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साभार - Vikash Gupta की Facebook वाल से -
'' सरकारी दावे की कलई खोल रहा असहाय आनंद मिश्र का परिवार ''
- पिता को रक्त केंसर है, जमीन बेचीं ,कर्जा लिया लेकिन बीमारी ने साथ न छोड़ा ! दाने - दाने को मोहताज आनंद की बेटियां पढना चाहती है !! मगर.....? देश के प्रधानमंत्री मोदी जी / समाजवादी मुख्यमंत्री अखिलेश यादव कृपया संज्ञान लेवे !देश अभी क्या वास्तव में सुख से आजाद है ? केंद्र की सरकार का बेटी बचाओ - पढ़ाओ अभियान असल में ऐसे दोयम दर्जे के लोगों के लिए महज भाजपाई जलसे,रैली - प्रवचन के लिए बना है !
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प्रतापगढ़ जिले के पट्टी तहसील में कहते है कि इंसान हौसले के दम पर कुछ भी कर सकता है। क्योंकि जब आपके पास कोई नहीं होता तो हौसला आप का सबसे बड़ा साथी होता है। लेकिन जिंदगी हौसला ही झकड़ ले तो इंसान कुछ नहीं कर सकता। ऐसा ही हाल है पट्टी विकास खंड के पूरे सनाथ चरैया निवासी आनंद मिश्र का मेहनत मजदूरी कर दो वक्त की रोटी का बंदोबस्त कर रहे आनंद के परिवार की खुशियों पर छह साल पहले ऐसा ग्रहण लगा कि जीवन भर की जमा पूंजी दांव पर लग गई। ब्लड कैंसर से पीड़ित आनंद के इलाज में जमीन बिक गई और घर गिरवी चढ़ गया। इससे अब पूरा परिवार पाई-पाई को मोहताज हैं। बेटियां पढ़ना चाहती हैं, लेकिन पिता की लाचारी के चलते उन्हें अपनी कलम की कुर्बानी देनी पड़ रही है। प्रशासनिक गलियारों से लेकर हर कहीं भटकने के बाद उसे निराशा ही हाथ लगी है। बेटियों को शिक्षा दिलाने व खुद का इलाज करवाने में लाचार आनंद ने डीएम को प्रार्थना पत्र देकर परिवार सहित आत्मदाह की चेतावनी दी है !
पट्टी कोतवाली क्षेत्र के पूरेसनाथ चरैया निवासी कमल देव का बेटा आनंद कुमार मिश्र सूरत में रहकर मील में नौकरी करता था। छह साल पहले उसे पेट दर्द की शिकायत हुई तो वह घर चला आया। काफी इलाज के बाद भी उसे आराम नहीं मिला। कुछ खाने पीने में भी उसे तकलीफ होती थी, इससे दिन प्रतिदिन उसकी हालत बिगड़ती चली गई। इस दौरान आर्थिक तंगी के चलते इलाज में लापरवाही आनंद के लिए काली छाया बन गई। बाद में रिश्तेदारों की मदद से उसे मेडिकल कालेज लखनऊ में भर्ती कराया गया। वहां उपचार के दौरान डॉक्टरों ने आनंद को ब्लड कैंसर से ग्रसित बताया तो परिजनों के पैरों तले जमीन खिसक गई। धीरे-धीरे माली हालत से कमजोर आनंद के उपचार में पत्नी नीलम के जेवर व जमीन बिक गई और घर गिरवी चढ़ गया। रिश्तेदारों ने भी मदद को हाथ खड़े कर दिए। कच्चा मकान भी इस बरसात में धराशाई हो गया। अब इस परिवार के पास न तो रहने के लिए घर है और न खाने के लिए दाना। इलाज तो दूर की बात है। आनंद को अपनी बीमारी से ज्यादा गम इस बात का है कि इस आर्थिक तंगी में बेटियों को कलम की कुर्बानी देनी पड़ रही है। पिछले साल फीस जमा न होने के चलते बड़ी बेटी रश्मि का दसवीं में एडमिशन नहीं हो सका। इस वर्ष फीस जमा ना होने के कारण दूसरे नंबर की बेटी सारिका का दसवीं तथा सबसे छोटी बेटी निधि का आठवीं में एडमिशन नहीं हो पा रहा है। बेटियां पढ़ना चाहती है, लेकिन पिता की लाचारी देख उनकी पढ़ाई की उम्मीदें अब टूटने लगी हैं। वैसे तो प्रदेश सरकार का दावा है कि हर गरीब को उसकी बुनियादी सुविधाएं मिल रही है, किंतु इस असहाय परिवार को आज तक किसी सरकारी योजना का लाभ नहीं मिल सका है। शिक्षा से महरूम इन बेटियों के लिए केंद्र सरकार का बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का नारा भी बेमानी साबित हो रहा है। केंद्र की सरकार का बेटी बचाओ - पढ़ाओ अभियान असल में ऐसे दोयम दर्जे के लोगों के लिए महज भाजपाई जलसे,रैली - प्रवचन के लिए बना है !
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