Wednesday, January 27, 2016

' यहाँ जिंदा है ठाकुर का कुआं ' !

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नोट - इस पोस्ट की तस्वीर और कंटेट अगर कही प्रकाशित होती है तो बिना सन्दर्भ दिए प्रकाशित करना विधिक गलत होगा ! 
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बाँदा / हमीरपुर ( मौदहा ) 27 जनवरी जारी - 

''आइए महसूस करिए ज़िन्दगी के ताप कोमैं चमारों की गली तक ले चलूँगा आपकोजिस गली में भुखमरी की यातना से ऊब करमर गई फुलिया बिचारी एक कुएँ में डूब कर '' ! - अदम गोंडवी

' यहाँ जिंदा है ठाकुर का कुआं ' !

देश की हालिया नब्ज दलित व्यथा से नाजुक है ! दलित चिन्तक और कामरेड से लेकर अल्पसंख्यक समुदाय मुखर होकर दलित शोषण पर अवसाद में चला जाता है ! असल में ये दलित दुःख ही है या एक ऐसा चक्रीय उत्पात जिसमे थके - हारे लोग देश की नव उर्जा को गला देना चाहते है लाल सलाम के पलीते से ! आखिर क्यों देश के वे इलाके इनकी गिद्ध निगाह से अछूते रह जाते है जबकि इनमे से आधे से अधिक लोग आज सूचना तंत्र के ( मीडिया ) मानव कर्मी है ! 
गाँव - गिरांव की पगडण्डी में घट रहे सदी से इस जुल्म की कहानी भी कुछ ऐसी ही है ! - चलते है बुंदेलखंड के जिला हमीरपुर की मौदहा तहसील की ग्राम पंचायत गुसियारी और कपसा ! बाँदा से पश्चिम दिशा में बसा ये गाँव गुसियारी बुंदेलखंड की उस क्रूरता का शिकार है जिसमे एक लोटे पानी की कीमत सर्दी और गर्मी में दलित और बसोर ( जमादार ) के लिए बार - बार आत्महनन करने सी है ! यह दलित और बसोर हर रोज,हर पल तिल - तिल के मरते है पानी लेने की कवायद में क्योकि यहाँ ' आज भी जिंदा है ठाकुर का कुआं ' ! 
अदम गोंडवी की ऊपर लिखी पंक्ति अपने आप में इस गुसियारी में चरित्रार्थ हो रही है ! बीती 25 जनवरी मै बड़े भाई आशीष मिश्र और मनीष जी के साथ इस गाँव में पहुंचा ! अक्सर सुनते आये कि इस गाँव में दलित और बसोर कुएं में सामान्य जाति के साथ पीने का पानी नही भर सकते है ! लेकिन जो खुली आँख से देखा वो इस सच से भी वैचारिक वीभत्स है ! 
गुसियारी ( मौदहा ) के निर्वाचित ग्राम प्रधान है इसरार अहमद खान ! कुल आबादी है करीब 14000 और मतदाता है लगभग 3500 महिला- पुरुष ! ग्राम पंचायत में 70 से अधिक हैन्पंप लगे है पर क्या मजाल जो कोई उसका पानी गले से नीचे उतार ले !....मिट्टी में इतना खार है कि नमक के मारे हैण्डपम्प के पाईप गल चुके है !...बावजूद इसके इनमे भी दलित और बसोर पानी नही भर सकते !.....इतनी बड़ी आबादी में गाँव के बाहर एक मात्र कुआँ है जिसका पानी मीठा है !....इस गाँव में 70 फीसदी आबादी मुस्लिम खान लोगो की है,शेष में दलित और बसोर !...गिने - चुने यादव ठाकुर है ही नही पर सामंती जिंदा है ! दलित उत्पीड़न इस मर्म से आहत होकर पठानकोट की रहवासी सुमित्रा ने अपने नातेदार से कपसा में 4 हैण्डपम्प लगवाये है लेकिन वे भी खारे हो गए ! गुसियारी में इस सर्दी में सुबह - शाम पानी लेने का मेला लगता है ! इस कुएं पर तब गर्मी में क्या होता होगा ? ' बुंदेला तेरा पानी गजब कर जाय, गगरी न फूटे चाहे खसम मर जाए ' ये बात इस गाँव में सही साबित है ! गुसियारी के बसोर जाति की संपत उनकी बेटी काजोल जो पहले कैमरे के सामने आने को सहमत हुई वे भूरी के कहने पर सहम गई ! भूरी कहती है सदियाँ बीत गई हमारा मुकद्दर न बदला है !..एक तुम्हार फोटू लेने से क्या हो जायेगा ? तस्वीर दिल्ली तक जाएगी पर हमें गाँव में रहना है !....जीना न हराम करवाओ !...मुझे बरबस भूरी के पैर छूने पड़े, उसे यह विस्वास दिलाया कि तुम मेरी माँ जैसी हो, मै तुम्हे अछूत नही मानता तब साथ चलो !...बाते इस हद तक बिगड़ी कि अतंत आशीष जी को गुस्सा आया और उन्हें यह कहते हुए राजी किया कि आप कुएं में न चढ़ना ! हम ऐसे ही देख लेंगे ! अगर नही साथ दिए तो आपके शोषण को ऐसा लिखेंगे कि नाहक सब बिगड़ेगा !....संपत की बड़ी बिटिया कैमरे के सामने नही आई !....एक और बसोर परिवार के घर ताला जड़ा था ! जब हम इन्हे इस खानवादी सामंती कुएं में लेकर गए तब निगाह शर्मिंदा हो गई !.....गाँव से बाहर तीन किलोमीटर बना यह दो सौ साल पुराना कुआं आज भी अछूत और दलित के उन्माद को बरकरार किये है !....दोनों महिला को कुएं पर पहले से पानी भर रही मुस्लिम महिलाओं ने कुएं पर चढ़ने नहीं दिया !...इन्हे नीचे ही प्लास्टिक के डिब्बे / कलसे में ऊपर से पानी डालकर दिया गया !...मुस्लिम खान महिला कहती है कि अरसा पहले एक बसोरिन कुएं में चढ़ी थी पानी भरने मर्यादा भंग हुई तो उसकी मौत हो गई !....भूरी और संपत का परिवार और पीढ़ी सदी यह जुल्म झेल रही है अन्य दलितों के साथ !..भूरी कहती है निकट भविष्य में वे इस गाँव में नही रहेगी रोज - रोज मरने से बेहतर है देहरी छोड़ देना !..इस ठाकुर के कुँए पर लिखने और चिंतन करने / इनके मानवाधिकार के लिए किसी की नजर लाल सलाम नही करती !...ऐसा लगता है आग लगा दो अपने उन झंडो पर जो मात्र उनके लिए उठते है जो आर्थिक रूप में दलित नही है लेकिन ये गुसियारी और कपसा के दलित देह से, साधन से और बर्ताव से आज तक दलित ही है !...इनकोआज तक कोई आर्थिक सहायता न मिली और न रोजगार ! ..समाजवादी सरकार और देश के प्रधानमंत्री मोदी जी जाइए देखिये इन बुन्देली ग्रामीण की अजाब सी दलित जिंदगी ! वही साथी लेखचंद्र त्रिपाठी कहते है हमारे गाँव गौरीकला ( जसपुरा ) बाँदा में भी एक हैडपंप दलित जाति के लिए अलग कर दिया गया है उसमे सवर्ण पानी नही भरते है ! - आशीष सागर,बाँदा से 





'' धर्म संस्कृति और नैतिकता के ठेकेदार को,
प्रांत के मंत्रीगणों को केंद्र की सरकार को !
मैं निमंत्रण दे रहा हूँ- आएँ मेरे गाँव में,
तट पे नदियों के घनी अमराइयों की छाँव में ! ''

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