Friday, March 29, 2013

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सच यह है की सरकारी व्यवस्था और सामाजिक ताना बाना दोनों टी बी से ग्रसित है ?

बुंदेलखंड के गाँवो में तपेदिक को टी बी कहते है। आज पूरे विश्व ने इस महामारी पर चिंतन किया पर जो चिंतन चित्रकूट के  बरगढ़ आदिवासी  गाँवो के टी बी मरीजो ने  किया वह बहुत ही दर्द नाक था .वैसे विकासित देशो में टी बी के बारे में वहा  के युवा को बहुत जानकारी नहीं होगी जीतनी बरगढ़ के युवा को है क्यों की विकसित  देशो में टी बी के मरीज नगण्य है.
छितैनी गाँव में अपना दर्द  बाया करते  हुवे २० वर्षीय युवा  रविकरण ने बताया कि वह  इस रोग कमजोर  होगया है .माँ मजदूरी करती  है .वह ४० ० प्रति सप्ताह दवा को देती  है .सरकारी अस्पताल में इलाज नहीं हुवा तब प्राइवेट डाक्टर से  करा रहे है .४०  वर्षीय  सूरजपाल ४ वर्षो  से  टी बी से परेशान है.अबतक  ५ ० हजार की दवा करा चुके है .आज १ ८ हजार का कर्ज है ठेकेदारों का .७ बच्चे है .पत्नी पथर तोड़  कर कमाई करती है तब जाकर बच्चो का पेट भरता है .इसी प्रकार की कहानी रामलाल ,भैयादीन ,शम्भू ओम प्रकाश व् छोटे लाल ने भी बताई .सभी ने बताया कि -----सरकरी अस्पताल  मऊ में टेस्ट के लिए बलगम मंगाते है सूखी खांसी में बलगम  नहीं है तो टेस्ट से मना करदेते है .हमारी समस्या क्या  है नहीं बताते . स्मार्ट कार्ड भी बने है कोई सुनवाई नहीं है .  रामजतन और रामशिरोमन दो मरीज मिले जिनका इलाज डाट्स से रहा है। शेष मरीज प्राइवेट इलाज से कर्जदार टी हो गए लेकिब बच्चो को अच्छा भोजन देने में असमर्थ है . रामजतन की मजदूरी स्कुल के शिक्षक ने नहीं दी उसके यंहा होली नहीं मनेगी .
एक वर्ष पहले गाँव के युवा पति पत्नी .को टी बी हो गयी . दोनों मर गए . उनके तीन लड़किया थी जिसे उसके भाई पाल रहे है .इनके घर दाल सायद महीनो में बने . कोटे का  चावल नमक गरीबो के यहाँ ही बनता है .गरीब की हैसियत नहीं है की वह आसानी से सरकारी लाभ ले सके . सच यह है की सरकारी व्यवस्था और सामाजिक ताना बाना दोनों टी बी से ग्रसित है ?
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