Saturday, February 25, 2012

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चुप क्यों हैं मायावती!

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नसीमुद्दीन मायावती के सबसे खास मंत्री, राजनीतिक साथी और राजदार हैं। उनका कटघरे में खड़े होने का मतलब है आज नहीं तो कल जांच का दायरा मायावती तक जरूर पहुंचेगा. बाबूसिंह कुशवाहा को मायावती का खजांची कहा जाता था, लेकिन खजाने में पैसा भरने और उगाही का जिम्मा नसीमुद्दीन का था...
आशीष वशिष्ट
आपरेशन क्लीन चलाकर दागियों को बाहर का रास्ता दिखाने, एक सौ से अधिक दागी मंत्रियों-विधायकों और नेताओं का टिकट काटने का दम ठोकने और लोकायुक्त की सिफारश पर आधा दर्जन से अधिक मंत्रियों को पद से हटाने की त्वरित कार्रवाई करने वाली बसपा सुप्रीमो मायावती की नसीमुद्दीन मामले में चुप्पी अकारण नहीं लग रही है।
लोकायुक्त ने प्रदेश सरकार के सबसे ताकतवर और मायावती के करीबी मंत्री नसीमुद्दीन पर कार्रवाई की संस्तुति में प्रदेश सरकार से कहा कि एक माह में किसी उचित एजेंसी से जांच कराकर कार्रवाई से उन्हें अवगत कराया जाए। पिछले दिनों कई मंत्रियों के खिलाफ लोकायुक्त रिपोर्ट आने के बाद और कुछ अन्य के खिलाफ जांच रिपोर्ट आने के पहले ही मुख्यमंत्री ने उनकी बर्खास्तगी की कार्रवाई की थी। लेकिन नसीमुद्दीन के खिलाफ कार्रवाई करने में तेजी न दिखाना साफ तौर पर इशारा करता है कि मायावती- नसीमुद्दीन में गहरी सांठ-गांठ और मिलीभगत है।
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सूत्रों के अनुसार जांच में दोषी पाए गए अन्य मंत्रियों के मामले में मायावती की कार्रवाई के पैमाने को आधार माना जाए तो नसीमुद्दीन के खिलाफ मुख्यमंत्री को कार्रवाई करनी चाहिए। लोकायुक्त जस्टिस मेहरोत्रा ने एक सवाल के जवाब में यह बात स्पष्ट की है कि चूंकि विधानसभा का कार्यकाल समाप्त होने को है, इसलिए उन्होंने नसीमुद्दीन को मंत्रिमंडल से बाहर करने की सिफारिश करना उचित नहीं समझा।
लोकायुक्त कानून के दायरे में जांच और कार्रवाई की सिफारिश कर सकते हैं, लेकिन संविधान, कानून और नियमों से ऊपर नैतिकता होती है। जब मायावती दम ठोंक कर यह दावा करती है कि बसपा में दागियों के लिए बसपा में कोई स्थान नहीं है, तो समझ में नहीं आता है कि उस समय वो नसीमुद्दीन का नाम और चेहरा पता नहीं क्यों भूल जाती हैं।
नसीमुद्दीन पर भ्रष्टाचार के सबसे गंभीर आरोप लगे हैं और कई अन्य मामलों में जांच-पड़ताल अभी जारी है। ऐसे में माया का उन पर नैतिक तौर पर कोई कार्रवाई न करना कई सवाल पैदा करता है। भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे नसीमुद्दीन पर उठ रही अंगुलिया कहीं न कहीं मायावती को संदेह के कटघरे में खड़ा करती हैं।
गौरतलब है कि नसीमुद्दीन से पहले मुख्यमंत्री मायावती छह मंत्रियों के खिलाफ लोकायुक्त की सिफारिश पर कार्रवाई कर उन्हें मंत्रिमंडल से बाहर का रास्ता दिखा चुकी हैं। अधिकतर मामलों में कार्रवाई चंद मिनटों और आनन-फानन में हुई। पशुपालन व दुग्ध विकास मंत्री अवधपाल सिंह यादव के खिलाफ लोकायुक्त ने 10 अक्टूबर 2011 को सिफारिश की और मायावती ने उसी दिन मंत्री महोदय से इस्तीफा ले लिया।
धर्मार्थ कार्य मंत्री राजेश त्रिपाठी के विरुद्ध लोकायुक्त ने 25 दिसंबर 2011 को सिफारिश की, तो मुख्यमंत्री ने लोकायुक्त की सिफारिश के दो घंटे के अंदर ही उनसे इस्तीफा ले लिया था। माध्यमिक शिक्षा मंत्री रंगनाथ मिश्र के खिलाफ लोकायुक्त ने 4 अक्टूबर 2011 को सिफारिश की और अगले दिन उन्हें मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया गया।
श्रम मंत्री बादशाह सिंह के खिलाफ लोकायुक्त जांच चलने के दौरान ही उनसे पांच अक्टूबर को इस्तीफा ले लिया गया, जबकि लोकायुक्त ने उनके खिलाफ सिफारिश10 अक्टूबर 2011 को की थी। अंबेडकर ग्रामीण समग्र विकास मंत्री रतनलाल अहिरवार के खिलाफ लोकायुक्त ने 28 नवंबर को कार्रवाई की सिफारिश की और एक दिसंबर को उनसे इस्तीफा ले लिया गया। लघु उद्योग मंत्री चंद्रदेव राम यादव के खिलाफ लोकायुक्त ने 28 दिसबंर को सिफारिश की और उनसे 19 जनवरी को इस्तीफा ले लिया गया।
आधा दर्जन मंत्रियों पर कार्रवाई में तेजी दिखाने वाली मायावती अपने सबसे खास सिपहसलार और राजदार नसीमुद्दीन सिद्दकी पर कार्रवाई को जान बूझकर टाल रही हैं, जबकि लोकायुक्त ने मामले की गंभीरता और व्यापक फैलाव को ही देखते हुए नसीमुद्दीन सिद्दकी, उनकी एमएलसी पत्नी हुस्ना सिद्दकी और अन्य परिजनों की प्रापर्टी की जांच सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) से कराने की सिफारिश की है।
नसीमुद्दीन सिद्दकी मायावती के सबसे खास मंत्री, राजनीतिक साथी और राजदार हैं। उनका कटघरे में खड़े होने का मतलब है कि आज नहीं तो कल जांच का दायरा और कानून के हाथ मायावती के गिरेबान तक जरूर पहुचेंगे। बाबूसिंह कुशवाहा को मायावती का खजांची कहा जाता था, लेकिन खजाने में पैसा भरने और उगाही का जिम्मा नसीमुद्दीन के जिम्मे था।
नसीमुद्दीन आबकारी, पीडब्लयूडी, सिंचाई जैसे तमाम मोटी कमाई वाले तकरीबन एक दर्जन विभागों के मंत्री हैं। लक्ष्मी की उन पर अपार कृपा है। फंड कलेक्शन का काम वही करते हैं, ये बात किसी से छिपी नहीं है। पिछले पांच सालों में नसीमुद्दीन ही नहीं उनके पीए तक करोड़पति हो चुके हैं। नसीमुद्दीन के बंगले पर काम करने वाले चपरासी तक प्रतिदिन हजारों की टिप्स आसानी से पाते हैं।
नसीमुद्दीन का कद का अंदाजा इस से भी लगाया जा सकता है कि विक्रमादित्य मार्ग पर स्थित उनके बंगले का साइज, रूतबा और शान मायावती के 5 कालीदास मार्ग के बंगले के समान है। उन पर कोई कार्रवाई करने और लोकायुक्त की सिफारिश को मानने से पूर्व मायावती को हजार बार सोचना पड़ेगा। नसीमुद्दीन मायावती के बारे में जितना जानते हैं उतना शायद कोई और नहीं।
बसपा सुप्रीमो को इस बात का पूरा इल्म है। ऐसे में नसीमुद्दीन पर कार्रवाई टालने का वह हरसंभव प्रयास करेगी, क्योंकि नसीमुद्दीन के कानूनी शिकंजे में फंसने का मतलब है कि अगला नम्बर खुद मायावती का ही होगा। तमाम भ्रष्टों की सरताज और असली बॉस तो वही हैं।

Wednesday, February 22, 2012

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लखनऊ [जाब्यू]। लोकायुक्त की जांच ने अब मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी व उनकी एमएलसी पत्नी हुस्ना सिद्दीकी की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। जांच में सिद्दीकी दंपत्तिके पास आय से कई गुना अधिक संपत्तिका खुलासा हुआ है। लोकायुक्त ने प्रकरण की गंभीरता को देखते हुए मुख्यमंत्री से इसकी सीबीआइ या प्रवर्तन निदेशालय से जांच कराए जाने की सिफारिश की है।
दरअसल नसीमुद्दीन के खिलाफ लोकायुक्त तीन शिकायतों पर जांच कर रहे हैं। करीब ढाई माह पहले नौ दिसंबर को जगदीश नारायन शुक्ला ने लोकायुक्त से नसीमुद्दीन व उनकी पत्नी हुस्ना के खिलाफ शिकायत करते हुए कई आरोप लगाए थे। लोकायुक्त की जांच में कई आरोप सही पाए गए हैं। लोकायुक्त न्यायमूर्ति एनके मेहरोत्रा ने बताया कि उन्होंने आरोपों की 929 पेज की जांच रिपोर्ट संस्तुतियों के साथ बुधवार को मुख्यमंत्री को भेज दी है। रिपोर्ट में उन्होंने कहा है कि हुस्ना के नाम बाराबंकी, लखनऊ व बांदा में जो संपत्तिहैं। नसीमुद्दीन ने जिन बेनामी संपत्तिमें अपना धन लगाया है वह उनकी आय के ज्ञात स्रोत से अधिक लगती है। आयकर रिटर्न के मुताबिक सिद्दीकी दंपत्तिकी चार वर्ष की आय करीब 1.93 करोड़ रुपये रही है जबकि लोकायुक्त का कहना है कि उन्होंने उक्त दोनों की जिन संपत्तिायों का मूल्यांकन संबंधित विभागों से कराया है वे ही न्यूनतम 50 करोड़ रुपये की बतायी गई हैं।
न्यायमूर्ति मेहरोत्रा ने बताया चूंकि उनके पास इस तरह के मामले की विस्तृत जांच करने के लिए कोई जांच एजेंसी नहीं है इसलिए संपत्तिायों के क्रय करने में जो तथाकथित कालाधन लगाया गया है उसकी जांच किसी निष्पक्ष केंद्रीय एजेंसी से होनी चाहिए। जांच में अवैध धन शोधन [मनी लांड्रिंग का मामला] पाए जाने पर सिद्दीकी के विरूद्ध भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम व धन-शोधन निवारण अधिनियम [मनी लांड्रिंग एक्ट] के तहत कार्रवाई की जाए। लोकायुक्त ने बताया कि उन्होंने मुख्यमंत्री से प्रकरण को सीबीआइ या प्रवर्तन निदेशालय जैसी केंद्रीय जांच एजेंसी को सौंपते हुए उससे जांच कराने की सिफारिश की है। सिफारिश पर क्रियान्वयन के लिए एक माह की मोहलत दी गई है। लोकायुक्त ने बताया मंत्री के खिलाफ अन्य शिकायतों में भी कुछ आरोप हैं जो इसमें भी है। उनके बारे में दूसरी रिपोर्ट में सिफारिश की जाएगी।
शिकायत में यह थे प्रमुख आरोप
नसीमुद्दीन सिद्दीकी व हुस्ना सिद्दीकी पर पद का दुरुपयोग कर आय से अधिक संपत्तिअर्जित करने, क्यू एफ एजूकेशनल ट्रस्ट के नाम पर बाराबंकी में कृषि भूमि दर्शाते हुए अकूत संपत्तिखरीदने, ट्रस्ट के नाम करोड़ों का दान लेने, संपत्तिको छिपाते हुए झूठा शपथ पत्र देने, परिवारीजनों व रिश्तेदारों को पहाड़ व बालू के पट्टे करवाने, नजूल भूमि का अनियमित तरीके से फ्रीहोल्ड कराने, बुंदेलखंड पैकेज से रिश्तेदारों को फायदा पहुंचाने आदि के आरोप लगाए गए थे।
बुंदेलखंड विकास निधि के अनुदान देने पर भी उठाए सवाल
लखनऊ। बुंदेलखंड क्षेत्र विकास पैकेज के तहत कृषि यंत्रों के लिए अनुदान देने की प्रक्रिया पर लोकायुक्त ने सवाल उठाए हैं। लोकायुक्त का कहना है कि अनुदान देने में निर्धारित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया। लोकायुक्त को अनुदान देने में अनियमितता में नसीमुद्दीन की तो सीधे तौर पर संलिप्तता नहीं मिली है लेकिन उन्होंने कृषि मंत्री होने के नाते दायित्व का निर्वाह न करने का जिम्मेदार माना है। लोकायुक्त का कहना है कि पैकेज की धनराशि के खर्च करने में गड़बड़ी की किसी बड़ी स्वतंत्र जांच एजेंसी से जांच करायी जानी चाहिए।
इन बिन्दुओं पर जांच करे एजेंसी
लखनऊ। लोकायुक्त ने जांच एजेंसी से खासतौर से छह बिन्दुओं पर विस्तृत जांच कराए जाने की सिफारिश की है। कहा गया है कि जांच एजेंसी क्यूएफ शिक्षण संस्थान को चेक, ड्राफ्ट व नकद धनराशि देने वालों के बारे में पता करे और उनके धन के स्रोत की जांच करे। बाराबंकी के फतेहपुर तहसील में संस्थान की भूमि का वास्तविक मूल्य पता करने के लिए उन व्यक्तियों से जांच की जाए जिन्होंने विक्रय विलेख के माध्यम से 57 बीघा से ज्यादा भूमि हुस्ना सिद्दीकी [सचिव क्यूएफ शिक्षण संस्थान] को बेची। फतेहपुर के निन्दौरा गांव में पांच वर्ष में हुए सभी बैनामों की जांच कर यह पता किया जाए कि वहां किसने कहां से भूमि खरीदी है। नसीमुद्दीन के भाई जमीरुद्दीन की पत्नी अकरमी बेगम व उनकी पुत्रवधू अर्शी द्वारा बांदा के लड़कापुरवा में खरीदी गई दो हेक्टेयर भूमि के वास्तविक मूल्य व उसके स्त्रोत की जांच की जाए। जेपी नगर के तहसील धनौरा के गांव बछराऊ में एक्यू फ्रोजन फूड प्राइवेट लिमिटेड कंपनी [मीट फैक्ट्री] की सभी भूमि के क्रय-विक्रय की धनराशि व भवन निर्माण में खर्च धनराशि के बारे में जांच करके यह पता लगाने के लिए भी लोकायुक्त ने कहा है उसमें किसका धन लगा है और उसकी आय का स्रोत क्या रहा है।

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(ARTICLE) - गणतंत्र बनाम गरीब तंत्र


गणतंत्र बनाम गरीब तंत्र

खान पान दुरूस्त न होने के चलते नन्हे बच्चे दर्जनों रोगोंे से ग्रसित हो जाते हैं। इनके पेट कुपोषण के कारण अनियमित रूप से फूल जाते हैं। पेट ही शरीर का सबसे बड़ा हिस्सा बन जाता है। ऐसे ही हैं ललितपुर जिले मे सहरिया आदिवासियों के बच्चों की हालत.......
ललितपुर-दिलचस्प है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने हाल ही में हंगामा (हंगर ऐंड मालन्यूट्रिशन) रिपोर्ट जारी करते हुए देश में खाद्य सुरक्षा को लेकर पहली दफा चिंता जताई है। उन्हांेने कुपोषण को राष्ट्रीय शर्म करार दिया है। इस रिपोर्ट में देश के 100 जिलों में पाया गया कि 42 प्रतिशत बच्चे कम वजन के हैं जबकि 59 प्रतिशत बच्चों का विकास कुपोषण के कारण अवरूद्ध है। फिर भी हंगामा रिपोर्ट कम वजन के बच्चों की संख्या में 20.3 प्रतिशत की कमी बता रही है। यह न केवल आंकड़े के चुने हुए अंश को प्रस्तुत कर गलत तस्वीर पेश करना है बल्कि इसकी सबसे गम्भीर कमी है कि इसमें सबसे महत्वपूर्ण निर्धारक तथ्य भूख का असली चेहरा और कुपोषण के शिकार लोगों के स्वस्थ्य एवं पोषक खाद्य पदार्थों तक की पहुंच का जिक्र ही नहीं किया गया है। इस रिपोर्ट को एक बारगी पढ़ने के बाद जमीनी शायर अदम गोंडवी की यह पंक्तियां बरबश ही यह कहना पड़ता है कि ‘‘तुम्हारी फाइलों में गांव का मौसम गुलाबी है, मगर ये आंकड़े झूठे हैं और यह दावा किताबी है।’’
बुन्देलखण्ड के जनपद ललितपुर की तस्वीर इन आंकड़ों से भी बदतर है। हर वर्ष करोड़ों रूपये खर्च किये जाने के बावजूद यहां 52 फीसदी बच्चे कुपोषण के दायरे में हैं। इन हालात में योजनाओं के क्रियान्वयन और उसकी पारदर्शिता पर भी कुपोषण का सवालिया निशान लग गया है। जनपद के दूर ग्रामीण इलाकों में खुले हुए पेट और पतले हाथ पैर के बच्चों की फौज प्राथमिक पाठशाला, गांव की तंग बस्ती में आसानी से देखी जा सकती है। जिन्हे देखकर गांव की भाषा में उल्दना खुर्द गांव के शिवबिहारी कहते हैं कि हाथ पांव नगंड़िया, पेट टमा टमटम। विशेष कर सहरिया आदिवासियों के बस्तियां ऐसे नौनिहालों और नवजात शिशुओं से पोषित हैं। ललितपुर क्षेत्र के गांव धौर्रा, जाखलौन, बंदरगुढ़ा, मादौन, कुर्रट सहित विभिन्न गांवों के सहरिया बस्तियों में कुपोषण उनकी जिन्दगी का अहम हिस्सा बन चुका है। कुपोषण के शिकार बच्चों की यहां अनियिमित वृद्धि गाहे-बगाहे आने वाले लोगों को हैरत में डाल देती है लेकिन फिर भी वे खुश हैं अपनी बदनसीबी में और उन्हें गिला शिकवा भी नहीं गणतंत्र बनाम गरीब तंत्र की तस्वीर कहलाने में।
कुपोषण का असर नवजात शिशुओं से लेकर 0-14 वर्ष के नौनिहालों के हाथ पैर पर भी पड़ता है। शरीर के यह अंग अन्य की तुलना में बहुत पतले हो जाते हैं। तंगहाली में जीवन बसर कर रहे ग्रामीण आबादी वाले बच्चों को भरपेट भोजन देना भी मां-बाप के लिए किसी पहाड़ तोड़ने से कमतर नहीं है। गांव बंदरगुढ़ा के रामप्रसाद का कहना है कि साहब बच्चों को भरपेट भोजन नहीं दे पाने के कारण हमारी पीढ़ियां हमारी तरह जर्जर हो रही हैं। हालांकि कुपोषण के निपटने के लिए जनपद के विभिन्न ग्रामीण व नगरीय कस्बों में 1100 आंगनबाड़ी सेन्टर्स संचालित हैं, जहां कुपोषित बच्चों को आई0सी0डी0एस0 (समेकित बाल विकास परियोजना) के तहत पुष्टाहार उपलब्ध करवाया जाता है और उन पर बराबर नजर रखने का भी दावा किया जाता है।
जनपद के आंगनबाड़ी सेन्टरांे में 1-6 वर्ष के 136989 बच्चांे की जब मौके पर जाकर सरकारी अमले ने नापतौल की तो 62895 बच्चों का ही वजन दुरूस्त पाया गया। शेष 74094 बच्चे कुपोषण के दायरे में पाये गये। इन आंकड़ों की पैबन्द में 261 बच्चे गम्भीर रूप से कुपोषित मिले हैं। जिनकी देखभाल का भी दावा किया जा रहा है। कुपोषण को मिटाने की गणतंत्र में यह कवायत नई नहीं है, पिछले कई वर्षों से साल दर साल कुपोषण को दूर करने के लिए नई योजनाएं स्वास्थ्य विभाग की तरफ से गैर सरकारी संगठनांे के माध्यम से और स्वतः भी चलायी जा रही हैं। योजनाओं के क्रियान्वयन पर प्रतिवर्ष प्रदेश सरकार और केन्द्र सरकार से मिलने वाली मोटी रकम खर्च की जाती है बावजूद इसके हालात सिफर हैं। जानकारों का तो यह भी कहना है कि कुपोषण को दूर करने के लिये चलायी जा रही योजनाएं भ्रष्टाचार की मांद में इन सहरिया आदिवासियों के बच्चों की तरह कुपोषित हो रही हैं। राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के प्रदेश में हुए 5000 करोड़ के भारी भरकम घोटाले ने जहां वल्र्ड बैंक के अनुदानित पैसे की पोल खोल दी है वहीं यह भी बतलाने का प्रयास किया है कि बुन्देलखण्ड जैसे बीहड़ इलाकों में इन आदिवासी बस्तियों के हालात और भी ज्यादा गम्भीर होते जा रहे हैं। ऐसे ही तस्वीर जनपद बांदा के नरैनी क्षेत्र में फतेहगंज, मड़फा क्षेत्र के गोबरी गुड़रामपुर, डढ़वा मानपुर, बोदा नाला गांव की है, जहां मवेसी और गोड़ जाति के आदिवासी बच्चे गम्भीर रूप से कुपोषण के शिकार हैं। इंडिया एलाइव टीम ने जब इन गांवों में मौके पर जाकर देखा तो कुछ घरों में ऐसा भी पाया गया कि इन आदिवासी परिवारों के गरीब माता-पिता अपने बच्चों की भूख मिटाने और रात में इस डर से कि बच्चा भूख से न रोये उसे तम्बाकू का रस या तम्बाकू रगड़कर मुंह मंे दबा दी जाती है। लोकतंत्र के 63वें गणतंत्र में गरीब तंत्र शोषण की कगार पर मतदाता बनकर आखिर क्यों कुपोषण का शिकार है?
बीते दिनों बांदा में दिल्ली के गैर सरकारी संगठन चाॅइल्ड लाइन के प्रोग्राम कोआर्डिनेटर अमर नाथ मिश्रा से वार्ता में बकौल अमर नाथ की मैने बुन्देलखण्ड की 34 स्वयं सेवी संस्थाओं के साथ कुपोषण के मुद्दों पर सघन वार्ता की और चाॅइल्ड लाइन की तरफ से बांदा में बाल अधिकारों, बाल विकास व कुपोषण के लिए विजन तैयार कर प्रोग्राम लांच करने के लिए जब उनसे प्रश्न पूछे तो मैं खुद यह देखकर अवाक रह गया कि यहां कि स्वयं सेवी संस्थाओं के पास बाल मुद्दों पर खासकर कुपोषण के सम्बन्ध में बताने के लिए कुछ है ही नहीं। इससे इतर जब बांदा के उ0प्र0 और म0प्र0 की सीमा से लगे नरैनी क्षेत्र के ग्राम पुकारी में टीम ने जाकर दस्तक दी तो चैंकाने वाले आंकड़े उभर कर सामने आये कि वहां बच्चे ही नहीं बल्कि अधेड़ उम्र के बुजुर्गों को भी कुपोषण, एनीमिया (रक्त अल्पता) के कारण कम लम्बाई, ठिंगना, मत्था धसा हुआ और आंखे अन्दर की ओर पायी गयी। वहीं पीने वाले पानी में अत्यधिक खार और फ्लोराइड की मात्रा से गर्भवती महिलाओं में एनीमिया के कई प्रकरण सामने निकलकर आये। नरैनी क्षेत्र के ही गोबरी गुड़रामपुर आदिवासी बस्तियों के मवेशी और गोड़ बिरादरी के रामगरीब का कहना है कि हमारी मजरे में 11 छोटी ढाड़ी बस्तियां हैं जिनमंे से 4200 मतदाता महिला पुरूष हैं। सीधे तौर पर 405 मतदाता वयस्क हैं। इन बस्तियों में मैं ही सर्वाधिक पढ़ा लिखा युवा व्यक्ति हूं। मेरी शिक्षा कक्षा-8 पास है। बीते त्रिस्तरीय ग्राम पंचायत चुनाव में आदिवासियों के द्वारा बसाये गये रामसिया यादव की पत्नी शान्ति देवी यादव यहां से महिला प्रधान निर्वाचित हुयी हैं। शान्ति देवी की माने तो उनकी प्रधानी पति और बड़ा लड़का देखता है। गोबरी मजरे के लोगोें मंे शामिल बुद्धलाला, रामविशाल, तिरसिया, बुद्धप्रकाश, फूलारानी और कुपोषण के शिकार नन्हे मासूम बच्चे संगीता, गीता, रामदीन, शोभा, शान्ति, माया, इन्दा, सुनील का कहना है कि ‘‘ बदमास आवत हैं तौ हमसै खाना मांगत हैं, पुलिस आवत है तौ उल्टा सीध बात करत है, अम्मा बापू लकड़ी काटैं न जायें तौ बतावा कि चूल्हा कइसै जली? ’’
बुन्देलखण्ड में ललितपुर, बांदा, चित्रकूट जनपदों में बसने वाली सहरिया, मवेशी, गोड़ और कोल जनजातियां आज भी तंेदू के पत्ते तोड़कर, जंगलों से लकड़ियां काटकर आठ घण्टे की हाड़ तोड़ मेहनत के बाद जिन्दगी गुजारने का माद्दा रखती हैं। पुरूष प्रधान देश और कंधे पर लाठी या बन्दूक लेकर चलने वाले मर्दों की शान में देहरी के भीतर अपनी अस्मिता के लिए संघर्षरत घूंघट वाली महिला भला कैसे अपने बच्चों के कुपोषण को दूर करने के लिए पोषण का सपना देखे। आज भी आजादी 63वें गणतंत्र दिवस में बुन्देलखण्ड के हालात को देखकर भूख पर हंगामा होना जायज ही नहीं यहां की मजनून और विकराल समस्या है। विडम्बना है कि तमाम चुनावी की पैतरों से सजे हुए घोषणा पत्रों में छोटे और बड़े राजनीतिक दलों के मंजे हुए खिलाड़ियों ने कुपोषण को अपना चुनावी एजेण्डा नहीं बनाया। तो क्या हुआ कि बुन्देलखण्ड एक बार फिर चुनावी मेले का हिस्सा बनेगा, तो क्या हुआ बुन्देलखण्ड की महिलायें रक्त अल्पता के चलते पोषण वादी जने बच्चे से महरूम होंगी, तो क्या हुआ कि बसन्ती होली में रंग बिरंगी पिचकारियों की जगह नवजात शिशुओं की किलकारियों में गरीबी का करूण उवाच हो।
By: आशीष सागर

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नसीमुद्दीन के खिलाफ सीबीआइ जांच, दर्ज हुई एफ़आइआर


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भ्रष्टाचार के तमाम आरोपों से घिरे मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी अकेले दर्जन भर से अधिक मंत्रालयों के मंत्री हैं। मंत्री पर लगे आरोपों के मद्देनजर लोकायुक्त ने नसीमुद्दीन सिद्दीकी को जबाव दाखिल करने का आज तक का समय दिया था,लेकिन मंत्री ने कोई सफाई नहीं पेश की...
जनज्वार : मायावती के अतिविश्वस्त माने जाने वाले ताकतवर मंत्री और पार्टी के सबसे बड़े मुस्लिम चेहरे नसीमुद्दीन सिद्दी के खिलाफ आज लोकायुक्त ने मुकदमा दर्ज करने के आदेश दे दिये। मंत्री के खिलाफ लोकायुक्त ने भ्रष्टाचार के आरोपों के मामले में सीबीआइ जाँच के और आय से अधिक सम्पति मामले में प्रवर्तन निदेशालय से जांच की सिफारिश की है। 
nasimuddin-siddqui
उत्तर प्रदेश के लोकायुक्त एनके मेहरोत्रा ने मंत्री के खिलाफ यह कार्यवाही बुँदेलखंड के प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ता और जनज्वार डॉट  कॉम  के सहयोगी आशीष सागर, इलाहबाद के विनय मिश्र और लखनऊ के पत्रकार जगदीश नारायण शुक्ल के हलफनामें  के आधार पर किया है। 
आशीष ने  मंत्री के खिलाफ शिकायत बांदा के नजूल भूमि पर कब्जे, चुनाव आयोग में  झूठा हलफनामा और अवैध खनन के पट्टों  को लेकर किया था, जबकि इलाहाबाद निवासी विनय मिश्र की शिकायत करीब 4 करोड़ के आबकारी घोटाले को लेकर थी और पत्रकार जगदीश नारायण शुक्ल ने क्यू-एफ़ नाम के ट्रस्ट से बाराबंकी जिले में कब्जाई गयी करोंड़ों की भूमि को लेकर थी.   
आशीष सागर ने दिसंबर 2011 में नसीमुद्दीन सिद्दीकी के भ्रष्टाचार मामलों की संलिप्तता को लेकर लोकायुक्त को एक याचिका पे्रषित की थी। याचिका में सामाजिक कार्यकर्ता ने आरोप लगाया था कि मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने पद का बेजा इस्तेमाल करते हुए जमीन कब्जा, फंड हेराफेरी, रिश्तेदारों के लाभ कराकर करोड़ों का घोटाला किया है। 
गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश के लोकायुक्त एनके मेहरोत्रा ने कुछ ऐसी ही कार्यवाही पूर्व बसपा नेता और प्रदेश सरकार के मंत्री रहे बाबूसिंह कुशवाहा के खिलाफ भी किया था, जिसके बाद उन्हें पद और पार्टी दोनों से जाना पड़ा था। फिलहाल बाबूसिंह कुशवाहा राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन योजना में हुए करीब 5 हजार करोड़ के घोटाले में मुख्य आरोपी के तौर पर सामने आ रहे हैं।  
भ्रष्टाचार के तमाम आरोपों से घिरे मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी अकेले दर्जन भर से अधिक मंत्रालयों के मंत्री हैं। मंत्री पर लगे आरोपों के मद्देनजर लोकायुक्त ने नसीमुद्दीन सिद्दीकी को जबाव दाखिल करने का आज तक का समय दिया था,लेकिन मंत्री ने कोई सफाई नहीं पेश की। सफाई पेश न करने की स्थिति में लोकायुक्त ने यह कार्यवाही की है।
चुनाव के बीच में मंत्री और पार्टी के एकलौते मुस्लिम चेहरे के खिलाफ लोकायुक्त की यह कार्यवाही संकट में खड़ी बसपा के लिए शुभ नहीं है। खासकर तब जबकि भ्रष्टाचार मामलों में सरकार के करीब दर्जन भर मंत्री बर्खास्त या पार्टी निष्कासित या पद से हटा दिये गये हों। 

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कुपोषण नहीं बना चुनावी एजेंडा

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जिंदगी के लिए सूखा और राजनीति के लिए सर्वाधिक उर्वर बुन्देलखण्ड । कुपोषण के मामले में इस क्षेत्र की  तस्वीर प्रधानमंत्री द्वारा जारी कुपोषण के शर्मनाक आंकड़ों से भी विद्रुप है। हर वर्ष करोड़ों रूपये खर्च किये जाने के बावजूद क्षेत्र के आधे से अधिक बच्चे फीसदी बच्चे कुपोषण से पीड़ित हैं...
बुंदेलखंड से आशीष सागर 
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने हाल ही में हंगामा (हंगर एंड मालन्यूट्रिशन) रिपोर्ट जारी करते हुए देश में खाद्य सुरक्षा को लेकर पहली दफा चिंता जताई है और कुपोषण को राष्ट्रीय शर्म माना। हंगामा रिपोर्ट में बताया गया कि देश के 100 जिलों में करीब 42 प्रतिशत बच्चे कम वजन के हैं, जबकि 59 प्रतिशत बच्चों का विकास कुपोषण के कारण अवरूद्ध है। फिर भी हंगामा रिपोर्ट कम वजन के बच्चों की संख्या में 20.3 प्रतिशत की कमी बता रही है। 
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कुपोषण को लेकर जारी होने वाले आंकड़ों में सच कितना और सरकारी बाजीगरी कितनी है, उसकी गवाही वह गांव ही दे सकते हैं, जहां से ये आंकड़े सरकारी फाइलों में आकर दबते हैं, एक नया आंकड़ा बनने के लिए। इन रिपोर्टों को लेकर जनता के शायर स्वर्गीय अदम गोंडवी ने कहा था, ‘तुम्हारी फाइलों में गांव का मौसम गुलाबी है, मगर ये आंकड़े झूठे हैं और यह दावा किताबी है।’’
जिंदगी के लिए सूखा और राजनीति के लिए सर्वाधिक उर्वर माने जाने वाले बुन्देलखण्ड का जिला ललितपुर। कुपोषण के मामले में इस जिले की तस्वीर प्रधानमंत्री द्वारा जारी शर्मनाक आंकड़ों से भी विद्रुप है। हर वर्ष करोड़ों रूपये खर्च किये जाने के बावजूद जिले के करीब  52 फीसदी बच्चे कुपोषण से पीडि़त हैं। ललितपुर के शहरी क्षेत्र से दूर ग्रामीण इलाकों में खुले पेट और पतले हाथ पैर के बच्चों की फौज प्राथमिक पाठशाला, गांव के तंग रास्तों पर आसानी से देखी जा सकती है। ऐसे बच्चों को देख उल्दना खुर्द गांव के शिवबिहारी कहते हैं, ‘हाथ पांव नगंडि़या, पेट टमा टमटम।’ टमाटम पेटों वाले सर्वाधिक बच्चे जिले के सहरिया आदिवासियों के बस्तियों-गावों देखे जा सकते हैं। 
ललितपुर क्षेत्र के गांव धौर्रा, जाखलौन, बंदरगुढ़ा, मादौन, कुर्रट सहित विभिन्न गांवों के सहरिया बस्तियों में कुपोषण उनकी जिन्दगी का अहम हिस्सा बन चुका है। कुपोषण का असर नवजात शिशुओं से लेकर 0-14 वर्ष के नौनिहालों के हाथ पैर पर भी पड़ता है। शरीर के यह अंग अन्य की तुलना में बहुत पतले हो जाते हैं। तंगहाली में जीवन बसर कर रहे ग्रामीण आबादी वाले बच्चों को भरपेट भोजन देना भी मां-बाप के लिए किसी पहाड़ तोड़ने से कमतर नहीं है। 
गांव बंदरगुढ़ा के रामप्रसाद का कहना है, ‘बच्चों को भरपेट भोजन नहीं दे पाने के कारण हमारी पीढि़यां हमारी तरह जर्जर हो रही हैं।’ हालांकि कुपोषण के निपटने के लिए जनपद के विभिन्न ग्रामीण व नगरीय कस्बों में 1100 आंगनबाड़ी सेन्टर्स संचालित हैं, जहां कुपोषित बच्चों को आईसीडीएस (समेकित बाल विकास परियोजना) के तहत पुष्टाहार उपलब्ध करवाया जाता है और उन पर बराबर नजर रखने का भी दावा किया जाता है। 
जनपद के आंगनबाड़ी सेंटरों  में 1-6 वर्ष के 136989 बच्चों   की जब मौके पर जाकर सरकारी अमले ने नापतौल की तो 62895 बच्चों का ही वजन दुरूस्त पाया गया। शेष 74094 बच्चे कुपोषण के दायरे में पाये गये। इन आंकड़ों की पैबन्द में 261 बच्चे गम्भीर रूप से कुपोषित मिले हैं। ग्रामीण राम प्रवेश कहते हैं, कुपोषण को दूर करने के लिये चलायी जा रही योजनाएं भ्रष्टाचार की मांद में इन सहरिया आदिवासियों के बच्चों की तरह कुपोषित हो रही हैं।’ 
यह वही कुपोषित बच्चे हैं, जिनके लिए वल्र्ड बैंक ने राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के तहत उत्तर प्रदेश सरकार को करोड़ों का अनुदान दिया था, जिसमें से 5000 करोड़ का अबतक घोटाला चुका है। ऐसा नहीं है कि यह दुर्गति सिर्फ ललितपुर की है, बल्कि बुंदेलखंड के बाकी जनपदों के भी कमोबेश यही हालत हैं। 
बांदा जिले के नरैनी क्षेत्र में फतेहगंज, मड़फा क्षेत्र के गोबरी गुड़रामपुर, डढ़वा मानपुर, बोदा नाला गांव में मवेसी और गोड़ जाति के आदिवासी बच्चे गम्भीर रूप से कुपोषण के शिकार हैं। बुंदेलखंड के इन गांवों में मौके पर जाकर देखा तो पता चला कि कुछ आदिवासी परिवारों के उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की सीमा से लगे नरैनी क्षेत्र के ग्राम पुकारी में चैंकाने वाले आंकड़े उभर कर सामने आये। 
वहां बच्चे ही नहीं बल्कि अधेड़ उम्र के बुजुर्गों को भी कुपोषण, एनीमिया (रक्त अल्पता) के कारण कम लम्बाई, ठिगना, मत्था धसा हुआ और आंखे अन्दर की ओर पायी गयी। वहीं पीने वाले पानी में अत्यधिक खार और फ्लोराइड की मात्रा से गर्भवती महिलाओं में एनीमिया के कई मामले भी सामने आये।’
बुन्देलखण्ड में ललितपुर, बांदा, चित्रकूट जनपदों में बसने वाली सहरिया, मवेशी, गोड़ और कोल जनजातियां आज भी तेंदू पत्ते तोड़कर, जंगलों से लकडि़यां काटकर आठ घण्टे की हाड़ तोड़ मेहनत के बाद जिन्दगी गुजारने का माद्दा रखती हैं। चुनावी पैतरों से सजे घोषणा पत्रों में छोटे या बड़े किसी भी राजनीतिक दल ने  कुपोषण को अपना चुनावी एजेण्डा नहीं बनाया है।