Monday, August 29, 2016

बाँदा का छाबी तालाब पाटकर नगर पालिका ने विकास किया !

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तालाब की गीता ' आज भी खरे है तालाब ' जब नीर की कहानी कहती है तब बुंदेलखंड के सैकड़ो ऐसे तालाब अपने विकास की कब्रगाह बन चुके है ! 
बुंदेलखंड के बाँदा में अतिक्रमण से लगभग मिट चुके छाबी तालाब में रक्षाबंधन पर कजली विसर्जित करती महिला ! महोबा के कीरत सागर में हर साल बड़ा मेला लगता था ! अब तो स्थानीय प्रसाशन उस मेले में नचैयो को देखने पर करोडो फूंकता भी है ! रम्पत हरामी की नौटंकी देखने लोग आते है मगर तालाब संवाद को नही ! बाँदा के इस तालाब के अतिक्रमण पर न महिला बोलती है और न अन्य ! उन्हें जब तालाब नही रहेगा उस दिन का स्मरण भी तो करना है ! नगर पालिका बाँदा अध्यक्ष के ठेकेदारों ने इसका सार्वजानिक दुराचार कर लिया है इसको पाटकर ! 


एक स्थानीय चोर आबिद बेग ने ये तालाब बनवाया था तब 22 एकड़ से अधिक था आज महज बारह बिस्वा से कम है वो भी विकास / सुन्दरीकरण की भेंट चढ़ गया ! बामदेश्वर ( अब बाम्बेश्वर ) पहाड़ की तलहटी में बना ये तालाब अपनी सुन्दर छवि के लिए जाना जाता था ! फ़िलहाल ये मुद्दे स्थानीय चुनाव में भी नही उठते क्योकि होर्डिंग छाप नेताओं को शहर के चौराहे अतिक्रमित करने में मजा आता है सरोकार उनके लिए वोट लेने का हुनर नही है ! हाँ फुटपाथ का अतिक्रमण जब हटता है तब अवश्य गरीब उजड़ गए जिलाधिकारी साहेब ! ये राजनीती होती है ! नगर सुन्दर रहे या नहाने का बाथरूम हमें तो वोट से मतलब है ! सूखा चला गया तो अब तालाब की जरूरत क्या है अगली गर्मी में फिर बतियाएंगे ! तब तक पूर्ण विराम !! अरे हाँ तालाबों पर बने कानून की बात न करना वे सरकारी फाइल गार्ड में अच्छे लगते है ! आशीष सागर

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