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बुंदेलखंड
के गाँवो में तपेदिक को टी बी कहते है। आज पूरे विश्व ने इस
महामारी पर चिंतन किया
पर जो चिंतन चित्रकूट के बरगढ़ आदिवासी गाँवो के टी बी मरीजो ने किया वह बहुत ही
दर्द नाक था .वैसे विकासित देशो में टी बी के बारे में वहा के युवा को बहुत जानकारी
नहीं होगी जीतनी बरगढ़ के युवा को है क्यों की विकसित देशो में टी बी के मरीज नगण्य
है.
सच यह है की सरकारी व्यवस्था और सामाजिक ताना बाना दोनों टी बी से ग्रसित है ?
बुंदेलखंड
के गाँवो में तपेदिक को टी बी कहते है। आज पूरे विश्व ने इस
महामारी पर चिंतन किया
पर जो चिंतन चित्रकूट के बरगढ़ आदिवासी गाँवो के टी बी मरीजो ने किया वह बहुत ही
दर्द नाक था .वैसे विकासित देशो में टी बी के बारे में वहा के युवा को बहुत जानकारी
नहीं होगी जीतनी बरगढ़ के युवा को है क्यों की विकसित देशो में टी बी के मरीज नगण्य
है.
छितैनी गाँव में अपना दर्द बाया करते हुवे २० वर्षीय युवा
रविकरण ने बताया कि वह इस रोग कमजोर होगया है .माँ मजदूरी करती है .वह ४० ० प्र
ति
सप्ताह दवा को देती है .सरकारी अस्पताल में इलाज नहीं हुवा तब प्राइवेट डाक्टर से
करा रहे है .४० वर्षीय सूरजपाल ४ वर्षो से टी बी से परेशान है.अबतक ५ ० हजार
की दवा करा चुके है .आज १ ८ हजार का कर्ज है ठेकेदारों का .७ बच्चे है .पत्नी पथर
तोड़ कर कमाई करती है तब जाकर बच्चो का पेट भरता है .इसी प्रकार की कहानी रामलाल ,भैयादीन ,शम्भू
ओ
म
प्रकाश व् छोटे लाल ने भी बताई .सभी ने बताया कि -----सरकरी अस्पताल मऊ में टेस्ट
के लिए बलगम मंगाते है सूखी खांसी में बलगम नहीं है तो टेस्ट से मना करदेते है .हमारी
समस्या क्या है नहीं बताते . स्मार्ट कार्ड भी बने है कोई सुनवाई नहीं है . रामजतन
और रामशिरोमन दो मरीज मिले जिनका इलाज डाट्स से रहा है। शेष मरीज प्राइवेट इलाज से
कर्जदार टी हो गए लेकिब बच्चो को अच्छा भोजन देने में असमर्थ है . रामजतन की मजदूरी
स्कुल के शिक्षक ने नहीं दी उसके यंहा होली नहीं मनेगी .
ति
सप्ताह दवा को देती है .सरकारी अस्पताल में इलाज नहीं हुवा तब प्राइवेट डाक्टर से
करा रहे है .४० वर्षीय सूरजपाल ४ वर्षो से टी बी से परेशान है.अबतक ५ ० हजार
की दवा करा चुके है .आज १ ८ हजार का कर्ज है ठेकेदारों का .७ बच्चे है .पत्नी पथर
तोड़ कर कमाई करती है तब जाकर बच्चो का पेट भरता है .इसी प्रकार की कहानी रामलाल ,भैयादीन ,शम्भू
ओ
म
प्रकाश व् छोटे लाल ने भी बताई .सभी ने बताया कि -----सरकरी अस्पताल मऊ में टेस्ट
के लिए बलगम मंगाते है सूखी खांसी में बलगम नहीं है तो टेस्ट से मना करदेते है .हमारी
समस्या क्या है नहीं बताते . स्मार्ट कार्ड भी बने है कोई सुनवाई नहीं है . रामजतन
और रामशिरोमन दो मरीज मिले जिनका इलाज डाट्स से रहा है। शेष मरीज प्राइवेट इलाज से
कर्जदार टी हो गए लेकिब बच्चो को अच्छा भोजन देने में असमर्थ है . रामजतन की मजदूरी
स्कुल के शिक्षक ने नहीं दी उसके यंहा होली नहीं मनेगी .
एक वर्ष पहले गाँव के युवा पति पत्नी .को टी बी हो गयी . दोनों
मर गए . उनके तीन लड़किया थी जिसे उसके भाई पाल रहे है .इनके घर दाल सायद महीनो में
बने . कोटे का चावल नमक गरीबो के यहाँ ही बनता है .गरीब की हैसियत नहीं है की वह
आसानी से सरकारी लाभ ले सके . सच यह है की सरकारी व्यवस्था और सामाजिक ताना बाना
दोनों टी बी से ग्रसित है ?
http://www.bundelkhand.in/portal/news/world-tb-day-25-march-2013

इसी
पर एक परिचर्चा कैबनेट मंत्री आजम खान की अगुवाई में हुई थी सरकार का रुख
बुंदेलखंड में पानी के भयावह संकट को लेकर संजीदा है ,एक्सपर्ट कमेटी के सभी
सदस्यों ने बुंदेलखंड के सातों जनपदों में प्राचीन तालाबो ,जलाशयों को
पुनर्जीवित करने की कार्य योजना बनाये जाने की मांग प्रमुखता से उठाई है ,मुख्यमंत्री
ने शुरवाती पहल में बाँदा ,महोबा और झाँसी को तालाबो सुन्दरीकरण ,उनको
डिसिल्टिंग करने ,पानी सुलभ कराने और पानी के बंद श्रोतो के साथ उन पर दबंग -
दादुओ के अवैध कब्जो को सख्ती से हटाये जाने के बैठक में निर्देश दिए है ....इसी
क्रम में अगली मीटिंग चार अप्रैल को प्रस्तावित है बताते चले की बुन्देलखण्ड
में करीब बीस हजार से अधिक तालाब है जिसम अकेले बाँदा में 2006 की गड़ना के
अनुसार 4540 तालाब रहे है , यहाँ सातों जनपदों में तालाबो के दस्तावेजीकरण की
महती ज़रूरत है , एक्सपर्ट कमेटी के सदस्यों का एक ही मकसद है की हर हालत में
बुंदेलखंड संसाधनों से परिपूर्ण करते हुए सतही विकास के स्थाई प्रोजेक्ट
/ योजनाये ही लागू की जाये और उनका मूल्याकन भी किया जाये ताकि वे बुंदेलखंड
पैकेज के करोडो रुपयों की तरह बुंदेलखंड में एक और अधूरे अध्धयन की नीति बस न
साबित होकर रहे .
थक-हार
कर कैमरे को यह सोंचकर कमर से कस लिया कि शायद इस बरस चीं-चीं का दीदार होना
मयस्सर नहीं होगा। लेकिन मित्र मंडली के साथ सांझ ढलते ही जब बांदा जनपद की
तहसील नरैनी के ग्राम गोपरा में वापसी की तैयारी में थे तभी प्राथमिक स्कूल के
खिड़की में एक नन्हीं गौरैया यकीनन कैमरे में कैद हो जाने की बाट जोह रही थी। उसे
देखकर मानो एक बारगी आंखों पर विश्वास नहीं हुआ कि मैने जो देखा है वो सच के
करीब है। पर वो सच ही तो था जिसने मेरे बढ़ते हुए कदमों को ठिठका कर कैमरे की
तरफ तेजी से हाथ बढ़ाने को अनायास ही मजबूर कर दिया। इससे पहले कि गौरैया मेरी
आंखों से ओझल होती अपने कैमरे के स्क्रीन पर उसकी हरकत को कैद कर लिया।
पनी
प्रकृति सहपूरक स्वभाव के कारण मानवीय स्वभाव मंे सबसे पहले एकाकार हो जाती है।
कच्चे घरों के खपरैल की ओट, अटारी और मंडेर में घोसला बनाकर रहने वाली गौरैया
आज अपने ही अस्तित्व को लेकर संघर्षरत है। इसका एक बड़ा कारण लगातार बढ़ते जा रहे
ग्लोबलाइजेशन, मोबाइल टावर की रेडियेशन किरणें, जैविक और जीरो बजट आधारित कृषि
अभाव है। पहले जहां खेतों में कम कीटनाशक दवाएं, उर्वरक डालने के चलते गौरैया
खेत-खलिहानों में कीट-पतंगों को खाने के लिए आसानी से दिखाई पड़ती थी वहीं अब
खेत-खलिहान को दूर छोड़कर हमारे घर-आंगन से भी ओझल होती जा रही है। यथार्थ है कि
हमारे नवांकुर बच्चे और आने वाली पीढ़ियां इस मासूम चीं-चीं की किलकारी सुनने से
वंचित रहेगीं। गौरैया चिड़िया के अतिरिक्त बुन्देल्खन्ड के ग्रामीण परिवेश से
जुगुनू, तितली, सोन चिरैया, गिद्ध और काले हिरन भी दिन प्रतिदिन गायब होते जा
रहे हैं। इनके संरक्षण के नैतिक जिम्मेदार हम और आप ही हैं। लेकिन क्या हुआ जो
हमने अपने बदरंग विकास के पायदानों को ऊंचा करने के लिए गौरैया जैसे अन्य
परजीवियों को दोजख में ढकेल दिया है। आखिर हम खुद को इंसान जो कहते हैं यानि
ईश्वर की बनाई हुई सबसे खतरनाक कृति जो अपने जरूरतों के मुताबिक हर चीज को बखूबी
अपने स्वार्थ सांचे में उतार सकती है!