Friday, September 25, 2015

आस्था या नदियों को मारने की साजिश ?


' मेट्रो से गाँव तक फैला गणपति -दुर्गा का बुखार 'यह मात्र दूसरे धर्मो को डराने के लिए किया गया पूर्व नियोजित कर्म है !

दुर्गा की प्रतिमा विसर्जित करने का कही भी कोई पौराणिक 

वेद-ग्रन्थ में उल्लेख नही है....पश्चिम बंगाल से फैला ये बुखार आज विकराल और उन्मादी रूप में बड़े मेट्रो से गाँव तक पहुंचा ...देवी-देवता की मूर्ति दो प्रकार से स्थापित की जाती है..प्रथम शोड्पषोचार मन्त्र से प्राण प्रतिष्ठा करके और दूसरी वह जो पति-पत्नी(यजमान) शुद्ध नदी की मिट्टी लाकर उसमे बिना बांस का प्रयोग किये,बेसन मात्र से बनाते है जिसमे पीओपी का प्रयोग वर्जित होता है... जिसको आप शिवलिंग स्थापना क्रम या गणेश ,गणपति में भी रख सकते है...इसमे कोई कैमिकल युक्त रंग नही मिलता है तब इन्हे संकल्प ,यज्ञ के बाद नदी-तालाब में विसर्जित कर सकते है...प्राण प्रतिष्टा वाली प्रतिमा को केवल खंडित होने या अंग-भंग की स्थति में विसर्जित किया जाता है...जल प्रवाह हिन्दू धर्म में जलकर मरने वाले,सूतक में मरने वाले,नवजात शिशु मृतक,अविवाहित कन्या-पुरुष,सर्प -कीट से मरे देह का ही करते है...दुर्गा नवरात्री विसर्जन मात्र छद्म आस्था का थोथा प्रदर्शन है...पूजन-भजन-भोजन शांति में होते शोरगुल,हंगामे और उत्सव मनाकर हल्ले में नही...शराब पीकर गणेश और दुर्गा विसर्जन करने वाले धर्म की अफीम पीकर साल में नंगनाच ही करते है...उनके लिए उच्च न्यायलय के आदेश भी बेमानी होते है वो चाहे काशी के पण्डे हो या अन्य जगह के युवा ! यह तमाशा ही है....धर्म के नाम पर हिन्दू से अधिक किसी और को नही बरगलाया जा सकता है...पर्वो की आड़ लेकर देश की विषाक्त नदियों को और मैला करना प्रपंच नही तो और क्या है ? क्यों नही हम मिट्टी की मूर्तियाँ बना सकते या बेसन या कागज की लुगदी की जो प्रकृति सम्यक है ...जल विलीन है..इसे विसर्जित करने से जल में गाद या सिल्ट नही जमती जैसा पीओपी में होता है.ये मिट्टी की मूर्तियाँ संजय दाभोलकर जी ने बनाई है@आशीष सागर,बाँदा से

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