Sunday, February 14, 2016

गरीबतंत्र का कैसे मने वेलेंटाइन डे !

' जिंदगी संघर्षो की नांव है जो जिंदादिली से तैर गया वो पार जो थका वो डूबा ! ' यहाँ आग से सुबह और रात होती है क्योकि यहाँ जिंदगी ही आग है ! मौलिक भारत में डिजिटल प्रेम दिवस की शुभ कामनाएं ! 14 फरवरी 

चलो एक कारवां इनके लिए बनाये साथी , यह सच संसद को दिखलाये साथी ! कभी प्रेम की भूख और कभी रोटी की तपिश में ये जो जलते है, इनके लिए भी ' वेलेटाइन डे ' मनाये साथी ! 

इस जिल्लत की पुरानी और विस्तार रिपोर्ट के लिए लिंक देखे -http://bundelkhand.in/…/gadtantra-banam-gareeb-tantra-by-as… 
तस्वीर - बुंदेलखंड के जिला बाँदा के फतेहगंज क्षेत्र के ग्राम गोबरी मवान से ! ये मवेशी और गौड़ आदिवासी बस्ती के रहवासी जंगल से लकड़ी,महुआ बीनकर और वन-विभाग के दिए हुए पट्टो पर खेती करके जिंदगी बसर करते है ! लेकिन जंगल के कथित रखवालों ने विंध्यांचल की हरियाली तो लूटी ही साथ ही इन्ही आदिवासियों पर जंगल की तरफ जाने ,लकड़ी काटने पर पहरा लगा रखा है ! यह विकास से महरूम 405 परिवार प्रति लकड़ी के गट्ठे पर वनविभाग के वाचर - चौकीदार प्रजापति उर्फ़ बहरा को 10 रूपये सुविधा शुल्क / रंगदारी देते है,जो ढाबों या होटल में 50 से 70 रूपये की बिकती है ! बीहड़ से उस ढाबे तक का सफ़र बाँदा - कानपुर पैसेंजर या अन्य ट्रेनों में होता है इन महिलाओं का ! आदिवासी परिवारों का ! यह सिलसिला मानिकपुर से अतर्रा स्टेशन तक चलता है वे तमाम तरह की मुसीबतें झेलकर जो सामान्य यात्री,लड़के इनकी बेटियों या महिला को देते है !...जंगल से लकड़ी काटने से लेकर दस रूपये प्रति गट्ठा देने तक इन्हे अपना बहुत कुछ देना पड़ता है ! कभी दस्यु के गुर्गो को और कभी जंगल के रखवालों को ! '' स्थानीय डिप्टी रेंजर नफीस खान से जब मौके पर बात की तो वे कहते है कि अगर आदिवासी हनुमान मन्दिर ( जहाँ वन चौकी स्थित है ) में कसम खा लेंगे तो मै वाचर को हटा दूंगा ! '' नफीस खान का नंबर है - 9838077786. ' जब आजादी नग्नता पर उतर आती है तंत्र की चाबुक से तब नक्सली पैदा होते है...! ' 
गोबरी मवान के रामगरीब,राजाराम,पप्पू,रामबिलास,बुद्धू,संतोष,रामबली( किशोर बालक),सालिगराम,श्यामकली(



किशोरी),माया,शोभा ने बतलाया कि प्रजापति हमसे जंगल से लकड़ी निकालने का प्रति गट्ठा 10 रूपये लेता है इसके अतिरिक्त दरोगा और पुलिस वाले की रंगदारी ब्याज में है ! ट्रेन में अगर बिना टिकट जाते है तब वहां की सुविधा का चेहरा अलग है ! जब कभी महुआ बीनकर देना पड़ता है या शराब ! बड़ी बात यह है कि इस इलाके में ग्यारह प्राथमिक स्कूल है लेकिन सब तालाबंदी में है ! कही प्राइमरी मास्टर जी नही आते उनके पास रटा हुआ वही जुमला बीएसए के लिए कि डकैतों का डर है ! यानी स्कूल का मध्यान्ह भोजन और वजीफा सब अंदरखाने में ! सूत्र कहते है कि बीएसए से संकुल प्रभारी तक स्कूल न जाने की रिश्वत दी जाती है ! न कोई आंगनबाड़ी और न टीकाकरण यहाँ सब कुछ वैसा ही जो खुद से कर लिया जाए ! जुगाड़ तकनीति पर मयस्सर प्रसव से लेकर परिवार नियोजन तक ! ....शिक्षा के आभाव में यह बच्चे माता- पिता के साथ लकड़ी बीनते ,खेलते और लकड़ी ही बेचते है ! जहाँ कभी डाकुओं की तूती बोलती थी आज वनविभाग की हनक है ! सूखे बुंदेलखंड का यह इलाका आज भी राष्ट्रीय मीडिया की निगाह से अछूता है क्योकि खबरें बीहड़ में दफन है ! 

( सभी तस्वीर स्वयं की बीते 12 फरवरी 2016 )

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