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(Report) - खनन से बेजार बुन्देलखण्ड का पानी
पिछले कुछ सालों से विंध्य बुन्देलखण्ड के बांदा,चित्रकूट,महोबा,झांसी,ललितपुर में चल रहे अधाधुंध खनन ने यहां के पानी,पहाड़,जंगल,वन्यजीवों के प्रवास,खेती, मजदूरों व रहवासियों की सेहत और पर्यावरण को गहरे अन्र्तमुखी आकाल की ओर धकेल दिया है..............आशीष सागर की रिपोर्ट।
खण्ड खण्ड बुन्देलखण्ड- बुन्देलखण्ड का पठार प्रीकेम्बियन युग से ताल्लुकात रखता है। पत्थर ज्वालामुखी पर्तदार और रवेदार चटट्ानो से निर्मित हैं, इसमे नीस और ग्रेनाइट की अधिकता पाई जाती है इस पठार की समुद्र तल से उचाई 150मी0 उŸार और दक्षिण में 400मी0 तक फैली है इस क्षेत्र को भगौलिक दृष्टि से 23 सेन्टीग्रेट, 10अक्षाशं उŸार और 78सेन्टीगे्रट, 4अक्षाशं, 81सेन्टीग्रेट से 34अक्षाशं पश्चिम दिशा की ओर रखा जा सकता है। इसका ढ़ाल दक्षिण से उŸार और उŸार पूर्व की ओर है। बुन्देलखण्ड की सीमा मे विंध्य उत्तर प्रदेश के 7 व मध्य प्रदेश की सीमा से लगे 6 जनपदों को आमतौर पर स्वीकृत दी गयी है लेकिन राजनीतिक द्वन्द मंे फसें बुन्देलखण्ड राज्य की मांग इसके 21 से 23 जिले को लेकर आन्दोलन की मुहिम समयानुकूल छेड़ती रहती है। मध्य प्रदेश का टीकमगढ़, छतरपुर, दतिया, ग्वालियर, शिवपुरी, दमोह, पन्ना और सागर तक विस्तृत है। विंध्य बुन्देलखण्ड के हिस्से में झांसी, ललितपुर, महोबा, चित्रकूट, बांदा प्रमुखता से समाहित है। छतरपुर में खनन के अन्तगर्त पाये जाने पत्थर को लाल फाच्र्यून के नाम से जाना जाता है वहीं उत्तर प्रदेश के बुन्देलखण्ड के क्षेत्र में ग्रेनाइट को झांसी रेड़ कहा गया है। सिद्धबाबा पहाड़ी 1722मी0 इस क्षेत्र की सबसे ऊंची पर्वत चोटी है। इन दोनो प्रदेशो की सीमा से लगे बुन्देलखण्ड ग्रेनाइट, ब्लैक स्टोन सामग्री का उपयोग पूरे देश में 80 प्रतिशत सजावटी समान, भवन निमार्ण आदि के लिये किया जाता है। ललितपुर जनपद में पाये जाने वाले ग्रेनाइट को लौह अयस्क, राॅक फास्फेट के नाम से जाना जाता है।
जल दोहन व विनाश की इबारत है अवैध खनन- पिछली सर्दियांे की बात है आम दिनों की तरह उस दिन भी शाम 4ः30 बजे महोबा जनपद के कस्बा कबरई, जवाहर नगर निवासी उत्तम प्रजापति पुत्र किशोरीलाल प्रजापति उम्र- 8 वर्ष घर के आंगन में खेल रहा था। अभी वह खेल की प्रथम श्रंखला शुरू ही करने वाला था कि एक जोरदार धमाका 1 किलोमीटर दूर कबरई के सिद्ध बाबा पहाड़ी (पचपहरा खदान) में किया जाता है और अवैध ब्लास्टिंग से हवा में उड़कर पांच किलो का पत्थर उत्तम प्रजापति के ऊपर गिर पड़ता है। मौके पर ही दुर्घटना से लहू लुहान उत्तम की आनन फानन में मौत हो जाती है। घटना से हलाकान जवाहर नगर के सैकड़ों बासिंदे दर्द से तिलमिलाते हुए उत्तम की लाश को एकटक देख रहे थे। उसके सीने का ऊपरी हिस्सा पूरी तरह दो भागांे में बंट चुका था। देखने वालोें के होश उड़ गये और घर के आंगन मंे पड़ी उत्तम की लाश दबंग माफियाओं के रौब का बयान सिलसिलेवार हो रही घटनाओं के रूप में कर रही थी। महोबा जिला मुख्यालय से महज 15 किलोमीटर दूर कबरई इलाके में घटी इस घटना ने जैसे जवाहर नगर को गमों के सैलाब में उड़ेल दिया हो। मृतक के पिता के साथ गांव के हजारों लोग जब लाश को लेकर स्थानीय पुलिस चैकी पहुंचे तो थाना इंचार्ज ने एक बारगी तो एफ0आई0आर0 लिखने से मना ही कर दिया लेकिन जब दबाव को बढ़ता देख उसे स्थिति का अनुमान हो गया तो खदान मालिक छोटे राजा के ऊपर आई0पी0सी0 की धारा 307, 304 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया।
एफ0आई0आर0 की भनक जैसे ही पहाड़ मालिक को लगी तो उसने अपनी बिरादरी के लोगों के साथ मृतक के पिता के घर पर एक सप्ताह तक लगातार फायरिंग करवाई जिसके चलते पूरा परिवार गांव से पलायन कर गया। मृतक के पिता के ऊपर मुकदमा वापस लेने की धमकियां और लाश की कीमत बताये जाने का दबाव लगातार बनाया जाता रहा। गरीबी और फांकाकसी के बीच जीवन यापन कर रहे उत्तम के परिवार ने डेढ़ लाख रूपये में बेटे की लाश का सौदा कर लिया। दरअसल यह एक घटना नहीं है जिससे की बुन्देलखण्ड में खनन के नाम पर हो रहे प्राकृतिक तांडव को समझा जा सके। मृतक उत्तम के पिता की तरह हर कोई खुशनसीब नहीं जो डेढ़ लाख रूपये मंे अपने ही बेटे की लाश का सौदा कर ले। इस जनपद की तकरीबन 90 हजार आबादी को इन्ही उड़ते गिरते पत्थरों और 24 घण्टे दम घोंटते स्टोन क्रशरों की उड़ती धूल के बीच रहना पड़ता है। कबरई इलाके की पचपहरा (सिद्ध बाबा) खदान, गंगा मैया खदान इस क्षेत्र की सर्वाधिक जल दोहन करने वाली अवैध खदानें हैं। इसकी एक बानगी बीते नवम्बर 2010 में देखने को मिली। जब सर्वे टीम के साथ स्वैच्छिक संगठन प्रवास के कार्यकर्ता मृतक उत्तम के घर से बैठक करने के बाद पचपहरा खदान की तरफ पहुंचे। 200 मीटर ऊंची सिद्ध बाबा पहाड़ी को लगभग 300 फिट नीचे तक दबंग माफियाओं ने ग्रेनाइट खनन के नाम पर जमींदोज कर रखा था। वहीं गंगा मैया पहाड़ में खदान के नीचे पंपिग सेट, जनरेटर से मोटर के द्वारा सैकड़ों लीटर पानी बाहर फेंका जा रहा था।
पाताल की सीमा तक खोदी जा चुकी खदानें बुन्देलखण्ड में दिन प्रतिदिन गहराते जा रहे जल संकट का एक बहुत बड़ा कारण है। विंध्याचल पर्वत श्रेणी केन पहाड़ों पर हो रहे खनन के चलते यहां के हालात इतने खराब हो चुके हैं कि लौंड़ा, रमकुंडा, पचपहरा, डहर्रा, मोचीपुरा, गौहारी जैसे दर्जनों पहाड़ तो पहले ही खत्म हो चुके हैं और बांदा, चित्रकूट क्षेत्र के पर्यटन स्थल वाले बेशकीमती पहाड़ों को भी तीन-तीन सौ फिट गहरी खाईयों में तब्दील किया जा रहा है। हमेशा ही पानी की कमी से जूझने वाले महोबा और बुन्देलखण्ड के बांकी हिस्से के लिये यह खतरनाक स्थिति है। पहाड़ांे के खत्म होने का मतलब है भू-जल स्तर में गिरावट। अब जबकि लगातार खनन से यहां पहाड़ियों को निशाना बनाया जा रहा उसके देखते हुए बड़ी आसानी से कहा जा सकता है कि बुन्देलखण्ड पानी की कमी की अन्तहीन समस्या की तरफ तेजी से कदम बढ़ा चुका है। जनसूचना अधिकार 2005 के तहत भू-गर्भ जल विभाग से मिली जानकारी के अनुसार बुन्देलखण्ड में तीन मीटर तक जलस्तर नीचे जा चुका है। इसके बाद भी उत्तर प्रदेश की चालीस जनपदीय क्रिटिकल, सेमी क्रिटिकल, सुरक्षित क्षेत्र के अन्तर्गत प्रदेश शासन के द्वारा जारी की गयी सूची मंे बुन्देलखण्ड क्षेत्र के किसी भी जनपद को स्थान नहीं दिया गया।
प्रदूषण और पर्यावरण संकट- स्टोन क्रशर यंू तो विन्ध्य बुन्देलखण्ड मंे प्रदूषण और पर्यावरण संकट का पर्याय बन चुके हैं। जिनसे की यहां की तकरीबन हजारों हेक्टेयर कृषि भूमि, खेतिहर मजदूर, किसान बरबादी की कगार पर पहुंच चुका है बल्कि लाखोें की आबादी के बीच बसे हुए गांव शहर साल दर साल प्रदूषण की गिरफ्त में आकर तबाही की तरफ साजिशन बढ़ चुके हैं। उदाहरण के तौर पर कबरई इलाके के चारों ओर पांच-दस किलोमीटर के क्षेत्र में 13 गांव बसे हुए हैं। इस तहसील को भी मिला दें तो इनकी कुल आबादी 90 हजार से ज्यादा है इनमें भी करीब 25 हजार खनन मजदूर, दस हजार बाल श्रमिक, चार सैकड़ा बंधुआ मजदूर हैं। उत्तर प्रदेश के इस सबसे पिछड़े और गरीब इलाकेें में जब खनन उद्योग की शुरूआत हुयी थी तब खेती किसानी जो यहां कभी ज्यादा फायदे का सौदा नहीं रही- उससे ऊबे लोगों में उम्मीद जगी थी कि अब उनके पास आमदनी का एक और जरिया होगा लेकिन वक्त बीतने के साथ साथ यहां खनन का कारोबार मंत्री, विधायकों और प्रशासिनक अधिकारियों के ताकतवर हाथों में आ गया। फिलहाल उत्तर प्रदेश सरकार के वर्तमान कैबिनेट मंत्री बादशाह सिंह, पूर्व मंत्री सिद्धगोपाल साहू, शिवनाथ सिंह कुशवाहा, विधायक अशोक सिंह चन्देल, दबंग अरिमर्दन सिंह, पूर्व विधायक कुंवर बहादुर मिश्रा, जयवन्त सिंह, सीरजध्वज सिंह, प्रदेश खनिज मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा जैसे आला माफिया खनन की पैमाइश में दर्ज हैं। इनका शुरू से ही एक ही मक्सद रहा कि किसी भी कीमत पर जल्दी से मोटा मुनाफा कमाना, चूंकि कारोबार की कमान ताकतवर लोगों के हाथ में थी इसलिये सारे नियमों को ताक पर रखकर इलाके में तेजी से पहाड़ों के पट्टे बंटने लगे और क्रशरों की तादाद बढ़ने लगी। इसी के चलते तेजी से पर्यावरण कानून भी धराशायी होती चले गये।
अब तक यहां के लोगों को समझ में आ गया था कि जिस खनन उद्योग से वे अतिरिक्त आमदानी का सपना देख रहे थे वे ही उनके जीवन यापन के बुनियादी संसाधनांे का सबसे बड़ा खतरा हैं। इस दौरान जब कभी स्थिति बिगड़ी और विरोध की आवाजें उठीं तो दबंगों के द्वारा उन्हें बुलट और बैलेट के नाम पर ठगा गया और उनको जमीन के सबसे अन्तिम पायेदान पर खड़े होने का एहसास भी कराया गया। पर्यावरण प्रदूषण से लोगों के स्वास्थ्य और कृषि भूमि पर पड़ते विपरीत प्रभाव के विरोध में कई मरतबा धरने प्रदर्शन भी आयोजित हुए। सन् 2000 में ग्रामीण पत्रकार ऐसोसिएशन के बांदा मण्डल अध्यक्ष दिनेश खरे ने तत्कालीन बांदा मण्डल आयुक्त एस0सी0 सक्सेना से शिकायत कर राज्य प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड के द्वारा सभी क्रशरों का निरीक्षण करवाया। निरीक्षण के बाद कुल 57 क्रशर मंे से 11 को कानूनोें के उल्लंघन व मानक के विपरीत काम करने के कारण बंद करने के निर्देश दे दिये गये। महोबा के जिलाधिकारी आलोक कुमार ने जब कबरई के आबोहवा में प्रदूषण की मात्रा की जांच करायी तो जांच के निष्कर्ष भयावह थे। जिलाधिकारी का कहना था कि सामान्य परिस्थितियांें में हवा में छोटे छोटे कणों की मात्रा जहां दो सौ माइक्रग्राम प्रति घनमीटर होनी चाहिए, वहीं कबरई में यह आंकड़ा 1800 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर था यानि सामान्य से नौ गुना ज्यादा। सन् 2000 में महोबा जनपद में कुल 57 क्रशर थे जो अब तीन सौ तीस हो चुके हैं और बीते दस साल बाद से 2011 तक शासन सरकारों ने किसी भी प्रकार से प्रदूषण की जांच नहीं करवायी। हालात बद से बद्तर होते जा रहे हैं। 30 जनवरी 2010 तक पिछले दस सालों में बुन्देलखण्ड क्षेत्र विशेष के अन्तर्गत जनपदवार खनन उद्योग बढ़ोत्तरी को निम्न आंकड़ों से देखा जा सकता है। इस कारोबार से प्रदेश सरकार को सालाना 458 करोड़ रूपये राजस्व की आमदनी होती है।
जनपद | खनन क्षेत्र | स्वीकृत पट्टे | रिक्त क्षेत्र |
बांदा | 190 | 86 | 104 |
चित्रकूट | 141 | 118 | 23 |
हमीरपुर | 83 | 79 | 04 |
महोबा | 330 | 327 | 03 |
जालौन | 89 | 38 | 51 |
ललितपुर | 129 | 98 | 31 |
झांसी | 349 | 278 | 70 |
योग- | 1311 | 1025 | 286 |
क्या हैं मानक प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड उत्तर प्रदेश के मुताबिक:
1. स्टोन क्रशर मंे लगे होने चाहिए वाटर स्प्रिंकलर, डस्ट हाॅपर, प्राथमिक-द्वितीयक जांच क्रशर व बिक्र बेक्रिंग वाॅल।
2. एक क्रशर उद्योग से कच्चे माल के रूप में स्टोन बोल्डर का प्रयोग कर लगभग 10,000 सी.एफ.टी. की दर से ग्रेनाइट का उत्पादन किया जाये।
3. क्रशर प्लान्ट में आकस्मिक स्वास्थ्य, एम्बुलेन्स, डाक्टर की व्यवस्था हो।
4. रेलवे स्टेशन, संरक्षित वन क्षेत्र, विद्यालय से क्रशर प्लान्ट चार सौ मीटर की दूरी पर तथा हरित पट्टिका, नेशनल हाइवे, कृषि भूमि से 1.0 किलोमीटर की दूरी पर लगे हों।
2. एक क्रशर उद्योग से कच्चे माल के रूप में स्टोन बोल्डर का प्रयोग कर लगभग 10,000 सी.एफ.टी. की दर से ग्रेनाइट का उत्पादन किया जाये।
3. क्रशर प्लान्ट में आकस्मिक स्वास्थ्य, एम्बुलेन्स, डाक्टर की व्यवस्था हो।
4. रेलवे स्टेशन, संरक्षित वन क्षेत्र, विद्यालय से क्रशर प्लान्ट चार सौ मीटर की दूरी पर तथा हरित पट्टिका, नेशनल हाइवे, कृषि भूमि से 1.0 किलोमीटर की दूरी पर लगे हों।
मगर बुन्देलखण्ड के आसपास इलाकों में हो रहे अवैध खनन, माइनिंग कारोबार को प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड के मानकों के विपरीत किसी भी क्षेत्र में देखा जा सकता है। हाल ही में लामबन्द हुए संगठनों की पहल पर मजदूर किसानों ने जब खान निदेशालय ग्वालियर, गाजियाबाद से मानकों के विपरीत खनन की लिखित शिकायत की तो खनिज डायरेक्टर डाॅ0 ए0के0 जैन ने 87 खदानांे को बन्द करने के आदेश जारी किये हैं लेकिन जिला खनिज अधिकारी श्री मुइनुद्दीन व जिला प्रशासन की मिलीभगत से यह मुनासिब नहीं हो सका है। बैरियर पर जिला पंचायत द्वारा निर्गत किये गये ठेकांे को यहां के बाहुबली ठेकेदार इस तरह से चलाते हैं कि बीस रूपये से 40 रूपये ट्रक निकासी के नाम पर उनसे 150 रूपये की अवैध वसूली की जाती है और हर ओवर लोडिंग ट्रक से दो हजार रूपये की गुण्डा टैक्स वसूली अलग से रात दिन खनन कारोबार में की जाती है। इन्हीं तमाम ज्वलन्त मुदद्ो को आधार बनाकर बुन्देलखण्ड स्वैच्छिक संगठन प्रवास ने बीते 2.12.2010 को माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद में जनहित याचिका दाखिल की है जिसकी सुनवाई लगातार की जा रही है और खनन के माफिया दहशत में आकार समाजिक कार्यकताओं के खिलाफ फर्जी मुकदमो की साजिशे रच रहे है।
स्वास्थ्य पर प्रभाव- हालांकि कबरई के प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र में किसी भी दिन जाकर इस बात की पुष्टि की जा सकती है कि जिला अस्पताल से लोगों की सेहत के बारे मे मिली सूचना कितनी थोथी है, प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र कबरई के प्रभारी डाॅक्टर एसके निगम के मुताबिक अस्पताल की ओपीडी मे हर दिन तकरीबन 100 मरीज आते हैं, जिनमें से ज्यादातर सांस और आंख के रोगी होते हैं, यहां के खनन उद्योगांे मंे काम करने वाले मजदूरांे के बारे में बात करते हुए डाॅ0 निगम कहते हैं, ‘कबरई के क्रशर उद्योग में काम कर रहे सारे लोग मौते को गले लगा रहे हैं, इन्हें तो दिहाड़ी के साथ-साथ कफन दिया जाना चाहिए’। स्टोन क्रशरों से उड़ती धूल के स्वास्थ्य पर घातक प्रभाव की बात कबरई के एक अन्य डाॅक्टर रामकुमार परमार भी मानते हैं, ‘स्टोन क्रशरों केक कारण हवा में हमेशा ही 4-5 माइक्राॅन के कण मौजूद रहते हैं, जो श्वास नली की एल्वोलाई में जमकर उसे ब्लाॅक कर देते हैं, जिससे सांस की बीमारी हो जाती है, इससे रक्तशोधन क्षमता भी कम होती जाती है। लोगों का पाचनतंत्र गड़बड़ा जाता है और वे धीरे-धीरे अस्थमा के मरीज बन जाते हैं। डाॅ0 परमार बताते हैं कि खनन और क्रशर उद्योग से घिरे नब्बे फीसदी लोग एसबेसटोसिस और सिलिकोसिस जैसी बीमारियांे से प्रभावित हैं, और हर दिन ऐसे कम से कम एक दर्जन मरीज उनके अस्पताल में आते हैं।
क्या है सिलिकोसिस:1. सिलिका धूल फेफड़ांे में जाकर सांस में मुश्किल पैदा करती है। 2. सिलिकोसिस सिलिका धूल से पैदा होने वाली बीमारी है। 3. धूम्रपान से यह बीमारी बढ़ती है और फेफड़ांे को नुकसान पहुंचता है।
किन कामों से होती है: 1. पत्थरांे को तोड़ने व ड्रिलिंग करने। 2. खनन सम्बन्धी या स्टोन क्रशर में काम। 3. मकान बनाने या उजाड़ने का काम। 4. शीश बनाना या हीरा तराशना। 5. भवन या सड़क बनाने में राजगीरी।
सिलिका धूल से बचाव: 1. पानी का छिड़काव करें। 2. कटाई, ड्रिलिंग और पिसाई में पानी का प्रयोग करें। 3. मास्क का इस्तेमाल करें। 4. सिलिका धूल के नजदीक खाना पीना व धूम्रपान न करंे। 5. क्रशर व माइनिंग में काम करते समय दस्ताने, मास्क पहनें।
महोबा जनपद तीस राष्ट्रीय स्मारक खदानांे की जद में- भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण लखनऊ मण्डल के अधीन केन्द्रीय संरक्षित स्मारकों में तीस संरक्षित स्मारक जनपद महोबा में हैं। कबरई के पास स्थित केन्द्रीय संरक्षित स्मारक ष्ब्ींांतपलं क्ंप बंतअपदह व िूवउंद ूपजी ं बीपसक पद ीमत ंतउष् प्रतिषिद्ध/विनियमित क्षेत्र में इस विभाग की अनुमति के बिना कराये जा रहे खनन कार्य को रोकने हेतु कार्यालय से पांच लोगों के विरूद्ध कारण बताओ नोटिस जारी की गयी है। केन्द्रीय संरक्षित स्मारकों की सीमा की परिधि में 100 मीटर क्षेत्र को प्रतिषिद्ध घोषित किया गया है जिसमंे खनन व नवनिर्माण की अनुमति नहीं है। प्रतिषिद्ध क्षेत्र से पूरे 200 मीटर क्षेत्र को विनियमित क्षेत्र घोषित किया गया है। जहां खनन कार्य पूर्णतः वर्जित है बनिस्बत इसके यहां जिस तरह से मनमानी तरीके से कृशर लगाये गये हैं। उनके कारण ही चन्देलकालीन ब्रम्हताल के मात्र 50 मीटर दूर खुलेआम ब्लास्टिंग जारी है और 12वीं शताब्दी के बने इस ऐतिहासिक तालाब के चारों और करीब 30 स्टोन क्रशर लगाये गये हैं जिन्होंने तालाब के पानी को पूरी तरह से तबाह कर दिया है। इसी तरह कबरई कस्बे के बीच बने जोगन तालाब जो कि 250 वर्ष पूर्व जल संरक्षण की धरोहर था उसे भी पचपहरा खदान, गंगा मैया खदान ने पानी की एक-एक बूंद के लिये संघर्ष के ऊपरी हिस्से पर खड़ा कर दिया है। बीते कुछ समय से जिस तरह बिन पानी बुन्देलखण्ड मेें राजनीतिक और दलित वोट के नाम पर स्थानीय मंच अपना राजनीतिक भविष्य तलाश रहे हैं और कुछ बड़े नेता उन्हे समर्थन भी दे चुके हैं लेकिन इस तरफ किसी का ध्यान नहीं है कि जिस तरह से यहां खनन के चलते पारिस्थितिकी तंत्र, वन्य जीवों के प्रवास को उजाड़ा जा रहा है। ऐसे हालातों में स्वतंत्र राज्य की मांग क्या बुन्देलखण्ड अपने बलबूते पर मुकम्मल कर सकेगा ? अगर यही हालात रहे तो वह दिन दूर नहीं जब कबरई जैसे इलाके और बांदा, चित्रकूट के खनन कारोबार जल संकट की काली स्याही लिये बुन्देलखण्ड की बदहाली का वर्तमान लिख रहे होंगे।