम्बन्ध में एक श्वेत पत्र लाने को लेकर पत्र भी लिखा है ! देश / प्रदेश और प्रान्त के तालाब एवं भूदान में दान की गई सार्वजनिक जमीन में अवैध कब्जे और पट्टे करके अतिक्रमण की कहानी को सामने लाने के उद्देश्य से यह अभियान शुरू हुआ ! बड़ी बात है कि जबसे जलयात्रा प्रारंभ हुई बुंदेलखंड पानी - पानी है ! चित्रकूट - ललितपुर और केंद नदी में बाँदा के आस - पास नदियाँ अपने खतरे के निशान से तेन मीटर ऊपर है ! हाँ जालौन में अभी भी सूखे जैसी स्थिति है ! उत्तर प्रदेश प्रेस क्लब सभागार में गत 8 जुलाई को जलयात्री को संबोधित करने के लिए श्री सुधीर जैन ( अध्यक्ष आईआईएफ / स्वतंत्र पत्रकार ),श्री पियूष बबेले ( विशेष संवाददाता इंडिया टुडे / बुंदेलखंड पानी प्रहरी ), स्वामी आनंद स्वरुप ( गंगा मिशन ) ,पूर्व जीआईएस निदेशक / भूगर्भ वैज्ञानिक प्रोफ़ेसर वीके जोशी, डाक्टर विजय पंडित मेरठ , विजय पाल बघेल,दुधवालाइव.कॉम से केके मिश्रा, किसान नेता शिवनारायण सिंह परिहार झाँसी, जीशान अख्तर ( दैनिक भास्कर) आदि ने उपस्थित होकर अभियान के सकारात्मक पक्ष को जलयात्री की हौसलाअफजाई में संबोधन के साथ प्रस्तुत किया ! 
                                                   



                                               
मुक्य वक्ता के रूप में सुधीर जैन ने तालाबो पर अपने वैज्ञानिक / प्रोफेसनल द्रष्टि को तर्कसंगत सार गर्भित वक्तव्य से व्याख्यान में व्यक्त किया है ! उनके संबोधन को हुबहू लिखना निश्चित ही कठिन कार्य है ! उन्होंने कहा  कि एक माह पहले लिखे लेख में मैंने बुंदेलखंड में अबकी बाढ़ की आशंका व्यक्त की थी और ये सूखे के साथ सामने है ! चंदेलकालीन तालाब से हमें सीखने की आवश्यकता है ! वही स्वामी आनंद स्वरुप ने गंगा- यमुना में बढ़ते प्रदूषण पर गहराते संकट को विचार में प्रकट करते हुए कहा कि नमामि गंगे मिशन से कुछ नही होने वाला है यह महज खाना पूर्ति के कदम है ! कितने सदानंद और सानंद ( प्रोफ़ेसर जीडी अग्रवाल ) दम तोड़ते जा रहे है और माँ गंगा म्रत्यु शैया में यथा मरने को अधमरी बह रही है ! भाई पियूष बबेले ने अपने बुंदेलखंड के ' तलाश तालाबों की - तालाब नही यहाँ जिंदगी सूख रही है ' का सन्दर्भ देकर पूर्व में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के साथ 6 सदस्य के ' बुंदेलखंड पेय जल समिति ' के प्रयासों को स्मृति में रखते हुए कहा कि आज सूखे में मचे हल्ले के बीच मुख्यमंत्री का तालाबों पर संजीदा होना और तमाम लोगो का यहाँ तालाब पर अपना  अपना काम इस पहल का आधारभूत परिणाम है ! 
                                                          




जमीन हम तीन साल पहले बना चुके थे ,सुखद है आज तालाब एक विस्तार मुद्दा है बुंदेलखंड में ! उन्होंने जलयात्रा में जुटे युवा साथियों के हौसले को बधाई देते हुए कहा कि सात दिन में 70 गाँव का फेरा मीडिया के लिए मजबूत दस्तावेज बन सकता है ! युवा इसको लेखन में उतारे और शेयर करे ! उन्होंने संबोधन के बाद सुधीर जैन के साथ प्रवासनामखबर.कॉम का विमोचन भी किया ! www.pravasnamakhabar.com प्रोफ़ेसर वीके जोशी ने तालाब और पानी पर अपने अनुभव बांटे ! यात्रा में शामिल रहे रामबाबू तिवारी,नलनी मिश्रा और गौरव पाण्डेय ने अपने अनुभव शेयर किये ! विजय पाल बघेल,डाक्टर विजय पंडित ने हरियाली के उजाड़ की बाते रखी ! कार्यक्रम में निर्णय लिया गया कि जनपदों में इकाई बनाकर इसको व्यापक गति देने की आवश्यकता है ! हिंदुस्तान टाइम्स के पंकज जयसवाल , गाँव कनेक्शन के अरविन्द शुक्ला और सूचनाधिकार से जुडी उर्वशी शर्मा,तनवीर अहमद सिद्दकी इस प्रयास से अभिभूत रहे ! 

विमर्श सत्र के दौरान सुधीर जैन को स्मृति पत्र अंग वस्त्र देकर आभार प्रकट किया गया ! भाई पियूष बबेले को ' बुंदेलखंड रत्न ' सम्मान ,जीशान अख्तर को युवा चेतना,किसान नेता शिवनारायण परिहार को ' वीर बुंदेलखंड' , विजय पाल बघेल को वृक्ष मित्र , डाक्टर विजय पंडित को पर्यावरण प्रहरी स्मृति पत्र देकर आभार प्रकट किया गया ! स्वामी आनंद स्वरूप जी का आशीष कार्यक्रम में सफलता का प्रतीक बना ! आजमगढ़ से आये आवाम का सिनेमा के राष्ट्रीय प्रवक्ता सुनील दत्ता कबीर, शैलेन्द्र श्रीवास्तव नवीन,सूर्यप्रकाश तिवारी प्रवासनामा के हमदर्द बनकर तमाम आंधी की तरह इस बार भी मौजूद रहे ! उधर लोग भी अभियान के समापन के साक्षी बने ! ‪#‎अन्नदाताकीआखत




Tuesday, July 05, 2016

सात दिन जलयात्रा बुंदेलखंड से लखनऊ तक

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         कोई पदचिन्हों पर चलता है,कोई पदचिन्ह बनाता है !


' तालाब अवं भूदान चारागाह मुक्ति अभियान '
 के तहत सात दिवसीय यात्रा के पड़ाव में तीसरे दिन राठ में ज्ञापन - श्वेत पत्र और तालाब, जलाशय के भ्रमण के बाद आस - पास के गांवों में संवाद किया गया ! चरखारी से होते हुए चौथे दिवस 4 जुलाई को उरई के ग्राम मुहोम्दाबाद में चौपाल के बाद सहभागी युवा साथी रामबाबू तिवारी ,नलनी मिश्रा, प्रोफ़ेसर योगेन्द्र यादव , गौरव पाण्डेय ,उपजिलाधिकारी उरई सदर को मांग पत्र दिए है ! उरई के रस्ते कालपी के गाँव में भी भ्रमण करते हुए जलयात्री कानपुर नगर के लिए बढ़ रहे है ! यहाँ जिलाधिकारी / आयुक्त को ज्ञापन दिया जाना है. कानपुर के बाद उन्नाव के ग्रामीण क्षेत्र और राजधानी लखनऊ में समापन दिवस पर राज्यपाल / मुख्यमंत्री को संबोधित श्वेत पत्र दिया जायेगा . आठ जुलाई को राजधानी लखनऊ के प्रेस क्लब में होने वाले समापन सत्र में ये जल योद्धा आपके बीच अपने अनुभव शेयर करेंगे ! 
                                            









विषय वक्ता सुधीर जैन (अध्यक्ष आईआईएफ / पूर्व पत्रकार जनसत्ता ),अरविन्द कुमार सिंह( यायावर सीनियर पत्रकार राज्यसभा टीवी ),पियूष बबेले ( संवाददाता इंडिया टुडे ,सभी विषयों में सामान अधिकार लेखन ),कुलदीप कुमार जैन (जलप्रबंधक ),स्वामी आनंद स्वरुप ( गंगा मिशन ),प्रोफ़ेसर वीके जोशी ( भूगर्भ वैज्ञानिक / पूर्व निदेशक जीआईएस ), केके मिश्रा ( वन्य जीव विशेषज्ञ,दुधवा लाइव ) ,पंकज जायसवाल ( एचटी ),संध्या दिवेदी ( ओपिनियन पोस्ट पत्रिका ),संतोष पाठक भोपाल जन - जन जागरण  आदि के व्याख्यान देश - प्रदेश और बुंदेलखंड के तालाबों , जलाशय और सार्वजनिक चारागाह के मुक्ति हेतु एक साथ होंगे ! इनके अतिरिक्त किसान नेता भारतीय किसान यूनियन भानू शिवनारायण सिंह परिहार ,अरविन्द शुक्ला ( गाँव कनेक्शन ), जीशान अख्तर ( दैनिक भास्कर पोर्टल ), डाक्टर आशीष वशिस्ठ पर्यावरण ग्रीन मैंन विजयपाल बघेल,डाक्टर मेराज अहमद सिद्दकी , स्नेहिल सिंह,डाक्टर विजय पंडित,सूचनाधिकार कार्यकर्ता उर्वशी शर्मा- संजय शर्मा,तनवीर अहमद सिद्दकी,संजय आजाद,डाक्टर आशीष सिंह आशू सहित तमाम गणमान्य की उपस्थिति इस साझे अभियान की आधारशिला होगी ! आपके साथी वीरेंद्र गोयल ,भाई शैलेन्द्र मोहन श्रीवास्तव,सूर्यप्रकाश तिवारी (अन्नदाता की आखत अभियान ) / स्थानीय लोग प्रतीक्षारत है !

तालाब के दलाल बुंदेलखंड का सुखाड़ बेच रहे

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साभार - श्री पंकज चतुर्वेदी जी के ब्लाग से - 

दलाल अब तालाब भी नहीं छोड रहे हैं  !!

बुंदेलखंड के उप्र के महोबा जिले की रिवई पंचायत के तीन गांव हैं पास पास ही, वहां खेतों में तालाब बनाने की योजना के तहत 26 तालाब बन गए जिसमें किसानों को उनके खाते में सीधे 52 हजार पांच सौ का भुगतान हुआ.बहरहाल यह अलब बहस है कि क्‍या केवल चौरस खोदा गया गढडा तालाब कहलाएगा या नहीं . जिसमें मवेशी या इंसान नीचे तक नहीं उतर सकता. लेकिन यहां चार पुराने तालाब भी हैं जो लगभग समाप्‍त हो रहे हैं, एक में गांव की गंदी नालियां जा रही हैं, तालाब प्रेमी बन कर उभरे कतिपय समाजसेवियों को उनकी चिंता नहीं रही. इसमें कारपोरेट भी घुस आयाा. नोएडा का एक समूह है धरमपाल सत्‍यपाल = रजनीगंधा के नाम से उत्‍पाद हैं उनके. उनका भी इलाके में कारपोरेट सोशल रिस्‍पोंसेबिलीटी के तहत प्रोजेक्‍ट है. सुनेचा गांव के बाहर एक पुराना तालाब है भगवत सागर, शायद चार सौ साल पुराना मालगुजारी तालाब, लगभग 22 बीघे का होगा. इसमें पानी अाने के पारंपरिक हिस्‍से को घेर कर खेत बना लिया गया. पुलिया में पत्‍थर फंसा दिए गए, लेकिन जैसे ही खबर मिली कि दिल्‍ली से कुछ पत्रकार आ रहे हैं तो चार दिन जेसीबी व पोकलैंड मशीन लगा कर उसकी बेतरतीब खुदाई करवा दी गई. कहीं एक फुट गहरा तो कहीं पांच फुट, कहीं बिल्‍कुल नहीं. फिर काम बंद कर दिया गया. कोई सामान्‍य नजर से भी देखेगा तो पता चल जाएगा कि पुराने बुंदेली मालगुजारी तालाब के बडे हिस्‍से पर लेाग कब्‍जा कर चुके हैं और यह पूरी तरह खाली पडा है. इसमें खुदाई के नाम पर दखिावा भी हुआ, लेकिन इसमें पानी कभी नहीं भरेगा. यह है तालाब बाजों के कारनामे जाे अब कारपोरेटों को सामाजिक जिम्‍मेदारी के नाम पर तालाबों के साथ इस तरह की छेडछाड करने के लिए आमंति्रत कर रहे हैं और दो हजार गडढे खुदवाने का काम तो चल ही रहा है. जरा इन चित्रो में देखें, तालाब का जो हिस्‍सा उंचा हैं वहां मिट्टी खोद कर डाल दी और जहां से निकासी होना चाहिए उसे खुला छोड दिया गया. 
                                                     



                                           

गांव के पास स्थित मंगल तालाब जिसका रकवा आठ हेक्टेयर से अधिक है मोती तालाब का रकवा पांच हेक्टेयर से अधिक है तथा हनुमान तलैया का रकवा भी चार हेक्टेयर के आसपास है। फिर भी इन तालाओं के गहरीकरण कराये जाने की शासन प्रशासन सुध नही ले रहा है।ऐसे ही दलाल आज फोन कर गाली दे रहे हैा मुझे,धमकी दे रहे है, मैं सन 1986 से बुंदेलखंड के तालबों पर लखि रहा हूं और दलाल मुझे घटिया लेखक कह रहे हैं जिन्‍होंने इस इलाके को अभी दो साल पहले ही देखा होगा. यह उनकी खीज है, आगे भी और ऐसे ही खुलासे करूंगा.यहां भी और अन्‍य माध्‍यमों पर भी. 
यहां कर्जा दिलवाने, मशीने किराये पर लाने, कारपोरेट के अधूरे कामों को वाह वाही दिलवाने के बाकायदा दलाल सक्रिय हैं जिनके चैहरे जल्‍द ही बेनकाब होंगे 







कम से कम ये कुण्ड तालाब तो नही है !

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कम से कम यह तालाब तो नहीं है   साभार -  पंकज चतुर्वेदी जी के ब्लाग से प्रस्तुत 
दैनिक जागरण 5-7-16
बुंदेलखंड क्षेत्र के कुलपहाड़ कस्बे के देहाती क्षेत्र की पंचयात है-इनौरा। पिछले दिनों कुछ अफसर व एनजीओ वाले उनके यहां आए, वन विभाग की जमीन पर बने पुराने तालाब पर एक घंटे पोकलैंड मशीन चलाई, दूसरे तालाब पर एक घंटे में पत्थर लगवाए, फोटो खिंचवाए और चले गए। ग्राम सरपंच वीरेन्द्र यादव (भान सिंह का खुड़ा) उनसे कहते रहे कि इसमें पानी नहीं टिकेगा क्योंकि इसके निचले हिस्से को खुला छोड़ दिया है, पर किसी ने सुनी नहीं। एक जुलाई को पानी बरसा तो उसमें पानी तो ठहरा नहीं, दूसरी तरफ वहां से निकली पानी की धार ने ढेर सारी जमीन काट और दी। सरचंप श्री यादव दुखी हैं कि यह योजना तालाब बचाने से यादा फोटो खिंचाने की है। हाल ही में सेंटर फार साइंस एंड इनवायरमेंट (सीएसई) ने बुंदेलखंड के सूखे पर झांसी में एक सेमीनार और अगले दिन महोबा और बांदा जिले के कुछ ऐसे इलाकों के भ्रमण का अयोजन किया, जहां तालाब खेत बनाए जा रहे हैं। इस आयोजन में राजस्थान के लापोडिया में तालाब गढने वाले लक्ष्मण सिंह से ले कर मराठवाड़ा से ललित बाबर व पंडित वासरे, बुंदेलखंड से ही कई पानी-सहेजने वाले अनुभवी लोग शामिल हुए थे। झांसी से 225 किलोमीटर के रास्ते में यह देखना सुखद था कि सड़क के दोनों तरफ किसानों ने अपने खेतों में तालाब से निकली काली गाद को बिछा रखा था। सनद रहे इलाके के कई बड़े तालबों की सफाई व गहराई का काम कहीं सरकार तो बहुत सी जगह आम लोग कर रहे हैं। पहली ही बारिश में उसका असर भी दिखा और जल-निधियां तर हो गईं। 
एक दशक के दौरान कम से कम तीन बार उम्मीद से कम मेघ बरसना बुंदेलखंड की सदियों की परंपरा रही है। यहां के पारंपरिक कुएं, तालाब और पहाड़ कभी भी समाज को इं्रद्र की बेरूखी के सामने झुकने नहीं देते थे। जिन लोगों ने तालाब बचाए, वे प्यास व पलायन से निरापद रहे। अनेक विद्वानों ने भारत के विभिन्न क्षेत्रों में बनी जल संचय प्रणालियों का गहन अध्ययन कर उनका विवरण प्रस्तुत किया है। इस विवरण में जल संरचनाओं की विविधता के साथ-साथ उस क्षेत्र की जलवायु से उनका सह-संबंध प्रतिपादित होता है। 
केंद्र सरकार के पिछले महीने आए बजट में यह बात सुखद है कि सरकार ने स्वीकार कर लिया कि देश की तरक्की के लिए गांव व खेत जरूरी हैं, दूसरा खेत के लिए पानी चाहिए व पानी के लिए बारिश की हर बूंद को सहेजने के पारंपरिक उपाय यादा कारगर हैं। तभी खेतों में पांच लाख तालाब खोदने व उसे मनरेगा के कार्य में शामिल करने का उल्लेख बजट में किया गया है। खेत में तालाब यानि किसान के अपने खेत के बीच उसके द्वारा बनाया गया तालाब, जिससे वह सिंचाई करे, अपने इलाके का भूजल स्तर को समृद्ध करे और तालाब में मछली, सिंघाड़ा आदि उगा कर कमाई बढ़ाए। ऐसा भी नहीं है कि यह कोई नया या अनूठी योजना है। इससे पहले मध्य प्रदेश में बलराम तालाब, और ऐसी ही कई योजनाएं व हाल ही में उ.प्र. के बुंदेलखंड के सूखाग्रस्त इलाके में कुछ लोग ऐसे प्रयोग कर रहे हैं। सरकारी सोच की तारीफ इसलिए जरूरी है कि यह तो माना कि बड़े बांध के व्यय, समय और नुकसान की तुलना में छोटी व स्थानीय सिंचाई इकाई यादा कारगर हैं। 
सबसे बड़े सवाल खड़े हुए खेत-तालाब योजना पर। इस योजना में उत्तर प्रदेश सरकार कुल एक लाख पांच हजार का व्यय मान रही है और इसका आधा सरकार जमा करती है, जबकि आधा किसान वहन करता है। असल में इस येाजना को जब राय सरकार के अफसरों ने कुछ एनजीओं के साथ मिलकर तैयार किया था तो उसमें मशीनों से काम करवाने का प्रावधान नहीं था। यह खुदाई इंसान द्वारा की जानी थी, सो इसका अनुमानित व्यय एक लाख रखा गया था। बाद में पलायन के कारण यहां मजूदर मिले नहीं, लक्ष्य को पूरा करना था, सो आधे से भी कम व्यय में मशीने लगा कर कुंड खोदे गए। यही नहीं इसके लिए किसान को पंजीकरण उप्र सरकार के कृषि विभाग के पोर्टल पर ऑनलाइन करना होता है। कहने की जरूरत नहीं कि यह किसान के लिए संभव नहीं है। और यहीं से बिचौलियों की भूमिका शुरू हो जाती है। 
हालांकि यह भी सही है कि जो संरचना तैयार की गई है, उसे तालाब तो नहीं कहा जा सकता। यह कुंड है जो कि चार मीटर गहरा है और उसकी लंबाई चौड़ाई 30 गुणा 25 मीटर लगभग हैं। यह पूरा काम पानी की आवक या निकासी के गणित को सोचे बगैर पोकलैंड मशीनों से करवाया जाता है और इसका असल खर्च सरकारी अनुदान से भी कम होता हैं। 
तालाब की सीधी चार मीटर की गहराई में कोई मवेशी तो नीचे उतर कर पानी पी नहीं सकता। इंसान का भी वहां तक पुहंचना खतरे से खाली नहीं हैं। फिर यहां की पीली मिट्टी, जो कि धीरे-धीरे पानी को सोखती हैं व गहराई से दलदल का निर्माण करती है। लापोरिया, राजस्थान में कई तालाब बनाने वाले लक्ष्मण सिंह का स्वयं कहना है कि इस तरह की संरचना को तालाब तो नहीं ही कह सकते हैं। इस तरह की आकृति भले ही तात्कालिक रूप से जमीन की नमी बनाए रखने या सिंचाई में काम आए, लेकिन इसकी आयु यादा नहीं होती। 
इसमें कोई शक नहीं कि नए तालाब जरूर बनें, लेकिन आखिर पुराने तालाबों को जिंदा करने से क्यांे बचा जा रहा है? लेकिन तालाब के नाम पर महज गड्ढे खोदना इसका विकल्प नहीं है। तालाब गांव की लेाक भावना का प्रतीक हैं यानि सामूहिक, सामुदायिक, जबकि खेतों में खुदे कुंड निजी। उसमें भी पैसे वाले किसान जो कि 52 हजार जेब में रखता हो, उन्हीं के लिए। ऐसे खेत तालाब तात्कालिक रूप से तो उपयेागी हो सकते हैं, लेकिन दूरगामी सोच तो यही होगी कि मद्रास रेसीडेंसी के ‘ऐरी तालाब प्रणाली’’ के अनुरूप सार्वजनिक तालाबों को संरक्षित किया जाए व उसका प्रबंधन समाज को सौंपा जाए। 
चाहे कालाहांडी हो या बुंदेलखंड या फिर तेलंगाना; देश के जल-संकट वाले सभी इलाकों की कहानी एक ही है। इन सभी इलाकों में एक सदी पहले तक कई-कई सौ बेहतरीन तालाब होते थे। यहां के तालाब केवल लोगों की प्यास ही नहीं बुझाते थे, यहां की अर्थ व्यवस्था का मूल आधार भी होते थे। तालाब महज पानी सहेजने का जरिया नहीं होते, उका पूरा एक पर्यावणीय तंत्र होता है। जो पंक्षी, मछली, पेड़, गाद, समाज को एक-दूसरे पर निर्भर रहने का संदेश देता है। जबकि खेत में बनाए गए कुंड दिखावे या तात्कालिक जरूरत की पूर्ति के लिए हैं। पुराने तालाब मछली, कमल गट्टा , सिंघाड़ा, कुम्हार के लिए चिकनी मिट्टी ; यहां के हजारों-हजार घरों के लिए खाना उगाहते रहे हैं। तालाबों का पानी यहां के कुओं का जल स्तर बनाए रखने में सहायक होते थे। शहरीकरण की चपेट में लोग तालाबों को ही पी गए और अब उनके पास पीने के लिए कुछ नहीं बचा है। 
काश किसी बड़े बांध पर हो रहे समूचे व्यय के बराबर राशि एक बार एक साल विशेष अभियान चला कर पूरे देश के पारंपरिक तालाबों की गाद हटाने, अतिक्रमण मुक्त बनाने में खर्च कर दिया जाए तो भले ही कितनी भी कम बारिश हो, ना तो देश का कोई कंठ सूखा रहेगा और ना ही जमीन की नमी मारी जाएगी।

Monday, July 04, 2016

' बुंदेलखंड से लखनऊ तक पानी यात्रा ' !

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‪#‎सातदिवसीयपानीयात्रा2016‬ ‪#‎तालाबएवंभूदानचारागाहमुक्तिअभियान‬ 
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साल 2016 बुंदेलखंड और मराठवाडा के लिए पानी की जद्दोजहद और सूखे की ख़बरों से गर्म रहा है.ये गर्मी के तीन माह शायद अब तक के सबसे अधिक मीडिया बाजार में ऊँचे पायदान पर रहे है ! समस्या का समाधान तो नही हुआ हाँ गायन अवश्य किया गया मुद्दे को सनसनी बनाकर ! गाहे - बगाहे कुछ ऐसे भी प्रयास किये जा रहे है युवा साथियों के माध्यम से जो भविष्य के पन्नो में दर्ज हो सकते है ! बुंदेलखंड में सात दिन तक चलने वाली जलयात्रा ' तालाब एवं भूदान चारागाह मुक्ति अभियान ' के नाम से प्ररम्भ की गई है यह आठ जुलाई को राजधानी लखनऊ तक का सफ़र तय करके चित्रकूट और कानपुर मंडल के करीब तीन सैकड़ा गाँव से निकलेगी ! पानी की चर्चा और तालाब , चारागाह की तलाश करते हुए ! 

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बाँदा - एक जुलाई 2016 दिन शुक्रवार को बुंदेलखंड के बाँदा से प्रारंभ हुई पानी यात्रा ! ' तालाब एवं भूदान चारागाह मुक्ति अभियान ' के सौंजन्य से छाबी तालाब मैदान में प्रातः ग्यारह बजे से विचार संवाद के बाद सात दिवसीय यात्रा को तिंदवारी विधायक / कांग्रेस प्रदेश उपाध्यक्ष दलजीत सिंह,प्रभागीय वन अधिकारी बाँदा प्रमोद गुप्ता, वन रेंजर जेके जयसवाल , उप प्रभागीय वन अधिकारी टीएन सिंह,सरगम कनवेनर सुनील कुमार सनी,पूर्व प्रधानाचार्य बाबूलाल गुप्ता ( रेडक्रास सोसाइटी सचिव ),केशव पाल सहित अन्य स्थानीय लोगो की उपस्थिति में प्रस्थान हुआ ! छाबी तालाब की दुर्दशा के लिए नगर पालिका अध्यक्ष बाँदा विनोद जैन सहित सदर उपजिलाधिकारी / जिलाधिकारी बाँदा के प्रासंगिक पद पर बड़े सवाल खड़े किये गए ! भाजपा समर्थित अध्यक्ष विनोद जैन लोकायुक्त की गिरफ्त में उलझी है पहले ही ! बाँदा के अच्छे दिन वाले पार्टी ने कभी भी इनके खिलाफ मोर्चा नही लिया क्योकि अन्दर की पोल खुल जाएगी ! तालाब की भूमि में आंगनबाड़ी के बाद अब ओम विद्या मंदिर स्कूल और शौचालय निर्माण करवाकर नीर के सीने में मैला बहाने का कारनामा नगर पालिका अध्यक्ष और बाँदा प्रसाशन करने जा रहा है ! विधायक दलजीत सिंह ने किसान के लिए पानी, चारा संकट और मुफ्तखोरी को उसकी हालत का ज़िम्मेदार ठहराया ! इलाहाबाद केन्द्रीय विश्व विद्यालय के युवा जल योद्धा और सामाजिक संगठन के साथी इस अभियान का अभिन्न हिस्सा है ! 
                                                   





गौरतलब है पानी यात्रा के प्रथम दिवस में बाँदा से महोबा तक जमकर पानी बरसा ! रामबाबू तिवारी ( जल बचाओ आन्दोलन ),नलनी मिश्रा , स्नेहिल सिंह , प्रणव , गौरव पाण्डेय , धंनजय चौधरी, राघवेन्द्र मिश्रा आदि ने यात्रा की साझी सहभागिता की है ! सर्वोदय विचार धारा के प्रोफ़ेसर योगेन्द्र यादव ( घाना दक्षिण अफ्रीका गेस्ट प्रवक्ता ) ने तालाब को पब्लिक और सरकारी उपेक्षा का गढ़ बतलाया ! वही डीएफओ बाँदा ने वन उत्सव का आगाज करते हुए युवा साथियों के साथ 5 पेड़ लगाकर आगामी ग्यारह जुलाई के प्रदेश व्यापी 5 करोड़ पौधरोपण का प्रारंभ किया ! लेकिन वे पिछले नवम्बर माह में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के बनाये कागजी विश्व रिकार्ड एक दिन में एक दस लाख पौध रोपण का हिसाब नही दे पाए ! मालूम रहे ये ढाई लाख पौधे मौदहा बांध में भी लगे जो गर्मी के सूखे में उजाड़ हो गए है ! अबकी जुलाई में होने वाले पौध रोपण में प्रति पौधा लगवाई 18 रूपये और अन्य विभागीय खर्चा मिलाकर ये करीब तीस रूपये का एक पौधा पड़ेगा ! प्रत्येक जिले में 5 लाख का लक्ष्य है एक दिन में ही ? विमर्श को संबोधन और पौधरोपण के बाद उपस्थित गणमान्य ने रथ / ट्रेवलर वाहन को हरी झंडी दिखलाकर अगले पड़ाव वाया मटोंध ,कबरई महोबा के लिए रवाना किया ! एक जुलाई को ही शाम 5 से 6 बजे तक जिलाधिकारी के साथ कीरत सागर में श्वेत पत्र देने की तयशुदा रणनीति रही ! इस ज्ञापन श्वेत पत्र में देश और प्रदेश के तालाबों को लेकर तालाब विकास प्राधिकरण बनाए जाने की मांग की गई है ! तालाब के सिल्ट / गाद / खोदने में टेंडरिंग और ठेकेदारी व्यवस्था बंद करने की मांग की गई ! 

अपना तालाब का गड्ढो के लिए कार्पोरेटी रजनीगंधा से अनुबंध !

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 बुंदेलखंड में दिल्ली की कम्पनी अब तालाब खोदेगी ! सूखे से बेकार मानव श्रम को दरकिनार करके एनजीओ वाले यहाँ कार्पोरेट की मशीन और फंड से अपना तालाब / खेत तालाब के सोख्ता गड्ढे निर्माण कर रहे है ! रजनीगंधा गुटखा बनाने वाली कम्पनी के सीएसआर प्रोजेक्ट से ये कुंडनुमा तालाब एक पानी वाला पोर्टल बनवा रहा है ! किसानों का पंजीयन और उनके तालाबो का प्रमाणीकरण भी ये कम्पनी / पानी पोर्टल करेंगे ! बुंदेलखंड का सूखा भी कुछ कथित समाजसेवक के लिए लूट तंत्र बन गया है...

‪#‎खेततालाबयोजना‬ ‪#‎अपनातालाबअभियानमहोबा‬ 
उत्तर प्रदेश सरकार बुंदेलखंड में दो हजार खेत तालाब बना रही है ! उन्हें ये नही जानकारी है कि तालाब थाल और तसले की तरह होते है सोख्ता टैंक या कुंडनुमा गहरे गड्ढे नही ! जिसमे बारिश का पानी स्टोर करने की कवायद को तालाब चालीसा नाम दिया जा रहा है ! ‪#‎अपनातालाब‬ ‪#‎खेततालाब‬ 
4 जुलाई - बुंदेलखंड में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का दो हजार खेत तालाब योजना का फरमान कुछ लोगो के लिए कमाई का साधन बन गया है ! जहाँ एक तरफ प्रसाशनिक अमला खेत तालाब का लक्ष्य पूरा नही कर पाया अपने मानसूनी सत्र जुलाई में मुख्य सचिव के फरमान बाद ! ये अवसर भुनाने में अब खेत तालाब / अपना तालाब की टीम लग गई है ! मुख्य सचिव अलोक रंजन / वर्तमान कैबनेट मंत्री को गत माह सर्दी में बाँदा के ग्राम पडुई सुहाना में अपने एक दिवसीय रात्रि प्रवास के दौरान खेत तालाब / अपना तालाब अभियान के तहत दो हजार तालाब निर्माण करवाने की सलाह दी गई थी ! इस तालाब का माडल बाँदा कृषि विश्व विद्यालय के कृषि वैज्ञानिक पहले ही ठुकरा चुके है ! इसमे पानी आने का रस्ता ही नही है ! मानसून के पानी से गर ये भर भी गए तो आये दिन अन्ना जानवर इसमे गिरकर मरेंगे वो ब्याज में ! इस बारिश के बाद इनका सच सबके सामने आएगा जब ये सुखाड़ का स्थाई समाधान नही गाद और गड्ढो की लम्बी खेप मात्र होगी ! इसकी गहराई कुंड / सोख्ता टैंक जैसी है ! खेत तालाब में न पानी आवक का रास्ता छोड़ा गया और न कैचमेंट देखा गया एरिया का ! उधर दिल्ली की कम्पनी रजनीगंधा समर्थित सीएसआर प्रोजेक्ट से इसका हल्ला मचाने वाले अपने टार्गेट के मुताबिक महोबा आकर खन्ना क्षेत्र में पोकलैंड / जेसीबी मशीनों से किसान के खेत में चार मुंह चिढाने वाले कुंडनुमा गहरे गड्ढे / तालाब खोद कर बना चुके है ! इनके झोलों में दो हजार तालाब पड़े रहते है !
                                                    




कम्पनी के तालाब का एक पानी के पोर्टल में पंजीयन किया जा रहा है शायद ये उसको चलाने वाली संस्था का प्रोजेक्ट है ! अक्षर ज्ञान से महरूम किसान को पानी के सब्जबाग दिखलाकर बीच की कमीशन खोरी जारी है ! किसान का सूखा भी उसकी लूट का पर्याय है !
उल्लेखनीय है कि महोबा में मदन सागर और कीरत सागर के चारो तरफ तिलिस्मी पाल / बेहद ऊँची दीवार बनाकर जिलाधिकारी ने अवैध कब्जो को सुरक्षित कर दिया है ! उन्हें प्रमोट करने वाले लोगो का दावा है कि ज़िलाधिअकरी ने ऐतिहासिक काम किया है ! यह काम उनकी वाहवाही का साधन बन गया है साहेब ने तालाब गहरे करा दिए है ! जबकि मदन सागर में पट्टे और उसमे खेती करवाने की जुगत भी किसी से छुपी नही है ! बिना अवैध कब्जे हटाये तालाब की पाल क्यों तैयार की गई ये अंदरखाने की बात है ! वैसे बुन्देलखण्ड का सूखा दिल्ली से पलायन करने वाले पानी दारों और मढ़ी ढोलक को बजाने वाले लोगो के लिए माकूल पर्यावरण है ! ये कुछ वैसा है यथा ' किस - किस को देखिये , किस - किसको रोइए , आराम बड़ी चीज है , मुंह ढककर सोइए ' ! 
तस्वीर में महोबा का कीरत सागर एक जुलाई पानी यात्रा के समय जिलाधिकारी को मांग पत्र देते समय कि देश में तालाब विकास प्राधिकरण बने, तालाब खुदवाई में टेंडरिंग / ठेकेदारी व्यवस्था बंद हो , अवैध कब्जे कोर्ट आदेश अनुसार हटाये जाए