सूखे की जद में महोबा का ' अपना तालाब अभियान ' !
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Bnada 25.11.2015 - कबरई (महोबा)- सूखे की वजह से किसानों की आत्महत्या का सिलसिला थमने का नाम नही ले रहा है.मंगलवार को कर्ज से परेशान युवा किसान सुनील ( तीस साल उम्र ) पुत्र मूलचंद्र प्रजापति निवासी ग्राम गहरा,कबरई जिला महोबा ने 50 हजार साहूकारों / बैंक के कर्जे से आजिज आकर कमरे में लगे पंखे से लटक के ख़ुदकुशी कर ली. तीन बीघा का कास्तकार ये किसान पिछले दो साल से इसी भूमि के सहारे भरण- पोषण कर रहा था ! खरीफ की फसल चौपट हुई और अब रबी ने भी धोखा दिया ! इधर नवम्बर माह के अंत तक किसान खेत में बुआई नही कर पाए है ! हाल ये है कि बाँदा की सीमा मटोंध कसबे के किसानो ने खेत में उडती धूल से पलेवा नही किया बकौल उमेश यादव उनके खेत का हाल ऐसा ही है क्या छोटे और क्या बड़े दोनों अबकी जलसंकट में है !
बतलाते चले कि महोबा में बीते दो माह में ये कोई पहली और अंतिम किसान आत्महत्या नही है ! ...इधर कबरई - कानपुर हाइवे में खेत के दोनों तरफ सैकड़ो मीटर सूखे पड़े चटियल खेत आपको यहाँ की वीरानी और नेशनल हाइवे में बेधड़क चल रहे नेताओ,क्षत्रिय समाज के क्रेसर से परती हुई खेतिहर जमीने सबकुछ बयां कर देगी ! यह अलग बात है कि क्षत्रिय समाज के पुरोधा भगवान राम ने नदी,वन,पहाड़ के मध्य अपने 14 साल बिताते हुए आदर्श स्थापित किया था लेकिन आज बुन्देलखंड में ये जाति ही सर्वाधिक खनन नदी-पहाड़ो का कर रही जो किसान की बदहाली का एक और बड़ा कारण है ! शामिल और भी है पर इतने नही ! ....महोबा- कबरई में 'अपना तालाब अभियान' के तहत कुछ तालाब बनाये गए थे देवास के बलराम तालाब योजना की तर्ज पर. तत्कालीन जिलाअधिकारी अनुज कुमार झा की रचनात्मकता और स्थानीय किसानों की ललक से ये हुआ भी ! महोबा के चरखारी तहसील में काकून गाँव में प्रसाशन ने इन तालाबो की संख्या में ' खेत तालाब योजना ' की तर्ज पर इजाफा किया ! आंकड़ो का क्या मुलम्मा रहा इसमे ये ज़िक्र करना उन चन्देल कालीन तालाबो के साथ बेमानी होगी जो आज भू माफिया के कब्जे में है ! कबरई का गाँव चिचारा यहाँ किसान मंगल सिंह भदोरिया का व्यक्तिगत एक बीघा खेत में 12 फुट गहरा तालाब भरा है जबकि ' अपना तालाब अभियान ' के ब्रांड एम्बेसडर रहे किसान ब्रजपाल सिंह का एक बीघा खेत में बना तालाब दो साल के सूखे की जद में आकर बेपानी हो गया है !...आज ये भी सूखा है ! ये करीब दो सौ बीघा के बड़े किसान है,उम्दा प्रतापगढ़ी आंवला पैदा करते है पर बाजार न होने से वो भी ख़राब हो जाता है....तहलका से लेकर अन्य पत्रिका में इन तालाबों पानी की नजीरवादी खबरें हुई मगर सूखे के मजनून को वे दूर न कर सके ! ख़बरें बनी और बासी हो गई..कभी महोबा में बने इन तालाबो की संख्या 400 बतलाई गई तो कभी 600 ! समुयानुसार आंकड़े बढ़ते - घटे बावजूद किसान आत्महत्या रुकी न पानी का संकट मिटा ! किसान के समक्ष पानी की भारी किल्लत है वे इसको प्रकृति का सन्देश मानते है कि मौसम बदलने का संकेत हो गया है अगर अभी भी हम नही सुधरे तो किसान के असल हत्यारे महोबा,बाँदा में ये खनन माफिया और वे योजनाये होगी जो आज अन्नदाता को मनारेगा और अन्य नलकूप से पानी न दे सकी ! कैसे थमेगी युवा किसान सुनील जैसी आत्महत्याए जो बुन्देलखंड की नियति बन चुकी है ! - ( तस्वीर में किसान ब्रजपाल सिंह और उनका सूखा तालाब ) आशीष सागर,बाँदा
Bnada 25.11.2015 - कबरई (महोबा)- सूखे की वजह से किसानों की आत्महत्या का सिलसिला थमने का नाम नही ले रहा है.मंगलवार को कर्ज से परेशान युवा किसान सुनील ( तीस साल उम्र ) पुत्र मूलचंद्र प्रजापति निवासी ग्राम गहरा,कबरई जिला महोबा ने 50 हजार साहूकारों / बैंक के कर्जे से आजिज आकर कमरे में लगे पंखे से लटक के ख़ुदकुशी कर ली. तीन बीघा का कास्तकार ये किसान पिछले दो साल से इसी भूमि के सहारे भरण- पोषण कर रहा था ! खरीफ की फसल चौपट हुई और अब रबी ने भी धोखा दिया ! इधर नवम्बर माह के अंत तक किसान खेत में बुआई नही कर पाए है ! हाल ये है कि बाँदा की सीमा मटोंध कसबे के किसानो ने खेत में उडती धूल से पलेवा नही किया बकौल उमेश यादव उनके खेत का हाल ऐसा ही है क्या छोटे और क्या बड़े दोनों अबकी जलसंकट में है !
बतलाते चले कि महोबा में बीते दो माह में ये कोई पहली और अंतिम किसान आत्महत्या नही है ! ...इधर कबरई - कानपुर हाइवे में खेत के दोनों तरफ सैकड़ो मीटर सूखे पड़े चटियल खेत आपको यहाँ की वीरानी और नेशनल हाइवे में बेधड़क चल रहे नेताओ,क्षत्रिय समाज के क्रेसर से परती हुई खेतिहर जमीने सबकुछ बयां कर देगी ! यह अलग बात है कि क्षत्रिय समाज के पुरोधा भगवान राम ने नदी,वन,पहाड़ के मध्य अपने 14 साल बिताते हुए आदर्श स्थापित किया था लेकिन आज बुन्देलखंड में ये जाति ही सर्वाधिक खनन नदी-पहाड़ो का कर रही जो किसान की बदहाली का एक और बड़ा कारण है ! शामिल और भी है पर इतने नही ! ....महोबा- कबरई में 'अपना तालाब अभियान' के तहत कुछ तालाब बनाये गए थे देवास के बलराम तालाब योजना की तर्ज पर. तत्कालीन जिलाअधिकारी अनुज कुमार झा की रचनात्मकता और स्थानीय किसानों की ललक से ये हुआ भी ! महोबा के चरखारी तहसील में काकून गाँव में प्रसाशन ने इन तालाबो की संख्या में ' खेत तालाब योजना ' की तर्ज पर इजाफा किया ! आंकड़ो का क्या मुलम्मा रहा इसमे ये ज़िक्र करना उन चन्देल कालीन तालाबो के साथ बेमानी होगी जो आज भू माफिया के कब्जे में है ! कबरई का गाँव चिचारा यहाँ किसान मंगल सिंह भदोरिया का व्यक्तिगत एक बीघा खेत में 12 फुट गहरा तालाब भरा है जबकि ' अपना तालाब अभियान ' के ब्रांड एम्बेसडर रहे किसान ब्रजपाल सिंह का एक बीघा खेत में बना तालाब दो साल के सूखे की जद में आकर बेपानी हो गया है !...आज ये भी सूखा है ! ये करीब दो सौ बीघा के बड़े किसान है,उम्दा प्रतापगढ़ी आंवला पैदा करते है पर बाजार न होने से वो भी ख़राब हो जाता है....तहलका से लेकर अन्य पत्रिका में इन तालाबों पानी की नजीरवादी खबरें हुई मगर सूखे के मजनून को वे दूर न कर सके ! ख़बरें बनी और बासी हो गई..कभी महोबा में बने इन तालाबो की संख्या 400 बतलाई गई तो कभी 600 ! समुयानुसार आंकड़े बढ़ते - घटे बावजूद किसान आत्महत्या रुकी न पानी का संकट मिटा ! किसान के समक्ष पानी की भारी किल्लत है वे इसको प्रकृति का सन्देश मानते है कि मौसम बदलने का संकेत हो गया है अगर अभी भी हम नही सुधरे तो किसान के असल हत्यारे महोबा,बाँदा में ये खनन माफिया और वे योजनाये होगी जो आज अन्नदाता को मनारेगा और अन्य नलकूप से पानी न दे सकी ! कैसे थमेगी युवा किसान सुनील जैसी आत्महत्याए जो बुन्देलखंड की नियति बन चुकी है ! - ( तस्वीर में किसान ब्रजपाल सिंह और उनका सूखा तालाब ) आशीष सागर,बाँदा
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