केन - बेतवा की जद में पन्ना टाइगर्स की कुर्बानी !
सितंबर 2015 के आखिरी हफ्ते में केंद्र सरकार की ओर से नदियों को जोड़ने की परियोजना को मंजूरी दी जा चुकी है। नदी जोड़ परियोजना के तहत देश भर की कुल 30 नदियों को जोड़ा जाना प्रस्तावित है। इनमें से 14 हिमालयी और 16 प्रायद्वीपीय भाग की नदियां हैं। नदियों को जोड़कर पानी बांटने के इस महाप्रयोग की शुरुआत बुंदलेखंड की केन और बेतवा नदी को जोड़ने के साथ होगी। हालांकि, इस परियोजना को मंजूरी मिलते ही बुंदेलखंड में हलचल है। केंद्रीय जल संसाधन मंत्री उमा भारती इस परियोजना को लेकर खासी उत्साहित हैं। उनका मानना है कि बुंदेलखंड के लाखों हेक्टेयर भूमि इस गठजोड़ से सिंचित हो जाएगी और बुंदेलखंड बहाल हो जाएगा। दूसरी ओर, इस महाप्रयोग को बुंदेलखंड के लिए विनाशकारी विकास की संज्ञा दी जा रही है। यूपी के लोग इस योजना को बेहद अच्छा बता रहे हैं, वहीं मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड के लोग मुखरता से इसके खिलाफ हैं, क्योंकि पानी नहीं बांटना चाहते। पानी की इस जंग में उन्हें अंदेशा है कि कहीं पानी का बंटवारा उन्हें भविष्य में अधिक जलसंकट में न डाल दे।
25 अगस्त 2005 से प्रस्तावित केन -बेतवा नदी गठजोड़ मुद्दे पर केंद्र और दोनों राज्य सरकारे अभी तक स्थानीय आदिवासी बाशिंदों के साथ सहमती नही बना पाई है...8500 आबादी वाले आदिवासी डूब क्षेत्र के दस गाँव में अपने हिसाब से मुंह माँगा मुआवजा चाहते है ! जबकि केंद्र सरकार मध्यप्रदेश पुनर्वास स्कीम के तहत बीपीएल / आदिवासी विस्थापन के आंकलन पर मुआवजा देने की बात कर रही है.बांध के केंद्र बिंदु ग्राम दोधन (पन्ना टाइगर्स,तहसील बिजावर,जिला छतरपुर ),पिल्कोहा 50 लाख रूपये प्रति परिवार आर्थिक मदद चाहते है जबकि खरयानी,कूपी,मैनारी आदि 30 लाख रूपये की बात कह रहे है ! सरकार न तो इतना मुआवजा देगी और न सहमती बन पायेगी.हाल -फ़िलहाल इस कार्यकाल में ये बांध बनता नही दिख रहा है.बीते 31 सितम्बर 2015 को केन्द्रीय ज्ल्मंत्री उमा भारती अवश्य अपने कैबनेट के साथ जंगल में बांध स्थल दौधन ग्राम में लाल पत्थर लगवाकर शिलान्यास कर आई है ! बुंदेलखंड के लगातार पड़े दो साल के सूखे ने केन नदी में गंगऊ डैम में भी पानी शेष नही छोड़ा है.बरियार पुर,रनगवां बांध पहले ही सूखे है ऐसे सवाल ये है कि आने वाले साल अगर ऐसे ही सूखे के रहे तो क्या केन नदी जो निचले हिस्से में है वो उपरी हिस्से में बह रही बेतवा को पानी दे पायेगी ? क्या इस बांध परियोजना की डीपीआर में इसका स्थलीय अध्ययन किया गया है ? का पर्यावरण प्रभाव आंकलन के अनुसार, पांच हजार हेक्टेयर में लगे लगभग 33 हजार पेड़ काटे जाएंगे। अनुमान लगाया गया है कि एक हेक्टेयर में 7-8 पेड़ होंगे, लेकिन सवाल ये भी उठ रहा है कि क्या इतने घनेवन्य इलाके में प्रति हेक्टेयर में सिर्फ 7-8 पेड़ ही होंगे ?आदिवासी उन्हें जंगल से प्यार है। वे लोग जंगल की रक्षा करते हैं। उनका मानना है कि इस योजना से जंगल को नुकसान होगा। वे अपने पन्ना टाइगर्स के रहवास को छोड़ना नही चाहते मगर वीरान होते जंगल और ख़तम होते वन्य जीवो के प्रवास के बीच सबको अपने -अपने हिस्से की क़ुरबानी करनी ही होगी क्योकि केंद्र सरकार को केन की हत्या चाहिए ! बुंदेलखंड के हमीरपुर और झाँसी के रहवासी केन के पानी को बेतवा में डालने का समर्थन करके अलगाववाद की मानसिकता से ग्रस्त है ! नेता चाहते भी यही है कि आवाम आपस में एकजुट न होने पाए ! उन्हें बाँदा के बाशिंदों का सूखा नही दिखता है , न आदिवासी विस्थापन दिखता है, न पन्ना नेशनल पार्क के उजाड़ने का दर्पण ,न वन्यजीवो का पलायन ...निज स्वार्थ में सियासी बाँध है उमाभारती का ये बाँदा और पन्ना टाइगर्स को ख़तम करने का .....ईको सिस्टम से मजाक ! पूर्व पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने एनओसी नही दी थी, एसी के भवनों में दिल्ली से बैठकर बनी है ये योजना बिना ज़मीनी अध्ययन किये हुए ! आदिवासियों के सामने खुली चौपाल में परियोजना डीपीआर सार्वजनिक करवाओ अगर हिम्मत है...जय -जय बुंदेलखंड करके खालिस भक्ति में परेशान होने वाले सियासी आदमी ऐसे तो बनवा चुके अलग बुंदेलखंड राज्य मुंह का मुगालता और मैदान की लड़ाई में अंतर होता है ....ये अलग बात है कि जंगल में रहने वाले आदिवासियों को आपने विकास का थोथा सब्जबाग दिखलाकर उन्हें भी मोबाइल,जींस और कंक्रीट के गलियारे में भटकने को रास्ता दिखला दिया है. शायद तभी से वे मुंह मांगे मुआवजे की शर्त पर पन्ना टाइगर्स छोड़ने से गुरेज नही करेंगे लेकिन इसकी असली सूरत तब दिखेगी जब केन --बेतवा नदी गठजोड़ होने के बाद नाकामयाब साबित होगा बुंदेलखंड के अन्य बांधो की तर्ज पर ! ....ग्यारह हजार करोड़ रूपये में और करोड़ों का केन -बेतवा लिंक और बुंदेलखंड विशेष पैकेज से जगह -जगह आनाज की मंडियां बनाने ब्यूरोक्रेट्स / सरकार को विकास के नाम पर धन खाने की आदत है ! उस पर न बोलने का सदमा है !....एक सूखी नदी केन का पानी जो निचले हिस्से में है उसको उपरी हिस्से वाले बेतवा में डालने की वकालत कर रहे हो ! ...कोफ़्त है !देश की और बुंदेलखंड की प्रत्येक नदियाँ नैसर्गिक रूप से आपस में जुडी है फिर ये प्रकृति से खिलवाड़ क्यों ? मानवीय अतिक्रमण क्यों ? विकास के लिए जंगल के बाहर की ज़मीन क्या कम है ? या धरती में अब सिर्फ आदमी ही रहना चाहता है ?
इस परियोजना से उजड़ जाएंगे कई गांव
इस परियोजना के विरुद्ध उठ रहे विरोध के स्वरों के बीच बांदा के आरटीआई एक्टिविट आशीष सागर कहते हैं कि सरकार बुंदेलखंड के गांवों और जंगलों को उजाड़ कर खेत सींचने की तैयारी कर रही है, जिसके सफल होने की उम्मीद कम है। परियोजना में न सिर्फ पन्ना टाइगर नेशनल पार्क का 5 हजार 258 हेक्टेयर वन्य इलाका इस योजना में अधिग्रहित कर लिया जाएगा, बल्कि कई गांव भी उजड़ जाएंगे। नेशनल पार्क में कुल 24 बाघ हैं। पर्यावरण प्रभाव आंकलन के रिपोर्ट के मुताबिक, परियोजना के तहत आने वाले इलाके में जीव-जंतुओं की रिहाइश नहीं है, लेकिन आशीष के अनुसार देश में बाघ बचाने के लिए करोड़ों रुपए खर्च किए जा रहे हैं, जबकि निश्चित रूप से बाघों का रिहाइशी इलाका प्रभावित होने के साथ ही दुनिया का बड़ा गिद्ध प्रजनन इलाका भी इस परियोजना के भेंट चढ़ेगा।सूचनाधिकार में केन्द्रीय जल संसाधन मंत्रालय वर्ष 2011 में कह चुका है कि बांध क्षेत्र के गाँव विस्थापित किये जा चुके है मगर असल में आज भी ये सभी गाँव जस की तस आबाद है.आदिवासी न जंगल छोड़ना चाहते है बिना उचित मुआवजे के और न बाँदा के लोग ये बांध के समर्थन में है.केन नदी के पानी को बेतवा में डालकर सियासत महज बुन्देली जनता को आपस में पानी की जंग के लिए मजबूर कर देगी.ग्यारह साल में सरकार और आदिवासी के बीच नही बन पाई सहमती !
http://www.bhaskar.com/news/UP-people-have-different-think-on-ken-betwa-river-linking-project-5151902-PHO.html
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