Saturday, February 25, 2012

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चुप क्यों हैं मायावती!

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नसीमुद्दीन मायावती के सबसे खास मंत्री, राजनीतिक साथी और राजदार हैं। उनका कटघरे में खड़े होने का मतलब है आज नहीं तो कल जांच का दायरा मायावती तक जरूर पहुंचेगा. बाबूसिंह कुशवाहा को मायावती का खजांची कहा जाता था, लेकिन खजाने में पैसा भरने और उगाही का जिम्मा नसीमुद्दीन का था...
आशीष वशिष्ट
आपरेशन क्लीन चलाकर दागियों को बाहर का रास्ता दिखाने, एक सौ से अधिक दागी मंत्रियों-विधायकों और नेताओं का टिकट काटने का दम ठोकने और लोकायुक्त की सिफारश पर आधा दर्जन से अधिक मंत्रियों को पद से हटाने की त्वरित कार्रवाई करने वाली बसपा सुप्रीमो मायावती की नसीमुद्दीन मामले में चुप्पी अकारण नहीं लग रही है।
लोकायुक्त ने प्रदेश सरकार के सबसे ताकतवर और मायावती के करीबी मंत्री नसीमुद्दीन पर कार्रवाई की संस्तुति में प्रदेश सरकार से कहा कि एक माह में किसी उचित एजेंसी से जांच कराकर कार्रवाई से उन्हें अवगत कराया जाए। पिछले दिनों कई मंत्रियों के खिलाफ लोकायुक्त रिपोर्ट आने के बाद और कुछ अन्य के खिलाफ जांच रिपोर्ट आने के पहले ही मुख्यमंत्री ने उनकी बर्खास्तगी की कार्रवाई की थी। लेकिन नसीमुद्दीन के खिलाफ कार्रवाई करने में तेजी न दिखाना साफ तौर पर इशारा करता है कि मायावती- नसीमुद्दीन में गहरी सांठ-गांठ और मिलीभगत है।
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सूत्रों के अनुसार जांच में दोषी पाए गए अन्य मंत्रियों के मामले में मायावती की कार्रवाई के पैमाने को आधार माना जाए तो नसीमुद्दीन के खिलाफ मुख्यमंत्री को कार्रवाई करनी चाहिए। लोकायुक्त जस्टिस मेहरोत्रा ने एक सवाल के जवाब में यह बात स्पष्ट की है कि चूंकि विधानसभा का कार्यकाल समाप्त होने को है, इसलिए उन्होंने नसीमुद्दीन को मंत्रिमंडल से बाहर करने की सिफारिश करना उचित नहीं समझा।
लोकायुक्त कानून के दायरे में जांच और कार्रवाई की सिफारिश कर सकते हैं, लेकिन संविधान, कानून और नियमों से ऊपर नैतिकता होती है। जब मायावती दम ठोंक कर यह दावा करती है कि बसपा में दागियों के लिए बसपा में कोई स्थान नहीं है, तो समझ में नहीं आता है कि उस समय वो नसीमुद्दीन का नाम और चेहरा पता नहीं क्यों भूल जाती हैं।
नसीमुद्दीन पर भ्रष्टाचार के सबसे गंभीर आरोप लगे हैं और कई अन्य मामलों में जांच-पड़ताल अभी जारी है। ऐसे में माया का उन पर नैतिक तौर पर कोई कार्रवाई न करना कई सवाल पैदा करता है। भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे नसीमुद्दीन पर उठ रही अंगुलिया कहीं न कहीं मायावती को संदेह के कटघरे में खड़ा करती हैं।
गौरतलब है कि नसीमुद्दीन से पहले मुख्यमंत्री मायावती छह मंत्रियों के खिलाफ लोकायुक्त की सिफारिश पर कार्रवाई कर उन्हें मंत्रिमंडल से बाहर का रास्ता दिखा चुकी हैं। अधिकतर मामलों में कार्रवाई चंद मिनटों और आनन-फानन में हुई। पशुपालन व दुग्ध विकास मंत्री अवधपाल सिंह यादव के खिलाफ लोकायुक्त ने 10 अक्टूबर 2011 को सिफारिश की और मायावती ने उसी दिन मंत्री महोदय से इस्तीफा ले लिया।
धर्मार्थ कार्य मंत्री राजेश त्रिपाठी के विरुद्ध लोकायुक्त ने 25 दिसंबर 2011 को सिफारिश की, तो मुख्यमंत्री ने लोकायुक्त की सिफारिश के दो घंटे के अंदर ही उनसे इस्तीफा ले लिया था। माध्यमिक शिक्षा मंत्री रंगनाथ मिश्र के खिलाफ लोकायुक्त ने 4 अक्टूबर 2011 को सिफारिश की और अगले दिन उन्हें मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया गया।
श्रम मंत्री बादशाह सिंह के खिलाफ लोकायुक्त जांच चलने के दौरान ही उनसे पांच अक्टूबर को इस्तीफा ले लिया गया, जबकि लोकायुक्त ने उनके खिलाफ सिफारिश10 अक्टूबर 2011 को की थी। अंबेडकर ग्रामीण समग्र विकास मंत्री रतनलाल अहिरवार के खिलाफ लोकायुक्त ने 28 नवंबर को कार्रवाई की सिफारिश की और एक दिसंबर को उनसे इस्तीफा ले लिया गया। लघु उद्योग मंत्री चंद्रदेव राम यादव के खिलाफ लोकायुक्त ने 28 दिसबंर को सिफारिश की और उनसे 19 जनवरी को इस्तीफा ले लिया गया।
आधा दर्जन मंत्रियों पर कार्रवाई में तेजी दिखाने वाली मायावती अपने सबसे खास सिपहसलार और राजदार नसीमुद्दीन सिद्दकी पर कार्रवाई को जान बूझकर टाल रही हैं, जबकि लोकायुक्त ने मामले की गंभीरता और व्यापक फैलाव को ही देखते हुए नसीमुद्दीन सिद्दकी, उनकी एमएलसी पत्नी हुस्ना सिद्दकी और अन्य परिजनों की प्रापर्टी की जांच सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) से कराने की सिफारिश की है।
नसीमुद्दीन सिद्दकी मायावती के सबसे खास मंत्री, राजनीतिक साथी और राजदार हैं। उनका कटघरे में खड़े होने का मतलब है कि आज नहीं तो कल जांच का दायरा और कानून के हाथ मायावती के गिरेबान तक जरूर पहुचेंगे। बाबूसिंह कुशवाहा को मायावती का खजांची कहा जाता था, लेकिन खजाने में पैसा भरने और उगाही का जिम्मा नसीमुद्दीन के जिम्मे था।
नसीमुद्दीन आबकारी, पीडब्लयूडी, सिंचाई जैसे तमाम मोटी कमाई वाले तकरीबन एक दर्जन विभागों के मंत्री हैं। लक्ष्मी की उन पर अपार कृपा है। फंड कलेक्शन का काम वही करते हैं, ये बात किसी से छिपी नहीं है। पिछले पांच सालों में नसीमुद्दीन ही नहीं उनके पीए तक करोड़पति हो चुके हैं। नसीमुद्दीन के बंगले पर काम करने वाले चपरासी तक प्रतिदिन हजारों की टिप्स आसानी से पाते हैं।
नसीमुद्दीन का कद का अंदाजा इस से भी लगाया जा सकता है कि विक्रमादित्य मार्ग पर स्थित उनके बंगले का साइज, रूतबा और शान मायावती के 5 कालीदास मार्ग के बंगले के समान है। उन पर कोई कार्रवाई करने और लोकायुक्त की सिफारिश को मानने से पूर्व मायावती को हजार बार सोचना पड़ेगा। नसीमुद्दीन मायावती के बारे में जितना जानते हैं उतना शायद कोई और नहीं।
बसपा सुप्रीमो को इस बात का पूरा इल्म है। ऐसे में नसीमुद्दीन पर कार्रवाई टालने का वह हरसंभव प्रयास करेगी, क्योंकि नसीमुद्दीन के कानूनी शिकंजे में फंसने का मतलब है कि अगला नम्बर खुद मायावती का ही होगा। तमाम भ्रष्टों की सरताज और असली बॉस तो वही हैं।

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