Friday, February 11, 2011

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" ईको फ्रैन्डली (पर्यावरण मित्र) शुभ विवाह, कार्बनिक उत्सर्जन एवं क्लाइमेट चेन्ज की एक अनोखी पहल इस आधुनिकता के दौर में "

शुभ विवाह- चिरंजीव संगम सिंह मांडवी परिणय वृक्ष कुमार
दिनांकः- 12.12.2009
वरपक्षः- सदस्य
  1. चिरंजीव संगम सिंह पुत्र श्री नरेन्द्र सिंह, ग्राम मटौंध जनपद- बांदा
  2. श्री बृजेष सिंह (लड़के के चाचा जी) पूर्व चेयरमैन मटौंध/सदस्य ह्यूमन राइट्स काउन्सिल आफ इण्डिया।
  3. श्री युवराज सिंह (एम0एल0सी0) विधान परिषद सदस्य उत्तर प्रदेष।
  4. श्री सीरजध्वज सिंह (वरिष्ठ सपा नेता) बांदा।
  5. श्री कुषवध्वज सिंह (पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष/सपा नेता) बांदा।
  6. दिनेश सिंह बांगड़ी (भोजपुरी सिने अभिनेता) लड़के का मामा।
कन्या पक्षः- सुकन्या माण्डवी पुत्री श्री जगरूप सिंह, ग्राम पचपहरा, थाना कबरई जिला महोबा, उ0प्र0
आमंत्रित विषिष्ट अतिथि गणः-
  1. आषुतोष त्रिपाठी जीतू (पूर्व जिलाध्यक्ष एवं वरिष्ठ भाजपा नेता) बांदा।
  2. श्री के0के0 भारती पूर्व जिलाध्यक्ष जिला पंचायत बांदा।
  3. शरद चैधरी (जिलाध्यक्ष विहिप) बांदा।
  4. कु0 गुंजन मिश्रा (सामाजिक कार्यकर्ता) रांची, झारखंड।
  5. श्री वी0पी0 सिंह, सदस्य आई0आई0सी0एन0 दिल्ली।
  6. डा0 अरविन्द खरे (सामाजिक कार्यकर्ता) जनपद महोबा।
  7. श्री बलजीत सिंह (जिला उद्यान अधिकारी) जनपद महोबा।
  8. डा0 सुनीत वियोगी (अन्तर्राष्ट्रीय मौन साधना केन्द्र) महोबा।
विवाह आयोजक मण्डल-
  1. श्री पुष्पेन्द्र भाई (बुन्देलखण्ड भविष्य परिषद) बांदा।
  2. श्री आषीष सागर (प्रवास सोसाइटी), पेटा सदस्य बांदा।
  3. श्री अम्बरीष श्रीवास्तव (ग्राम उन्मेष संस्थान) बांदा।
  4. डा0 जनार्दन त्रिपाठी (उत्थान संस्थान) बांदा।
  5. श्री भानुप्रताप सिंह (सामाजिक कार्यकर्ता) बांदा।
  6. श्री पंकज श्रीवास्तव (भारत प्रकृति सेवा आश्रम) महोबा।
’’ईको फ्रैन्डली (पर्यावरण मित्र) शुभ विवाह, कार्बनिक उत्सर्जन एवं क्लाइमेट चेन्ज की एक अनोखी पहल इस आधुनिकता के दौर में’’
आज हम सामाजिक परिवेष में जहां पर्यावरण प्रदूषण एवं कार्बनिक उत्सर्जन को कम करने के लिए दिनांक 06 दिसम्बर 2009 से 18 दिसम्बर 2009 के बीच विष्व के 192 देषों के पन्द्रह हजार से अधिक प्रतिनिधि, सोषल एक्टिविस्ट, पर्यावरण विद् सामाजिक कार्यकर्ता एक मंच पर बैठकर कोपेनहेगन (डेनमार्क) में एक साझा मंत्रणा कर रहे हैं, अपने अस्तित्व एवं जलवायु परिवर्तन की चर्चा को लेकर वहीं इस 12 दिन के प्रवास में एक ऎसा वातावरण छोड़ जायेंगे जिसमें 40 हजार 500 टन कार्बनडाई ओक्साइड का उत्सर्जन हो रहा होगा कोपेनहेगन में मौजूद विलासता वादी आधुनिक संसाधनों के कारण। इसके जिम्मेदार भी ऐसे लोग हैं जो जलवायु परिवर्तन और एक आपसी समझ, अध्ययन, चिंतन के साथ सम्पूर्ण मानव अस्मिता तथा अन्य जीव मण्डल के प्राणियों के भी संरक्षण के लिये चिन्तित है लेकिन वहां उपलब्ध आधुनिक संसाधनों से पूर्ण माहौल क्या वास्तव में कार्बनडाई आक्साइड के उत्सर्जन को कम कर पायेगा। यह एक प्रष्न चिन्ह है उन सामाजिक कार्यकर्ताओं, राजनीतिज्ञ और पर्यावरण विदों के लिये।
ऐसे ही माहौल में दिनांक 12 दिसम्बर 2009 को जब सारे विष्व में आधुनिक विवाह समारोह भीड़भाड़, मंहगे संसाधनों, कार्बनिक उत्सर्जन पूर्ण माहौल में हो रहे थे, तभी एक छोटा सा गांव अपने साहसिक पहल के साथ चल पड़ा सारे विष्व के समुदाय को और कोपेनहेगन में बैठे जलवायु परिवर्तन के शुभचिन्तकों को यह सन्देष देने के लिए कि आइये पिछले 6 सालों से आकाल, भुंखमरी, पलायन, आत्महत्या, बेरोजगारी, कृषि विनाष और प्रकृति के साथ किये जा रहे मानवीय बलात्कार के साथ अपने एक अनोखे विवाह की रस्मों को निभाने के चलते।
बांदा जनपद के ग्राम मटौंध के एक ऐसे बाहुबलि परिवार जो कि पिछले 2 दषकों से बांदा की राजनीतिक परिवेष में और उत्तर प्रदेष की राजनीति में अपना हस्ताक्षेप रखता है। ये परिवार किसी संसाधनों का भूखा नहीं है। आज के सारे साधन, आधुनिक हथियार, मंहगी गाड़ियां जिनके पास बेतहाषा संख्या में उपलब्ध हो सकती हैं, और जब ऐसा परिवार ऐसी पहल करे जो औरों के लिए एक सन्देष बन जाये तो मजबूरन हजारों युवाओं को और पर्यावरण से सम्बन्धित समस्त मानव श्रंखला को सोंचने के लिए विवष करेगी कि क्यों न हम भी ऐसा ही कुछ कर डालें।
 
चिरंजीव संगम सिंह पुत्र नरेन्द्र सिंह उम्र 24 साल का विवाह कु0मांडवी पुत्री श्री जगरूप सिंह ग्राम पचपहरा, थाना कबरई जनपद- महोबा के साथ बुन्देलखण्ड के मध्य प्रदेष- उत्तर प्रदेष के ह्रदय बिन्दु मटौंध में पर्यावरण मित्र के माहौल में सम्पन्न हुआ। अगर मैं विवाह में की गई रस्मों और संस्कारों की चर्चा यहां न करूं तो यह उन युवा जोड़ों के साथ न्याय नहीं होगा जिन्होने इस जुनून को जन्म दिया। कन्या पक्ष से फलदान में वर पक्ष को मटौंध तालाब के सिंघाड़े प्रकृति पकवान के रूप में सप्रेम भेंट किये गये जिनके साथ महोबा का प्रसिद्ध पान, बांदा जनपद में उपलब्ध शजर पत्थर जेवरात के रूप में दिया गया। वहीं विवाह के दिन सुबह जब दोपहर 12 बजे से लड़के का निकासी संस्कार शुरू हुआ तो सारे आसपास के गांवों के किसान, महिलायें, सामाजिक कार्यकर्ता, राजनीतिज्ञ और मीडिया चैनल में एक कौतूहल मचा हुआ था कि आंगे क्या होने वाला है। डा0 अषोक कुमार अवस्थी (प्राचार्य) बामदेव संस्कृत महाविद्यालय और 11 बाल ब्राम्हणों ने प्रकृति के 4 मित्र जिनमें पीपल, बरगद, नीम, आंवला लड़के को महोबा जनपद के जिला उद्यान अधिकारी श्री बलजीत सिंह के द्वारा गृह आंगन में लगाने के दिये । पौध रोपण के बाद उपस्थित महिलाओं के जन समूह ने अपने पारम्परिक वाद्यंत्रों की धुन में सुरताल का संगीत कार्यक्रम आयोजित किया। बारातियों के लिये आस-पास के गांवों से 151 बैलों से सजी हुई बैलगाड़ियां मंगायी गई वहीं कन्या के विदाई के लिये पारम्परिक पालकी। मटौंध से 3 किमी0 की दूरी पर स्थित ग्राम पचपहरा में बारात जानी थी। दोपहर 2 बजे सारे लोगों की उपस्थिति में प्रकृति मित्र का प्रातः काल भोजन बाटी चोखा, सरसों का साग, चने की भाजी और मठ्ठे की छांछ के साथ भोजन प्रक्रिया सम्पन्न हुईं। बारात की निकासी के समय सारे गांवों की भीड़ ऐसे उमड़ पड़ी मानो बुन्देलखण्ड में जलवायु परिवर्तन का एक अभियान चल पड़ा हो।
 
महत्वपूर्ण ये है कि जहां अब तक भारतीय सरकारो ने हम दो हमारे दो का नारा दिया जनसंख्या के कम करने के लिये वहीं इस विवाह में चि0 संगम सिंह ने और आयोजक मंडल ने हम दो हमारे चार का नारा दिया। हम दो हमारे चार का अर्थ है कि पति पत्नी और हमारे चार वृक्ष जिन्हे हम आने वाली पीढ़ी के लिये बच्चों की तरह पालेंगे। ताकि वे शुद्ध वायुमण्डल में जीवन को अपने सकारात्मक लक्ष्यों की प्रतिपूर्ति के साथ जी सकें। बारात रवाना हुई। शाम 6:30 बजे लगभग 600 लोगों की जनसंख्या ग्राम पचपहरा थाना कबरई जनपद महोबा में पहुंची। बारात में विषिष्ट अतिथि जो, कि कन्या और वर पक्ष दोनो से थे वर्तमान विधान परिषद एम0एल0सी0 कुं0 युवराज सिंह, वरिष्ठ सपा नेता कुं0 सीरज ध्वज सिंह, सोषल एक्टिविस्ट कुं0 गुंजन मिश्रा (रांची झारखण्ड), भोजपुरी सिने अभिनेता दिनेष सिंह बांगड़ी रहे। वहीं बुन्देलखण्ड की 11 स्वयं सेवी संगठन इस आयोजन मण्डल के सूत्र धार थे। कन्या पक्ष से दहेज में एक मात्र तुलसी का पौधा (बिरवा) में प्राप्त हुआ। जिसे सुकन्या मांडवी अपनी पालकी में ममता के आंचल के साथ समेटकर वर पक्ष के घर ले आयी। जिस दिन सुकन्या प्रथम बार गर्भवती होगी। उस घड़ी में एक बरगद का पौधा उसके ससुराल आंगन में फिर रोपा जायेगा। जिससे वट वृक्ष की तरह आने वाला नया मेहमान वायुमण्डल की सुद्धता और दीर्घ आयु का प्रेरक हो। इस शादी में ऐसा कोई भी संसाधन उपयोग में नहीं लाया गया जो कि प्रकृति विरोधी हो, कार्बनिक उत्सर्जन का घटक हो, जैसे आम तौर पर विवाहों में होने वाली आतिषबाजी, फायरिंग, आधुनिक गाड़ियां आदि। सारा कुछ दुनिया को लोगों को ये समझाना था। कि अगर हम अपनी दैनिक दिनचर्या में शामिल छोटे-छोटे कार्यों से भी कुछ त्याग कर सकें अर्थात वापस डाउन टू अर्थ (क्लाईमेट चेन्ज), जीवन शैली को अपनाते चलें तो एक महत्वपूर्ण परिवर्तन हो सकता है। जलवायु को शुद्ध करने व और पर्यावरण को बचाने में। इस विवाह में किसानों का मित्र देषी हल, गौ माता का भी चि0 संगम सिंह ने हल्दी और चंदन से पूजन किया तथा सभी आमंत्रित मेहमानों को एक संकल्प दिवस के रूप में अपने विवाह में आने के लिये सधन्यवाद् दिया।
छोटी छोटी गतिविधियां समस्याओं का हल हैं।
अगर चेत जाऐं आज तो सुरक्षित हमारा कल है।।
प्रेषक
आषीष सागर

Thursday, February 10, 2011

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Story - अब शीलू भी होगी ओछी राजनीति का शिकार


... तो फिर शीलू भी होगी ओछी राजनीति का शिकार !


आशीष सागर
(प्रवास) बुंदेलखंड
  • आरोपी विधायक का डीएनए नही बल्कि नार्को टेस्ट किया जाय
  • तमाम राजनीतिक दल तलाश रहे निषाद समुदाय मे अपना वोटबैंक
  • डाक्टरी परीक्षण मे क्यो नही हुई दुराचार की पुष्टि
  • आखिर क्यों शहबाजपुर के प्राथमिक विद्यालय के हेडमास्टर ने दी जान की दुहाई
  • दुराचार की शिकार पीड़िता शीलू का मीडिया ने क्यों नही लिखा काल्पनिक नाम ?
बुन्देलखण्ड वैसे तो किसी न किसी विवाद, खबर के चलते सुर्खियों में बना रहता है और कभी प्रदेश की राजनीति के सिपहसलार के गृह जनपदो के दौरों को लेकर चर्चा मे बना रहता लेकिन बीते चार पखवारे से भी अधिक मीडिया खबर की सुर्खियां और गाहे बगाहे घटित हो रही दुराचार की घटनाओं मे नजीर बने बांदा जनपद के बहुचर्चित शीलू काण्ड ने तो देश आने वाली राजनीतिक परिदृश्य की स्पष्ट छवि व राजनेताओं के जन मुददो की तस्वीर भी स्पष्ट की है कि हमारे 1.5 अरब आबादी वाले भारत की आगामी दिशा और दशा क्या होगी।
मुख्य मुदद् की बात -
1. सपा ने कहा है कि आरोपी विधायक श्री पुरषोतम नरेश द्विवेदी की डीएनए जाचं की जाय तो असलियत का पर्दाफाश होगा व पुत्र मंयक द्विवेदी पर भी फर्जी तरीके से रिर्पोट दर्ज कराकर शीलू को चोरी के आरोप में जेल भेजे जाने के कारण एफ आई आर दर्ज कर जेल भेजा जाये और पिता पुत्र दोनो की डीएनए जांच करायी जाये। तो यहां पर यह सोचने की बात है कि आखिर कैसे होगी पुष्टि और सत्य की परख कि आरोपी कौन है क्योंकि पिता और पुत्र की डीएनए रिपोर्ट एक ही आती है। राजनीतिक दल कैसे साबित करेंगे की दुराचारी कौन है। बेहतर होता कि वे डीएनए नही बल्कि नार्को टेस्ट की सीबीसीआईडी, उ0न्यायालय, केन्द्र सरकार से मांग करते।
2. सपा सहित तमाम राजनीतिक दल तलाश रहे है शीलू पर निषाद बिरादरी का वोट बैंक आखिर क्योे नही इससे पूर्व सभी राजनीतिक दलो ने उठाये जनपद, मंडल,प्रदेश और देश में रोज ही घटने वाले बलात्कार के मुद्दे? शीलू के दुराचार की घटना के कुछ दिवस बाद ही चित्रकूट जनपद में एक मूक बधिर लडकी नाबालिक के साथ एक दबंग ने दुराचार किया तो फिर क्यो नही हुयी उस पर राजनीतिक बहस, धरना प्रदर्शन,आरोपो की बौछार व ओछी राजनीति की नौटंकी। यहां तक कि सामाजिक संगठन, मानवधिकार कार्यकर्ता भी साधे रहते है मौन चुप्पी।
3. शीलू को अगर वास्तविकता में न्याय की गुहार है तो माननीय सुप्रीम कोर्ट व हाई कोर्ट पर भरोसा होना चाहिये लेकिन क्यों की गयी उसके ही पिता - भाई, शीलू के द्वारा हाथो हाथ राजनीतिक दलो से दी गयी आर्थिक मदद की खैरात लेने की अगुवाई। न्यायालय स्वयं दिलाता पीडित को उचित मुवावजा, सामाजिक सुरक्षा व सम्मान। जेल में बंद होने से पहले शीलू विधायक के यहां से फरार होने के बाद 28 दिवस रज्जू पटेल कथित प्रेमी के साथ कहां थी और क्या करती रही, शीलू ने विधायक के घर से ले जाये गये मोबाइल द्वारा क्यों किये रज्जू पटेंल के नम्बर पर 150 से अधिक फोन काल्स जिसकी पुष्टि स्वयं सीबीसीआईडी ने दाखिल चार्ज शीट में की है।
4. डाक्टरी परीक्षण में भी नही आयी दुराचार होने की स्पष्ट रिपोर्ट क्या डाक्टरो पर सरकार का, राजनीतिक दलो का, जेलर - एसपी का दबाव था जब कि सरकारी मुलाजिम और भगवान का दूसरा रूप होते है डाक्टर। शीलू को उस दौरान हो रहे रक्त स्त्राव (ब्लीडिंग) उन निदो हुयी मासिक माहवारी के कारण भी या मानसिक तनाव के चलते हो सकती है। जिसे स्वयं मेडिकल साइंस प्रमाणित करता है। और माहवारी की पुष्टि भी पीडिता ने जेल में बंदी के दौरान कर्मचारियों से की थी।
5. आखिर क्यों शहबाजपुर ग्राम के प्राथमिक विद्यालय जहां की पीडिता छात्रा थी के हेडमास्टर ने मांगी है। प्रशासन से सुरक्षा और की है जान की हिफाजत की गुहार। क्यों वह बार बार कह रहा है कि उसे बयान बदलने व लडकी के जन्म तिथि में नाबालिक दिखाये जाने के लिये धमकाया जा रहा है जिससे आजिज आकर उसने विद्यालय मे जाना ही छोड दिया है।
6. एक कक्षा 4 पास लडकी को क्या यह न्यायोचित जानकारी हो सकती है कि सीबीसीआईडी व सीबीआई की जांच में क्या अंतर होता है। वह कौन है जो कर रहा है शीलू और उसके भाई संतू के दिमाग की पैरोकारी ।
7. पीडिता के जेल मे बंदी के दौरान प्रियंका नाम की महिला कैदी ने विद्यायक के आरोप वाले सभी खत लिखे लेकिन क्या एक कम साक्षर लडकी खत का एक एक शब्द पढकर प्रमाणिक रूप से यह बतला सकती है कि उसमे सही लिखा है या गलत फिर कैसे चंद रोज की परिचित महिला कैदी के कहने मात्र पर शीलू ने कर दिये खत में हस्ताक्षर और बतायी आप बीती।
8. कहां खो गया खबर पढकर बांदा आया कानपुर के कल्यानपुर निवासी राजेन्द्र शुक्ला पुत्र वीरेन्द्र शुक्ला सफाई कर्मचारी ब्लाक चैबेपुर। उसने ही किया था शीलू से विवाह का दावा जानकारो के मुताबिक एक दबंग राजनीतिक दल ने न सिर्फ उसे जान से मारने की धमकी दी बल्कि बुरी तरह मारा पीटा तो फिर क्यो नही छपी मीडिया में यह खबर।
9. शहबाजपुर की बेटी शीलू के प्रति निषाद समाज, गांव के ही बुजुर्ग लोग व्यक्त करते है उसकी भूमिका, अतीत के चरित्र पर शंका और बताते है शीलू के बचपन की कहानी व भाई, पिता को सर्वाधिक रूप से दोषी। विधायक के समर्थन में भी आरोपी की पत्नी के साथ लखनऊ के धरना प्रदर्शन में शामिल होते है उसके ही गांव के अपने लोग क्या उन्हे विधायक ने खरीद रखा है या फिर यह शीलू प्रकरण ही है। पैसा कमाने की राजनीतिक साजिश।
10. दुराचार की पीडित लडकी का काल्पनिक नाम खबरो में लिखा जाता है फिर चाहे वह इलेक्ट्रानिक चैनल हो या प्रिंट मीडिया यहां तक की पीडिता का चेहरा भी धूमिल किया जाता है। लेेकिन कानपुर के दिव्या कांड व शीलू के प्रकरण में ऐसा नही किया गया क्या यह महिला हिंसा नही है। या फिर इससे पीडिता की साख पर बट्टा नही लगता है। क्यो नही लिया इस मामले को कोर्ट ने संज्ञान क्या यह मीडिया की स्वतंत्रता का दुर उपयोेग नही है।
सभी तथ्यो व संदेहास्पद पहलुओ और सीबीसीआईडी की चार्ज शीट मे शीलू द्वारा बतलाये गये बलात्कार की कार्य योजना व अन्य विशेष बातो पर गौर करने के बाद तथा माननीय हाईकोर्ट में कुछ दिवस पहले ही डा0 नूतन ठाकुर की शीलू व दिव्या कांड में प्रदेश के आला पुलिस अधिकारियो की भूमिका वाली याचिका को खारिज करते हुये 20000 रू0 का अर्थदंड लगाया है साथ ही माननीय सुप्रीम कोर्ट ने भी अधिवक्ता हरीश साल्वे की दाखिल याचिका को नजरअंदाज कर स्वयं संज्ञान लिये गये प्रकरण में उन्हे सलाहकार वकील की भूमिका में रखा हैं। कहने वाली बात यह है कि अब जबकि आरोपी विधायक जेल में निरूद्ध है ऐसे में पीडिता को भारतीय संविधा, न्यायालय के निर्णय पर विश्वास रखते हुये और महिला की गरिमा को बरकरार रखकर स्वयं को राजनीति की ओछी बिसात पर बैठने से रोकना चाहिये। तमाम राजनीतिक दल द्वारा तत्कालीन सरकार पर लगाये जा रहे आरोप से सिर्फ देश की सम्प्रदायिक एकता को चोट पहुचती है ऐसे अवसरवादी जनप्रतिनिधियों को शीलू प्रकरण मे ही क्यो हर समय राजनीतिक मुद्दे उठाने चाहिये जिससे की दोहरे चरित्र वाले जनप्रतिनिधि संसद और विधान सभा तक ही न पहुच सके।

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Story - अकाल में मुफलिसी के शिकार परिवारों का समाधान बनी दादरें की आखत


अकाल में मुफलिसी के शिकार परिवारों का समाधान बनी दादरें की आखत

बुन्देलखण्ड में सूखा कोई नयी बात नही है, पशु सूखा काटने की कूवत, उसकी क्षमता होना पहली बार इस क्षेत्र के वासिन्दो में दिखी जिससे न केवल इस इलाके अधिकांश परिवारों ने पलायन कर महा नगरों में शरण ली, बल्कि स्वाभिमानी, पानीदार ग्रामीणो ने तो अपमान से बेहतर खुदकुशी का रास्ता तय कर लिया।
अकाल की मांद में सुरताल-बुन्देखण्ड जब सूखे के चरम पर पहुंचा तो गांव के वासिन्दे कर्ज, भूख और बैंको की कानूनी वसूली के अपमान से आजिज होकर खुदकुषी की राह पर चल पडे़ तब उस वक्त महोबा जिले के पहाडिया गांव में रहने वाली तीन सहेलियों ने अनूठे समाधान का जन्म देकर अकाल के मुंह में समा रहे लोगों की जिन्दगी बचा-लडने की ताकत दे दी।
जन चर्चा व अखबारों में छपी आत्म हत्याओं की खबरों से चर्चित पहाडियां (महोबा) गांव की गुडिया व रीना दो सगी बहनों ने अपने पिता की दिन व दिन कर्ज और खाली पडे खेतों की चिन्ता से बढ रहे तनाव को देखकर अपनी सहेली नीतू सक्सेना से आशंका जतायी की दद्दा को को कुछ हो गया तो अपने आप को कैसे जिन्दा पाहे, पिता रामकुमार सिंह ने इलाहाबाद बैंक शाखा पनवाडी से वर्ष 2000 में टैªक्टर खरीदने के लिए मु0रू0 140000.00 (एक लाख चालीस हजार) और उसी बैंक से किसान क्रेडिट कार्ड पर चालीस हजार रूपये, कापरेटिव बैंक सोसाइटी से बीस हजार व रिश्तेदारो से कर्ज ले रखा था। इलाहाबाद बैंक को प्रतिवर्ष फसल बेंचकर कुल 2005 तक 1.81 लाख कर्ज टैªक्टर खाते में वापसी के बाद भी घटने का नाम ही नही ले रहा था। सूखा घोषित वर्ष के बावजूद गैर कानूनी ढंग से किसान रामकुमार सिंह के नाम आर0सी0 जारी कर राजस्व विभाग को सौप दिया। राजस्व विभाग के संग्रह अमीन ने नोटिस देकर रामकुमार को हिदायत कि एक सप्ताह के भीतर सम्पूर्ण बकाया कर्ज नही चुकाया तो टैªक्टर और बन्धक जमीन नीलाम होगी। धीरे-धीरे सम्मान की रक्षा और सयानी लडकियो के हाथ न पीले कर पाने की चिन्ता, उनके चेहरे की सवाल पूछती बेवस आंखो ने पिता पर मजबूरियो की दीवार सी खडी कर दी। आखिर घर बैठी सयानी लडकी के हाथ पीले न कर पाना रामकुमार एक सामाजिक अपमान मान रहे थे।
गुडिया को चिन्ता होने लगी कि यह परेशानी कहीं कोई अनहोनी न कर दें। और दद्दा की मौत का कारण न बन जाये बस इन्ही अनसुलझे उभरे सवालों के जवाब पाने के लिये अचानक एक युक्ति सूझी और वह चल पडी अपनी सहेली नीतू से सलाह लेने के लिये गुडिया, रीना, नीतू तीनो युवतियां अपने ही गांव के उस मोहल्ले-घरों में जा पहुंची जहां वे जमीन और उनके परिवारो का बसेरा था, उस दिन चालीस घरो में घुसकर परिवार की महिलाओ से मिल घर गृहस्थी को देखा जिनमें पहले ही दिन आधा दर्जन घरो में दो जून के लिये न तो खाना था, ना जाडा काटने के लिये जडावा, और ना ही चूल्हे की आग जलाने को सूखी लकडियां थी। उन सभी परिवारो पर कुछ न कुछ कर्जा और खेतिहर परिवारों में सिंचाई के कुएं सूखे थे, अधिकतम घरो में लडके-लडकियां शादी की उम्र के 18 बसन्त पार कर चुके थे, इस एक दिन के अध्ययन का विचार-विवरण और अपनी संवाद यात्रा एक रजिस्टर पर घर पहुंचकर दिया कि उजयारे में दर्ज करते समय गुडिया के पिता रामकुमार सिंह आ गये इनकी ओर देखकर सहज ही पूछ बैठे का कर रही हो, इतना कहते-कहते खुद आगे बढकर देखा जब रजिस्टर की तरफ बरबस निगाहे गयी तो पढा और भौचक रह गये, नीतू से पूछा कि काय सबरे घरन में कर्जो है, सबरन के कुआं पानी नइ देत है कहते ही ऐसा लगा जैसे इनकी अपनी चिन्ता सबकी चिन्ता में बदल रही है चेहरे में ऐसी चमक दिखी तो लडकियो को कुछ हौसला मिला, दद्दा ने कहा सबई खो मिलजुल के कछु करने पडे, वहीं दूसरे दिन उनके साथ रामकुमार स्वयं चल पडे अपने गांव के परिवारों की हालातो से और मजबूरियो से रूबरू होने पर 170 परिवारो के अध्ययन में तकरीबन 58 लाख रूपये कर्ज का बोझ और 113 मे से 105 पूरी तरह सूख चुके थे, एक दर्जन घरों दाने-दाने की मोताजी और फांकाकसी के आंकडे देखकर कलेजा मुंह को आ गया जैसे दिल की आह खामोश जबानो में दबकर रह गयी।
नीतू के रिटायर्ड पिता (जूनियर इन्जीनियर) श्याम बिहारी सक्सेना ने भी चिन्ता जाहिर की और कहा जिनके घरों में भूख ने डेरा डाल दिया हो उन्हे अपने खाने में से ही कुछ हिस्सा भेजो इन बुझते हुये दियो में तेल पडते रहना चाहिये, सहेलियो ने अपने माता-पिता का उत्साहित सहयोग देख रसोई में रखे भोजन को उन घरो तक पहुचाना शुरू कर दिया, पर यह सिलसिला अधिक दिनो तक कैसे चल पाता जबकि बस्तियों के सारे घर के हालात एक जैसे ही थे।इसी उहापोह में एक युक्ती इन सहेलियो को और सूझी कि हम क्यो न कुछ घरो की महिलाओ के साथ बैठकर समाधान नही तो मुसीबत का विकल्प खोज लें, पडोसी महिलाओ को घर-घर से बुलाने, बुलावे का बहाना दादरे को आधार बनाया, एक सार्वजनिक स्थान पर एकत्रित 40-45 घरो की महिलाये एकजुट हुई, जहां पर ढोलक-मंजीरा पहले से मौजूद था देखते ही देखते ढोलक की थाप और मंजीरों की खनक से सुरताल का जो माहौल उस सूखे में बना उसने खामोश जबानो के शब्द खोल दिये सांझ होने के पहले जब ढोलक की थाप रूकी तो इन तीनो सहेलियो ने बुलावे पर आयी महिलाओ से एकत्रित आखत (संकलित अनाज) जो रस्मानुसार प्रत्येक महिला 100-200 ग्राम साथ में लाती है उसे वहां बैठी तीन महिलाओं में विभाजित कर देने की इच्छा जाहिर की और बताया कि गांव के अध्ययन से यह बदहाली की की इबारत उभरी है, जिससे हमे ही पार पाना है, हम महिलाये चाहे तो अपने घर्न की चिन्ता तौ खत्मै कर सकत है, पडोसिन बहन के घर को सुखदुख भी बांट सकत है। नीतू बोली यह दिन एक जैसे ना रहे इसे ऐसे अकाल के दिनन में गा-बजा के काटवे की परम्परा बनावे की जरूरत है, सयानी-बूढी महिलाओं के हाथो में जब वृद्ध निराश्रित महिला-प्यारी बाई, हरकुवंर, सहदोमंसूरी की कोछे में अनाज झलकने लगा तो उनकी आंखो में आशा के आंसू झलक पडे इन आसूओं ने जो उस दिन एकत्र महिलाओ को कर्तव्य बोध कराया वह समाधान की दिशा में मील का पत्थर बना गया था। हांलाकि इस राह में चल पडी इन तीनो सहेलियो को गांव के ही लोगो से, युवको से ताने भी सुनने पडे पर इन्हे परवाह किसकी जब जीवन ने मौत से लडने का निर्णय ले लिया हो हर सप्ताह किसी न किसी मोहाल में महिलाओं की दादरे की महफिले सजने लगी, एक-एक कर मुफलिसी के शिकार घरो को रषद पहुंचने लगी फिर तो ऐसा हो गया कि महिलाये पानी के बर्तनो में आटा, दाल डालकर अपने परिवार के लोगो से छुपाकर भूखे परिवारो के घरो में जाकर देने लगी। कर्जदार परिवारों की महिलाओं की जागरूकता से यह हुआ कि वह अपने-अपने घरो में सबको समझाने लगी कि जब फसल हुइये तब कर्जो देव कौन सवै दिन एक से बने रें।
कुछ दिन बाद गर्मी का तापमान बढने लगा तो रहे सहे कुओ और हैण्डपम्पो का पानी भी जवाब देने लगा। गांव के 4-5 ही ऐसे जल श्रोत बचे जिनमें पानी हिचकोले ले रहा था, एक दिन दादरे में चर्चा कर दूसरे दिन करीब तीन दर्जन महिलायें अपने गांव में ही जूनियर विद्यालय पर लगे हैण्डपम्प को सूखने से बचाने के लिये बर्बाद पानी को सोख्ता टैंक में बदलने का काम शुरू कर दिया-हाथ में कुदाल और अपने-अपने घरो से लायी डलिया से टूटे रोडे, माहौल के लोगो के लिये कौतुहल का विषय बना था देखते ही देखते एक बडे आकार के गढढे को रोढा, पत्थर, कंकड के ढेर से पास बहते पानी की धारा उसी में डाल अपने-अपने घर वापस आ गयी एक सप्ताह बाद पडोस की श्रमदानी महिला जब उसी नल में पानी भरने गयी तो उसकी खुशी का छोटा सा ही सही श्रम का सागर हिलोेरे लेने लगा इस नल से अब सहज ही भरपूर पानी आ रहा था इस सिलसिले को गांव के मस्जिद के पास, प्राथमिक स्कूल, मढिया आदि सार्वजनिक स्थानो पर बंद होते जा रहे हैण्डपम्पों को पूनः जीवित कर इन नालियों ने बिना किसी मदद के न केवल अपनी प्यास को बुझाया बल्कि उस क्षेत्र को सूखा में उपज रही समस्याओ को समाधान की एक अनूठी पहल बना दिया। कर्जा रे फंदा मुक्ति आन्दोलन और जयसागर तालाब श्रमदान अनुष्ठान चरखारी में अपनी टीम के साथ सामिल होकर पानी के प्रबन्ध की चाह और किसानो को कर्जमुक्त होने की राह आसान हुई, उस गांव मं कर्ज और भूख से समा रहे परिवारों के लिये आशा की किरण बन जीने की ललक और हौसलों को जिन्दा रखने की कूबत पैदा कर आकाल की मांद में सूरताल एक मिशाल बनी हतासा की राह में चल पडे परिवारों के लिये वरन उन सभी लोगो की सांच में एक सवाल खडा करने के लिये कि क्या भूख और मुफलिसी का मंजर सिर्फ खुदकुशी है!
‘‘सबकी पीडा अपनी पीडा और कुछ अभिव्यक्ति नही।
तोडे जो विश्वास किसी का अपना ये व्यक्तित्व नहीं।’’
लेखक 
आषीश दीक्षित सागर