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मृतक कर्जदार किसान का अनाथ पुत्र आमरण अनशन पर
- दो माह गुजर जाने के बाद भी नहीं मिली किसान के बच्चों को सरकारी मदद
- किसान आत्महत्याओं के दौर में नाबालिग भी बैठा है अनशन पर
थाना फतेहगंज क्षेत्र के ग्राम बघेलाबारी के कर्जदार किसान सुरेश यादव ने बीते 18 जून 2011 को अपने ही खेत में आत्महत्या कर ली थी। सुरेश यादव पर बैंक का 21 हजार रूपया और साहूकार का 50 हजार रूपया ऋण बकाया था। कर्ज और मर्ज के बीच झूलता सुरेश यादव अपनी दो बीघा जमीन बैंक में बंधक रखे जाने से और जवान होती बिटिया, बच्चों की पढ़ाई, परवरिश से तंगहाली के कारण इतना दुखी था कि उसने सोते हुये बच्चों को घर में अकेला छोड़कर जिन्दगी से दूर जाने का फैसला कर लिया। इधर किसान की मौत के बाद मीडिया में प्रकाशित हुयी खबरों से आनन-फानन में हरकत में आये तत्कालीन जिलाधिकारी कैप्टन ए0के0 द्विवेदी द्वारा किसान पुत्र को मदद के नाम पर एक हजार रूपये का झुनझुना पकड़ा दिया गया और मीडिया के सामने तमाम बड़े वादे किये गये जो आज भी वादे ही हैं।
अफसरों की देहरी में दो महीने से नाक रगड़ने के बाद भी जब तीन अनाथ बच्चों की किसी ने नहीं सुनी तो जिला प्रशासन के नक्कार खाने में ढोल बजाने के लिये किसान के पुत्र विकास यादव ने 16.08.2011 से अनिश्चितकालीन आमरण अनशन शुरू कर दिया है। बकौल विकास का कहना है कि मुझे आश्वासन और वादा नहीं लिखित कार्यवाही चाहिये। उसने वही मांग की है जो तत्कालीन जिलाधिकारी कैप्टन ए0के0 द्विवेदी ने वादों के रूप में मीडिया के सामने कही थी। किसान पुत्र की मांगों में कृषक बीमा योजना से पिता की आकाल मौत के चलते एक लाख रूपये मुआवजा, इन्दिरा आवास, मुफ्त शिक्षा, खाद्य सुरक्षा, कर्ज माफी कर बैंक से बंधक रखी जमीन वापस दिलाने की मांग की है। इधर इलाहाबाद हाईकोर्ट में विधि छात्रों द्वारा बुन्देलखण्ड की किसान आत्महत्याओं को लेकर दाखिल की गयी जनहित याचिका पर सख्त कदम उठाते हुये उच्च न्यायालय ने कोर्ट के आदेश आने तक कर्ज वसूली पर रोक लगा दी है। मगर सैकड़ों किसानों को बैंक द्वारा नोटिस चन्दे की रसीद की तरह थमाये जा रहे हैं।
गौरतलब है कि मृतक किसान के पुत्र को उसकी पिता के पोस्टमार्टम की रसीद के लिये भी विभाग के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं जिसके लिये 300 रू0 सुविधा शुल्क की मांग की गयी है। वहीं जिला समाज कल्याण अधिकारी द्वारा पारिवारिक लाभ योजना से 20 हजार रूपये का बैंक ड्राफ्ट विकास के खाते के नाम जारी करते हुये मदद की पहल की गयी थी लेकिन उस पर भी सरकारी विभाग की लापरवाही और हीलाहवाली का हथौड़ा पड़ चुका है।
आशीष सागर, प्रवास
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