Thursday, October 29, 2015

' बुंदेलों ने बनाया सुखनई का सुख छीन लिया ' !


सुखनई नदी की कहानी- कहाँ गया है बुन्देली आँख का पानी ! 


मऊरानीपुर से वापसी के साथ ' सुखनई ' के आंसू ले आया हूँ ! सोचा आपसे साझा कर लेवे ताकि हमें अपनी नदी सभ्यता और संक्राति पर गर्व हो सके ! अब है तो थोथा और छिछला ही ...चलिए जैसा भी है सहेजे रखिये ताकि समय के साथ और नदियाँ नालो में तब्दील हो सके !
मऊरानीपुर - चन्देल कालीन इतिहास,विशाल तालाब और पोखरों से बुलंद बुंदेलखंड कभी अपने पानीदारी के लिए जाना जाता था ! विकास की आहट हुई और अन्य की तरह बुंदेले भी जल,जंगल,नदी -पहाड़ से उबकर कंक्रीट के सोपान पर चढने के लिए हाथापाई करने लगे...जब जिसको जैसा अवसर मिला उसने निर्बाध और अविरल बह रही नदियाँ को अपने मानवीय कृत्य से शर्मसार कर दिया. इतिहास नए रूप में बदल रहा है,अब हम क्योटो और मेक इन इंडिया से लेकर डिजीटल पावर की बात कर रहे है ! ये तब और अच्छा लगता है जब मार्क जुकर बर्ग यमुना के तीरे बसे ' ताज ' को देखने-समझने में लगे है ! वह कहते है कि ताज जैसा सुन्दर कोई नही मगर वही मार्क की नगर ताजमहल के पीछे समूचे आगरा का मैला ढो रही यमुना में नही गई जो मथुरा से दिल्ली तक के सफ़र में विकास के गंडासे से बेरहमी से काटी जा रही है ! 
कुछ ऐसे ही हाल है बुंदेलखंड के जिला झाँसी की तहसील मऊरानीपुर में बहने वाली सुखनई नदी के ! राजा मधुकरशाह ने इस नगरी को बसाया था जो अब मंदिरों की नगरी मऊरानीपुर के नाम से बसी है. बुंदेलखंड का 147 वर्ष पुराना जलविहार मेला महोत्सव हर वर्ष सुखनई के किनारे ही लगता है ! भव्य विमानों से लड्डू गोपाल का जलविहार होता है,पुरे शहर में शोभा यात्रा निकलने के बाद ये जलसा अपने चरम उन्माद पर होता है जिसको देखने और आयोजित करने में स्थानीय लोकसेवक से लेकर प्रतिनिधि,आला अधिकारी तक दिनरात एक करते है....ये सुखनई नदी मध्यप्रदेश से निकली है जो आगे चलकर महोबा के धसान में मिलती है.वैसे तो यह बरसाती नदी है लेकिन कभी अपनी निर्मलता और लाल बालू के लिए इसका यौवन देखते बनता था ! 
साल में भाद्रपक्ष में यह जलविहार मेला लगता है जिसमे करीब 15 दिवसीय कार्यक्रम होते है.सूत्र बतलाते है कि अबकी साल 60 लाख रूपये इस मेले में खर्च हुए है.स्थानीय नगर पालिका की अध्यक्ष मीरा आर्या है इनके पति हरिश्चंद्र पूर्व में अध्यक्ष रह चुके है...पिछले तीन पंचवर्षीय से एक ही परिवार में नगर पालिका खेल रही है.यहाँ से विधायक सपा रश्मि आर्या के पति जयप्रकाश आर्य उर्फ पप्पू सेठ ( अपरह ,हत्या के दर्जन भर मामले में अभ्युक्त ) का जलजला अपने शबाब पर होता है जब इलाके की सरकारी मिशनरी को अपाहिज बनाना हो ! रश्मि आर्या के देवर  हेमन्त सेठ है.ये हाल ही में जिला पंचायत सदस्य का चुनाव भी लड़ चुके है ! ...स्थानीय नागरिक इस सांप की पूछ को पकड़ना नही चाहते क्योकि उन्हें भी इलाकाई दुश्मनी से परहेज है ! 
सुखनई नदी पर अब तक लाखो रुपया चित्रकूट की मंदाकनी सरीखे घाट तैयार करने और संरक्षण के नाम पर गर्क किया गया है लेकिन इसकी सूरत और पानी की सीरत देखकर बस जी भरकर रोने को मन करता है ! ये गुमान उस पल छलनी हो जाता है कि नदी हमारी माँ है,हा नदी सभ्यता के अगुआ रहे है ! आज सुखनई गटर से बत्तर हाल में सिसक रही है.हलके के पत्रकार की कलम चुप है क्योकि उन्हें अपनी रोजमर्रा की घटनाए भी उकेरनी है ! एक स्थानीय दैनिक समाचार पत्र से जुड़े संवाददाता कहते है कि बीते सितम्बर के जलविहार मेले में नदी में इतना पानी नही था की लड्डू गोपाल विहार कर पाते ! एक तरफ हमारा सुबह का निर्मल भारत था और दूसरी तरफ नगर पालिका के सेवक सूअर विचरण कर रहे थे यह अलग बात है कि धरम के ठेकेदार इस दंभ में थे कि वे हिन्दू है और भगवान कृष्ण की लीला उनका मोक्ष अवश्य करेगी ! गौरोठा से सपा विधायक दीपनारायण ने नदी की हत्या करने को दिन -रात बालू उलीची जिससे नदी में आज काई,सिल्ट और गंदगी की सत्ता है ! खैर ये जो भी है ये कुछ वैसा ही जब हम माँ गंगा को निर्मल करने के अभियान में काशी की सड़के चिकनी कर रहे है,मगहर के घाट शव से दूर कर रहे है लेकिन सुखनई जैसी छोटी नदियों को जो वास्तव में आज भी गंगा से बेहतर विकल्प है किसान के लिए सींच के साधन का को अनदेखा करते जा रहे है....सुखनई रहेगी या नही कालांतर में ये विकास पर छोड़ देना आखिर हमें भी तो अगली सभ्यता को कुछ विरासत में देना है ...ये मैला ढोने वाली नदियाँ जिसका पानी अब आचमन के मुकाबिल भी नही रह गया है !

Wednesday, October 28, 2015

केन - बेतवा की जद में पन्ना टाइगर्स की कुर्बानी !

सितंबर 2015 के आखिरी हफ्ते में केंद्र सरकार की ओर से नदियों को जोड़ने की परियोजना को मंजूरी दी जा चुकी है। नदी जोड़ परियोजना के तहत देश भर की कुल 30 नदियों को जोड़ा जाना प्रस्तावित है। इनमें से 14 हिमालयी और 16 प्रायद्वीपीय भाग की नदियां हैं। नदियों को जोड़कर पानी बांटने के इस महाप्रयोग की शुरुआत बुंदलेखंड की केन और बेतवा नदी को जोड़ने के साथ होगी। हालांकि, इस परियोजना को मंजूरी मिलते ही बुंदेलखंड में हलचल है। केंद्रीय जल संसाधन मंत्री उमा भारती इस परियोजना को लेकर खासी उत्साहित हैं। उनका मानना है कि बुंदेलखंड के लाखों हेक्टेयर भूमि इस गठजोड़ से सिंचित हो जाएगी और बुंदेलखंड बहाल हो जाएगा। दूसरी ओर, इस महाप्रयोग को बुंदेलखंड के लिए विनाशकारी विकास की संज्ञा दी जा रही है। यूपी के लोग इस योजना को बेहद अच्छा बता रहे हैं, वहीं मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड के लोग मुखरता से इसके खिलाफ हैं, क्‍योंकि पानी नहीं बांटना चाहते। पानी की इस जंग में उन्हें अंदेशा है कि कहीं पानी का बंटवारा उन्हें भविष्य में अधिक जलसंकट में न डाल दे। 

25 अगस्त 2005 से प्रस्तावित केन -बेतवा नदी गठजोड़ मुद्दे पर केंद्र और दोनों राज्य सरकारे अभी तक स्थानीय आदिवासी बाशिंदों के साथ सहमती नही बना पाई है...8500 आबादी वाले आदिवासी डूब क्षेत्र के दस गाँव में अपने हिसाब से मुंह माँगा मुआवजा चाहते है ! जबकि केंद्र सरकार मध्यप्रदेश पुनर्वास स्कीम के तहत बीपीएल / आदिवासी विस्थापन के आंकलन पर मुआवजा देने की बात कर रही है.बांध के केंद्र बिंदु ग्राम दोधन (पन्ना टाइगर्स,तहसील बिजावर,जिला छतरपुर ),पिल्कोहा 50 लाख रूपये प्रति परिवार आर्थिक मदद चाहते है जबकि खरयानी,कूपी,मैनारी आदि 30 लाख रूपये की बात कह रहे है ! सरकार न तो इतना मुआवजा देगी और न सहमती बन पायेगी.हाल -फ़िलहाल इस कार्यकाल में ये बांध बनता नही दिख रहा है.बीते 31 सितम्बर 2015 को केन्द्रीय ज्ल्मंत्री उमा भारती अवश्य अपने कैबनेट के साथ जंगल में बांध स्थल दौधन ग्राम में लाल पत्थर लगवाकर शिलान्यास कर आई है ! बुंदेलखंड के लगातार पड़े दो साल के सूखे ने केन नदी में गंगऊ डैम में भी पानी शेष नही छोड़ा है.बरियार पुर,रनगवां बांध पहले ही सूखे है ऐसे सवाल ये है कि आने वाले साल अगर ऐसे ही सूखे के रहे तो क्या केन नदी जो निचले हिस्से में है वो उपरी हिस्से में बह रही बेतवा को पानी दे पायेगी ? क्या इस बांध परियोजना की डीपीआर में इसका स्थलीय अध्ययन किया गया है ?  का पर्यावरण प्रभाव आंकलन के अनुसार, पांच हजार हेक्टेयर में लगे लगभग 33 हजार पेड़ काटे जाएंगे। अनुमान लगाया गया है कि एक हेक्टेयर में 7-8 पेड़ होंगे, लेकिन सवाल ये भी उठ रहा है कि क्‍या इतने घने 
वन्य इलाके में प्रति हेक्टेयर में सिर्फ 7-8 पेड़ ही होंगे ?आदिवासी उन्हें जंगल से प्यार है। वे लोग जंगल की रक्षा करते हैं। उनका मानना है कि इस योजना से जंगल को नुकसान होगा। वे अपने पन्ना टाइगर्स के रहवास को छोड़ना नही चाहते मगर वीरान होते जंगल और ख़तम होते वन्य जीवो के प्रवास के बीच सबको अपने -अपने हिस्से की क़ुरबानी करनी ही होगी क्योकि केंद्र सरकार को केन की हत्या चाहिए ! बुंदेलखंड के हमीरपुर और झाँसी के रहवासी  केन के पानी को बेतवा में डालने का समर्थन करके अलगाववाद की मानसिकता से ग्रस्त है !  नेता चाहते भी यही है कि आवाम आपस में एकजुट न होने पाए ! उन्हें बाँदा के बाशिंदों का सूखा नही दिखता है , न आदिवासी विस्थापन दिखता है, न पन्ना नेशनल पार्क के उजाड़ने का दर्पण ,न वन्यजीवो का पलायन ...निज स्वार्थ में सियासी बाँध है उमाभारती का ये बाँदा और पन्ना टाइगर्स को ख़तम करने का .....ईको सिस्टम से मजाक ! पूर्व पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने एनओसी नही दी थी, एसी के भवनों में दिल्ली से बैठकर बनी है ये योजना बिना ज़मीनी अध्ययन किये हुए ! आदिवासियों के सामने खुली चौपाल में परियोजना डीपीआर सार्वजनिक करवाओ अगर हिम्मत है...जय -जय बुंदेलखंड करके खालिस भक्ति में परेशान होने वाले सियासी आदमी ऐसे तो बनवा चुके अलग बुंदेलखंड राज्य मुंह का मुगालता और मैदान की लड़ाई में अंतर होता है ....ये अलग बात है कि जंगल में रहने वाले आदिवासियों को आपने विकास का थोथा सब्जबाग दिखलाकर उन्हें भी मोबाइल,जींस और कंक्रीट के गलियारे में भटकने को रास्ता दिखला दिया है. शायद तभी से वे मुंह मांगे मुआवजे की शर्त पर पन्ना टाइगर्स छोड़ने से गुरेज नही करेंगे लेकिन इसकी असली सूरत तब दिखेगी जब केन --बेतवा नदी गठजोड़ होने के बाद नाकामयाब साबित होगा बुंदेलखंड के अन्य बांधो की तर्ज पर ! ....ग्यारह हजार करोड़ रूपये में और करोड़ों का केन -बेतवा लिंक और बुंदेलखंड विशेष पैकेज से जगह -जगह आनाज की मंडियां बनाने ब्यूरोक्रेट्स / सरकार को  विकास के नाम पर धन खाने की आदत है ! उस पर न बोलने का सदमा है !....एक सूखी नदी केन का पानी जो निचले हिस्से में है उसको उपरी हिस्से वाले बेतवा में डालने की वकालत कर रहे हो ! ...कोफ़्त है !देश की और बुंदेलखंड की प्रत्येक नदियाँ नैसर्गिक रूप से आपस में जुडी है फिर ये प्रकृति से खिलवाड़ क्यों ? मानवीय अतिक्रमण क्यों ? विकास के लिए जंगल के बाहर की ज़मीन क्या कम है ? या धरती में अब सिर्फ आदमी ही रहना चाहता है ? 
इस परियोजना से उजड़ जाएंगे कई गांव
इस परियोजना के विरुद्ध उठ रहे विरोध के स्वरों के बीच बांदा के आरटीआई एक्टिविट आशीष सागर कहते हैं कि सरकार बुंदेलखंड के गांवों और जंगलों को उजाड़ कर खेत सींचने की तैयारी कर रही है, जिसके सफल होने की उम्मीद कम है। परियोजना में न सिर्फ पन्ना टाइगर नेशनल पार्क का 5 हजार 258 हेक्टेयर वन्य इलाका इस योजना में अधिग्रहित कर लिया जाएगा, बल्कि कई गांव भी उजड़ जाएंगे। नेशनल पार्क में कुल 24 बाघ हैं। पर्यावरण प्रभाव आंकलन के रिपोर्ट के मुताबिक, परियोजना के तहत आने वाले इलाके में जीव-जंतुओं की रिहाइश नहीं है, लेकिन आशीष के अनुसार देश में बाघ बचाने के लिए करोड़ों रुपए खर्च किए जा रहे हैं, जबकि निश्चित रूप से बाघों का रिहाइशी इलाका प्रभावित होने के साथ ही दुनिया का बड़ा गिद्ध प्रजनन इलाका भी इस परियोजना के भेंट चढ़ेगा।सूचनाधिकार में केन्द्रीय जल संसाधन मंत्रालय वर्ष 2011 में कह चुका है कि बांध क्षेत्र के गाँव विस्थापित किये जा चुके है मगर असल में आज भी ये सभी गाँव जस की तस आबाद है.आदिवासी न जंगल छोड़ना चाहते है बिना उचित मुआवजे के और न बाँदा के लोग ये बांध के समर्थन में है.केन नदी के पानी को बेतवा में डालकर सियासत महज बुन्देली जनता को आपस में पानी की जंग के लिए मजबूर कर देगी.ग्यारह साल में सरकार और आदिवासी के बीच नही बन पाई सहमती ! 
विस्तार खबर के लिए इस लिंक में जाए - 




http://www.bhaskar.com/news/UP-people-have-different-think-on-ken-betwa-river-linking-project-5151902-PHO.html

बुंदेलखंड में बेमौसम बारिश से ओला और जबलपुर में आंधी !

29 अक्टूबर बाँदा जारी -
बाँदा - माह अगस्त के दुसरे सप्ताह से लगातार बेपानी हो चुके चित्रकूट मंडल के बाँदा,महोबा,चित्रकूट और हमीरपुर में हल्की बारिश हुई है. ग्रामीण अंचल में सूखे पड़े खेतो में पहुंची नमी ने अभी खेत जोतने और बुआई की स्थति तो नही आई है ! लेकिन किसानो के 
मुरझा चुके चेहरों में एक आशा अवश्य दिखाई दी ! सूत्रों के मुताबिक समंदर में उठे विक्षोभ के चलते ये बेमौसम दो दिवसीय बारिश होगी.झाँसी जिले में जोरदार ओले गिरे है जिससे सडको में लोग जान बचाते नजर आये. पर्यावरण में इतने कम अन्तराल में मची उथल -पुथल, भूकंप और ऐसी उलट स्थति से सन्देश लेने की ज़रूरत है कि प्रकृति का स्वाभाव मानवीय हस्तक्षेप से बिगड़ रहा है. बुंदेलखंड का किसान इस समय पानी की आस में है जिससे खेत बोये जा सके अगर उन्हें सही समय में जुताई काबिल पानी नही मिला तो आने वाली चैत - खरीफ की फसल भी चौपट हो जाएगी.रबी की खेती पहले ही जा चुकी है. बाँदा जिले का जसपुरा,सदर पैलानी के आस -पास की ग्राम पंचायते इस साल कम पानी वाली फसले मसलन तिली,अरहर भी नही निकाल पाई है.ग्राम पचकौरी में हाल बेहद ख़राब है.बड़े कास्तकार भी सूखे से टूट रहे है .पंचायती चुनाव में भी पलायन सहज देखा जा सकता है.अबकी प्रधानी के चुनाव और क्षेत्र पंचायत के चुनाव में भी वोट के लिए किसान ने रुपया मांग की उनका कहना है कि आपसे काम तो होना नही है तो क्यों न वोटो के बदले रुपया ही ले लिया जावे ताकि पेट तो चलेगा कुछ दिन ! यही हाल नरैनी -दोआबा क्षेत्र में मूंगफली की खेती का हुआ है.खलारी,मोहनपुर,फतेहगंज ,पुकारी आदि सैकड़ो गाँव बिना पानी संकट में है.नदी और बंधी सुखी है. कृषि वैज्ञानिक किसानो को आलू के सहारे अपना सूखा काटने की सलाह देने की कवायद में है.ग्रेनाईट की चट्टानों से घिरा बुंदेलखंड का इलाका अपने साथ 1441 वर्ग किलोमीटर परती भूमि लिए है जो खेती से वीरान है.
एनसीआरबी के आंकड़े के मुताबिक, इस दौरान छत्तीसगढ़ में 15,099, पश्चिम बंगाल में 13,098, गुजरात में 8,309, असम में 3,908, ओडिशा में 3,439, झारखंड में 1,197, हिमाचल प्रदेश में 669, त्रिपुरा में 430 और दिल्ली में 191 किसानों ने आत्महत्याएं की।
पंजाब ,बुंदेलखंड के आंकड़े और अधिक चिंतनीय है ! उत्तर प्रदेश में बुंदेलखंड में होने वाली किसान आत्महत्या का असर सुखाड़ ने अबकी साल कानपुर,घाटमपुर ,भोगनीपुर तक पहुंचा दिया है.26 अक्टूबर को भोगनीपुर के मलासा निवासी रणजीत सिंह ने बतलाया कि छोटा भाई धीर सिंह खेती करता है.दो अन्य भाई हरयाणा में मजदूरी पर है.चार भाइयो में तीन बीघे कृषि ज़मीन है.दो साल के सूखे ने धीर सिंह को 62,600 रूपये के कर्जे ने फांसी के फंदे तक पहुंचा दिया है...बैंक की नोटिस जारी हुई और किसान ने आत्महत्या कर ली ! बुंदेलखंड में ललितपुर,झाँसी के तालबेहट में सहरिया आदिवासी के हाल ख़राब है,गरोठा तहसील के जलालपूरा में 500 की आबादी पर 11 करोड़ का कर्जा क्रेडिट कार्ड से ! यहाँ किसान बिचौलियों के शिकार हुए कर्जे में.बाँदा का पैलानी -जसपुरा बेदम है सूखे से,महोबा और हमीरपुर भी इसी कड़ी में शामिल हुए...किसान को लोकसेवक सी कोई मासिक पेंशन नही,कोई किसान आयोग नही,संसद-नीति आयोग में सहभागी नही तब उसके लिए क्या बचता है नपुंसक आत्महत्या ! दूसरी ओर मध्यप्रदेश के जबलपुर से सटे गाँव में बारिश ने आंधी और ओलो की झड़ी से धन की तैयार खड़ी फसलों को धरासाई कर दिया है.स्थानीय निवासी मनोज कुमार ने बतलाया कि 
जब पानी की जरूरत थी तब नहीं गिरा ।जब इन घने बादलों की जरूरत थी तब नहीं बने
जब इन हवाओ की जरूरत थी तब नहीं चली, अब पानी भी गिर रहा है अब बादल भी बन रहे है और तूफ़ान भी चल रहा है ।
कई खेतों की धान जमीं पर लेट गई है । अगर इन खेतों में पानी दोबारा भरा तो ये पूरी तरह खराब हो जाएँगी । अगर नहीं गिरा तो कम नुक़सान होगा । इस समय धान के दाने पुस्ट हो रहे है या हो चुके है । अगर धान गिर जाती है तो चावल पतला रह जाता । धान गिरने के दो मुख्य कारण बताये जाते है । पहला अधिक खाद के उपयोग से । यूरिया का ज्यादा इस्तेमाल से पौधे में अधिक लम्बाई आ जाती है । दूसरा धान अधिक घनी होने की वजह से । हवा चलने के दौरान एक के ऊपर के गिर जाते है और फसल लेट जाती है ।
बाक़ी अब बारिश नहीं होनी चाहिए वरना बहुत अधिक नुक़सान होने की सम्भावना है ।

Monday, October 26, 2015

केन की जगह अस्थाई तालाब में हुआ मूर्ति और ताजिया का विसर्जन

 जल संरक्षण को आगे आये दुर्गा सेवक !

गत वर्षो में चलाए गए अभियान के लिए इस लिंक में क्लिक करे -
http://hindi.indiawaterportal.org/node/44082




बाँदा - बुंदेलखंड में भी उच्च न्यायलय के आदेश का असर देखने को मिला.हाई कोर्ट इलाहाबाद ने गंगा -यमुना में मूर्ति विअर्जन को रोक लगा रखी है.जिसको प्रभावी रूप में लागू करने की कवायद में चित्रकूट जनपद में गत वर्ष ही पीओपी की मूर्तियों का विसर्जन मंदाकनी में रोक दिया गया था.जिलाधिकारी नीलम अहलावत ने ये काम बखूबी किया था.बुंदेलखंड के चित्रकूट मंडल मुख्यालय में उच्च न्याययालय के आदेश आने के पूर्व ही ज़िला फतेहपुर में गंगा को सहेजने की अगुआई का समर्थन करते हुए वर्ष 2010 से ये काम हो रहा था लेकिन इसका व्यापक असर 2012 में तब हुआ जब यहाँ केन नदी में प्रथम बार स्थानीय जल प्रहरियों ' भूमि विसर्जन ' या अस्थाई तालाब में प्लास्टर आफ पेरिस की मूर्ति विसर्जित करने का अभियान चलाया था.शहर में ग्यारह मूर्तियाँ भूमि विसर्जित हुई जिसका कुछ सांप्रदायिक ताकतों और इस पर्व की आड़ में अपनी सियासी गोट बिछाने वालों ने विरिध किया.स्थानीय संस्था प्रवास सोसाइटी उच्च न्याययालय इस बात के लिए गई कि केन नदी भी चिल्ला घाट में यमुना में और मंदाकनी नदी राजापुर ( पहाड़ी ) में यमुना नदी में मिलती है जिस कारण मूर्तियाँ बहकर यमुना में ही जाएगी.कोर्ट की सख्ती के बाद इस साल चित्रकूट की तीन सैकड़ा और बाँदा की कुल 250 मूर्तियाँ केन नदी किनारे अस्थाई तालाब में विसर्जित की गई है.अस्थाई तालाब को अगले दिवस नगर पालिका ने साफ कराया जिससे ताजिये भी ठन्डे हो सके. गौरतलब है की मुस्लिम भाई भी इस प्रकृति सम्यक कार्य में आगे आये उन्होंने अपने ताजियें भी ऐसे ही तालाब में प्रवाहित किये है.सभी दुर्गा पंडालों को इस पहल के लिए दिल्ली की संस्था अरण्या के सौन्जय से  ' आस्था एवं पर्यावरण मित्र सम्मान ' देकर उत्साह बढ़ाया गया है.इस कार्य में संजय कश्यप,विबिन त्यागी,विजयपाल बघेल ने सहयोग किया.केन नदी इस वर्श्ज मूर्ति विसर्जन के बाद होने वाले प्रदूषण से बच पाई है .जल संकट से जूझ रहे इलाके में ये कार्य प्रेरणास्पद है.बाँदा के ग्राम महोखर के साथी योगेन्द्र सिंह 'योगी ',ब्रजेश सिंह ,सहर के दुर्गा पंडालों ने साझी सहभागिता की.- आशीष सागर,बाँदा