अयोध्या - बाबरी मस्ज़िस्द --1.10.2010
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एक लम्बे अरसे से जब हमने इस हिंदुस्तान को जाना भी नहीं था और जब की आज इस मुक़दमे को दायर करने वाले जिन्दा भी नहीं है अयोध्या - बाबरी मस्ज़िस्द के कल इलाहाबाद हाई कोर्ट के आये लखनऊ खंड पीठ के बेंच नंबर 3 के तीनो जजों क्रमश रविन्द्र शर्मा , सुधीर अग्रवाल , जस्टिस खान इसमे सुधीर जी का तो आज ही कार्यकाल पूरा हो रहा हाई मगर ये ऐतिहासिक फैसला उनको भी जहन से नहीं भूलेगा क्योकि 60 साल लम्बे इस मुक़दमे की ज़िन्दगी भी आज के माहोल में एक आदमी की उम्र से कमतर नहीं है लेकिन जो कल हुआ उससे कही न कही भारत में धार्मिक उन्माद की एक झलक तो देखने को मिल ही गई जो शायद हमारी आने वाली नई पीढ़ी ना देखेगी उसको जब बढती हुई बेकारी, कुपोषण , अकेलापन , भुखमरी , पलायन और कर्ज से ही आत्महत्या करने से फुर्सत नहीं है तो वो क्यों इस मंदिर - मस्जिद के पहलु में कैद हो ? इस आधे अधूरे फैसले से ना तो मुस्लमान ही खुश है और ना ही हिन्दू बल्कि एक जटिल समस्या को ही खड़ा कर दिया गया है जिस तरह से विवादित ज़मीन को तीन हिस्सों में बाटने की बाते आये फैसले में कही गई है उसके आधार पे तो वहा सिर्फ एक छोटा सा चिड़िया खाना ही बन सकता है, मगर उन राजनितिक दलो को ज़रूर खुशी हुई होगी जिनकी वजह से ये मुद्दा अब धार्मिक जेहाद सा बन चुका है , पर हमारी देश के उन तमाम मुस्लिम और हिन्दू भाइयो से जन गुहार है की वे अपने को विकास , बुनियादी तालीम , पोषण , रोजगार की एक सार्वजनिक सुविधाओ के मुकम्मल खोज में लगाये जहा की हिन्दू और मुस्लिम भाई एक साथ खड़े होकर सपनो के हिंदुस्तान व भारत का निर्माण करे क्योकि आज हमारे मुल्क को इसी तरह के जोश उन्माद की ज़रूरत है जो विकास के लिए हो इन कंक्रीट की इमारतो से देश के लाकहो भूखे लोगो का समाधान नहीं होने वाला है अभी तो ये फैसला सुप्रीम कोर्ट भी जाने वाला है और इस बात की क्या गारंटी है की उसके फैसले से भी हमारी हमे ही बरगलाने वाली ताकते खामोश हो जाएगी .......अमन की तलाश में हम निकले है , देखना है की कितने लोग मेरे साथ चले है ?
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