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गौरतलब है कि सिविल सोसायटी द्वारा सरकार के समक्ष लोकपाल बिल विधेयक संख्या 39/2011 के सन्दर्भ में महत्वपूर्ण सुझावों को शामिल करने की जिरह बीते दो माह से लगातार की जा रही है। मगर सरकार की ना नुकरी और तानाशाही रवैये के चलते अन्ना टीम के सुझावों को नकार कर लोकपाल बिल के दायरे से प्रधानमंत्री, न्यायपालिका, पंचायती राज और अन्य महत्वपूर्ण बिन्दुओं को शामिल नहीं किया गया है। संघर्ष के लिये खुलकर आमरण अनशन का ऐलान कर चुके समाजसेवी अन्ना हजारे ने आज 16.08.2011 से केन्द्र सरकार द्वारा दिल्ली शहर के अन्दर कहीं पर भी आमरण अनशन की जगह न मुहैया कराने से जहां रोका जायेगा वहीं अनशन करेंगे का ऐलान बीते दो दिवस मीडिया चैनलों के सामने कर दिया था। सकते में पड़ी सरकार ने अन्ना टीम को जे.पी. पार्क मे अनशन की अनुमति तो दी मगर उसके साथ ही 22 शर्तों का पुलिन्दा अन्ना के समक्ष हलफनामा में स्वीकृति देकर अनशन करने की पेशकश कर दी। काफी सोच विचार के बाद अन्ना समेत अरविन्द केसरीवाल, मनीष सिसोदिया आदि ने दिल्ली पुलिस की 22 में से 16 शर्तों को मान लिया था लेकिन खाकी की आड़ में दिल्ली पुलिस की सरकार समर्थित गुण्डागर्दी ने अन्ना के हलफनामे को बैरंग वापस कर दिया। आज सुबह 7 : 45 पर अन्ना को उनके घर से दिल्ली पुलिस के द्वारा गिरफ्तार करने की बाद जैसे ही मीडिया चैनलों में गिरफ्तारी की खबरें चलने लगीं।
शहर शहर अन्ना की लहर
- बुन्देलखण्ड के जनपद बांदा में उमड़ा अन्ना का सैलाब
- जिला अधिवक्ता संघ ने किया सरकारी लोकपाल बिल का बहिष्कार
- समाजसेवियों ने मनाया जन लोकपाल बिल संघर्ष दिवस
वो 73 साल का जर्जर बुजुर्ग आदमी है या फिर जेल की कोठरी में बंद कोई रोशनदान। पूर्व नियोजित कार्यक्रम के अनुरूप पूरे देश की आवाम के साथ कदम से कदम मिलाते हुये बुन्देलखण्ड में भी अन्ना का जनसैलाब सड़कों पर उमड़ा पड़ा। आज सुबह से ही टी वी चैनलों में लगातार पल-पल अन्ना की खबरों पर लगे हुये कैमरों में जैसे ही समाजसेवी अन्ना हजारे सहित अरविन्द केजरीवाल, मनीष सिसोदिया, वरिष्ठ आई0पी0एस0 महिला किरण वेदी, सप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता प्रशांत भूषण की घर से गिरफ्तारी करने की खबरें आयी मानो बुन्देलखण्ड की जमीन में अन्ना की आग लग गयी। क्या अधिवक्ता, क्या समाजसेवी और क्या फुटपाथ में फल बेंचने वाले श्रमजीवी नागरिक सभी के दिल में एक ही गुबार अन्ना तुम संघर्ष करो हम तुम्हारे साथ हैं।
गौरतलब है कि सिविल सोसायटी द्वारा सरकार के समक्ष लोकपाल बिल विधेयक संख्या 39/2011 के सन्दर्भ में महत्वपूर्ण सुझावों को शामिल करने की जिरह बीते दो माह से लगातार की जा रही है। मगर सरकार की ना नुकरी और तानाशाही रवैये के चलते अन्ना टीम के सुझावों को नकार कर लोकपाल बिल के दायरे से प्रधानमंत्री, न्यायपालिका, पंचायती राज और अन्य महत्वपूर्ण बिन्दुओं को शामिल नहीं किया गया है। संघर्ष के लिये खुलकर आमरण अनशन का ऐलान कर चुके समाजसेवी अन्ना हजारे ने आज 16.08.2011 से केन्द्र सरकार द्वारा दिल्ली शहर के अन्दर कहीं पर भी आमरण अनशन की जगह न मुहैया कराने से जहां रोका जायेगा वहीं अनशन करेंगे का ऐलान बीते दो दिवस मीडिया चैनलों के सामने कर दिया था। सकते में पड़ी सरकार ने अन्ना टीम को जे.पी. पार्क मे अनशन की अनुमति तो दी मगर उसके साथ ही 22 शर्तों का पुलिन्दा अन्ना के समक्ष हलफनामा में स्वीकृति देकर अनशन करने की पेशकश कर दी। काफी सोच विचार के बाद अन्ना समेत अरविन्द केसरीवाल, मनीष सिसोदिया आदि ने दिल्ली पुलिस की 22 में से 16 शर्तों को मान लिया था लेकिन खाकी की आड़ में दिल्ली पुलिस की सरकार समर्थित गुण्डागर्दी ने अन्ना के हलफनामे को बैरंग वापस कर दिया। आज सुबह 7 : 45 पर अन्ना को उनके घर से दिल्ली पुलिस के द्वारा गिरफ्तार करने की बाद जैसे ही मीडिया चैनलों में गिरफ्तारी की खबरें चलने लगीं।पूरे देश में अन्ना की आंधी एक साथ उड़ने लगी। इसी कड़ी में बुन्देलखण्ड के भूखे-सूखे जनपद बांदा में भी अन्ना के समर्थन में जिला अधिवक्ता संघ ने हड़ताल घोषित करते हुये सरकारी लोकपाल बिल का बहिष्कार कर दिया है। समाजसेवियों ने सरकारी लोकपाल बिल की प्रतियों को आग के हवाले करते हुये केन्द्र सरकार को यह चेतवानी दे डाली की हर हाल में देश को अन्ना का मुकम्मल जन लोक पाल विधेयक की भ्रष्टाचार मुक्त भारत के लिये चाहिये। सड़कों पर पैदल मार्च करते हुये सरकारी बिल की प्रतियों को हवा में उड़ा उड़ाकर जलाया गया है। उधर व्यापारियों ने भी अन्ना के समर्थन में बाजार बन्दी की घोषणा कर महेश्वरी देवी चैराहे पर नेताओं की बुद्धि-शुद्धि के लिये यज्ञ का आयोजन किया गया। स्कूल के बच्चों में भी देश के दूसरे गांधी अन्ना हजारे के समर्थन में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेने की खबरें हैं। प्रदर्शनकारियों मंे शामिल समाजसेवी आशीष सागर, अधिवक्ता संघ के पूर्व उपाध्यक्ष देवप्रसाद अवस्थी, एडवोकेट अनिल शुक्ला, रणविजय सिंह, राजेश शुक्ला, संजय निगम, जितेन्द्र कुमार, प्रेमसागर दीक्षित, आशुतोष पाण्डेय सहित योगेन्द्र प्रताप सिंह आदि लोग उपस्थित रहे, मगर कहीं न कहीं देश के अन्य राज्यों की बनिस्बत बुन्देलखण्ड के अन्य जनपदों में अन्ना के आन्दोलन की वो गूंज नहीं सुनाई पड़ी जो शहर-शहर अन्ना की लहर दिल्ली, गाजियाबाद, झारखण्ड, महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश, कोलकाता आदि राज्यों में बढ़ चढ़कर रही है।
आशीष सागर, प्रवास
थाना फतेहगंज क्षेत्र के ग्राम बघेलाबारी के कर्जदार किसान सुरेश यादव ने बीते 18 जून 2011 को अपने ही खेत में आत्महत्या कर ली थी। सुरेश यादव पर बैंक का 21 हजार रूपया और साहूकार का 50 हजार रूपया ऋण बकाया था। कर्ज और मर्ज के बीच झूलता सुरेश यादव अपनी दो बीघा जमीन बैंक में बंधक रखे जाने से और जवान होती बिटिया, बच्चों की पढ़ाई, परवरिश से तंगहाली के कारण इतना दुखी था कि उसने सोते हुये बच्चों को घर में अकेला छोड़कर जिन्दगी से दूर जाने का फैसला कर लिया। इधर किसान की मौत के बाद मीडिया में प्रकाशित हुयी खबरों से आनन-फानन में हरकत में आये तत्कालीन जिलाधिकारी कैप्टन ए0के0 द्विवेदी द्वारा किसान पुत्र को मदद के नाम पर एक हजार रूपये का झुनझुना पकड़ा दिया गया और मीडिया के सामने तमाम बड़े वादे किये गये जो आज भी वादे ही हैं।
अफसरों की देहरी में दो महीने से नाक रगड़ने के बाद भी जब तीन अनाथ बच्चों की किसी ने नहीं सुनी तो जिला प्रशासन के नक्कार खाने में ढोल बजाने के लिये किसान के पुत्र विकास यादव ने 16.08.2011 से अनिश्चितकालीन आमरण अनशन शुरू कर दिया है। बकौल विकास का कहना है कि मुझे आश्वासन और वादा नहीं लिखित कार्यवाही चाहिये। उसने वही मांग की है जो तत्कालीन जिलाधिकारी कैप्टन ए0के0 द्विवेदी ने वादों के रूप में मीडिया के सामने कही थी। किसान पुत्र की मांगों में कृषक बीमा योजना से पिता की आकाल मौत के चलते एक लाख रूपये मुआवजा, इन्दिरा आवास, मुफ्त शिक्षा, खाद्य सुरक्षा, कर्ज माफी कर बैंक से बंधक रखी जमीन वापस दिलाने की मांग की है। इधर इलाहाबाद हाईकोर्ट में विधि छात्रों द्वारा बुन्देलखण्ड की किसान आत्महत्याओं को लेकर दाखिल की गयी जनहित याचिका पर सख्त कदम उठाते हुये उच्च न्यायालय ने कोर्ट के आदेश आने तक कर्ज वसूली पर रोक लगा दी है। मगर सैकड़ों किसानों को बैंक द्वारा नोटिस चन्दे की रसीद की तरह थमाये जा रहे हैं।
