सरकारी प्राथमिक स्कूलों में पढ़े नौकरशाहों और नेताओ के बच्चे !
@19 अगस्त सुबह - सबेरे
'' बुनयादी तालीम का पैरोकार यूपी उच्च न्यायालय ''
' जो राज्य का खजाने से वेतन ले रहे है उन सबके बच्चो को सरकारी प्राथमिक स्कूल में पढ़ाना अनिवार्य करे उत्तर प्रदेश सरकार.जो नियम का पालन न करे उनके वेतन से उतना धन काटे,जितना वह निजी स्कूल में अपने बच्चो की फीस पर दे रहे है.उनका प्रमोशन और इंक्रीमेंट रोके.नीति को कार्यरूप देकर 6 माह में कोर्ट को सूचित करे ' - न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल
सांसदों,विधयाको,आईएएस,पीसीएस,जज,सरकारी कर्मचारी के बच्चो को भी सरकारी प्राथमिक स्कूल में पढ़ाया जाये यह यह सख्त आदेश उत्तर प्रदेश उच्च न्यायालय ने अपने एक अहम निर्णय में दर्जनों जनहित याचिका की सुनवाई एक साथ करते हुए गत सोमवार को दिया है. हार्दिक अभिनन्दन के साथ इस आदेश को सलाम है. पोस्ट में बुंदेलखंड के जिला बाँदा के एक निजी राममिलन विद्या मंदिर,ग्राम कल्यानपुर सहित फतेहगंज के सरकारी प्राथमिक स्कूल की तस्वीरे उच्च न्यायालय को समर्पित है.
सरकारी प्राथमिक स्कूल के शौचालय कभी प्रयोग नही होते यहाँ,उनमे जमी घास आपको इसका भान करा देगी.डकैत का भय इनके अध्यापको को हराम का वेतन लेने की खुली छूट देता है जबकि असल में अब डकैत से अधिक राहजनी करने वाले यहाँ अधिक है जो इलाकाई युवा बेरोजगार मात्र है.इनमे बांटे जाने वाला मध्यान्ह भोजन कागजो में बनता है या वही के महिला से बनवाकर दे दिया जाता है कुछ मुट्ठी भर बच्चो को जो यदा -कदा आ गए.बाकि सप्ताह में एक दिन तैनात अध्यापक / अध्यापिका आकर अपना रजिस्ट्रर मेंटेन कर जाती है.बीहड़ / ग्रामीण क्षेत्र की ये दुर्गति तब है जब शिक्षा का अधिकार बने कई साल हो रहे है.शहर के प्राथमिक स्कूल या सड़क से लगे स्कूल में प्राइमरी मास्टर साहेब सिटी में डांस क्लब / डांस प्रतियोगिता या एलबम में मस्त रहते है.अध्यापिका बीएसए की मानसिक और आर्थिक सेवा करती है.वही निजी स्कूल की कक्षा में बच्चे और कुत्ता साथ पढ़ते है ये तस्वीर बानगी है जिसको आप इस वीडियो में देखे आँखों से -https://www.youtube.com/watch?v=4q84MtMzi0E
कक्षा तीन का छात्र सत्येन्द्र मुख्यमंत्री का नाम नरेंद्र मोदी बतलाता है और कक्षा 10 से 12 तक की छात्रा अपने स्कूल न जाकर स्कूल समय में यही कोचिंग पढ़कर साल भर की तालीम लेती है.ऐसे सैकड़ो स्कूलो का हाल बुंदेलखंड समेत सब कही है. नेता -व्यापारी,विधायक-सांसद और अफसर की संतान चमकीले स्कूल में पढ़ती है...उसका सामाजिक ताना - बाना इलीट क्लास का है ! बिना एसी की बस में बैठे और महगें चाकलेट या लंच टिफिन के बिना वे स्कूल नही जाते क्या करे नखरा बहुत चढ़ता है दुलार में और ये बच्चे गाँव- गिरांव के एक अदद मिड - डे मील / आंगनबाड़ी की पंजीरी - तहरी के लिए ही आस लगाये प्राथमिक स्कूल जाते है मगर ये सरकारी नौकरी पाकर भारतीय व्यवस्था में रम चुके प्राथमिक - जूनियर अध्यापक अपने मूल कर्तव्यो से इतर उनका भोजन तक बेच लेते है....खबरे गवाह है बुंदेलखंड ( बाँदा ,महोबा ,चित्रकूट ,हमीरपुर ,ललितपुर ,सोनभद्र - मिर्जापुर आदि ) से लेकर उत्तर प्रदेश की बदहाल शिक्षा कैसे म्रत्यु शैया में बैठी है ! सरकारी शिक्षा तंत्र के लिए आज हाई कोर्ट को मजबूर होना पड़ा ये कहने के लिए कि सरकारी खजाने से वेतन लेने वाले भी अपने बच्चो को यहाँ ही भेजे !...हैरान न हो अगर प्रदेश सरकार या ये अधिकारी सुप्रीम कोर्ट जाते है क्योकि ये आदेश काले अंग्रेजो की गुलामी सहने और निरंकुशता पर तमाचा है....मगर ये सबक भी है उनके किरदार पर जो लबादा उन्होंने अपने कार्य के प्रति ...बच्चो को अँधेरे में ले जाने के लिए चढ़ा रखा है....
सांसदों,विधयाको,आईएएस,पीसीएस,जज,सरकारी कर्मचारी के बच्चो को भी सरकारी प्राथमिक स्कूल में पढ़ाया जाये यह यह सख्त आदेश उत्तर प्रदेश उच्च न्यायालय ने अपने एक अहम निर्णय में दर्जनों जनहित याचिका की सुनवाई एक साथ करते हुए गत सोमवार को दिया है. हार्दिक अभिनन्दन के साथ इस आदेश को सलाम है. पोस्ट में बुंदेलखंड के जिला बाँदा के एक निजी राममिलन विद्या मंदिर,ग्राम कल्यानपुर सहित फतेहगंज के सरकारी प्राथमिक स्कूल की तस्वीरे उच्च न्यायालय को समर्पित है.
सरकारी प्राथमिक स्कूल के शौचालय कभी प्रयोग नही होते यहाँ,उनमे जमी घास आपको इसका भान करा देगी.डकैत का भय इनके अध्यापको को हराम का वेतन लेने की खुली छूट देता है जबकि असल में अब डकैत से अधिक राहजनी करने वाले यहाँ अधिक है जो इलाकाई युवा बेरोजगार मात्र है.इनमे बांटे जाने वाला मध्यान्ह भोजन कागजो में बनता है या वही के महिला से बनवाकर दे दिया जाता है कुछ मुट्ठी भर बच्चो को जो यदा -कदा आ गए.बाकि सप्ताह में एक दिन तैनात अध्यापक / अध्यापिका आकर अपना रजिस्ट्रर मेंटेन कर जाती है.बीहड़ / ग्रामीण क्षेत्र की ये दुर्गति तब है जब शिक्षा का अधिकार बने कई साल हो रहे है.शहर के प्राथमिक स्कूल या सड़क से लगे स्कूल में प्राइमरी मास्टर साहेब सिटी में डांस क्लब / डांस प्रतियोगिता या एलबम में मस्त रहते है.अध्यापिका बीएसए की मानसिक और आर्थिक सेवा करती है.वही निजी स्कूल की कक्षा में बच्चे और कुत्ता साथ पढ़ते है ये तस्वीर बानगी है जिसको आप इस वीडियो में देखे आँखों से -https://www.youtube.com/watch?v=4q84MtMzi0E
कक्षा तीन का छात्र सत्येन्द्र मुख्यमंत्री का नाम नरेंद्र मोदी बतलाता है और कक्षा 10 से 12 तक की छात्रा अपने स्कूल न जाकर स्कूल समय में यही कोचिंग पढ़कर साल भर की तालीम लेती है.ऐसे सैकड़ो स्कूलो का हाल बुंदेलखंड समेत सब कही है. नेता -व्यापारी,विधायक-सांसद और अफसर की संतान चमकीले स्कूल में पढ़ती है...उसका सामाजिक ताना - बाना इलीट क्लास का है ! बिना एसी की बस में बैठे और महगें चाकलेट या लंच टिफिन के बिना वे स्कूल नही जाते क्या करे नखरा बहुत चढ़ता है दुलार में और ये बच्चे गाँव- गिरांव के एक अदद मिड - डे मील / आंगनबाड़ी की पंजीरी - तहरी के लिए ही आस लगाये प्राथमिक स्कूल जाते है मगर ये सरकारी नौकरी पाकर भारतीय व्यवस्था में रम चुके प्राथमिक - जूनियर अध्यापक अपने मूल कर्तव्यो से इतर उनका भोजन तक बेच लेते है....खबरे गवाह है बुंदेलखंड ( बाँदा ,महोबा ,चित्रकूट ,हमीरपुर ,ललितपुर ,सोनभद्र - मिर्जापुर आदि ) से लेकर उत्तर प्रदेश की बदहाल शिक्षा कैसे म्रत्यु शैया में बैठी है ! सरकारी शिक्षा तंत्र के लिए आज हाई कोर्ट को मजबूर होना पड़ा ये कहने के लिए कि सरकारी खजाने से वेतन लेने वाले भी अपने बच्चो को यहाँ ही भेजे !...हैरान न हो अगर प्रदेश सरकार या ये अधिकारी सुप्रीम कोर्ट जाते है क्योकि ये आदेश काले अंग्रेजो की गुलामी सहने और निरंकुशता पर तमाचा है....मगर ये सबक भी है उनके किरदार पर जो लबादा उन्होंने अपने कार्य के प्रति ...बच्चो को अँधेरे में ले जाने के लिए चढ़ा रखा है....
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