ये भी तो ' माँ ' बनेगी !
आज इलाहाबाद से वापस हुआ अभी तो बरगढ़ के पास तुलसी एक्सप्रेस में एक चने बेचने वाली गर्भवती महिला को देखा l उसकी अवस्था के मुताबिक प्रसव के दिन करीब ही होंगे l लेकिन फिर भी बिना झिझक, बेपरवाह ,स्वाभिमान से अपने परिवार के लिए जी तोड़ मेहनत और चलती ट्रेन में मिलने वाले दंश को बर्दास्त करने का उसका माद्दा देखकर अहसास हुआ कि अक्सर ग्रामीण इलाकों में सामान्य प्रसव क्यों हो जाते है ! वहां आपरेशन की नौबत क्यों कम आती है बनिस्बत शहरो के l .... जिस अवस्था में वो चने वाली महिला थी अगर हमारे या आपके घर की महिला से एक दिन ये तकलीफ उठाने के लिए मज़बूरी में कहा जाता या वो खुद जाती अथवा परिस्थति वश बेबस होती ऐसा करने को या उससे कम भी तो शायद ये सपने जैसे बात होती .... और उसके बाद जो तनाव मिलता वो यहाँ क्या कहे ये तो विवाहित अनुभव शील लोग जानते होंगे ! आज भी ग्रामीण महिला मिशाल है उन पाश मुहल्लों में रहने वाले माता -पिता से जो बच्चे को लगेज / सूटकेस की तरह छाती से उल्टा चिपकाकर उसका बचपन ही छीन रहे है ! ....अब इसको उस ट्रेन वाली मजबूर गर्भवती महिला की कम जागरूकता या अशिक्षा या पति / परिवार की गुलामी से न आंकना ....आखिर वो भी माँ की संवेदना और पीड़ा से जूझने वाली है ...( तस्वीर मैंने नही ली ) .....माँ ही तो है l
ये भी तो माँ बनेगी …!
मित्रो ... इन्हे सलाम कहने का तर्क ये कदापि नही है कि मै या अन्य इनके इस हाल पर जश्न मनाये ये हमारे लिए शर्म की ही बात है लेकिन बात यहाँ ग्रामीण स्त्री और पाश बहुमंजिला घरो , नवदम्पति के साथ रहने वाली स्त्री के बीच के संतोष की है ....दोनों के आत्मचलन और कार्यशैली ,प्रकृति की है......जहाँ एक गाँव की महिला अपने अथक परिश्रम से गर्भ के दिनों में नार्मल डिलेवरी अधिक देती है वही शहरो में बिना आपरेशन जापा हो ही नही पाता....ये आरामतलबी कहे या श्रम की कहानी मगर सच यही है...मैंने गरीबी के बीच दोनों महिला में अंतर की बात की l.....( तस्वीर उस गर्भवती महिला की नही ली , ये तस्वीर बाँदा के फतेहगंज इलाके के ग्राम गोबरी की आदिवासी महिला की है जो आंगनबाड़ी पंजीरी से अपने पोषण पर निर्भर है )....8.04.2015 @ Allahabad ...आशीष सागर,बाँदा
मित्रो ... इन्हे सलाम कहने का तर्क ये कदापि नही है कि मै या अन्य इनके इस हाल पर जश्न मनाये ये हमारे लिए शर्म की ही बात है लेकिन बात यहाँ ग्रामीण स्त्री और पाश बहुमंजिला घरो , नवदम्पति के साथ रहने वाली स्त्री के बीच के संतोष की है ....दोनों के आत्मचलन और कार्यशैली ,प्रकृति की है......जहाँ एक गाँव की महिला अपने अथक परिश्रम से गर्भ के दिनों में नार्मल डिलेवरी अधिक देती है वही शहरो में बिना आपरेशन जापा हो ही नही पाता....ये आरामतलबी कहे या श्रम की कहानी मगर सच यही है...मैंने गरीबी के बीच दोनों महिला में अंतर की बात की l.....( तस्वीर उस गर्भवती महिला की नही ली , ये तस्वीर बाँदा के फतेहगंज इलाके के ग्राम गोबरी की आदिवासी महिला की है जो आंगनबाड़ी पंजीरी से अपने पोषण पर निर्भर है )....8.04.2015 @ Allahabad ...आशीष सागर,बाँदा
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