Thursday, October 29, 2015

' बुंदेलों ने बनाया सुखनई का सुख छीन लिया ' !


सुखनई नदी की कहानी- कहाँ गया है बुन्देली आँख का पानी ! 


मऊरानीपुर से वापसी के साथ ' सुखनई ' के आंसू ले आया हूँ ! सोचा आपसे साझा कर लेवे ताकि हमें अपनी नदी सभ्यता और संक्राति पर गर्व हो सके ! अब है तो थोथा और छिछला ही ...चलिए जैसा भी है सहेजे रखिये ताकि समय के साथ और नदियाँ नालो में तब्दील हो सके !
मऊरानीपुर - चन्देल कालीन इतिहास,विशाल तालाब और पोखरों से बुलंद बुंदेलखंड कभी अपने पानीदारी के लिए जाना जाता था ! विकास की आहट हुई और अन्य की तरह बुंदेले भी जल,जंगल,नदी -पहाड़ से उबकर कंक्रीट के सोपान पर चढने के लिए हाथापाई करने लगे...जब जिसको जैसा अवसर मिला उसने निर्बाध और अविरल बह रही नदियाँ को अपने मानवीय कृत्य से शर्मसार कर दिया. इतिहास नए रूप में बदल रहा है,अब हम क्योटो और मेक इन इंडिया से लेकर डिजीटल पावर की बात कर रहे है ! ये तब और अच्छा लगता है जब मार्क जुकर बर्ग यमुना के तीरे बसे ' ताज ' को देखने-समझने में लगे है ! वह कहते है कि ताज जैसा सुन्दर कोई नही मगर वही मार्क की नगर ताजमहल के पीछे समूचे आगरा का मैला ढो रही यमुना में नही गई जो मथुरा से दिल्ली तक के सफ़र में विकास के गंडासे से बेरहमी से काटी जा रही है ! 
कुछ ऐसे ही हाल है बुंदेलखंड के जिला झाँसी की तहसील मऊरानीपुर में बहने वाली सुखनई नदी के ! राजा मधुकरशाह ने इस नगरी को बसाया था जो अब मंदिरों की नगरी मऊरानीपुर के नाम से बसी है. बुंदेलखंड का 147 वर्ष पुराना जलविहार मेला महोत्सव हर वर्ष सुखनई के किनारे ही लगता है ! भव्य विमानों से लड्डू गोपाल का जलविहार होता है,पुरे शहर में शोभा यात्रा निकलने के बाद ये जलसा अपने चरम उन्माद पर होता है जिसको देखने और आयोजित करने में स्थानीय लोकसेवक से लेकर प्रतिनिधि,आला अधिकारी तक दिनरात एक करते है....ये सुखनई नदी मध्यप्रदेश से निकली है जो आगे चलकर महोबा के धसान में मिलती है.वैसे तो यह बरसाती नदी है लेकिन कभी अपनी निर्मलता और लाल बालू के लिए इसका यौवन देखते बनता था ! 
साल में भाद्रपक्ष में यह जलविहार मेला लगता है जिसमे करीब 15 दिवसीय कार्यक्रम होते है.सूत्र बतलाते है कि अबकी साल 60 लाख रूपये इस मेले में खर्च हुए है.स्थानीय नगर पालिका की अध्यक्ष मीरा आर्या है इनके पति हरिश्चंद्र पूर्व में अध्यक्ष रह चुके है...पिछले तीन पंचवर्षीय से एक ही परिवार में नगर पालिका खेल रही है.यहाँ से विधायक सपा रश्मि आर्या के पति जयप्रकाश आर्य उर्फ पप्पू सेठ ( अपरह ,हत्या के दर्जन भर मामले में अभ्युक्त ) का जलजला अपने शबाब पर होता है जब इलाके की सरकारी मिशनरी को अपाहिज बनाना हो ! रश्मि आर्या के देवर  हेमन्त सेठ है.ये हाल ही में जिला पंचायत सदस्य का चुनाव भी लड़ चुके है ! ...स्थानीय नागरिक इस सांप की पूछ को पकड़ना नही चाहते क्योकि उन्हें भी इलाकाई दुश्मनी से परहेज है ! 
सुखनई नदी पर अब तक लाखो रुपया चित्रकूट की मंदाकनी सरीखे घाट तैयार करने और संरक्षण के नाम पर गर्क किया गया है लेकिन इसकी सूरत और पानी की सीरत देखकर बस जी भरकर रोने को मन करता है ! ये गुमान उस पल छलनी हो जाता है कि नदी हमारी माँ है,हा नदी सभ्यता के अगुआ रहे है ! आज सुखनई गटर से बत्तर हाल में सिसक रही है.हलके के पत्रकार की कलम चुप है क्योकि उन्हें अपनी रोजमर्रा की घटनाए भी उकेरनी है ! एक स्थानीय दैनिक समाचार पत्र से जुड़े संवाददाता कहते है कि बीते सितम्बर के जलविहार मेले में नदी में इतना पानी नही था की लड्डू गोपाल विहार कर पाते ! एक तरफ हमारा सुबह का निर्मल भारत था और दूसरी तरफ नगर पालिका के सेवक सूअर विचरण कर रहे थे यह अलग बात है कि धरम के ठेकेदार इस दंभ में थे कि वे हिन्दू है और भगवान कृष्ण की लीला उनका मोक्ष अवश्य करेगी ! गौरोठा से सपा विधायक दीपनारायण ने नदी की हत्या करने को दिन -रात बालू उलीची जिससे नदी में आज काई,सिल्ट और गंदगी की सत्ता है ! खैर ये जो भी है ये कुछ वैसा ही जब हम माँ गंगा को निर्मल करने के अभियान में काशी की सड़के चिकनी कर रहे है,मगहर के घाट शव से दूर कर रहे है लेकिन सुखनई जैसी छोटी नदियों को जो वास्तव में आज भी गंगा से बेहतर विकल्प है किसान के लिए सींच के साधन का को अनदेखा करते जा रहे है....सुखनई रहेगी या नही कालांतर में ये विकास पर छोड़ देना आखिर हमें भी तो अगली सभ्यता को कुछ विरासत में देना है ...ये मैला ढोने वाली नदियाँ जिसका पानी अब आचमन के मुकाबिल भी नही रह गया है !

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