फुटपाथ पर बिटिया !
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#बेटीबचाओबेटीपढाओं
तस्वीर साभार - Vikas Kumar वें कहते है -
I took this image few days ago in somewhere in kolkata. A small street girl and her brother was slept on street. It is estimated that more than 400,000 street children in India exist. #india #street #streetchildren #kolkata#photojournalism
#everydayindia #indiaphotoproject #everydayeverywhere
यह तस्वीर कुछ दिन पहले कोलकत्ता के किसी सड़क किनारे ली थी। मैं इस तस्वीर को लेने के दौरान और लेने के बाद से लगातार एक उलझन में हूँ। इस तस्वीर को थोड़ा ठहरकर देखिए। फिर अपने घर के एक बच्चे को इनदोनों की जगह रखकर देखिए। देखिए, कि कैसा लगता है! जब एक तरफ यह देश लगातार विकास कर रहा है। कुछ लोग ऐसा कहते हैं। मेरा विश्वास नहीं है क्योंकि मेरे लिए विकास वह है जिसमें साढ़े चार लाख बेघर बच्चों के लिए एक घर बन जाए, उन्हें उनका बचपन मिल जाए। उनकी पढ़ाई हो जाए। उनका जीवन हमारे-आपके बच्चों की तरह हो जाए। अगर हम अपने बच्चों को सहेज नहीं पा रहे हैं तो ऐसे किसी विकास का मेरे लिए मिट्टी के एक ढेले के बराबर भी मोल नहीं है।
कुछ सो जाते है मखमल के बिस्तर में , और कुछ विलासी गुलदानों में, जरा इनकों भी तो देखो भारत ! जो सोये है इंडिया के अरमानों में !! मेरा देश बदल रहा है,आगे बढ़ रहा है,लेकिन चन्द क्रीमी लोगों के मकानों में !विकास किसे कहते है भाई,जब असमानता घर करती हो आदमकद इंसानों में !!
#विकासकीसूरत#बेटीबचाओबेटीपढाओं
तस्वीर साभार - Vikas Kumar वें कहते है -
I took this image few days ago in somewhere in kolkata. A small street girl and her brother was slept on street. It is estimated that more than 400,000 street children in India exist. #india #street #streetchildren #kolkata#photojournalism
#everydayindia #indiaphotoproject #everydayeverywhere
यह तस्वीर कुछ दिन पहले कोलकत्ता के किसी सड़क किनारे ली थी। मैं इस तस्वीर को लेने के दौरान और लेने के बाद से लगातार एक उलझन में हूँ। इस तस्वीर को थोड़ा ठहरकर देखिए। फिर अपने घर के एक बच्चे को इनदोनों की जगह रखकर देखिए। देखिए, कि कैसा लगता है! जब एक तरफ यह देश लगातार विकास कर रहा है। कुछ लोग ऐसा कहते हैं। मेरा विश्वास नहीं है क्योंकि मेरे लिए विकास वह है जिसमें साढ़े चार लाख बेघर बच्चों के लिए एक घर बन जाए, उन्हें उनका बचपन मिल जाए। उनकी पढ़ाई हो जाए। उनका जीवन हमारे-आपके बच्चों की तरह हो जाए। अगर हम अपने बच्चों को सहेज नहीं पा रहे हैं तो ऐसे किसी विकास का मेरे लिए मिट्टी के एक ढेले के बराबर भी मोल नहीं है।
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