Tuesday, April 14, 2015

' बन्ना के सपनो पर ओलो की मार ' !

सभी तस्वीर साभार विनय पाण्डेय जी ( हिंदुस्तान समाचार पत्र )....
खबर आज विस्तार से शिखा श्रीवास्तव जी ने पेज सात पर लिखी है ...लेकिन इस पोस्ट को मैंने अपने तरीके से लिखा है संवेदना शिखा और विनय जी की तस्वीर ने दी है ....

' क्या बन्ना का बेटा अब्बास अब खेती करेगा  ' ! 

उरई / जालौन ( बुंदेलखंड ) से - नमी अआखो में भी है , गेंहूँ में भी है ! आँखों की नमी सोने नही देती तो गेंहूँ की नमी घर का चुह्ला ठंडा किये है . बे - मौसम बारिश और ओलो ने बुंदेलो का हाल बेहाल ही नही बदनुमा भी कर दिया है . उरई से करीब 60 किलोमीटर दूर कदौरा विकासखंड के गाँव चेतला का किस्सा कुछ यूँ ही है .....हर तरफ नमी और सिर्फ नमी है . 
60 हजार रूपये केसीसी के कर्जे ने बन्ना को इन्ही चिन्ताओ से मुक्त कर दिया ! उसे अब ये चिंता नही है कि घर में सायानी पोतियों  हाथो में मेहँदी कैसे रचाएगी ! घर के तवे में गर्मी कैसे आएगी , जवान हो चूका पोता / नाती आगे का भविष्य किस सहकर के सहारे लिखेगा ! 
इस फसल ने बन्ना का सब कुछ उजाड़ दिया, 19 साल की दो पोतियाँ निकाह लायक हो चुकी है. दो बहु - बेटे का इंतकाल हो गया है , तीन अनाथ पोते - पोतियों और अपने जर्जर शरीर के सहारे इस फसल को तैयार किया मगर खुदा को ये भी न मंजूर हुआ. नातियो के सर से माता - पिता का साया उठने के बाद बन्ना को उसकी कीमत का पता था तभी तो उसने ये किस्मत का दांव खेला पर हाथ खाली रह गया और 3 अप्रैल की सुबह पोते के मना करने के बाद भी खेत में बिखरी फसल देखने गई बन्ना फिर वापस घर नही आई. बेटे अब्बास ने रोका था अम्मी तू न जा मामूली सा नुकसान है सब सही हो जायेगा लेकिन बन्ना को अंतर से पता था की ये झूठ बोल रहा है उसकी उदासी ने ये बयान कर दिया था कि बन्ना तेरा पोतियों का अबकी साल निकाह करने का ख्याल सपना ही रहेगा. ......बुंदेलखंड में ऐसे एक - दो नही बल्कि सैकड़ो परिवार है पिछले दो माह के जहाँ एक वक्त का खाना भी मयसरर नही है पर सरकारी अमला है कि मानता ही नही किसान यहाँ खेती के नुकसान में हुए अवसाद और अपने किसानी के जलालत पर आत्महत्या या सदमे से जान दे रहा है .....मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने 5 लाख रुपया किसान की मौत खेती के नुकसान में  सदमे / खुदकुशी पर देने का ऐलान किया है ! इसको उनकी मदद कहे या आत्महत्या का प्रोत्साहन मगर ये सच है की करनी और कथनी में बड़ा फासला है साहेब आपने कब माना कि किसान यहाँ मर रहा है ....बन्ना तुम जहाँ भी हो अब खेती न करना आखिर तरी चिंता की चिता ये सरकार नही उठाने वाली है शायद कोई रहनुमा आये...!

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