खो गया ' खान नदी ' का मान !
मलाल ये है की नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के सभी आदेश देख ले बानगी के लिए चित्रकूट की मंदाकनी के लिए अधिवक्ता नित्यानंद मिश्र ( जबलपुर) की याचिका पर मिला आदेश वो उच्च न्यायालय मध्यप्रदेश भी गए मगर चित्रकूट के दबंगों मसलन दीं दयाल शोध संस्थान ,होटल ,संतो के मठ के अतिक्रमण नही हटवा पाए है ! मूल प्रश्न वही है की क्या हर ज़िम्मेदारी सरकार की है ? समाज, आवाम मैला डालने,बहाने और नदियों में दुराचार करने के लिए है ? ....क्या करेगी अदालत नदी की चौकीदारी ? इस खान नदी की दुर्दशा पर मेरठ के पर्यावरण प्रहरी फाक्टर विजय पंडित और पूनम पंडित ने दुःख प्रकट किया है ये उनका ही संस्मरण वृतांत है l
ये " खान नदी " … है , जोकि मध्य प्रदेश के इंदौर शहर के बीच से बहती है l अब एक गंदे नाले में बदल चुकी है और इंदौर वासी कभी इस नदी में स्नान - पूजा और जल ग्रहण करते थे ! आधुनिक और समृद्ध होने पर नदी में अपने शहर , उद्योगो - कारखानो का सारा कचरे का ज़हर इसमें उड़ेल कर नदी की हत्या कर दी l उज्जैन की छिप्रा नदी और नेपाल की गण्डकी ,भारत की माँ गंगा ,यमुना ,मंदाकनी की तरह ये खान नदी भी म्रत्यु शैया पर है l ...मैले विकास का काला सच है ये l जितना रुपया देश की नदियों को निर्मल बनाये जाने में व्यय हुआ खाशकर माँ गंगा - यमुना पर !!! उतने आधे हिस्से में एक नई गंगा तैयार हो जाती मगर नियत पर सवाल है ? नीति आयोग या जल मंत्री उमा भारती क्या करेगी ? मैला जनता का है / कार्पोरेट का है तो अकेले सरकारे दोषी कैसे है ? मगर सरकारे भी उतना ही करती है जितना हम करवाना चाहते है l इंदौर वासियों की जय हो ! क्या हर मानवीय कुकृत्य की ज़िम्मेदारी प्रसाशन की है ? समाज ,समुदाय ,मुहल्ला,टोला,व्यक्ति का कोई नैतिक कर्तव्य नही है नदी ,झील ,पोखर के लिए ? कब सुधरेंगे हम जब नीर का अकाल हमें ही लील लेगा ?
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