जिसने नारी अस्मिता का चीरहरण कर डाला है,
चित्रकूट का बाबा दिल्ली पुलिस का साला है,
जिस्म के नहीं ये तो आस्था के बलात्कारी है,
इनको संन्यासी मत कहो यह आबरू के व्यापारी है,
राम तपोवन की नगरी का इसने उपहास उड़ाया है,
बुन्देली वीरता की गाथा का सम्मान जलाया है,
ओ भारत की वसुंधरा हम आज बहुत शर्मिंदा है,
बेशर्मी का भीमानंद( शिवा ) अभी तलक जो जिंदा है,
करुण पुकार श्री राम जी से इस रावण को माफ़ नहीं करना,
ये कलयुगी दानव है इनसे कैसा डरना,
सम्पूर्ण देश की नारी से सागर का निवेदन है,
घर के भगवानो को पूजे यही सार्थक शांति वन है,
आस्था चैनलो के पीछे अब न लगाये चक्कर,
कभी - कभी पड़ जाती है नमक के ऊपर शक्कर,
सही कहते है कबीरा मानों उनकी बात,
बदहाल देश में हो रही अब बाबाओ की बरसात!
" कहे कबीर की - दुनिया ऐसी बावरी पत्थर पूजे जाय,
घर की चकिया कोऊ न पूजे जाको पीसो खाय ! "
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