हरित किसान पत्रिका ‘ प्रवासनामा ‘ का विमोचन
मित्रो जब तक ' प्रवासनामा ' पाक्षिक पत्रिका की आनलाइन वेबपोर्टल पर उपस्थिति नही होती है तब तक आप इसको यहाँ पढ़ा जा सकता है ....प्रणाम
बाँदा – उत्तर प्रदेश के बाँदा जिले से
किसान और पर्यावरण संरक्षण को मूल विधा मानकर ‘ प्रवासनामा ‘ पाक्षिक पत्रिका का
विमोचन गत 23 नवम्बर 2014 को ‘ पर्यावरण संरक्षण करते हुए कृषि स्वावलम्बन ‘ विषयक
संवाद गोष्ठी में संपन्न हुआ l यह परिचर्चा बाँदा के प्रगतिशील किसान बडोखर खुर्द
प्रेम सिंह के ह्यूमेन एग्रीरियेन सेंटर में किया गया l पत्रिका विमोचन अवसर पर
मध्यप्रदेश के छतरपुर से आये सजीव खेती प्रशिक्षक डाक्टर भारतेंदु प्रकाश, जालौन (
उरई ) के ब्लॉगगर – स्वतंत्र पत्रकार राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर , मनोरमा सिंह,
शोभना श्रीवास्तव, अम्बरीश श्रीवास्तव ( ग्राम उन्मेष संस्थान,बाँदा ),भागवत
प्रसाद, प्रमोद दीक्षित लोकायतन संस्था अतर्रा, पुष्पेन्द्र भाई महोबा , डाक्टर
अरबिंद खरे ग्रामोन्नति संस्थान महोबा, उमाशंकर सिंह परमार, नारायण दास गुप्ता ,
पीके सिंह, राकेश प्रजापति, डाक्टर एस.के. त्रिपाठी, सहित अन्य बुंदेलखंड के जन
सामाजिक कर्मी उपस्थित रहे l
विचार प्रवाह.....बुंदेलखंड की कर्म
भूमि और अपनी जन्म स्थली पर बैठकर जब देश और विदेश के मीडिया को देखता हूँ तो असहज
हो जाता हूँ l आज राजनीति के व्यवसाई करण के साथ – साथ लोकतंत्र के इस चौथे स्तम्भ
मीडिया का भी बाजारीकरण हुआ है l पूंजीवादी और कार्पोरेट शक्तियों का आधिपत्य
मीडिया हब संचालन में है l भारतीय मीडिया में ऊँगली में गिने हुए पत्र – पत्रिका
शेष बचे है जो ग्राम्य जीवन , उनकी रोजमर्रा की समस्या, विकास के अवसान काल और
आदिवासियों के विस्थापन को मुखर होकर अपने समाचार पत्र – पत्रिकाओ या इलेक्ट्रानिक
खबरों में स्थान दे रहे है l मीडिया का चकाचौध करने वाला पेज थ्री चेहरा हो या पेड
न्यूज़ से निकली चुनावी खबरे सबका किरदार व्यवसाय के चश्मे में नजर आता है l ऐसे
में यक्ष प्रश्न खड़ा हो जाता है लोक तंत्र के इस निष्पक्ष – निर्भीक कहे जाने वाले
स्तम्भ पर l
हाल
इतने दुर्दिन है ग्रामीण पत्रिकारिता के कि जहाँ देश दीपावली के त्यौहार में
सरोबार होकर महाराष्ट्र के नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री देवेन्द्र फड़नवीस के राजतिलक
में मशगूल था, उनके सत्ता सिंघासन की खबरे जहाँ मीडिया की प्रखर आवाज बनी हुई थी l
वही किसान आत्महत्या में बुंदेलखंड के बड़े भाई विदर्भ में खाश दीपावली के दिन ही 6
किसान कर्ज से टूटकर आत्महत्या कर लेते है l ये दुखद घटना खबर तक नही बनती l 200
करोड़ रूपये मुख्यमंत्री के शपथ ग्रहण में खर्च हुए किन्तु मृतक किसानो की देहरी
में एक भी प्रतिनिधि नही पहुंचा l यही हाल बुंदेलखंड का भी है जब मुख्यमंत्री के
गृह जनपद , राजधानी लखनऊ के पार्को , सम्मान समारोह में करोड़ों रूपये खर्च हो जाते
है और उधर बुंदेलखंड का कर्जखोर किसान ख़ुदकुशी कर रहा होता है l 3,275 किसान आत्महत्या
की खेती बुंदेलखंड अकेले कर्ज से कर चुका है सात जिलो में l अबकी बार उन्नीसवी बार
सूखा पड़ा है l जबकि देश के प्रधानमंत्री से लेकर स्थानीय नगर पार्षद के चुनाव में
ये किसान , मजदूर निर्णायक भूमिका में होता है l भारत की 80% आबादी किसान परिवार
से निकले अंश का हिस्सा है l कही न कही पूर्व में किसान सरोकार से उसका वास्ता रहा
है l वो सरकारी कामगार हो या निजी क्षेत्रो के उच्च सोपान वाले क्रीमी, आम लोग l
मगर कंक्रीट की अट्टालिकाओ में तसले उठाता ये किसान , आदिवासी अपनी मिट्टी से
पलायन को मजबूर हुआ l ग्रामीण विकास की दुर्दशा को योजनाओ के चीथड़ो से बाहर निकाल
कर उसे देश की संसद के मुखिया तक पहुँचाने वाले कलम के सिपाही अब अपवाद में है l
इसी आपा – धापी से जूझते हुए इस ‘ प्रवासनामा ‘ को खबरों के विचार महाभारत में
उतरने के लिए विवश होना पड़ा l ‘ प्रवासनामा ‘ मूलतः खेती – किसानी की पारंपरिक
विधा को संजोने , पर्यावरण – प्रकृति सम्यक कार्यो को प्रोत्साहित करने और साहित्य
की अविरलता को निर्बाध बहने के लिए ही शब्दों की माला में आया है l बुंदेलखंड की
चटियल धरती, बाँदा के शजर की प्राकृतिक सुन्दरता, कवी केदार बाबू की केन (
कर्णवती) को आत्मसात करते हुए यह दस्तावेज
विकास के अंतिम पायदान पर सिसकते आदमी की लेखनी बनेगा ऐसा मेरा अपना मंतव्य और
संकल्पना है....आशीष सागर - प्रवासनामा, संपादक की कलम l