Tuesday, February 28, 2012

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कुष्ठ रोगी को अस्पताल नहीं दे रहा खाना

ठेकेदार और स्वास्थ्य अधिकारियों की मिलीभगत से बाकी रोगियों को जहाँ स्तरहीन खाना मिल रहा है, वहीं बड़ोखर गांव निवासी चंद्रपाल यादव को वह भी खाना अस्पताल प्रशासन  देने को तैयार नहीं है. अस्पताल समिति उन्हें खाना इसलिए नहीं देती क्योंकि वह कुष्ठ रोगी हैं...
आशीष सागर 
बांदा के बड़ोखर गांव निवासी 60 वर्षीय चंद्रपाल यादव जिला अस्पताल में बीते 18 फरवरी  से भर्ती हैं. अस्पताल के बेड नंबर 13 पर पड़े चन्द्रपाल यादव को यहां भर्ती हुए सात दिन से अधिक हो चुके हैं, लेकिन जिला अस्पताल के रोगियों के लिए खाना उपलब्ध कराने वाली संस्था रोगी कल्याण समिति ने उन्हें एक दिन भी खाना नहीं दिया है. चंद्रपाल यादव के तीमारदारों रामसजीवन और हेमंत के मुताबिक, ‘जब वे गांव से खाना लेकर आते हैं, तभी उनके मरीज को खाना नसीब होता है. रोगी कल्याण समिति के लोग कभी उनके मरीज को खाना नहीं देते. 
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गौरतलब है कि जिला अस्पताल में सभी भर्ती होने वाले रोगियों को रोगी कल्याण समिति की ओर से मुफ्त भोजन उपलब्ध कराये जाने का प्रावधान है. रोगियों के मुफ्त भोजन की व्यवस्था सरकार की ओर से की जाती है, जो किसी ठेकेदार के जरिये संचालित होती है.  जिला अस्पताल की आंखों देखी तस्वीर और भी अधिक बदतर तब हो जाती है जब तकरीबन सभी वार्डों के बिस्तरों पर चादर-कंबल नहीं दिखते और मक्खियों से भिनभिनाते कमरे और प्रसव कराने आयी शहरी-ग्रामीण महिलाओं के लिए दवाओं का टोटा दिखाई देता है. चंद्रपाल यादव के परिजन रामसजीवन ने बताया कि छुआछूत की वजह से उनके मरीज चंद्रपाल को अस्पताल की ओर से खाना नहीं दिया जाता.  
ऐसे में सवाल है कि केन्द्र और राज्य सरकार से मिलने वाले करोड़ों रूपये के बजट को कौन सा प्रशासनिक दीमक चट कर जाता है. रोगी कल्याण समिति के रसोइये प्रहलाद ने बताया कि प्रति मरीज की खुराक के मुताबिक खाना बनाया जाता है. मरीज को सुबह और शाम के खाने में आठ रोटी, तीन से चार चम्चे दाल और मौसम के मुताबिक हरी सब्जियां मुहैया कराई जाती हैं. हृदय व आंख रोगियों के लिए समिति की तरफ से खिचड़ी की व्यवस्था शासनादेश के अनुसार की गई है. 
मगर रसोइये से यह पूछने पर कि खाना सभी रोगियों को उपलब्ध क्यों नहीं हो पाता तो वह चुप हो जाता है और कहता है ठेकेदार जानें. ठेकेदार और स्वास्थ्य अधिकारियों की मिलीभगत से बाकी रोगियों के साथ बड़ोखर गांव के चंद्रपाल यादव भी पीडि़त हैं.  अंधविश्वास और प्रशासनिक गड़बड़ी के कारण  चंद्रपाल यादव के परिजन उनकी ठीक तरीके से ईलाज नहीं करा पा रहे हैं .
जिला अस्पताल में भर्ती मरीज सावित्री जो आग से बुरी तरह जली हुई है का कहना है कि अस्पताल में जले हुए मरीजों को भेदभाव की नजर से डाॅक्टर देखते हैं और सफाईकर्मी उन्हें गाहे बगाहे बिस्तर पर शौच कर लेने से जातिसूचक शब्दों से ताना मारते हैं. गावं गुसियारी निवासी गुडि़या की सास तोफा गुडि़या को ईलाज कराने आयी है. तोफा बताती हैं कि यहां अस्पताल में मिड डे मिल की तरह का खाना मिलता है, जिसे खाकर मरीज ठीक होने के बजाय और बीमार पड़ जाता है. 
गौरतलब है कि सूचना के अधिकार के तहत छह माह मुख्य चिकित्सा अधिकारी बांदा से राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन में वर्ष 2007 से 2011 तक के वर्षवार का ब्यौरा मांगने के साथ-साथ रोगी कल्याण समिति में पिछले पांच वर्षों में आये बजट और खर्च किए गये मदों का ब्यौरा, कीटनाशक दवाओं के छिड़काव, अस्पताल में मरीजों के लिए क्रय किए गए चादर, तकिये, कम्बल आदि की विस्तृत जानकारी मांगी गयी थी, लेकिन मुख्य चिकित्सा अधिकारी ने आज तक सूचनाएं उपलब्ध नहीं कराई हैं. 
इस मामले में जब इस संवाददाता ने मुख्य चिकित्सा अधिकारी बांदा से बात करनी चाही तो  उनका मोबाईल स्विच ऑफ़  बता रहा था. जनसूचना अधिकार से किए गये भ्रष्टाचार के खुलासों में तमाम सरकारी योजनाओं की सच्चाई सामने आयी है. 
राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन में विश्व बैंक के पांच हजार करोड़ के किए गए भारी भरकम घोटाले और बसपा के बागी नेता बाबूसिंह कुशवाहा इस घोटाले में सीबीआई जांच की गिरफ्त में हैं. जिला अस्पताल समेत उत्तर प्रदेश के सभी जनपदों में रोगी कल्याण समिति को मिलने वाली निधि की अगर जांच करवाई जाये तो शायद उसमें किए गये घोटाले की राशि राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन से कहीं ज्यादा होगी. 
गौरतलब है कि प्रत्येक जनपद में मरीजों के लिए एक रूपये के पर्चे पर सरकारी डाक्टरों द्वारा देखने की व्यवस्था, दवाओं के वितरण और नियमानुसार एक्सरे फीस लेने के निर्देश हैं. बावजूद इसके जिला अस्पताल के मरीजों को सरकारी डाक्टरों द्वारा व्यक्ति विशेष फर्म, फारमेशी, मेडिकल स्टोर से दवाएं लेने और जांच करवाने के लिए कहा जाता है. डाक्टरों द्वारा लिखित रूप से मरीजों को दी गई पर्चियां इस बात की बानगी हैं. जिला अस्पताल के अमूमन नामचीन डाक्टर अस्पताल की नौकरी कम और सरकारी आवासों में व्यक्तिगत प्रैक्टिस अधिक करते हैं. 
इस कारनामे में जिला अस्पताल की महिला चिकित्सक भी पीछे नहीं हैं. कुछ खास महिला चिकित्सक ऐसी भी हैं जो सरकारी काम  कम सामाजिक गतिविधियों में, जाति विशेष के कार्यक्रमों में अधिक दिखाई देती हैं. सरकारी आदेशों को धता बताकर महिला जांच से सम्बन्धित लाखों के उपकरण उनके सरकारी आवासों में लगे हुए हैं. गांव की निरीह और गरीब मरीजों से मुंह मांगी कीमत उनकी मजबूरी के नाम पर वसूल किए जाते हैं. इसे सरकारी डाक्टरों की दबंगई कहें या फिर मरीजों को जिन्दगी बचाने का रास्ता, लेकिन यहाँ इलाज के हर लाइन में बूंदेलखंड का भूखा और सूखा मरीज खड़ा है.  

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