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तवा है सुखतवा के बाशिन्दे !
होशंगाबाद जिला भोगोलिक द्रष्टि से दो भागो में बटा हुआ है- एक है सतपुड़ा की
जंगल पट्टी और दूसरा नर्मदा का कछार | सतपुड़ा के जंगल पट्टी वाले इलाकों में मुख्य
रूप से कोरकू और गोंड आदिवासी निवास करते है | इस सतपुड़ा के जंगल,नर्मदा के कछार से
जुडी अन्य नदी तवा,गंजाल,देनवा,मोरान.दूधी,माचकऔर अजनाल आदि है |
तवा नदी दक्छिन में स्थित बैतूल जिले से इस जिले में प्रवेश करती है और
होशंगाबाद के पास बांद्राभान स्थान पर नर्मदा में मिल जाती है | देनवा नदी पंचमढ़ी
के पास से निकलती है और रानीपुर ग्राम के पास तवा में मिलती है | तवा और देनवा के
संगम पर ही तवा बांध बना है |
सतपुड़ा टाइगर रिजर्व –
होशंगाबाद जिले में वन्य प्राणियों के लिए तीन सीमाए है – सतपुड़ा रास्ट्रीय
उद्यान,बोरी अभ्यारण्य और पंचमढ़ी का हिल स्टेशन इनके बीच स्थित है | सतपुड़ा टाइगर
रिजर्व का छेत्रफल करीब 1500 वर्ग किलो मीटर है | इसमे आदिवासियों के 75 ग्राम और
इतने ही बाहरी सीमा में लगे हुए है | इनमे से लगभग अन्दर के 50 गाँवो को हटाने की
योजना है | इसमे सतपुड़ा के 8 गाँव ,बोरी अभ्यारण्य के 17 गाँव है जिसमे कि बोरी
अभ्यारण्य के दो गाँव धाई व बोरी विस्थापित किये जा चुके है |
प्रूफ रेंज –
सतपुड़ा की घाटी में यह ताकू प्रूफ रेंज 1972 के आसपास बना था | यहाँ बमों का
टेस्ट होता है | इससे 26 गाँव उजड़े है | इन लोगो के घर और जमीन छीन लिए गए | साथ ही
एक पूरा परिवेश,संस्कृति,जंगल,फलदार पेड़ और अस्तित्व के कई सपने पीछे छूट गए | इनमे
से कई गाँवो की अब स्म्रतियां ही शेष बची है|
तवा बांध –
यह बांध सत्तर के दशक के प्रारंभ में बना था | यह नर्मदा घाटी का सबसे पहला बड़ा
बांध है | भारत की हर बड़ी योजना की तरह यह परियोजना भी विदेशी सहयोग से बनी है | इस
बांध से विस्थापित लोगो को नाम मात्र का मुआवजा दिया गया | विस्थापितों की
भूमि,मकान,बाग- बगीचे और कुएं – बावड़ी तक को
दफन कर दिया गया | विस्थापितों के
अनुसार उन्हें 18 रूपये से लेकर 150 रूपये तक प्रति एकड़ की दर से भूमि का मुआवजा
मिला था | तवा बांध में 44 गाँव उजड़े है | पहाड़ी इलाके में बांध ने भारी तबाही मचाई
है | आदिवासियों की जमीने डूब गई और उन्हें बांध का लाभ भी नही मिला| पहाड़ी इलाकों
में बहुत गहरा भू – जल होने के कारण यहाँ अन्य तरीको से भी सिचाई नही हो पाती |
यहाँ बतलाते चले कि बोरी अभ्यारण्य के अन्दर पुरानी धाई में सोनभद्रा नदी थी |
कभी वहां पानी इफरात था और आज बूंद – बूंद पानी का मुहताज है | यहाँ 91 घरो के बीच
महज 6 हैण्ड पम्प लगे है जिनमे कि तीन खराब है,दो में पानी की कमी है | इलाके के
तीन कुएं सूखे पड़े है और बिजली कटोती आम बात है |
उल्लेखनीय है की विस्थापितों को बसाने के लिए नई धाई के आसपास करीब 40 हजार पेड़
काटे गए है |
बोरी अभ्यारण्य के अन्दर पुराने गाँव में कोरकू आदिवासियों का जीवन जंगल पर
आधारित था | वे जंगल से अपना जीवकोपार्जन करते थे | वन से उनको तेंदू,आचार,गोंद,फल
,कंद – मूल (ननमाटी,जंगली रतालू ,बेचांदी,कडूमाटी),भमोडी ( कुकुरमुत्ता ) आदि
बहुतायत मिल जाता था | वही तवा बांध के विस्थापित आदिवासियों को लंबी लड़ाई के बाद
दस साल पहले मछली पालन और बेचने का अधिकार मिला था | लेकिन अब तवा जलाशय में मछली
मरने का अनुबंध वर्ष 2006 में खत्म हो चुका है और इसका नवीनीकरण नही हुआ है क्योकि
इस इलाके को रास्ट्रीय उद्यान व अभ्यारण्य में शामिल कर लिया गया है | अब इसमे
वैधानिक रूप में मछली के शिकार पर रोक है | अलबत्ता चोरी का एक सर्किल / नेटवर्क भी
विकसित हुआ है जो गाहे – बगाहे अपनी आजीवका के लिए कभी मालिक रहे सेठ की तर्ज पर
चोर बनकर मछली का शिकार करते है | दूसरी ओर इसी तवा जलाशय में भोपाल से सैर –
सपाटे,जल विहार के लिए एक क्रूज बोट आ चुकी है जहाँ युवा और जवानी में शरोबार
दम्पतियां फूहड़ गीतों पर अपने कुहले मटकाकर मन को खुसगवांर बनाने का मन भंजन करते
है |
कभी तवा मतस्य संघ के संचालक रहे फागराम कहते है कि – क्या इससे शोरगुल से वन्य
जीवो और जलचरो को तकलीफ नहीं होगी ?
तवा बांध के दोनों किनारों पर विथापित परिवारों का बसर होता है | वे डूब की खेती
और मछली पकड़कर अपना जीवन यापन करते है | मध्य प्रदेश के सतपुड़ा अंचल का यह पूरा
इलाका और तवा पट्टी विस्थापित लोगो का ही बन गया है | इसके अलावा सतपुड़ा नेशनल
पार्क,सारणी बिजली घर,कोयला
खदानों,बंगाली कैम्प (बैतूल जिले में )के चलते भी
आदिवासियों को हटाया गया है | हजारो एकड़ जंगल का नाश किया गया | जैव विविधता नष्ट
हुई और वन्य जीवो को इलाकाई जंगलो में भागकर शरण लेनी पड़ी | इस बात को आप यू भी देख
सकते है कि अब पंचमढ़ी में रहने वाले बंदरो को सुखतवा में छोड़ा जा रहा है ताकि सैर
– सपाटो में आये लोगो को दिक्कत न हो | फागराम की माने तो तवा और जबलपुर के पास
नर्मदा पर बने बरगी बांध देश के बड़े बांधो में से एक है | इन बांधो से करीब 150
गाँवो को पूरी तरह उजाड़ देने का खाका सरकार के पास है | बांध बनने से पूरी डंगरबाड़ी
तबाह हो चुकी है | गाँव वासी कहते है कि “ बिजली छोड़ो,हमें चिमनी जलाने के लिए राशन
की दुकानों से मिटटी तेल कभी मिलता है,कभी नही | ” वे पूछते है कि हमारे बच्चे कैसे
पढ़ पायेगे ?
कोरकू आदिवासी का एक पहाड़ी गाँव काजरी जो सतपुड़ा टाइगर रिजर्व के अन्दर है के
शंकरलाल,कोमल,नेपाल सिंह और उजयार सिंह ने बतलाया कि पहले हम दहिया (झूम ) खेती
करते थे | खूब कुटकी पकती थी | रामबुहारी बनाते थे,शहद तोड़ते थे,ढोर (मवेशी) रखते
थे और हमारे बच्चे घी खाते थे | मगर अब वन विभाग ने दहिया पर रोक लगा दी है | ऐसे
में हम आगें जिन्दा कैसे रहेगे ?
सुखतवा में के रहवासी विस्थापन और गरीबी का जो दंश झेल रहे है वो उन्हें,उनके
बच्चो को रह – रह कर सालता है | वे कहते है कि – जब कोई चिड़िया का घोंसला नष्ट होता
है तो उसे नया घोंसला तैयार करने में कितनी मुश्किल होती है | फिर हमारा तो पुराना
घर था,जमीन थी,पेड़ो की घनी छाँव थी और उनमे बस्ता था ठंडा पर्यावरण | हमें वहां से
हटा दिया गया,न कोई मुआवजा मिला,न जमीन | आज भी 30 साल बाद जब पुराने घरो की याद
आती है तो सिहर उठते है जैसे अभी कल की ही बात हो |
आदिवासी लोगो के साथ विस्थापन और अभ्यारण्य के नाम पर हरे – भरे जंगलो को उजाड़ने
का खेल जो देश की सरकारे पिछले कई वर्षो से खेल रही है उसने न सिर्फ लोकतान्त्रिक
व्यवस्था के खिलाफ उनके मन में अवसाद और तृष्णा भरी है बल्कि उनको देश
द्रोही,नक्सली भी बनाया है | नदियों पर बड़े बांध बनाकर केंद्र और राज्य की सरकार न
सिर्फ तबाही का मास्टर प्लान बना रही है वरन एक नदी सभ्यता के पलायन की सुनयोजित
साजिश भी रची जा रही है |
By-आशीष सागर
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