मध्यप्रदेश के घोगल गाँव में किसानो का जलसत्याग्रह !
किसान बोले जान देंगे लेकिन जमीन नही !
नितांत दुखद तस्वीर और ये कितना कष्टप्रद है की नेपाल में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वाहवाही बटोरने के चक्कर में हमारे देश का प्रधानमंत्री इनकी आवाज को नही सुन पा रहा है...कहाँ जायेगा ये किसान ? इसके पहले भी ऐसा ही आन्दोलन पानी की लड़ाई में इन्ही किसानो की तरफ से किया जा चुका है. उससे भी दुःखदाई ये है की ऐसी खबरे नेशनल मीडिया में जगह नही बना पाती है. बाजारवाद से ग्रसित मीडिया किसानो की कराह को सुने भी क्यों कौन सा किसान और पानी के आन्दोलन कर्मी इन खबरियो को कोई सुविधा देते है ! इन्हे तो संसद से निकलते -बैठते क्रीमी नेता,मंत्री जी के आपसी संपर्क और उनके बंगले में शाम को गपसप के बहाने ...काजू भुने प्लेट में ....का मोहपाश जकड़े है. लेकिन कितने लाचार है ये कि औरो के लिए लिखने वाले अपने लिए एक शब्द नही लिख पाते है ! और उधर जब किसान की बात आती है तो सम्पादकीय डेस्क पर बैठे आला खबरी तंत्र से हरी झंडी मिलेगी या नही ये अंतर युद्ध झेलना पड़ता है ,इलेक्ट्रानिक मीडिया जो रात दिन चिल्लाता है आज चुप्पी पर है !ये सत्याग्रह वही स्थति में है किसानो की जैसे बे -मौसम से तबाह किसान आत्महत्या करने के लिए रास्ते अपनाता है. इन किसानो का ये सत्याग्रह भी इसकी एक और कड़ी है. कहाँ है हमारे माननीय.....प्रधानमंत्री और शिवराज सिंह जी अब तो पानीदार हो जाओ l
अविनाश चंचल की वाल से यह अंश लिया गया है -
साहब, आपके राष्ट्रवाद का यह कौन सा मतलब है जो अपने ही राष्ट्र के लोगों को 18 दिन से जल सत्याग्रह करने को मजबूर कर बैठा है।
खंडवा, मध्यप्रदेश के घोगल गाँव के लोग अपने खेत, घर, जानवर सबकुछ पानी की डूब में आ चुकने के बाद अब सरकार से न्याय की उम्मीद किये जल में बैठे हैं। पैर गल गए हैं, पैरों से खून आ रहा है, लेकिन उम्मीद है कि अभी भी बाकी है।
जाहिर है शहरी मीडिया के लिये ये कोई खबर नहीं...जा के पैर ना फटी बिवाई , वो का जाने पीर पराई
तस्वीर- Alok Agarwal's page साभार
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