Wednesday, August 17, 2016

जब कान्हा का रामलाल मेरा ' मीत ' बन गया !

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‪#‎रक्षाबंधन‬ ‪#‎राखी‬ 
17 अगस्त - बीते दिवस कान्हा नेशनल टाइगर में प्रवास के दौरान ग्राम खटिया में यह श्यामलाल साधुराम बिसेन मिले ! रहवासी ग्राम सरेखा,तहसील जिला बालाघाट,मध्यप्रदेश से है ! अपनी दो पहिया की फटफटिया / मोटर साइकिल में सुदूर गाँव में बहनों / माताओं को राखी पहुंचा रहे है ! शुद्ध गवई अंदाज में अल्ताफ राजा के ' तुम तो ठहरे परदेशी साथ क्या निभाओगे ' गीत जुगाड़ के टेपरिकार्डर में बजाते सरपट राखी बेचते हुए ! ये कहते है यहाँ राखी नही मिली तो गाँव वाले कैसे खुश होंगे त्यौहार में ? इनसे मिलकर मजा आया !! मेरे साथ दिनेश दर्द,अखिलेश पाठक भी थे,हम तीनो ने इनका दर्शन 14 अगस्त की शाम में चार मर्तबा किया ! मजेदार बात ये है कि वापसी में मेरा मोबाइल एक चाय की दुकान में छूट गया था लेकिन कान्हा में बसते शेरो के ' मीत ' रामलाल ने उसे सहेज के रखा ! 
                         


जब वापस रिसार्ट में आये तो मोबाइल की सुध आई ! घंटी लगा के दर्द ने देखा तो कमरे में नही बजी ! समझ आया की हो गया जंगल में मंगल ! आखिर हम शहरी जो थे ! ...वैसे ही जो मरे आदमी की जेब से मोबाइल निकाल लेते है ! वही जैसे केदार घाटी में पंडो,जिंदा यात्रीयों ने लाशों से सोने की चेन,रूपये लूटे थे ! पर जब फोन उठा तो उधर से आवाज आई ' फोन चाय की दुकान में छोड़ गए है भाई साहेब ' ! ...साधन से दर्द और भाई राकेश मालवीय को साथ लेकर वापस जब उसी चाय दुकान में पहुंचे तो खिड़की के पट्टी में मोबाइल रखा था !! अँधेरे में रामलाल का तस्वीर नही लिए कैमरा कमरे में ही रह गया था ! ...उसको धन्यवाद किये इससे अधिक की औकात क्या है हम शहरी की !! और बरबस बोल गए ' रामलाल सच में इमानदारी के मीत हो तुम ' !! जंगल के पहरु बने वनविभाग देख रहे हो न ये गरीब है मगर लकड़ी चोर नही ! 
प्रिये गाँव मेरे तू चल,शहर में क्या धरा है,यहाँ बोतलों में शहद,वहां बोलियों में भरा है !

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