Sunday, September 04, 2016

मेरठ में एक था नीम का पेड़ !

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आजादी की जंग का चश्मदीद गवाह पेड़ विकास ने काट दिया !
उस पेड़ को जिसने कई पीढ़ियों को बिना किसी भेद भाव ,रंग-भेद के शुद्ध प्राणवायु प्रदान की ! जिसने छाँव में अब तक असंख्य जीव जन्तुओ -परिंदो को आश्रय दिया ! अपनी पत्तो - टहनियों व् शीतल छाया से सबको बिना किसी स्वार्थ के प्रवास दिया ! आज मेरठ के सामाजिक कार्यकर्ताओं के घोर विरोध के बावजूद विकास की आरी ने आजादी की लड़ाई में गवाह रहे ' नीम का पेड़ ' काट दिया ! डाक्टर विजय पंडित कहते है हम विरोध करते रहे और सरकारी नुमाइशबाजी करके पौधरोपण करने वाले इस आजादी के शिलालेख को काटते चले गए ! इस पेड़ ने कभी किसी से नही कहा कि क्यों मेरी जड़ो पर थूकते हो,मेरे बदन में कील ठोकते हो या मेरी छाया में क्यों बैठ जाते हो ? उसने वो सब दिया जितनी उसकी अस्मिता थी ! जब विकास इतना आवश्यक हो सड़कों का कि हम ये न तय कर सके जमीन के कितने लेन की सड़क में चलकर संतुष्ट होंगे ' ? उनमें कंक्रीट के हाइवे,मेट्रो खड़े होंगे ? तब ये मान लेना चाहिए कि आदमी धरती के लिए सबसे दुर्दांत रचना है प्रकृति की जो अपने मिटने से पहले सब कुछ मिटा देना चाहता है ! 
                                              
यथा विदुर के लाख मना करने के बाद भी हठी ध्रतराष्ट्र ने खुद मरने से पहले अपना वंश ख़त्म कर लिया था ! विजय पंडित जी अभी तो ये प्रथम चरण का विकासवादी चरित्र है जब हमें वनचर खूंखार ( बन्दर) लगने लगे और बाघ अजूबा सा प्रतीत हो तब हमारे बौद्धिक पतन की प्राथमिक पुष्टि हो जाती है ! देश में रोजाना बनते नेशनल हाइवे में सैकड़ो पुराने पेड़ यूँ ही धराशाही होते है मगर कितने है जो एक नीम के पेड़ पर संवेदना जाहिर करते है ! वो भी नही जो इन्हे बचाने / रोपने का ठेका लिए है ! मेरठ के कुछ जागरूक लोगों ने इस बुजुर्ग पेड़ के अंतिम संस्कार में ये श्रधांजलि देकर उसका कर्ज चुकाया है बस इसके नाम का एक नीम का पेड़ वहां रोपना जहाँ आदमखोर पहुँच न सके ! लखनऊ से कानपूर तक चौड़े हो रहे सड़क में भी सैकड़ो पेड़ कटने है,झाँसी -महोबा-बाँदा में यही होना है क्या करियेगा हम सरकारी मिशनरी से लड़ सकते है पर इन्हे मार नही सकते नहीं तो देशद्रोही हो जायेंगे ! आशीष सागर

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