सई नदी का खेवनहार कौन बनेगा ?
तस्वीर साभार - आर्य शेखर,प्रतापगढ़ -इलाहाबाद @ सई जल बिरादरी ...
सई नदी का पौराणिक और ऐतिहासिक महत्त्व है। यह नदी ऐसे गोलाकार स्वरूप में बहती है कि इस नदी को प्राकृतिक सुरक्षा घेरे के रूप में स्वाधीनता आंदोलन के क्रांतिकारी उपयोग में लाया करते थे। बरसात के दिनों में यह नदी अपने उफान में होती थी और क्रांतिकारी इसके सरंक्षण में बरसात का समय गुजारते थे। सई नदी में गिरने वाला टेनरियों का जल इस नदी के अस्तित्व के लिए बड़ा खतरा है और इसे रोका जाना चाहिए निर्मल होवे सई हमार , होवे गंगा का उद्धार....बच जाये मानव आधार
यह सई नदी उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले की एक झील से निकली आदि नदी है.जो रायबरेली जिले से होती हुई प्रतापगढ़ वाया जौनपुर होते हुए गोमती की सहायक बनके माँ गंगा में मिलती है. राम चरित मानस में इस नदी का ज़िक्र है ...' सई उतारी गोमती नाहीं , चौथे दिवस अवध पुर आई ' इसको भवानी ट्रेनरी सहित अन्य चीनी मिल मैला ढ़ोने वाला गन्दा नाला बना रही है. वैसे भी गत 9 मई को कानपुर सर्किट हाउस में केन्द्रीय जल संसाधन मंत्री उमा भारती ने कह ही दिया है कि अब माँ गंगा को साफ होने में सात साल और लगेंगे !
उन्होंने कानपूर की गंगा में मिलने वाले 40 गंदे नालो के प्रवाह मोड़ने / उन्हें विस्थापित करने के सवाल पर चुप्पी साध ली है l यानि अब भाजपा को ' नमामि गंगे ' के लिए सात साल और देवे ! इसके बाद भी सई और गंगा निर्मल न हो पाए तो अगली - पिछली सभी सरकारों को गंगा के गटर में प्रवाहित करना l नदियों का जल जिस तरह से अब आचमन करने से लेकर स्नान करने काबिल नही बचा है उसी तर्ज पर हमारे देह ,विचार का चारित्रिक पतन सामने आ रहा है l ये नदियाँ नही हम सबका भविष्य मैला हो रहा है l अरबो रूपये गर्क करने के बाद भी हम माँ गंगा को नही बचा पाए है l मथुरा से लेकर दिल्ली तक माँ यमुना की सूरत किसी से छिपी नही है l अब सरस्वती के उद्गम स्थान को लेकर बहस जारी हो गई है ! सवाल ये है कि अविरल और निर्बाध बहने वाली ये नदियाँ किसके कृत्य से मैली हुई है हम सबके न ? तो वर्षो से माँ गंगा - यमुना और अन्य नदियों के अस्तित्व को लेकर चिन्तन ,मंथन और कार्यशाला आयोजन करने के आलावा हमने किया क्या ? कितने गैर सरकारी संघठन के पुरोधा माँ गंगा के नाम पर जल पुरुष बन गए ! उनके अपने निज हित सधे ! ये अभियान अब भी चल रहा है मगर नदियाँ मंदाकनी हो या सई अपने अस्मिता को बचाने की जद्दोजहद में रो रही है l
- आशीष सागर
उन्होंने कानपूर की गंगा में मिलने वाले 40 गंदे नालो के प्रवाह मोड़ने / उन्हें विस्थापित करने के सवाल पर चुप्पी साध ली है l यानि अब भाजपा को ' नमामि गंगे ' के लिए सात साल और देवे ! इसके बाद भी सई और गंगा निर्मल न हो पाए तो अगली - पिछली सभी सरकारों को गंगा के गटर में प्रवाहित करना l नदियों का जल जिस तरह से अब आचमन करने से लेकर स्नान करने काबिल नही बचा है उसी तर्ज पर हमारे देह ,विचार का चारित्रिक पतन सामने आ रहा है l ये नदियाँ नही हम सबका भविष्य मैला हो रहा है l अरबो रूपये गर्क करने के बाद भी हम माँ गंगा को नही बचा पाए है l मथुरा से लेकर दिल्ली तक माँ यमुना की सूरत किसी से छिपी नही है l अब सरस्वती के उद्गम स्थान को लेकर बहस जारी हो गई है ! सवाल ये है कि अविरल और निर्बाध बहने वाली ये नदियाँ किसके कृत्य से मैली हुई है हम सबके न ? तो वर्षो से माँ गंगा - यमुना और अन्य नदियों के अस्तित्व को लेकर चिन्तन ,मंथन और कार्यशाला आयोजन करने के आलावा हमने किया क्या ? कितने गैर सरकारी संघठन के पुरोधा माँ गंगा के नाम पर जल पुरुष बन गए ! उनके अपने निज हित सधे ! ये अभियान अब भी चल रहा है मगर नदियाँ मंदाकनी हो या सई अपने अस्मिता को बचाने की जद्दोजहद में रो रही है l
- आशीष सागर
0 Comments:
Post a Comment
Subscribe to Post Comments [Atom]
<< Home