' नदी सभ्यता से नालो की संस्कृति तक भारत '' !
मै तमसा हूँ .....?
यह आजमगढ़ की ' तमसा नदी ' है ! तमसा के तट पर माता सती अनसुइया के तीन बेटो दुर्वाशा ऋषी, दत्तात्रेय,चन्द्रमा ऋषि का आश्रम है. प्रत्येक वर्ष गुरुनानक जयंती के दिन यहाँ बड़ा मेला लगता है ! आस्था के दंभियो का ये जल प्रपंच और आस्था का ड्रामा करना
ठीक वैसा ही है जैसा माँ गंगा,सरयू,यमुना और चित्रकूट की मंदाकनी ( माता सती अनसुइया के तप से जन्मी ) के लिए हिन्दू धर्म में होता है ! नदी सभ्यता से नालो की संस्कृति तक आ पहुंचे है हम ! देश की लगभग सभी बड़ी नदियाँ नर्मदा को आंशिक छोड़कर सब गटर की गर्भधात्री बन चुकी है. मानवीय विकास और उसके सुविधाभोगी कृत्य का खामयाजा भारत की नदियों ने भुगता है. माँ गंगा को बचाने वाले और देस में स्वदेशी व्यापार के द्रोणाचार्य बाबा राम देव भी अब ' दिव्य जल' के नाम से पानी के व्यापारी बन चुके है. बाकि हरकी पौड़ी के अन्य संतो ,शंकराचार्यों की बात क्या कहूँ ? स्वामी निगमानंद नही रहे और स्वामी शिवानन्द अनशन में है !
आजमगढ़ के किसानो के लिए जहरीले पानी का पर्याय बन चुकी है तमसा.इसके जल में आज अगर सीधे शब्दों में कहूँ तो मुत्रदान भी न करेंगे अगर थोड़ी से सफाई प्रेमी है ! खेती और जल स्नान या आचमन तो दूर की बात है. स्थानीय किसान रमेश यादव और चन्द्रभान यादव बतलाते है कि इसके पानी से सैकड़ो मछली मरती है.किसान अपने खेत में इसका जल उपयोग नही करते है क्योकि फ़ैजाबाद में कोकोकोला फैक्ट्री का सीधा गंफा कचरा तमसा में मिलता है. उससे पहले कानपुर की चमड़ा फैक्ट्रियां गंगा की तरह तमसा को प्रदूषित कर चुकी है. इसका ट्रीटमेंट आज तक नही हुआ. मैंने आँखों से देखा आजमगढ़ की जीवन रेखा से जुडी ये तमसा नदी आज मल त्यागने,मरी हुई गाय को फेंकने और शव प्रवाह का साधन है. तस्वीरे देखे ! आजमी कलमकारों जागो अभी ! कभी कैफी आजमी और अयोध्या सिंह उपाध्याय की लेखनी का टोला रही तमसा लहरे आज उनके न होने का मलाल अपने मैले आंचल से करती है. अफसोस है कि ये जिला समाजवादी मुखिया मुलायम सिंह का संसदीय क्षेत्र है.तमसा के आंसू को आज मुलायम सिंह तीन साल में न देख पाए और स्थानीय आवाम भी इसके शोषण का एक अदद हिस्सा है. शहरी नाले से लेकर वो सब कुछ जो हम बहा सकते है तमसा में जा रहा है. माँ गंगा से बलिया में मिलने वाली तमसा का ये हाल वहां के किसानो की बेबसी का कारण है मगर उन्होंने ने भी इसके लिए आवाज नही उठाई अभी तक ! सरकारी मदद की तरफ निहारते रहने की हमारी आदत ने नदियों से इबादत और मुहोब्बत का सलीका छीन लिया है. सवाल ये है कि उन जल अभियानों का क्या हुआ या उन जल संघटनो के अभियान का क्या होता है जो नदी के संवाहक नही आज उसके आर्थिक दोहन कर्ता बन चुके है. आने वाले कुछ सालो में आप ,हम सब तमसा को आजमगढ़ में नही पाएंगे ! केंद्र की सरकार क्या करेगी ये उसकी विचार शीलता का प्रमाण होगी जैसे माँ गंगा आज अभियान का जुमला है !
तस्वीर आशीष सागर की जारी
स्रोत - http://hi.bharatdiscovery.org तमसा नदी अयोध्या (फैजाबाद ज़िला, उत्तर प्रदेश) से प्राय: 12 मील दक्षिण में बहती हुई लगभग 36 मील की यात्रा के पश्चात अकबरपुर के पास बिस्वी नदी में मिल जाती है। इस स्थान के पश्चात संयुक्त नदी का नदी का नाम टौंस हो जाता है, जो तमसा का ही अपभ्रंश है। तमसा नदी पर अयोध्या से कुछ दूर पर वह स्थान बताया जाता है, जहाँ श्रवण की मृत्यु हुई थी। अयोध्या से प्राय: 12 मील दूर तरडीह नामक ग्राम है, जहाँ स्थानीय किवदंती के अनुसार श्रीराम ने वनवास यात्रा के समय तमसा को पार किया था। वह घाट आज भी रामचौरा नाम से प्रख्यात है। टौंस ज़िला, आजमगढ़ में बहती हुई बलिया के पश्चिम में गंगा...
यह आजमगढ़ की ' तमसा नदी ' है ! तमसा के तट पर माता सती अनसुइया के तीन बेटो दुर्वाशा ऋषी, दत्तात्रेय,चन्द्रमा ऋषि का आश्रम है. प्रत्येक वर्ष गुरुनानक जयंती के दिन यहाँ बड़ा मेला लगता है ! आस्था के दंभियो का ये जल प्रपंच और आस्था का ड्रामा करना
आजमगढ़ के किसानो के लिए जहरीले पानी का पर्याय बन चुकी है तमसा.इसके जल में आज अगर सीधे शब्दों में कहूँ तो मुत्रदान भी न करेंगे अगर थोड़ी से सफाई प्रेमी है ! खेती और जल स्नान या आचमन तो दूर की बात है. स्थानीय किसान रमेश यादव और चन्द्रभान यादव बतलाते है कि इसके पानी से सैकड़ो मछली मरती है.किसान अपने खेत में इसका जल उपयोग नही करते है क्योकि फ़ैजाबाद में कोकोकोला फैक्ट्री का सीधा गंफा कचरा तमसा में मिलता है. उससे पहले कानपुर की चमड़ा फैक्ट्रियां गंगा की तरह तमसा को प्रदूषित कर चुकी है. इसका ट्रीटमेंट आज तक नही हुआ. मैंने आँखों से देखा आजमगढ़ की जीवन रेखा से जुडी ये तमसा नदी आज मल त्यागने,मरी हुई गाय को फेंकने और शव प्रवाह का साधन है. तस्वीरे देखे ! आजमी कलमकारों जागो अभी ! कभी कैफी आजमी और अयोध्या सिंह उपाध्याय की लेखनी का टोला रही तमसा लहरे आज उनके न होने का मलाल अपने मैले आंचल से करती है. अफसोस है कि ये जिला समाजवादी मुखिया मुलायम सिंह का संसदीय क्षेत्र है.तमसा के आंसू को आज मुलायम सिंह तीन साल में न देख पाए और स्थानीय आवाम भी इसके शोषण का एक अदद हिस्सा है. शहरी नाले से लेकर वो सब कुछ जो हम बहा सकते है तमसा में जा रहा है. माँ गंगा से बलिया में मिलने वाली तमसा का ये हाल वहां के किसानो की बेबसी का कारण है मगर उन्होंने ने भी इसके लिए आवाज नही उठाई अभी तक ! सरकारी मदद की तरफ निहारते रहने की हमारी आदत ने नदियों से इबादत और मुहोब्बत का सलीका छीन लिया है. सवाल ये है कि उन जल अभियानों का क्या हुआ या उन जल संघटनो के अभियान का क्या होता है जो नदी के संवाहक नही आज उसके आर्थिक दोहन कर्ता बन चुके है. आने वाले कुछ सालो में आप ,हम सब तमसा को आजमगढ़ में नही पाएंगे ! केंद्र की सरकार क्या करेगी ये उसकी विचार शीलता का प्रमाण होगी जैसे माँ गंगा आज अभियान का जुमला है !
तस्वीर आशीष सागर की जारी
स्रोत - http://hi.bharatdiscovery.org तमसा नदी अयोध्या (फैजाबाद ज़िला, उत्तर प्रदेश) से प्राय: 12 मील दक्षिण में बहती हुई लगभग 36 मील की यात्रा के पश्चात अकबरपुर के पास बिस्वी नदी में मिल जाती है। इस स्थान के पश्चात संयुक्त नदी का नदी का नाम टौंस हो जाता है, जो तमसा का ही अपभ्रंश है। तमसा नदी पर अयोध्या से कुछ दूर पर वह स्थान बताया जाता है, जहाँ श्रवण की मृत्यु हुई थी। अयोध्या से प्राय: 12 मील दूर तरडीह नामक ग्राम है, जहाँ स्थानीय किवदंती के अनुसार श्रीराम ने वनवास यात्रा के समय तमसा को पार किया था। वह घाट आज भी रामचौरा नाम से प्रख्यात है। टौंस ज़िला, आजमगढ़ में बहती हुई बलिया के पश्चिम में गंगा...
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