Friday, October 29, 2010

आधुनिक भारत का अनूठा तीर्थ है उड़वाहा

जब पूरी दुनिया की नजर राष्ट्रमंडल खेलों की वजह से दिल्ली पर थी। जहां 33,000 करोड़ रुपए का खेल चल रहा था। उसी दौरान ग्वालियर और भोपाल की मीडिया की नजर शिवपुरी पर आ टिकी थी। यहां का निहारगढ़ ‘पीप्पली लाईव’ को जीवन्त कर रहा था। बड़ी बड़ी गाड़ियों से पत्रकार-राजनेता-सामाजिक कार्यकर्ता भूख से हुई मौत को रिपोर्ट करने के लिए इकट्ठे हो रहे थे।.ये एक बानगी है की आज भी क्या लाखो लोग भोजन का अधिकार पा जा रहे है अगर हा तो फिर ये पीपली लाइव कैसा है ये तस्वीर हमारे ब्लॉग मित्र आशीष कुमार अंशु  जी के माध्यम से ली गई है जो की भुखमरी की नजरो को काफी हद तक दिखलाने में कामयाब है वास्तव में आज भी हम एक बेबुनियादी ढ़ोते हुए लोकतंत्र को ही जीते 
छले आ रहे है जहा हर पल ११ करोड़ लोगो का जीवन बदहाली और भुखमरी में ही गुज़रता है कुछ ऐसा ही है हमारा बुंदेलखंड जहा की आत्महत्या का ग्रामीण छेत्रो में होना मतलब कर्ज या भुखमरी है !

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Wednesday, October 27, 2010

ब्लास्टिंग से थर्रा उठा कबरई का आफतपरी परेशान मोहल्ला

  • डेढ लाख रू0 में बिकी मौत
  • तीन सौ फुट गहरे गडढो में दफन होगे नरकंकाल
मटौध (पचपहरा)/कबरई - बुन्देलखण्ड में गुजरे तीन दशकों से लगातार जारी मौत की खदानों के चलते होने वाले हादसे व प्रकृति के अवैध दोहन और पहाड़ो को मिटाने की साजिश एक योजनाबद्ध तरीके से विन्ध्य क्षेत्र की हरियाली, जमीनो की उर्वरा शक्ति, इंसानों को बीमार बना देने वाली हवा के तहत ही शासन -सरकारों द्वारा अप्रत्यक्ष समर्थन से चलायी जा रही है। खनन उद्योग को लेकर बीते एक माह से शुरू हुआ जन संघर्ष कल दिनांक 23.10.10 को आंदोलन की एक रणनीति के बीच गुजरा है। पूर्व नियोजित कार्यक्रम के तहत होने वाली बैठक 24.10.10 के तहत एक दिवस पूर्व ही कल सामाजिक संगठनो ने खनन माफियाओं व स्थानीय पुलिस प्रशासन की अप्रिय घटना के चलते विशाल नगर (कबरई) / पचपहरा मटौध के खनन मजदूरों, महिलाओं के साथ बीते एक माह पूर्व ब्लास्टिंग मे मारे गये स्व0 उत्तम प्रजापति 8 वर्ष पुत्र छोटे लाल प्रजापति के आफतपरी परेशान मोहल्ला में आहूत की गयी।
उल्लेखनीय है कि उक्त स्थान व पचपहरा पहाड़ (सिद्ध बाबा) वही स्थान है जहां पर हुइ असमय की गयी पहाड़ ब्लास्टिंग के समय तकरीबन एक कि0मी0 दूर जाकर गिरे पत्थर से दुर्घटित हुये मृतक उत्तम का निवास गृह था। आयोजित बैठक में शामिल प्रवास सोसायटी के आशीष सागर व बुंदेलखंड रिसर्च ग्रुप फार डेवलपमेंट (बरगद) के संयोजक अवधेष गौतम ने मिली जानकारी के अनुसार बताया कि जिला खनिज अधिकारी महोबा ने फर्जी तरीके से तैयार रिपोर्ट के आधार पर प्रतिलिपि खनिज निदेशालय को करते हुये प्रतिबंधित की गयी सत्तासी खदानों को पुनः दुरूस्त मानको के साथ चालू करने की सिफारिस की है। बेबुनियादी दलीलो के चलते उनकी ही शह पर स्थानीय पुलिस प्रशासन ने मृतक उत्तम बनाम छोटे राजा पहाड़ मालिक पर दर्ज हत्या के मुकदमे को मृतक के पिता से धमकी देकर न सिर्फ उनके परिवार को घर से कहीं दूर रात गुजारने के लिये विवष कर दिया बल्कि एक झूठे बयान में हलफनामा लेते हुये यह भी लिखाया है कि - उत्तम की मृत्यु ब्लास्टिंग के पत्थर से नहीं वरन् घर में घूमते समय लगे हुये पत्थर के गिर जाने से हुयी है। अभी उक्त बयान की विवेचना रिपोर्ट आना बाकी है। लेकिन तयशुदा है कि मासूम के कातिल एक दफा फिर मौत की खदानों को शुरू करने के लिये आजाद हो जायेगे।
कल की बैठक में स्थानीय मजदूरो को संगठित कर सात व्यक्तियों को नामित किया गया जिन्हे मोहल्लेवासियों एवं ग्रामीण तबके के लोंगो को जागरूक करने के लिये निम्न भूमिकाये भी सौपी गयी है। जिनमे जल संकट, भूस्खलन, कम वर्षा, सूखा और अकाल, बंजर होती कृषि भूमि, बाल श्रमिक, महिला हिंसा, सिलकोसिस, टी0वी0 आदि घातक दुष्परिणामों के लिये जनपद महोबा के लोगो को जाग्रत करना है।
गौरतलब है कि ब्लास्टिंग का समय दोपहर 12 बजे से 2 बजे के मध्य हैं किंतु कल बैठक मे उपस्थित लोग खुद इस बात के गवाह है कि दोपहर 2:30 बजे तक एवं सायं 6:47 तक बराबर चंद कदमों पर किये जा रहे कीर्तन सिद्ध बाबा पहाड़ी एवं सैकड़ो मजदूरो के द्वारा शुरू किये गये सत्याग्रह के बाद भी बमबारी की जाती रही है। गाटा सं0 977 पचपहरा पहाड़, गाटा सं0 967 गंगा मैया, गाटा सं0 323 लौड़ा बाबा में 300 फुट तक के गहरे गडढे व 200 मी0 ऊपर तक के पहाड़ो को जमीन का पानी निकाल कर मौत की खदान बना दिया गया जिसमें शायद हर साल मरने वाले गुमशुदा मजदूरो, विकलांगता के शिकार बदहाल श्रमिको के नरकंकालो को दफन किया जायेगा। यह भी बताया गया कि मृतक के पिता छोटेलाल प्रजापति को बतौर मौत का हर्जाना रू0 डेढ़ लाख पहाड़ मालिक ने हलफनामें के बाद दिया है जिसने कही न कही मर जाने के बदले मुवावजे की परम्परा का आहवाहन भी कर किया है। बैठक में पंकज सिंह परिहार ग्राम गुगौरा (गंज), मोहन कबरई, मृतक के परिवारी जन के अतिरिक्त बुद्धजीवी सामाजिक कार्यकर्ताओं ने बुन्देलखण्ड के बांदा चित्रकूट, महोबा व हमीरपुर मे पूरी तरह से पहाड़ - बालू खनन को हमेषा के लिये विराम देने की गुहार की है ताकि विन्ध्य का यह क्षेत्र रेगिस्तान न बन सके।

आशीष सागर, प्रवास

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Monday, October 25, 2010

खदानों की अब होगी मुक्ति और पहाड़ो की आजादी

www.bundelkhand.in and www.prawas.ओर्ग
ये एक जन आन्दोलन का आगाज अब बुंदेलखंड में शरू हुआ है जो अब अंतिम अंजाम की बुनियादो को तय करने के बाद ही ख़तम होगा क्योकि धरती के बलात्कारियो को अब बुंदेलखंड को आजाद करना ही होगा - बुलंदियों से सुरु हुआ है मेरा ये प्रवास का सफ़र , हम मिटेगे लड़कर , बुजदिली से नहीं मरकर.......खदानों की अब होगी  मुक्ति और पहाड़ो की आजादी .

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Sunday, October 24, 2010

केन नदी कर रही पुकार, मत रोको नदियों की धार

  • सैकड़ो मूर्तियों के जल विर्सजन से कराह रही कर्णवती
  • केवट बिरादरी ने किया केन का उद्धार
  • पंगु हो चुका है बुंदेलखंड का जिला प्रषासन
प्रकृति सम्यक जल संरक्षण की कड़ी में सामाजिक संगठन प्रवास ने एक मर्तबा फिर बुंदेलखंड के उन लोगो को साथ लेकर चित्रकूट धाम बांदा जनपद में केवट बिरादरी के साथ एक जल स्वच्छता अभियान की शुरूआत की जिसमें उस तबके ने अभियान का साथ दिया जो वास्तव में पानी की कीमत अपने जीवन की रोजी रोटी से जोड़कर देखते है। बीते दिनों नवरात्रि दुर्गा पूजा के पष्चात सैकड़ो मूर्तियो द्वारा न सिर्फ केन की जल धारा को रोका गया बल्कि दो सैकड़ा मूर्तियों से जिन्हे रंग बिरंगे केमिकल युक्त पदार्थ, कांच की चूड़िया, भारी भरकम बांस बल्लियों के ढांचे के साथ बहाया गया पाट दिया था।
बताते चले कि पिछले साल की तरह इस दफा भी संगठन ने एक जनअपील जारी करते हुये स्थानीय मूर्ति संगठनों से जल विर्सजन न करने की अपील की थी। लेकिन हुआ वही जो कि पानी को अपाहिज बना देने वाले प्रषासन की मंषा के अनुरूप अपने धार्मिक उन्माद को पूरा कर लेने में ही खुषी का अवसर मानते है। साल दर साल हजारो टन मिट्टी जिस प्रकार से केन की जलधारा में मिलाकर उसे पूरने का कार्य अंजाने में ही सही खुद बंुदेलो द्वारा किया जा रहा है उसे देखकर शब्द यह कहने के लिये विवष हो उठता है कि कर्णवती को केन बनाया, बंुदेलों ने नही बचाया, कभी सूखा तो कभी जल संकट, बंुदेली किस्मत में ही क्यों अकाल समाया ? जन अभियान की शुरूआत बिना किसी सरकारी मदद व संसाधन से की गयी जिसको अमली जामा पहनाने में नदी के तट पर बसने वाले निषाद समाज ने अपने पसीने की आहूति देकर सफल बनाने से की।
कहीं न कहीं बधाई के पात्र जनपद के वे मीडिया कर्मी, टी0वी0 चैनल्स भी है जो बंुदेलखंड में गुजरे तीन दषको से जीवन प्रत्याषा के साथ खत्म हो रहे पानी को देखते है। निषाद कुनबे के श्रीलाल, विजय, कल्लू, त्यागी, अजीत, योगेन्द्र, महेष, प्रबोध, विवेक कुमार ने जिस तरह से बीच दलदल में जाकर जिस अथक लगन में डूबकर मूर्ति, मलबे, नुकीले तारो के जाल हटाकर वहां फैली तमाम तरह की प्रदूषण जनित सामग्री को आग के हवाले किया है वह संदेष उन लोगो से जन अपील ही है कि अगले वर्ष 2011 में इसकी पुनरावृत्ति न हो ताकि दिनो दिन बढ़ते हुये अधार्मिक और प्राकृतिक विनाषकारी कार्य को प्रकृति के समर्थन में परमार्थ के लिये पूर्ण विराम दिया जा सके। करोड़ो रूपयों की पानी को बचाने वाली उन योजनाओं को ऐसे नजीर बनाने वाले दुस्साहसिक कामों से सीख लेनी चाहिये जिनके लिये करोड़ो का बजट महज विकास को बंद बोतलों के पानी बेचे जाने की योजना के साथ तैयार किया जाता है। जल जीवन का वह महत्वपूर्ण अंग है जिसे यदि मानव शरीर से अलग कर प्रदूषणयुक्त बना दिया जाये तो निष्चित ही मनुष्य की जिंदगी को नासूर कहना अनुचित नही है।
आषीष सागर, प्रवास