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जनसेवा का चोखा धन्धा-एन0जी0ओ0
स्वयंसेवी संस्थाओं के विषय में केन्द्र सरकार द्वारा कराए गए एक सर्वेक्षण की जानकारियां काफी चैंकाने वाली हैं। पिछले साल मात्र दो कानूनों के तहत दर्ज स्वयंसेवी संस्थाओं की कुल संख्या 33,00,000 थी जबकि कम से कम दस ऐसे कानून हैं जिनके अंतर्गत सामाजिक संगठन, चैरिटेविल ट्रस्ट पंजीकृत होते हैं। ये तैंतीस लाख संस्थाएं तैंतीस करोड देवताओं की तरह लगती हैं, जिनके जिम्मे काफी सारे काम हैं और काफी धन केन्द्र सरकार, राज्य सरकार व विदेशी फंड आ रहा है। सरकार खास तौर से इसी आखिरी पक्ष पर ज्यादा सचेत होती है, क्योकि अक्सर इन संस्थाओं में आने वाले धन के देशी-विदेशी स्रोतो को लेकर कई किस्म के सवाल भी उठते हैं। जाहिर तौर पर न तो समाज सेवा का काम गलत है और न ही संस्था बनाकर चन्दा लेना। इनकी कमाऊ उपयोगिता के चलते ही इनकी संख्या में तेजी से बढ़ोत्तरी हुई है। सर्वेक्षण में यह बात रेखांकित की गई है कि इन संस्थाओं के पास वर्ष 2007-08 में करीब 9,700 करोड़ रूपये का चन्दा विदेशों से आया पर यह भी उल्लेखनीय है कि नवीं योजना में सरकार ने भी इनके माध्यम से 18 हजार करोड रूपये की योजनाओं का क्रियान्वयन किया। अनुमान है कि इस पूरे एन0जी0ओ0 क्षेत्र को केन्द्र सरकार से 80-90 हजार करोड रूपये मिलते हैं। जनप्रतिनिधि की विधायक निधि व सांसदों की निधि इस रूपये से अलग है वैसे तो एन0जी0ओ0 का कार्य अनुसंधान, जनपैरवी, सर्वेक्षण, दस्तावेजीकरण, सरकारी योजनाओं का प्रचार-प्रसार, आन्दोलन करना रहा है लेकिन अन्दर की बात यह भी है कि कई एन0जी0ओ0 पहंुच वाले विभागों में ठेकेदारी, मशीनरी, राजनीतिक संगठनों के सोशल एजेन्ट का काम कर रहे हैं।
स्वयंसेवी संगठनों के लिए केन्द्र सरकार ने जो कानून बनाए हंै उनमें से सोसायटी रजिस्ट्रेशन एक्ट 21(1860), मुम्बई पब्लिक ट्रस्ट एक्ट, इण्डियन ट्रस्ट एक्ट 1882, पब्लिक ट्रस्ट एक्ट 1950, इण्डियन कम्पनी एक्ट 1956, रिलीजियस एंडोमंेट एक्ट 1963, चेयरटेबल एण्ड रिलीजियस ट्रस्ट एक्ट 1920, मुस्लिम वक्फ एक्ट 1923, वक्फ एक्ट 1954, पब्लिक वक्फ एक्सटेंशन आफ लिमिटेशन एक्ट 1959 इनके अतिरिक्त आयकर एक्ट के तहत 35 एसी, 35 (1 और 2), 80 जी, एफ.सी.आर.ए. के जरिए अनुदान पर सौ फीसदी छूट का प्रावधान है। टैक्स का पैसा अदा करने के बजाय आमतौर पर एन0जी0ओ0 को जनप्रतिनिधि, सफेदपोश अपराधी, कारपोरेट के उद्यमी अनुदान देना बेहतर समझते हैं। इसके जरिए मनमाफिक काले धन को सफेद किया जाता है। हाल ही में विकीलीक्स बेबसाइट के कालेधन की सम्पत्ति के स्वामियों की सूची में दिल्ली, मुम्बई के तीन बडे ट्रस्ट इस बात की बानगीं हैं। यहा तक की भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई का ढोंग और जनलोकपाल विल के लिए अन्ना के समर्थन में जनता का आन्दोलन भी विदेशी अनुदान के मार्फत ही इन तथाकथित सामाजिक संगठनो द्वारा खडा किया गया था। स्वामी रामदेव के पतंजलि योग ट्रस्ट, उनसे जुड़ी कम्पनियों की अरबों रूपये की सम्पत्ति भी विदेशी अनुदान, आयकर में छूट का ही हिस्सा है।
केन्द्र सरकार के अध्ययन के मुताबिक 1970 के दशक में 1,44,000 एन0जी0ओ0 सोसायटी अधिनियम में पंजीकृत हुए थे। इनकी संख्या में इजाफा इस तरह हुआ कि महज 1970 के दशक से लेकर वर्ष 1990 तक 5.52 लाख एन0जी0ओ0 समाजसेवा के क्षेत्र में उतर चुके थे। इसमें सबसे ज्यादा बढ़ोत्तरी वर्ष 2000 के बाद आई और सरकारी आंकड़ों के मुताबिक अब 400 लोगों में एक एन0जी0ओ0 संचालित है। इनकी झोली में हर साल अस्सी हजार करोड़ रूपये से अधिक अनुदान जाता है।
अगर बुन्देलखण्ड की बात करें तो बीते ढाई दशकों में जैसे – जैसे सूखा, किसान आत्महत्या, जल संसाधनों का दोहन, परम्परागत बीजों का खात्मा, पलायन, महिला हिंसा में बढ़ोत्तरी और रोजगार के साधन घटे हैं उसी रफ्तार से सामाजिक संगठनों, ट्रस्ट में समृद्धि हो रही है। समाजसेवा यूं ही नहीं की जाती बल्कि पिछले दो दशक में उदारीकरण की प्रक्रिया के बाद यह व्यापार का रूप अख्तयार कर चुकी है। इन तथाकथित सामाजिक संगठनो के ऊपर न केवल महिला कल्याण की आड में देह व्यापार, जैविक कृषि के प्रचार-प्रसार से बुन्देलखण्ड में तैयार कठिया गेंहू का दलिया दिल्ली व विदेशी बाजारो में विक्रय करने, स्वयं सहायता समूह के नाम पर नावार्ड (ग्रामीण विकास बैंक) के 88 लाख रूपयों का बन्दरबाट, राष्ट्रीय बाल श्रम परियोजना में करीब डेढ़ करोड रूपये के भ्रष्टाचार के आरोप हैं बल्कि बीस स्वयंसेवी संस्थाओं को जनपद बांदा में काली सूची में दर्ज होना भी समाजसेवा के नाम पर होने वाले भ्रष्टाचार के खेल को बताता है।
जमीनी हकीकत यह है कि एक तरफ बुन्देलखण्ड की खनिज सम्पदा का जहां खनन माफियाओं द्वारा जेमर दोहन किया गया है वहीं दूसरी तरफ राजनीतिक संगठनों व समाजिक संगठनों ने अनीतिगत विकास नीतियों के चलते बुन्देलखण्ड के रहवासियों को प्रोजेक्ट की मण्डी में खडा कर दिया है।
बुन्देलखण्ड में अमूमन चल रहे करीब 200 समाजिक संगठन सात जिलों में समाजसेवा के लिए सक्रिय हैं। बताया जाता है कि झांसी के चिट्स फर्म एवं सोसायटीज रजिस्ट्रार कार्यालय में तकरीबन एक दर्जन संस्थाएं प्रतिदिन घूस ले देकर पंजीकृत होती हैं। बुन्देलखण्ड के जनपद बांदा में एक-दो संस्थाओं को अगर छोड़ दिया जाए तो ज्यादातर सरकारी अनुदान को आंकड़ों में तब्दील करने का काम कर रही है। शहर के एक प्रतिष्ठित समाजिक कार्यकर्ता ने अपनी जमात की सच्चाई को बताया कि बुन्देलखण्ड को राजनीतिक पार्टियों से कही अधिक समाजिक संगठनों ने मानवीय संवेदनाओं को छल कर धन कमाया है। उनका कहना है कि वे समाजिक संगठन जिनके संविधान में संस्था पंजीकृत करवाते समय हिन्दी वर्णमाला के सभी मार्मिक शब्द मसलन निरीह, असहाय, निराश्रित, वंचित, अन्त्योदय, सृजन, समर्थन, परमार्थ, सर्वोदय, ग्रामोदय, उत्थान, चेतना, प्रगति, समग्र आदि नाम उछाल मारकर उददेश्यों में विजन के साथ सम्मिलित होते हैं वे धरातल पर क्यों नहीं दिखाई देते ? सामाजिक संगठनों की सक्रियता इस बात से ही निकलकर आती है कि सचिवालय में काम का रहे आई0ए0एस0 की पत्नी से लेकर जनपद स्तर में तैनात प्रशासनिक अधिकारी का कुनबा भी अब समाजिक संगठन, एन0जी0ओ0 चलाने की कतार में सम्मिलित है। बुन्देलखण्ड में तो लड़कियों की शादी पर भी दहेज में एन0जी0ओ0 मिलना बड़ी बात नहीं है। वे सामाजिक संगठन जिनके पास आज से तीन दशक पहले साइकिल से पदयात्रा करने के लायक ही धन हुआ करता था वे आज लाखों की सम्पत्ति, जमीन के मालिक हैं, यहां तक की उनके नौकरो के नाम भी कृषि भूमि है। जनपद चित्रकूट में काम कर रही अखिल भारतीय सेवा संस्थान के संचालक गोपाल भाई को इसकी नजीर कहा जा सकता है। पूर्व ब0स0पा0 सरकार के ग्राम्य विकास मंत्री दददू प्रसाद का वरदहस्त प्राप्त बताया जाता यह सामाजिक संगठन सरकारी योजनाओं का संचालन करने व मनरेगा अनुदान में अग्रणी रहा है। इसी तरह बताया जाता है कि जनपद बांदा के स्वास्थ्य के क्षेत्र में कार्य कर रही महिला सामाजिक कार्यकर्ता प्रभा गुप्ता, मंगल ज्योति महिला एवं बाल उत्थान संस्थान, चित्रकूट जनकल्याण समिति का स्वाधार कार्यक्रम भ्रष्टाचार की मांद में फल फूल रहे हैं। नरैनी क्षेत्र के समाजिक कार्यकर्ता राजा भइया यादव विद्याधाम समिति, जागृति संस्थान के जावेद हाशिमी को अगर छोड दिया जाए तो लगभग सभी संस्थाएं राज्य व केन्द्र सरकार के जनहित अनुदान को स्वहित में बखूबी उपयोग कर रही हैं। जनपद बांदा में ही राष्ट्रीय बाल श्रम परियोजना, जो बाल श्रमिकों के विद्यालयों हेतु चलाई गई थी, में जमकर लूट-खसोट होती है। आर0टी0आई0 से प्राप्त जानकारी से यह सच सामने आने के बाद जिला प्रशासन ने शासन को रिपोर्ट भेजकर बीस सामाजिक संगठनों को काली सूची में डालने की संस्तुति की है। वर्ष 2010 से अस्तित्व में आए जनपद बांदा के मुक्तिधाम समिति को भी एन0जी0ओ0 की धांधली का हिस्सा कहा जा सकता है। संगठन की कार्यकारिणी में स0पा0 के पूर्व वरिष्ठ नेता व स0पा0 सरकार में ही नगर पालिका परिषद बांदा के अध्यक्ष निर्वाचित हुए और वर्तमान में ब0स0पा0 के नेता राजकुमार राज, व्यापार मण्डल के जनप्रतिनिधि सन्तोष गुप्ता जो भा0ज0पा0 से सम्बन्ध रखते हैं, पूर्व प्रधानाचार्य बाबूलाल गुप्ता, पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष शकील अली सहित अन्य कई सम्भ्रान्त नागरिक इस संगठन के सदस्य हैं। मासूम जनता के सामने धमार्थ, हर लवारिस लाश का वारिस मुक्तिधाम जैसे मानवीय शब्दों को उपयोग कर चन्दा वसूल कर नगर पालिका, जिला प्रशासन, विधायक निधि से लाखों रूपयों की दो वर्षो में वसूली करने के आरोप हैं। इस संगठन के द्वारा लाशों के अन्तिम संस्कार हेतु ले जाने वाले वाहन रोज ही जिला परिषद कार्यालय में खड़े रहते नज़र आते हैं। आरोप है कि अपने खास, जाति विशेष की लाशों को ही इस संगठन के बैनर से कब्रिस्तान तक पहुंचाया जाता है। संगठन की गठन की प्रक्रिया में कहीं न कहीं वोट बैंक बढ़ाना भी मूल बात दिखाई देती है।
जनपद महोबा में बुन्देलखण्ड का सर्वाधिक जल संकट है। किसान आत्म हत्याओं व पर्यावरण संरक्षण के मुददो पर ही तकरीबन आधा दर्जन एन0जी0ओ0 यहां सक्रिय हैं। यही हालात जनपद जालौन, झांसी, ललितपुर, हमीरपुर की भी है। गरीबी और कुपोषण की मार झेलते ऐसे हजारों बेसहारा व असहाय लोग हैं जिनके लिए शायद ही सामाजिक संगठनों को समाज सेवा करने की जरूरत महसूस होती हो। नरैनी क्षेत्र बांदा का फतेहगंज इलाका और दस्यु प्रभावित क्षेत्रों में बसर कर रहे कोल, मवेशी, गोड, आदिवासी इस बात की हकीकत है। कमोवेश उनके लिए यह कहना अतिश्योक्ति नही है कि ‘‘ श्वानो को मिलता दूध भात/ भूखे बच्चे अकुलाते हैं/ जर-जर माँ से लिपट-चिपट बीहड़ में रात बिताते है/ यहाँ डकैतों की दहशत में स्कूलों पर ताले हैं/ मिड डे मील से बच्चों को मिलते नहीं निवाले हैं। ‘‘
स्वयंसेवी संगठनों के लिए केन्द्र सरकार ने जो कानून बनाए हंै उनमें से सोसायटी रजिस्ट्रेशन एक्ट 21(1860), मुम्बई पब्लिक ट्रस्ट एक्ट, इण्डियन ट्रस्ट एक्ट 1882, पब्लिक ट्रस्ट एक्ट 1950, इण्डियन कम्पनी एक्ट 1956, रिलीजियस एंडोमंेट एक्ट 1963, चेयरटेबल एण्ड रिलीजियस ट्रस्ट एक्ट 1920, मुस्लिम वक्फ एक्ट 1923, वक्फ एक्ट 1954, पब्लिक वक्फ एक्सटेंशन आफ लिमिटेशन एक्ट 1959 इनके अतिरिक्त आयकर एक्ट के तहत 35 एसी, 35 (1 और 2), 80 जी, एफ.सी.आर.ए. के जरिए अनुदान पर सौ फीसदी छूट का प्रावधान है। टैक्स का पैसा अदा करने के बजाय आमतौर पर एन0जी0ओ0 को जनप्रतिनिधि, सफेदपोश अपराधी, कारपोरेट के उद्यमी अनुदान देना बेहतर समझते हैं। इसके जरिए मनमाफिक काले धन को सफेद किया जाता है। हाल ही में विकीलीक्स बेबसाइट के कालेधन की सम्पत्ति के स्वामियों की सूची में दिल्ली, मुम्बई के तीन बडे ट्रस्ट इस बात की बानगीं हैं। यहा तक की भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई का ढोंग और जनलोकपाल विल के लिए अन्ना के समर्थन में जनता का आन्दोलन भी विदेशी अनुदान के मार्फत ही इन तथाकथित सामाजिक संगठनो द्वारा खडा किया गया था। स्वामी रामदेव के पतंजलि योग ट्रस्ट, उनसे जुड़ी कम्पनियों की अरबों रूपये की सम्पत्ति भी विदेशी अनुदान, आयकर में छूट का ही हिस्सा है।
केन्द्र सरकार के अध्ययन के मुताबिक 1970 के दशक में 1,44,000 एन0जी0ओ0 सोसायटी अधिनियम में पंजीकृत हुए थे। इनकी संख्या में इजाफा इस तरह हुआ कि महज 1970 के दशक से लेकर वर्ष 1990 तक 5.52 लाख एन0जी0ओ0 समाजसेवा के क्षेत्र में उतर चुके थे। इसमें सबसे ज्यादा बढ़ोत्तरी वर्ष 2000 के बाद आई और सरकारी आंकड़ों के मुताबिक अब 400 लोगों में एक एन0जी0ओ0 संचालित है। इनकी झोली में हर साल अस्सी हजार करोड़ रूपये से अधिक अनुदान जाता है।
अगर बुन्देलखण्ड की बात करें तो बीते ढाई दशकों में जैसे – जैसे सूखा, किसान आत्महत्या, जल संसाधनों का दोहन, परम्परागत बीजों का खात्मा, पलायन, महिला हिंसा में बढ़ोत्तरी और रोजगार के साधन घटे हैं उसी रफ्तार से सामाजिक संगठनों, ट्रस्ट में समृद्धि हो रही है। समाजसेवा यूं ही नहीं की जाती बल्कि पिछले दो दशक में उदारीकरण की प्रक्रिया के बाद यह व्यापार का रूप अख्तयार कर चुकी है। इन तथाकथित सामाजिक संगठनो के ऊपर न केवल महिला कल्याण की आड में देह व्यापार, जैविक कृषि के प्रचार-प्रसार से बुन्देलखण्ड में तैयार कठिया गेंहू का दलिया दिल्ली व विदेशी बाजारो में विक्रय करने, स्वयं सहायता समूह के नाम पर नावार्ड (ग्रामीण विकास बैंक) के 88 लाख रूपयों का बन्दरबाट, राष्ट्रीय बाल श्रम परियोजना में करीब डेढ़ करोड रूपये के भ्रष्टाचार के आरोप हैं बल्कि बीस स्वयंसेवी संस्थाओं को जनपद बांदा में काली सूची में दर्ज होना भी समाजसेवा के नाम पर होने वाले भ्रष्टाचार के खेल को बताता है।
जमीनी हकीकत यह है कि एक तरफ बुन्देलखण्ड की खनिज सम्पदा का जहां खनन माफियाओं द्वारा जेमर दोहन किया गया है वहीं दूसरी तरफ राजनीतिक संगठनों व समाजिक संगठनों ने अनीतिगत विकास नीतियों के चलते बुन्देलखण्ड के रहवासियों को प्रोजेक्ट की मण्डी में खडा कर दिया है।
बुन्देलखण्ड में अमूमन चल रहे करीब 200 समाजिक संगठन सात जिलों में समाजसेवा के लिए सक्रिय हैं। बताया जाता है कि झांसी के चिट्स फर्म एवं सोसायटीज रजिस्ट्रार कार्यालय में तकरीबन एक दर्जन संस्थाएं प्रतिदिन घूस ले देकर पंजीकृत होती हैं। बुन्देलखण्ड के जनपद बांदा में एक-दो संस्थाओं को अगर छोड़ दिया जाए तो ज्यादातर सरकारी अनुदान को आंकड़ों में तब्दील करने का काम कर रही है। शहर के एक प्रतिष्ठित समाजिक कार्यकर्ता ने अपनी जमात की सच्चाई को बताया कि बुन्देलखण्ड को राजनीतिक पार्टियों से कही अधिक समाजिक संगठनों ने मानवीय संवेदनाओं को छल कर धन कमाया है। उनका कहना है कि वे समाजिक संगठन जिनके संविधान में संस्था पंजीकृत करवाते समय हिन्दी वर्णमाला के सभी मार्मिक शब्द मसलन निरीह, असहाय, निराश्रित, वंचित, अन्त्योदय, सृजन, समर्थन, परमार्थ, सर्वोदय, ग्रामोदय, उत्थान, चेतना, प्रगति, समग्र आदि नाम उछाल मारकर उददेश्यों में विजन के साथ सम्मिलित होते हैं वे धरातल पर क्यों नहीं दिखाई देते ? सामाजिक संगठनों की सक्रियता इस बात से ही निकलकर आती है कि सचिवालय में काम का रहे आई0ए0एस0 की पत्नी से लेकर जनपद स्तर में तैनात प्रशासनिक अधिकारी का कुनबा भी अब समाजिक संगठन, एन0जी0ओ0 चलाने की कतार में सम्मिलित है। बुन्देलखण्ड में तो लड़कियों की शादी पर भी दहेज में एन0जी0ओ0 मिलना बड़ी बात नहीं है। वे सामाजिक संगठन जिनके पास आज से तीन दशक पहले साइकिल से पदयात्रा करने के लायक ही धन हुआ करता था वे आज लाखों की सम्पत्ति, जमीन के मालिक हैं, यहां तक की उनके नौकरो के नाम भी कृषि भूमि है। जनपद चित्रकूट में काम कर रही अखिल भारतीय सेवा संस्थान के संचालक गोपाल भाई को इसकी नजीर कहा जा सकता है। पूर्व ब0स0पा0 सरकार के ग्राम्य विकास मंत्री दददू प्रसाद का वरदहस्त प्राप्त बताया जाता यह सामाजिक संगठन सरकारी योजनाओं का संचालन करने व मनरेगा अनुदान में अग्रणी रहा है। इसी तरह बताया जाता है कि जनपद बांदा के स्वास्थ्य के क्षेत्र में कार्य कर रही महिला सामाजिक कार्यकर्ता प्रभा गुप्ता, मंगल ज्योति महिला एवं बाल उत्थान संस्थान, चित्रकूट जनकल्याण समिति का स्वाधार कार्यक्रम भ्रष्टाचार की मांद में फल फूल रहे हैं। नरैनी क्षेत्र के समाजिक कार्यकर्ता राजा भइया यादव विद्याधाम समिति, जागृति संस्थान के जावेद हाशिमी को अगर छोड दिया जाए तो लगभग सभी संस्थाएं राज्य व केन्द्र सरकार के जनहित अनुदान को स्वहित में बखूबी उपयोग कर रही हैं। जनपद बांदा में ही राष्ट्रीय बाल श्रम परियोजना, जो बाल श्रमिकों के विद्यालयों हेतु चलाई गई थी, में जमकर लूट-खसोट होती है। आर0टी0आई0 से प्राप्त जानकारी से यह सच सामने आने के बाद जिला प्रशासन ने शासन को रिपोर्ट भेजकर बीस सामाजिक संगठनों को काली सूची में डालने की संस्तुति की है। वर्ष 2010 से अस्तित्व में आए जनपद बांदा के मुक्तिधाम समिति को भी एन0जी0ओ0 की धांधली का हिस्सा कहा जा सकता है। संगठन की कार्यकारिणी में स0पा0 के पूर्व वरिष्ठ नेता व स0पा0 सरकार में ही नगर पालिका परिषद बांदा के अध्यक्ष निर्वाचित हुए और वर्तमान में ब0स0पा0 के नेता राजकुमार राज, व्यापार मण्डल के जनप्रतिनिधि सन्तोष गुप्ता जो भा0ज0पा0 से सम्बन्ध रखते हैं, पूर्व प्रधानाचार्य बाबूलाल गुप्ता, पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष शकील अली सहित अन्य कई सम्भ्रान्त नागरिक इस संगठन के सदस्य हैं। मासूम जनता के सामने धमार्थ, हर लवारिस लाश का वारिस मुक्तिधाम जैसे मानवीय शब्दों को उपयोग कर चन्दा वसूल कर नगर पालिका, जिला प्रशासन, विधायक निधि से लाखों रूपयों की दो वर्षो में वसूली करने के आरोप हैं। इस संगठन के द्वारा लाशों के अन्तिम संस्कार हेतु ले जाने वाले वाहन रोज ही जिला परिषद कार्यालय में खड़े रहते नज़र आते हैं। आरोप है कि अपने खास, जाति विशेष की लाशों को ही इस संगठन के बैनर से कब्रिस्तान तक पहुंचाया जाता है। संगठन की गठन की प्रक्रिया में कहीं न कहीं वोट बैंक बढ़ाना भी मूल बात दिखाई देती है।
जनपद महोबा में बुन्देलखण्ड का सर्वाधिक जल संकट है। किसान आत्म हत्याओं व पर्यावरण संरक्षण के मुददो पर ही तकरीबन आधा दर्जन एन0जी0ओ0 यहां सक्रिय हैं। यही हालात जनपद जालौन, झांसी, ललितपुर, हमीरपुर की भी है। गरीबी और कुपोषण की मार झेलते ऐसे हजारों बेसहारा व असहाय लोग हैं जिनके लिए शायद ही सामाजिक संगठनों को समाज सेवा करने की जरूरत महसूस होती हो। नरैनी क्षेत्र बांदा का फतेहगंज इलाका और दस्यु प्रभावित क्षेत्रों में बसर कर रहे कोल, मवेशी, गोड, आदिवासी इस बात की हकीकत है। कमोवेश उनके लिए यह कहना अतिश्योक्ति नही है कि ‘‘ श्वानो को मिलता दूध भात/ भूखे बच्चे अकुलाते हैं/ जर-जर माँ से लिपट-चिपट बीहड़ में रात बिताते है/ यहाँ डकैतों की दहशत में स्कूलों पर ताले हैं/ मिड डे मील से बच्चों को मिलते नहीं निवाले हैं। ‘‘
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