Tuesday, April 21, 2015

सरकारे बोली किसानो ने नही की आत्महत्या !

22 अप्रैल जारी - 
अमर उजाला में देश -विदेश पेज पर प्रकाशित यह खबर देखे.सात राज्यों की इस रिपोर्ट में सभी ने एक सिरे से अपने राज्यों में किसान आत्महत्या पर इंकार किया है.सिर्फ महाराष्ट्र ने अपने यहाँ किसानो के मरने की बात स्वीकार की है.इसका मतलब अन्य जगह पंजाब,मध्यप्रदेश,बुंदेलखंड (उत्तर प्रदेश ),यूपी के अन्य शहरो में इस वर्ष आई किसान आपदा से कोई मौत नही हुई है ! ये राजनितिक पार्टियों के बयान है. उत्तर प्रदेश की समाजवादी सरकार ने किसानो से बीमा कंपनी के साथ मिलकर डाका डाला है....l 




 बीमा कंपनी ने झाँसी में किसानो को 79 रूपये से लेकर 165 रूपये तक के चैक दिए है. वही किसानो की बर्बाद शेष बची उपज अपने खलिहान पहुँच चुकी है मगर अभी तक सबको राहत राशी नही मिली है. नेताओ और विधायको ने अपने मर्जी से वेतन में 50 हजार तक का इजाफा किया है. इसके लिए उन्हें लोक से पूछने की आवश्यक नही है आखिर आपने 5 साल के लिए उन्हें अपने सारे अधिकार सौप दिए है.बाँदा में बीते 19 अप्रैल को नरैनी के बरसड़ा मानपुर में हुई किसान आत्महत्या राजाराम यादव की तेरहवी भी कर्जा मांगकर की बेटे ने.उसके बेटे की आगामी 27 अप्रैल को शादी थी.विवाह केंसिल हो गया है.पिता दिल्ली में मजदूरी करा था,खेती काटने आया और उजड़ी फसल देखकर आत्महत्या कर ली.यही मृतक किसान रामखिलावन रैदास ग्राम खपटीहाँ कला (बाँदा )के यहाँ हुआ उसके यहाँ खुद उपजिलाधिकारी राशन की मदद दे कर आये.किसान क्रेडिट कार्ड ने किसानो की मौतों की सुन्योजित साजिश सरकारों के साथ मिलकर की है. बीमा कंपनी इसका दलाल है.राजनितिक दलों के ये ओछे बयान उनकी विकृत मानसिकता का प्रमाण है.अंग्रेजी लगान विचारधारा से प्रेरित लगते है ये सरकारी अफसर.किसान का भविष्य देखकर लगता है कि उसको अब खेती के साथ सरकार खुद बनाने के विचार पर गौर करना चाहिए.लाजमी होगा कि वो अपनी असली ताकत पहचाने.
http://www.bhaskar.com/…/UP-insurance-companies-give-compen…
मामले की पड़ताल करती ये रिपोर्ट शायद यह बता पाने में कामयाब हो जाए कि आखिर किसान आत्महत्या क्यों कर रहे हैं.
हाँ, तुम इसी लायक हो. तुम्हारी गलती ये है कि तुम इस व्यवस्था पर भरोसा कर लेते हो. इसलिए फसल बर्बादी के बाद चिंता से दिमाग की नस फटेगी तो तुम्हारी. बेटी की शादी नहीं हो पायेगी, ये मुसीबत भी तुम्हारी. पत्नी-परिवार के भूखे रहने की समस्या भी तुम्हारी. तुम फांसी लगाओ, ज़हर खाओ, छत से कूदो तो जान भी जायेगी तुम्हारी. किसी और का कुछ नही बिगड़ेगा और बिगड़ भी नहीं रहा. तुम्हारी बदहाली पर कोई क्यों रोये.
किसान बेमौसम बारिश के बाद कर्ज में झुलस रहा है. वहीं, बीमा कंपनियां मुआवजे के नाम पर किसानों को कुछ ऐसा ही सन्देश दे रही हैं. बीमा प्रीमियम के रूप में हजारों रुपए वसूलने के बाद कंपनी ने किसानों को राहत देने के नाम पर 22.81 और 21.05 रुपए दिए हैं। कुछ दिन पहले शासन-प्रशासन द्वारा कुछ 100 रुपये की आर्थिक सहायता के रूप में चेक देने का मामला सामने आया था. ऐसे में भला बैंक और फसल बीमा कंपनी कैसे पीछे रहते. बुंदेलखंड में अब तक लगभग 150 किसानों की मौत हो चुकी है. मरने के लिए पहले फसल की बर्बादी ने प्रेरित किया, अब बीमा कंपनिया और दूसरे जिम्मेदार कमी नहीं छोड़ रहे.
मामले की पड़ताल करती ये रिपोर्ट शायद यह बता पाने में कामयाब हो जाए कि आखिर किसान आत्महत्या क्यों कर रहे हैं. आशीष सागर / जीशान अख्तर

Sunday, April 19, 2015

सामाजिक कार्यकर्ता को मिला ‘’ विष्णु दत्त मिश्रा मैमोरियल आरटीआई रत्न अवार्ड 2015’’


·         मीडिया आमंत्रण एवं प्रचार प्रसार हेतु सूचना आयोगों का
मूल्यांकन कर रिपोर्ट कार्ड बनाने को एकजुट हुए कार्यकर्ता  

बाँदा – गत 18 अप्रैल को राजधानी में येश्वर्याज सेवा संस्थान ने 2015 ( शनिवार) को राय उमानाथ बली प्रेक्षागृह परिसर स्थित जयशंकर प्रसाद सभागार
,कैसरबाग में ‘ विष्णु दत्त मिश्रा स्मारक आरटीआई रत्न (2015) सम्मान








समारोह एवं "आरटीआई एक्ट के संरक्षक के दायित्वों के निर्वहन में सूचना
आयोगों की प्रभावकारिता" विषयक   राष्ट्रीय विचार-गोष्ठी  का आयोजन किया. आयोजित राष्ट्रीय कार्यशाला की संयोजिका उर्वशी ने बताया कि  जनकल्याणकारी  कार्यों के लिए आरटीआई का प्रयोग कर देश को सार्थक परिणाम देने बाले दिल्ली के समाजसेवी सुभाष चन्द्र अग्रवाल और उत्तर प्रदेश के आरटीआई कार्यकर्ता कोमोडोर लोकेश बत्रा को इस वर्ष काविष्णु दत्त मिश्रा स्मारक लाइफटाइम अचीव्मेंट आरटीआई  सम्मान 2015’ देकर सम्मानित किया गया.कार्यशाला हाथरस के गौरव अग्रवाल, बाँदा(बुंदेलखंड )के सामाजिक कार्यकर्ता आशीष सागर दीक्षित को  ‘’ विष्णु दत्त मिश्रा मैमोरियल आरटीआई रत्न अवार्ड 2015’’ से सम्मानित किया गया है. इस कार्यशाला के आंतरिक पहलू का पटाक्षेप करते हुए उर्वशी ने कहा कि सूचना आयोगों के कार्यों के मूल्यांकन के उद्देश्य से विचार गोष्ठी आयोजित करने के सबाल पर उर्वशी ने बताया कि देशवासियों के 15 वर्षों के कठिन प्रयासों से मिला यह आरटीआई एक्ट लागू होने के दसवें वर्ष में ही अपनी धार खोता नज़र आ रहा है. कार्यक्रम में सामाजिक संगठन तहरीर के संस्थापक इंजीनियर संजय शर्मा सेमिनार का संचालन कर रहे थे.जेएनयू नई दिल्ली के रिसर्च फैलो सुसांता कुमार मलिक, और विश्वविख्यात पहल 'आरटीआई अनॉनीमस' के संस्थापक सदस्य अवनीश सिंह बतौर मुख्य वक्ता तथा गौरव अग्रवाल,सलीम बेग,राम स्वरूप यादव सहित देश के कई नामी गिरामी आरटीआई कार्यकर्ता उपस्थित रहें । कार्यशाला के मुख्य अतिथि कर्णाटक के पूर्व लोकायुक्त जस्टिस कमलेश्वर नाथ (पूर्व जज लखनऊ उच्च न्यायालय),विशिस्ट अतिथि पूर्व आईजी /दलित एक्टिविस्ट एसआर. दारापुरी, मुख्य वक्ता दिल्ली के आरटीआई कार्यकर्ता लोकेश बत्रा,अप्रावासी भारतीय डाक्टर नीरज कुमार (अमेरिका),राजधानी के स्थानीय समाजसेवियों, गैर सरकारी संघटन के पैरोकार और मीडिया के एक्टिविस्ट इस कार्यक्रम में मुख्यता शामिल रहे. अपने संबोधन में  लोकेश बत्रा ने कहा कि उत्तर प्रदेश के राज्य सूचना आयोगों में रिटायर्ड आईएएस, मंत्री और नेताओ के रिश्तेदार बैठाले जा रहे है. आयुक्त और आयोग में बिना अनुभव के ये लोग सूचनाधिकार की हत्या कर रहे है. उन्होंने बानगी के लिए राज्य सूचना आयोग में आयुक्त और मुलायम सिंह यादव के समधी अरबिंद सिंह बिष्ट पर सवाल खड़े किये है. लखनऊ के अशोक गोयल केस में उनकी मिलीभगत के साक्ष्य मीडिया को मिल चुके है. एक्ट को पढ़े बिना बेबुनयादी आदेश दिए जाने लगे है. यहाँ तक कि तीन – तीन साल के केस आज भी देश के सूचना आयोगों में लंबित है ये दुखद पहलु है इस कानून का. अप्रवासी भारतीय डाक्टर नीज कुमार ने कहा कि अमेरिका में गैर सरकारी संस्थाओ को भी इस कानून के दायरे में लाया जा चुका है जबकि हमारे यहाँ सरकारी अनुदान लेने वाले ही आरटीआई के दायरे में है. एक सुनयोजित साजिश के तहत उत्तर प्रदेश के लोकायुक्त को इस अधिकार के दायरे से मुक्त कर दिया वर्तमान समाजवादी सरकार ने.छोटे जनपदों में आज भी तीस दिन बाद जानकारी नही दी जा रही है. जिलाधिकारी को चाहिए की स्थानीय विभागों के लोक जनसूचना अधिकारी को इस सन्दर्भ में अधिक जागरूक करे ताकि राज्य सूचना आयोगों में अर्जियो को लंबित करने का खेल रोका जा सके.कार्यशाला में आरटीआई एक्टिविस्ट के ऊपर किये जा रहे जान लेवा हमलो,फर्जी मुकदमो के रोकने के लिए विस्तार अभियान की प्रासंगिकता पर जोर दिया गया.