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इधर सामाजिक कार्यकर्ता और तालाबों से जुड़े मुद्दों पर काम कर रहे लोगों का कहना है कि आधे-अधूरे जल प्रबंधन कार्य योजना को नियोजित करने से बेहतर है कि प्रशासनिक स्तर पर मनरेगा, जल निगम द्वारा तालाबों के संरक्षण में जो कार्य अब तक किए गए हैं उनका समीक्षात्मक मूल्यांकन करते हुए विचार किया जाए कि क्या वास्तव में मनरेगा योजना से बनाए गए ग्रामीण स्तर के तालाब बुंदेलखंड के किसानों व आम जनता को पेयजल और सिंचाई का जल सुलभ कराने में सहायक हुए हैं या नहीं। कहीं न कहीं तकनीकी अभाव, कार्य योजना का सही तरीके से अनुश्रवण/ मानीटरिंग न करना भी इन तालाबों की उपयोगिता पर प्रश्न चिन्ह खड़ा करता है।
बंुदेलखंड में पेयजल समस्या के निदान के लिए समस्या के मूल में जाकर उसका स्थायी समाधान के उपाय किए जाए और उसके लिए कार्य योजना जमींनी स्तर पर तैयार की जाए न कि समस्या का प्राथमिक उपचार करके उसे भविष्य में पुनः उत्पन्न करने हेतु आधे-अधूरे किए गए कार्यो से छोड़ दिया जाए।
पानी के परिदृष्य पर एक नजर - बुंदेलखंड क्षेत्र में देश की औसत वर्षा से तीन चैथाई वर्षा ही होती है। अकेले बांदा जनपद में ही आबादी के मुताबिक प्रति व्यक्ति 40 एमएलडी पानी की आवश्यकता है। वर्षा का 65 प्रतिशत जल आम तौर पर बहकर व्यर्थ चला जाता है। निरंतर भूजल स्तर नीचे जाने से जल संचयन, तालाबों की दुर्दशा के परिणाम स्वरूप अगले बीस वर्षो में यहां के 80 प्रतिशत परंपरागत जल स्रोत्र सूख जाएंगे ऐसी संभावनाएं हैं।
बांदा सहित अन्य जिलों में 224627 हेक्टेयर मीटर है। इसमें से 102952 हेक्टेयर मीटर जल दोहन किया जा रहा है। शहरी घरों में स्थापित निजी हैंडपंप की गहराई एक दशक में भूमिगत जल निकालने के लिए अब 110-180 फीट होना आम बात है जो पूर्व में 40 से 60 फीट होती थी। कम वर्षा वाले साल में हालात और बिगड़ जाते हैं। भूभाग की इस प्राकृतिक विडंबना को देखते हुए ही चंदेल काल, 900 से 1200 ईसवीं के दौरान यहां बडे़ पैमाने पर तालाबों का निर्माण कराया गया। बानगी के रूप में तालाबों की अमूल्य निधि को चित्रकूट मंडल के रसिन गांव से समझा जा सकता है जहां पर कभी 80 कुएं और 84 तालाब हुआ करते थे, लेकिन आज मनुष्य के अदूरदर्शी कार्यो से यह कुएं और तालाब बदहाल हैं।
यदि छोटे-बडे़ सभी तालाबों और जलाशयों को जोड़ा जाए तो सात जिलों में 20,000 से अधिक तालाब हैं। 24 फरवरी 2006 को टी ़जार्ज जोसेफ सदस्य राजस्व परिषद उत्तर प्रदेश द्वारा प्रेषित समस्त जिलाधिकारियों को कार्यालय पत्र में माननीय उच्च न्यायालय के आदेश 25 फरवरी 2005 के तत्क्रम में जारी शासनादेश दिनांक 29 नवंबर 2005 के अनुसार बांदा में तालाबों की संख्या 4572 और क्षेत्रफल 1549.223 हे. आंकी गई थी जबकि वर्तमान में यह संख्या 4540 और उनमें 1537.122 हे. क्षेत्रफल है। खतौनी में आई कमी की संख्या 32 तथा क्षेत्रफल 12.101 हे. अंकित की गई है जिसमें कि अवैध कब्जों की संख्या 6 व क्षेत्रफल 3.342 हे. दर्शाया गया है।
शासनादेश 29 नवंबर 2005 राजस्व परिषद पत्र संख्या 7635/जी0-5-9डी/2005 दिनांक 20 दिसंबर 2005 का संदर्भ देकर प्रदेश के प्रत्येक ग्राम के वन, तालाब , झीलों , कुओं वाटर रिजवायर, जल प्रणाली एवं नदियों के तल आदि की भूमि के संदर्भ में निहित होने के उल्लेख 1 जुलाई 1952 के राजस्व अभिलेख के आधार पर जांच करने तथा हिंचलाल तिवारी बनाम कमलादेवी के बाद माननीय उच्चतम न्यायालय के आदेश 25 फरवरी 2005 के क्रम में शासन तथा परिषद द्वारा स्थलीय सत्यापन के लिए तहसील स्तर पर कमेटी गठन के निर्देश दिए गए थे। इसके अलावा उच्च न्यायालय इलाहाबाद के जनहित याचिका में पारित आदेश प्रेम सिंह बनाम यूपी स्टेट याचिका संख्या 63380/2012 में भी यह स्पष्ट रूप से लिखा गया है कि ग्राम सभाओं की भूमि पर तालाब/पोखर/चारागाह एवं कब्रिस्तान पर अवैध कब्जा/अतिक्रमण को हटाने के संबंध में प्रमुख सचिव, राजस्व विभाग उ.प्र. शासन की अध्यक्षता में बहुसदस्यीय समिति का गठन किया गया है जिला स्तर पर गठित इस समिति के अध्यक्ष प्रत्येक जिले के जिलाधिकारी नामित हैं एवं जिला, मंडल के समस्त ग्राम सभाओं के अवैध कब्जा और अतिक्रमण की शिकायतें प्राप्त कर समयबद्ध रूप से जांच की कार्यवाही सुनिश्चित कर की गई कार्यवाही की प्रगति आख्या मंडलायुक्त के माध्यम से राजस्व परिषद को पाक्षिक रूप से उपलब्ध कराना भी इंगित किया गया है। बावजूद इसके ज्यादातर जिलों में तालाबों का हाल जिला प्रशासन की नाक के तले बद से बदतर स्थिति में है।
ये घटनाक्रम कुछ यूं ही है जैसे कि लोकशाही में न्यायालय के हस्तक्षेप से विधिक आदेश और की गई टिप्पणियां महज सरकारी फाइलों में नियमावली/ सरकुर्लर तक ही सीमित रह गई हों। बुंदेलखंड में छोटी नदियों और नालों की अच्छी खासी संख्या रही है। मौजूदा जलतंत्र से यह स्पष्ट होता है कि पिछले 1000 साल के दर्ज इतिहास में बुंदेलखंड ने इन नदी नालों के पानी को तालाब में जमा करने का हुनर कामयाबी से दुनिया को दिखाया। इसके साथ ही बरसात के पानी को सीधे भी तालाबों में जमा किया गया। जिलों के गजेटियर्स में दर्ज इतिहास के मुताबिक यह तालाब पीने, स्नान, सिंचाई, भूजल स्तर को बेहतर बनाए रखने के अलग-अलग मान्यताओं के परिपे्रक्ष्य से बनाए गए थे। इन तालाबों का कैचमेंट ऐरिया, डूब क्षेत्र व कमांड ऐरिया इतना व्यापक था कि वर्ष भर पेयजल आम आदमी को उपलब्ध हो जाता था।
बुंदेलों में पानी को संजोने का हुनर ऐसा था कि कई तालाब सिर्फ सुंदरता और गर्मी के दिनों में शहर का तापमान नियंत्रित करने के लिए बनाए गए थे। लेकिन आज बुंदेलखंड की राष्टृीय पहचान जलहीन इलाके की बन गई है। इसका सीधा मतलब है कि पानी संचयन के नए तरीके कारगर ढंग से नहीं अपनाए गए और पुराने तरीकों को नष्ट होने दिया गया। इस विसंगति को दूर करना पेय जल उपलब्धता के रास्ते की पहली जरुरत है।
बुंदेलखंड क्षेत्र के सभी सात जिलों बांदा, चित्रकूट, महोबा, हमीरपुर, झांसी, ललितपुर, और जालौन में एक साथ अमल में लाए जाने योग्य सुझाव-
1- संबंधित नगर निकाय से उसके क्षेत्र में आने वाले प्रमुख तालाबों और झीलों की सूची मांगी जाए। इस सूची में यह जानकारी शामिल रहे कि किन जलाशयों पर अतिक्रमण या अवैध कब्जा किया गया है या उनके तटबंध जान बूझकर तोडे गए हैं। जलाशयों को पानी उपलब्ध कराने वाले नालों को किसी तरह से अवरूद्ध तो नहीं किया गया है। जलाशयों की जलसंग्रहण क्षमता में पिछले 20 साल में क्या कमी आई है और उसे पुराने स्तर पर ले जाने के लिए किस तरह की पहल की जरुरत है। तालाबों को जीवित करने से शहर के भूजल स्तर को गिरने से बचाया जा सकता है, साथ ही कस्बों की प्राकृतिक सुंदरता भी बची रहेगी।
2- क्षेत्र के ज्यादातर शहरों में वहां से गुजरने वाली नदियों या स्थानीय तालाबों में शहरी अपशिष्ट ले जाने वाले नालों का पानी सीधे गिर रहा है। इस तरह के नालों पर वाटर टीटमेंट प्लांट बनाने की पहल शुरू की जाए। ऐसी पहल किए बिना, स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराना तकरीबन नामुमकिन है।
3- शहर में बनने वाले किसी भी नए आवासीय, वाणिज्यिक, औद्योगिक, सरकारी या अन्य किसी भी तरह के भवन में वाटर रीचार्ज सुविधा लगाना अनिवार्य किया जाए। इसके साथ ही नई काॅलोनियों में घरों की संख्या के अनुपात में सामूहिक वाटर रिचार्ज सुविधा लगाना अनिवार्य किया जाए। ऐसा करने से भूजल स्तर को मौजूदा स्तर पर या इससे बेहतर स्तर तक लाने में मदद मिलेगी।
4- ज्यादातर कस्बों में पाइप के जरिए पानी की सप्लाई या तो किसी बांध या फिर बडे तालाब से पानी उठाकर की जा रही है। बुंदेलखंड के उत्तर प्रदेश वाले क्षेत्र में कई ऐसे बांध हैं जहां पूरा पानी न भरने का एक कारण यह भी है कि मध्य प्रदेश के इलाके में नदियों पर बंधिया डाल दी गई हैं। इसके अलावा भी वर्षा और गैर वर्षा वाले मौसम में पानी का सही ढंग से बंटवारा करने की व्यवस्था नहीं है। ऐसे में उप्र और मध्य प्रदेश के सभी 13 जिलों को मिलाकर बुंदेलखंड जल नियामक प्राधिकरण बनाया जाए ताकि विवादों का निराकरण और जल का तर्कसंगत बंटवारा हो सके। ललितपुर जिला इसकी सबसे बडी मिसाल है जहां सात प्रमुख बांध होने के बावजूद गर्मी के मौसम में जिला मुख्यालय में पीने का पानी उपलब्ध नहीं हो पाता।
5- प्राप्त शिकायतों के आधार पर पीने के पानी की पाइप लाइन की मौजूदा हालत की जांच करा ली जाए और जरुरत के मुताबिक इसकी मरम्मत या नई पाइप लाइन डाली जाए। गर्मी के मौसम में मउरानीपुर शहर में पाइप लाइन से पीले रंग का पानी आने की शिकायत आम है। यह काम बडे खर्च का जरुर लग सकता है लेकिन गंदे पानी से होने वाली बीमारियों के इलाज पर हर साल खर्च होने वाली रकम के सामने यह कुछ भी नहीं है।
6- बुंदेलखंड में पूर्व में भी वाटर हारवेस्टिंग और वाटर शेड मैनेजमेंट के कार्य किए गए हैं। लेकिन इस बारे में कोई रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं हुई कि इन प्रयासों की सफलता की दर क्या रही। एक अध्ययन कराके इनकी सफलता और टिकाउपन की रिपोर्ट तैयार की जाए, पिछले अनुभवों के परिणाम से भविष्य में शुरु की जाने वाली जल संचयन योजनाओं को प्रभावी बनाने में मदद मिलेगी। इस कार्य के लिए जल निगम सिंचाई विभाग और मृदा संरक्षण विभाग में समन्वय की आवश्यकता होगी।
7- बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के साथ ही बुंदेलखंड के तालाबों के जीवंत दस्तावेजीकरण की भी सख्त आवश्यकता है। 1000 साल पुराने ये तालाब विश्व धरोहर होने के नाते अपने बारे में एक प्रामाणिक ग्रंथ के हकदार तो हैं ही, जो इन पर आज तक नहीं लिखा गया। ऐसी शोध परियोजना शुरु की जानी चाहिए जिसमें प्रमुख तालाबों जलाशयों का इतिहास, उनमें इस्तेमाल की गई तकनीक, उनके रखरखाव के तरीके, समाज और सभ्यता के विकास में इन जलाशयों की भूमिका का वैज्ञानिक तरीके से अध्ययन किया जा सके। यहां बताना प्रासंगिक होगा कि चंदेल कालीन तालाबों की इंजीनियरिंग तमिलनाडु के प्राचीन तालाबों से मेल खाती है और श्रंखलाबद्ध तालाबों राजस्थान के उदयपुर और चित्तौड के श्रंखलाबद्ध झीलों से समानता है। इस तरह की पुस्तक विश्व पटल पर बुंदेलखंड की नई छवि पेश करने में सहायक होगी। यदि शासन चाहे और आवश्यक वित्तीय मदद मुहैया कराए तो विषेशज्ञ दल के सदस्यों को इस परियोजना का हिस्सा बनने में बहुत प्रसन्नता होगी।
जिलेवार तुरंत अमल में लाई जाने योग्य परियोजनाएं -
बांदा - बांदा सदर में ही 11 में से छह तालाबों का अतिक्रमण तुरंत हटवाया जाए और इनका जीर्णोद्धार हो। इन जल इकाईयों में क्रमश नबाब टैंक जो नबाब अली बहादुर ने बनवाया था, वार्ड नंबर 11 में स्थित छाबी तालाब सेठ छविलाल अग्रवाल द्वारा सन 1960 के आसपास बनवाया था इसका रकबा करीब 7 दशक पूर्व 50 बीघा अर्थात 8.90 हेक्टेयर करीब 22 एकड़ क्षेत्रफल में महज अतिक्रमण के कारण 22 बीघा ही यह तालाब शेष बचा है। प्रागी तालाब सेठ प्रागीदास गहोई ने बनवाया, कंधरदास तालाब को स्थानीय कंधरदास व्यक्ति ने बनवाया, साहब तालाब - कंपनीबाग ब्रिटिश कालीन निर्माणकार्य है। इन जल इकाईयों के संरक्षण, संुदरीकरण की महती आवश्यकता है। इनके अतिरिक्त डिग्गी तालाब निकट रेलवे स्टेशन बांदा, लाल डिग्गी तालाब, परशुराम तालाब, हरदौल तलैया, बाबूराव गोरे तालाब, सेढू तलैया जल इकाईयां पूरी तरह से अवैध अतिक्रमण, रिहायसी मकानों की चपेट में मिट रहे हैं।
चित्रकूट - पवित्र मंदाकिनी नदी में गिर रहे सभी नालों पर ट्रीटमेंट प्लांट बनाए जाएं। चित्रकूट शहर आधा उत्तर प्रदेश और आधा मध्य प्रदेश में है। मध्य प्रदेश के इलाके में नदी का पानी आज भी पीने लायक है जबकि उप्र में इसकी गुणवत्ता गिरी है। इसका प्रमुख कारण मंदाकिनी को आरोग्य धाम से लेकर रामघाट तक जगह-जगह होटलों, दुकानदारों, समाजसेवियों ने निजी स्वार्थ हित बांध रखा है। नदी को जीवित करना ऐतिहासिक काम साबित होगा क्योंकि यह धार्मिक रुप से अति महत्वपूर्ण है। वाल्मीकि रामायण को आधार मानें तो भगवान राम 12 साल चित्रकूट में ही रहे। कर्वी-चित्रकूट नगर के प्रमुख तालाबों में 300 वर्ष पूर्व बनवाए गए विनायकराव पेशवा का गणेश बाग जो पुरातत्व के संरक्षण में है, गोल तालाब, दुर्गा तालाब, कोठी तालाब अतिक्रमण की मार झेल रहे हैं जिन्हें बचाया जाना नितांत आवश्यक है।
महोबा- मदन सागर:- जल संचय क्षेत्र 95 मिलियन घन फीट, क्षेत्रफल 2.3 वर्गमील और इसका क्षेत्रफल हेक्टेयर, नहरों की संख्या 2 है।
कीरत सागर:- जल संचय क्षेत्र 56 मिलियन घन फीट, तालाब का क्षेत्रफल 1.5 वर्गमील और इसका क्षेत्रफल 95 हेक्टेयर, नहरों की संख्या 2 है।
दशरापुर जलाशय:- जल संचय क्षेत्र 66 मिलियन घन फीट, तालाब का क्षेत्रफल 7.5 वर्गमील और इसका क्षेत्रफल 297.80 हेक्टेयर, नहरों की संख्या 3 है।
कल्याण सागर:- जल संचय क्षेत्र 18 मिलियन घन फीट, तालाब का क्षेत्रफल 1.4 वर्गमील और इसका क्षेत्रफल 150 हेक्टेयर, नहरों की संख्या 2 है।
बीजानगर जलाशय:- जल संचय क्षेत्र 246 मिलियन घन फीट, तालाब का क्षेत्रफल 3.7 वर्गमील और इसका क्षेत्रफल 233 हेक्टेयर, नहरों की संख्या 3 है।
रैपुरा जलाशय:- जल संचय क्षेत्र 254 मिलियन घन फीट, तालाब का क्षेत्रफल 10.5 वर्गमील और इसका क्षेत्रफल 298 हेक्टेयर, नहरों की संख्या 3 है।
बेलाताल:- जल संचय क्षेत्र 739 मिलियन घन फीट, तालाब का क्षेत्रफल 30.07 वर्गमील और इसका क्षेत्रफल 926 हेक्टेयर, नहरों की संख्या 18 है।
कुल पहाड़ जलाशय:- जल संचय क्षेत्र 98 मिलियन घन फीट, तालाब का क्षेत्रफल 3.6 वर्गमील और इसका क्षेत्रफल 256 हेक्टेयर, नहरों की संख्या 2 है।
कमालपुरा जलाशय:- जल संचय क्षेत्र 177 मिलियन घन फीट, तालाब का क्षेत्रफल 6.7 वर्गमील और इसका क्षेत्रफल 205 हेक्टेयर, नहरों की संख्या 2 है।
रहिल्य सागर:- जल संचय क्षेत्र 21 मिलियन घन फीट, तालाब का क्षेत्रफल 2.4 वर्गमील और इसका क्षेत्रफल 150 हेक्टेयर, नहरों की संख्या 3 है। इन बड़े जलाशयों के अतिरिक्त महोबा में टीकामउ, सलारपुर जैसे बड़े जलाशय अपने अस्तित्व का संघर्ष कर रहे हैं।
हमीरपुर:- हमीरपुर शहर में सर्वाधिक तालाब राठ तहसील के अर्तगत हैं। अन्य जिलों तरह यहां भी प्राचीन तालाबों में शहरी अतिक्रमण ने तालाबों से सुलभ होने वाली पेयजल व्यवस्था को पूरी तरह ध्वस्त कर रखा है। उदारणार्थ राठ तहसील के सागर तालाब का कुल क्षेत्रफल लगभग 3 बीघा के आसपास है। इस तालाब के क्षेत्र में बनाए गए आवास का सीवर युक्त गंदा पानी सीधे सागर तालाब में प्रवाहित किया जाता है जिसने इस तालाब के स्वच्छता एवं रख-रखाव के अस्तित्व पर संकट खड़ा कर दिया है। इस जैसे राठ तहसील के अन्य तालाबों को भी बचाए जाने की आवश्यकता है।
झांसी:- झांसी शहर में लक्ष्मी तालाब का पुनुरुद्धार कराया जाए। मउरानीपुर में सुखनई नदी और बाजपेयी तालाब का पुनुरुद्धार हो।
ल्लितपुर: - ललितपुर शहर में सुमेरा तालाब का जीणोद्धार और सुंदरीकरण किया जाए। तालबेहट के बडे तालाब का सुंदरीकरण किया जाए।
मऊरानीपुर:-
1- मऊरानीपुर, झांसी में शहर के बीच से बहने वाली सुखनई नदी को पुनर्जीवित करना, घाटों का निर्माण कराना और सुंदरीकरण करना:
अ- नदी के समांतर सीवेज पाइप लाइन का निर्माण करना ताकि शहर का गंदा पानी नदी में ना गिर सके।
ब- शहर से नदी में गिरने वाले नालों पर सीवेज ट्ीटमेंट प्लांट बनाए जाएं ताकि गंदा पानी नदी में न गिरे।
स- नदी पर चार जगह सीढ़ीदार घाटों का निर्माण कराया जाए ताकि जब नदी साफ हो चुके तो इसका सार्वजनिक उपयोग हो सके।
द- इतने प्रयासों के बाद स्वच्छ नदी के कुछ हिस्सों को पिकनिक स्थल की तरह विकसित किया जा सकेगा जहां नौकाबिहार और आप-पास हरियाली स्थापित की जा सकेगी।
इस संबंध में मऊरानीपुर नगर पालिका ने पूर्व में भी प्रस्ताव तैयार कर शाषन को भेजे हैं, उनका अवलोकन किया जा सकता है।
2 - मऊरानीपुर शहर में प्राचीन बाजपेयी तालाब स्थित है। इस तालाब का आर्किटेक्चर इस तरह डिजाइन किया गया था कि इससे एक छोटी नहर सी निकाली गई। इसका पानी कई जगह साफ होता है और यहां इस तरह की घास उगी है जो पानी को साफ करने में सहायक होती है। इस छोटी नहर पर आगे हांथा, एक तरह का पुराना स्वीमिंग पूल बना है। कोई 15 साल पहले तक यह जीवंत और सक्रिय जल संरचना थी जो अब तबाह हो चुकी है। ऐसे में तालाब का गहरीकरण, तलबंध का निर्माण और अतिक्रमण हटाकर तालाब को बचाया जा सकता है। साथ ही हांथा के वाटर चैनल के बुनियादी ढांचा को दुरुस्त कर इसे फिर से वह तरण ताल बनाया जा सकता है, जहां बच्चे वैसे ही तैर सकें जैसे उनके पिताजी की पीढी के लोग अपने बचपन में तैरते थे।
आशीष सागर दीक्षित (लेखक सदस्य विशेषज्ञ समिति, बुंदेलखंड जल पैकेज, बुंदेलखंड में सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर पिछले एक दशक से सक्रिय है, सूचना के अधिकार के क़ानून के प्रयोग व् प्रसार में विशेष योगदान, जल, जंगल जमीन के महत्त्व को उजागर करते इनके तमाम लेख प्रकाशित होते रहते है, बाँदा में निवास, इनसे ashishdixit01@gmail.com पर संपर्क कर सकते है )
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जहां नदियाँ काली हो गयी हैं...
योजनाओं के नाम पर छला गया बुंदेलखंड
बुंदेलखंड से आशीष सागर की रिपोर्ट
बुंदेलखंड में गहराते जल संकट के कारण और निवारण का समाधान ढूंढने को प्रयासरत वर्तमान व पिछली सरकार वैसे तो काफी माथापच्ची करती रहीं हैं, लेकिन सरकारी तंत्र के द्वारा किए गए प्रयास कभी पैकेज तो कभी आपदा कोष तक ही सिमट कर रह गए हैं। हर बार बुंदेलखंड योजनाओं के नाम पर छला गया और उसके हिस्से आया तो बस ऊपर से नीचे तक योजना में बेतहाशा सड़ाध मारता भ्रष्टाचार।
हाल ही में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने 5 अप्रैल 2013 को नगर विकास मंत्री आजम खान, सिंचाई एवं लोक निर्माण विभाग मंत्री शिवपाल सिंह यादव, मुख्य सचिव जावेद उस्मानी और बुंदेलखंड पेयजल एक्पर्ट कमेटी के 6 सदस्यों की उपस्थिति में बुंदेलखंड जल पैकेज के नाम पर 1755 करोड़ रुपए पेयजल समस्या के समाधान करने के लिए दिए जाने की घोषणा की थी। उन्होंने सातों जनपदों के अधिकारियों से दूरगामी और तात्कालिक निदान वाली ऐसी योजनाएं बनाने के लिए निदेर्शित किया था जिससे कि परंपरागत पेयजल स्रोत्रों को बहाल किया जा सके। इस कड़ी में झांसी के वेतवा नदी बैराज पर 500 करोड़, बुंदेलखंड के नगरी क्षेत्रों के पेयजल समस्या पर 1080 करोड़ और बांदा, झांसी, महोबा सहित तीन जिलों के 16 तालाबों के पुनर्निर्माण के लिए 105 करोड़ रुपए खर्च किए जाने की योजना को कागजी रूप में अमलीजामा पहनाना था।
बांदा की पेयजल समस्या को हल करने के लिए बाघेन नदी पर 50 करोड़ की लागत से वियर बनाने के अतिरिक्त छाबी तालाब के लिए 54 लाख, महोबा के कीरत सागर के लिए 24 करोड़, रैपुरा बांध के लिए 58 करोड़, उरवारा तालाब के लिए 30 करोड़, कुल पहाड़ के लिए 20 करोड़ की कार्ययोजना जल संस्थान द्वारा प्रस्तुत की गई थी। लेकिन मई माह में मुर्दो को भी गर्म कर देने वाली तपिश में हालात यह हैं कि सात जिलों की बरसाती नदियां सूखने की कगार पर हैं। इस बार केन प्रदूषण के चलते पहली बार काली पड़ गई है। तकरीबन अधिकतर तालाबों, नहरों में धूल उड़ने लगी है पर मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश के किए गए 1755 करोड़ के वादे अभी तक धरातल पर नहीं उतर पाए हैं। बानगी के लिए जिलाधिकारी बांदा जीएस नवीन कुमार के भागीरथ प्रयास से ग्राम पंचायत दुर्गापुर का आदर्श तालाब, सदर तहसील बांदा में प्राचीन नवाब टैंक तालाब के समीप नवीन सरोबर, छाबी तालाब और बाबू साहब तालाब में जोर-जुगाड़ से शुरू किए गए सफाई और खुदाई कार्य भी बजट के अभाव में ठंडे बस्ते में चले गए हैं। उनका कहना है कि शासन से अभी तक जल पैकेज के धनराशि का आवंटन नहीं किया गया है। आखिर कब तक नगर पालिका और दूसरे विभागों से लगाई गई जेसीबी मशीने तालाबों की खुदाई का कार्य कर सकती हैं।
बुंदेलखंड से आशीष सागर की रिपोर्ट
बुंदेलखंड में गहराते जल संकट के कारण और निवारण का समाधान ढूंढने को प्रयासरत वर्तमान व पिछली सरकार वैसे तो काफी माथापच्ची करती रहीं हैं, लेकिन सरकारी तंत्र के द्वारा किए गए प्रयास कभी पैकेज तो कभी आपदा कोष तक ही सिमट कर रह गए हैं। हर बार बुंदेलखंड योजनाओं के नाम पर छला गया और उसके हिस्से आया तो बस ऊपर से नीचे तक योजना में बेतहाशा सड़ाध मारता भ्रष्टाचार।
हाल ही में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने 5 अप्रैल 2013 को नगर विकास मंत्री आजम खान, सिंचाई एवं लोक निर्माण विभाग मंत्री शिवपाल सिंह यादव, मुख्य सचिव जावेद उस्मानी और बुंदेलखंड पेयजल एक्पर्ट कमेटी के 6 सदस्यों की उपस्थिति में बुंदेलखंड जल पैकेज के नाम पर 1755 करोड़ रुपए पेयजल समस्या के समाधान करने के लिए दिए जाने की घोषणा की थी। उन्होंने सातों जनपदों के अधिकारियों से दूरगामी और तात्कालिक निदान वाली ऐसी योजनाएं बनाने के लिए निदेर्शित किया था जिससे कि परंपरागत पेयजल स्रोत्रों को बहाल किया जा सके। इस कड़ी में झांसी के वेतवा नदी बैराज पर 500 करोड़, बुंदेलखंड के नगरी क्षेत्रों के पेयजल समस्या पर 1080 करोड़ और बांदा, झांसी, महोबा सहित तीन जिलों के 16 तालाबों के पुनर्निर्माण के लिए 105 करोड़ रुपए खर्च किए जाने की योजना को कागजी रूप में अमलीजामा पहनाना था।
बांदा की पेयजल समस्या को हल करने के लिए बाघेन नदी पर 50 करोड़ की लागत से वियर बनाने के अतिरिक्त छाबी तालाब के लिए 54 लाख, महोबा के कीरत सागर के लिए 24 करोड़, रैपुरा बांध के लिए 58 करोड़, उरवारा तालाब के लिए 30 करोड़, कुल पहाड़ के लिए 20 करोड़ की कार्ययोजना जल संस्थान द्वारा प्रस्तुत की गई थी। लेकिन मई माह में मुर्दो को भी गर्म कर देने वाली तपिश में हालात यह हैं कि सात जिलों की बरसाती नदियां सूखने की कगार पर हैं। इस बार केन प्रदूषण के चलते पहली बार काली पड़ गई है। तकरीबन अधिकतर तालाबों, नहरों में धूल उड़ने लगी है पर मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश के किए गए 1755 करोड़ के वादे अभी तक धरातल पर नहीं उतर पाए हैं। बानगी के लिए जिलाधिकारी बांदा जीएस नवीन कुमार के भागीरथ प्रयास से ग्राम पंचायत दुर्गापुर का आदर्श तालाब, सदर तहसील बांदा में प्राचीन नवाब टैंक तालाब के समीप नवीन सरोबर, छाबी तालाब और बाबू साहब तालाब में जोर-जुगाड़ से शुरू किए गए सफाई और खुदाई कार्य भी बजट के अभाव में ठंडे बस्ते में चले गए हैं। उनका कहना है कि शासन से अभी तक जल पैकेज के धनराशि का आवंटन नहीं किया गया है। आखिर कब तक नगर पालिका और दूसरे विभागों से लगाई गई जेसीबी मशीने तालाबों की खुदाई का कार्य कर सकती हैं।
इधर सामाजिक कार्यकर्ता और तालाबों से जुड़े मुद्दों पर काम कर रहे लोगों का कहना है कि आधे-अधूरे जल प्रबंधन कार्य योजना को नियोजित करने से बेहतर है कि प्रशासनिक स्तर पर मनरेगा, जल निगम द्वारा तालाबों के संरक्षण में जो कार्य अब तक किए गए हैं उनका समीक्षात्मक मूल्यांकन करते हुए विचार किया जाए कि क्या वास्तव में मनरेगा योजना से बनाए गए ग्रामीण स्तर के तालाब बुंदेलखंड के किसानों व आम जनता को पेयजल और सिंचाई का जल सुलभ कराने में सहायक हुए हैं या नहीं। कहीं न कहीं तकनीकी अभाव, कार्य योजना का सही तरीके से अनुश्रवण/ मानीटरिंग न करना भी इन तालाबों की उपयोगिता पर प्रश्न चिन्ह खड़ा करता है।
बंुदेलखंड में पेयजल समस्या के निदान के लिए समस्या के मूल में जाकर उसका स्थायी समाधान के उपाय किए जाए और उसके लिए कार्य योजना जमींनी स्तर पर तैयार की जाए न कि समस्या का प्राथमिक उपचार करके उसे भविष्य में पुनः उत्पन्न करने हेतु आधे-अधूरे किए गए कार्यो से छोड़ दिया जाए।
पानी के परिदृष्य पर एक नजर - बुंदेलखंड क्षेत्र में देश की औसत वर्षा से तीन चैथाई वर्षा ही होती है। अकेले बांदा जनपद में ही आबादी के मुताबिक प्रति व्यक्ति 40 एमएलडी पानी की आवश्यकता है। वर्षा का 65 प्रतिशत जल आम तौर पर बहकर व्यर्थ चला जाता है। निरंतर भूजल स्तर नीचे जाने से जल संचयन, तालाबों की दुर्दशा के परिणाम स्वरूप अगले बीस वर्षो में यहां के 80 प्रतिशत परंपरागत जल स्रोत्र सूख जाएंगे ऐसी संभावनाएं हैं।
बांदा सहित अन्य जिलों में 224627 हेक्टेयर मीटर है। इसमें से 102952 हेक्टेयर मीटर जल दोहन किया जा रहा है। शहरी घरों में स्थापित निजी हैंडपंप की गहराई एक दशक में भूमिगत जल निकालने के लिए अब 110-180 फीट होना आम बात है जो पूर्व में 40 से 60 फीट होती थी। कम वर्षा वाले साल में हालात और बिगड़ जाते हैं। भूभाग की इस प्राकृतिक विडंबना को देखते हुए ही चंदेल काल, 900 से 1200 ईसवीं के दौरान यहां बडे़ पैमाने पर तालाबों का निर्माण कराया गया। बानगी के रूप में तालाबों की अमूल्य निधि को चित्रकूट मंडल के रसिन गांव से समझा जा सकता है जहां पर कभी 80 कुएं और 84 तालाब हुआ करते थे, लेकिन आज मनुष्य के अदूरदर्शी कार्यो से यह कुएं और तालाब बदहाल हैं।
यदि छोटे-बडे़ सभी तालाबों और जलाशयों को जोड़ा जाए तो सात जिलों में 20,000 से अधिक तालाब हैं। 24 फरवरी 2006 को टी ़जार्ज जोसेफ सदस्य राजस्व परिषद उत्तर प्रदेश द्वारा प्रेषित समस्त जिलाधिकारियों को कार्यालय पत्र में माननीय उच्च न्यायालय के आदेश 25 फरवरी 2005 के तत्क्रम में जारी शासनादेश दिनांक 29 नवंबर 2005 के अनुसार बांदा में तालाबों की संख्या 4572 और क्षेत्रफल 1549.223 हे. आंकी गई थी जबकि वर्तमान में यह संख्या 4540 और उनमें 1537.122 हे. क्षेत्रफल है। खतौनी में आई कमी की संख्या 32 तथा क्षेत्रफल 12.101 हे. अंकित की गई है जिसमें कि अवैध कब्जों की संख्या 6 व क्षेत्रफल 3.342 हे. दर्शाया गया है।
शासनादेश 29 नवंबर 2005 राजस्व परिषद पत्र संख्या 7635/जी0-5-9डी/2005 दिनांक 20 दिसंबर 2005 का संदर्भ देकर प्रदेश के प्रत्येक ग्राम के वन, तालाब , झीलों , कुओं वाटर रिजवायर, जल प्रणाली एवं नदियों के तल आदि की भूमि के संदर्भ में निहित होने के उल्लेख 1 जुलाई 1952 के राजस्व अभिलेख के आधार पर जांच करने तथा हिंचलाल तिवारी बनाम कमलादेवी के बाद माननीय उच्चतम न्यायालय के आदेश 25 फरवरी 2005 के क्रम में शासन तथा परिषद द्वारा स्थलीय सत्यापन के लिए तहसील स्तर पर कमेटी गठन के निर्देश दिए गए थे। इसके अलावा उच्च न्यायालय इलाहाबाद के जनहित याचिका में पारित आदेश प्रेम सिंह बनाम यूपी स्टेट याचिका संख्या 63380/2012 में भी यह स्पष्ट रूप से लिखा गया है कि ग्राम सभाओं की भूमि पर तालाब/पोखर/चारागाह एवं कब्रिस्तान पर अवैध कब्जा/अतिक्रमण को हटाने के संबंध में प्रमुख सचिव, राजस्व विभाग उ.प्र. शासन की अध्यक्षता में बहुसदस्यीय समिति का गठन किया गया है जिला स्तर पर गठित इस समिति के अध्यक्ष प्रत्येक जिले के जिलाधिकारी नामित हैं एवं जिला, मंडल के समस्त ग्राम सभाओं के अवैध कब्जा और अतिक्रमण की शिकायतें प्राप्त कर समयबद्ध रूप से जांच की कार्यवाही सुनिश्चित कर की गई कार्यवाही की प्रगति आख्या मंडलायुक्त के माध्यम से राजस्व परिषद को पाक्षिक रूप से उपलब्ध कराना भी इंगित किया गया है। बावजूद इसके ज्यादातर जिलों में तालाबों का हाल जिला प्रशासन की नाक के तले बद से बदतर स्थिति में है।
ये घटनाक्रम कुछ यूं ही है जैसे कि लोकशाही में न्यायालय के हस्तक्षेप से विधिक आदेश और की गई टिप्पणियां महज सरकारी फाइलों में नियमावली/ सरकुर्लर तक ही सीमित रह गई हों। बुंदेलखंड में छोटी नदियों और नालों की अच्छी खासी संख्या रही है। मौजूदा जलतंत्र से यह स्पष्ट होता है कि पिछले 1000 साल के दर्ज इतिहास में बुंदेलखंड ने इन नदी नालों के पानी को तालाब में जमा करने का हुनर कामयाबी से दुनिया को दिखाया। इसके साथ ही बरसात के पानी को सीधे भी तालाबों में जमा किया गया। जिलों के गजेटियर्स में दर्ज इतिहास के मुताबिक यह तालाब पीने, स्नान, सिंचाई, भूजल स्तर को बेहतर बनाए रखने के अलग-अलग मान्यताओं के परिपे्रक्ष्य से बनाए गए थे। इन तालाबों का कैचमेंट ऐरिया, डूब क्षेत्र व कमांड ऐरिया इतना व्यापक था कि वर्ष भर पेयजल आम आदमी को उपलब्ध हो जाता था।
बुंदेलों में पानी को संजोने का हुनर ऐसा था कि कई तालाब सिर्फ सुंदरता और गर्मी के दिनों में शहर का तापमान नियंत्रित करने के लिए बनाए गए थे। लेकिन आज बुंदेलखंड की राष्टृीय पहचान जलहीन इलाके की बन गई है। इसका सीधा मतलब है कि पानी संचयन के नए तरीके कारगर ढंग से नहीं अपनाए गए और पुराने तरीकों को नष्ट होने दिया गया। इस विसंगति को दूर करना पेय जल उपलब्धता के रास्ते की पहली जरुरत है।
बुंदेलखंड क्षेत्र के सभी सात जिलों बांदा, चित्रकूट, महोबा, हमीरपुर, झांसी, ललितपुर, और जालौन में एक साथ अमल में लाए जाने योग्य सुझाव-
1- संबंधित नगर निकाय से उसके क्षेत्र में आने वाले प्रमुख तालाबों और झीलों की सूची मांगी जाए। इस सूची में यह जानकारी शामिल रहे कि किन जलाशयों पर अतिक्रमण या अवैध कब्जा किया गया है या उनके तटबंध जान बूझकर तोडे गए हैं। जलाशयों को पानी उपलब्ध कराने वाले नालों को किसी तरह से अवरूद्ध तो नहीं किया गया है। जलाशयों की जलसंग्रहण क्षमता में पिछले 20 साल में क्या कमी आई है और उसे पुराने स्तर पर ले जाने के लिए किस तरह की पहल की जरुरत है। तालाबों को जीवित करने से शहर के भूजल स्तर को गिरने से बचाया जा सकता है, साथ ही कस्बों की प्राकृतिक सुंदरता भी बची रहेगी।
2- क्षेत्र के ज्यादातर शहरों में वहां से गुजरने वाली नदियों या स्थानीय तालाबों में शहरी अपशिष्ट ले जाने वाले नालों का पानी सीधे गिर रहा है। इस तरह के नालों पर वाटर टीटमेंट प्लांट बनाने की पहल शुरू की जाए। ऐसी पहल किए बिना, स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराना तकरीबन नामुमकिन है।
3- शहर में बनने वाले किसी भी नए आवासीय, वाणिज्यिक, औद्योगिक, सरकारी या अन्य किसी भी तरह के भवन में वाटर रीचार्ज सुविधा लगाना अनिवार्य किया जाए। इसके साथ ही नई काॅलोनियों में घरों की संख्या के अनुपात में सामूहिक वाटर रिचार्ज सुविधा लगाना अनिवार्य किया जाए। ऐसा करने से भूजल स्तर को मौजूदा स्तर पर या इससे बेहतर स्तर तक लाने में मदद मिलेगी।
4- ज्यादातर कस्बों में पाइप के जरिए पानी की सप्लाई या तो किसी बांध या फिर बडे तालाब से पानी उठाकर की जा रही है। बुंदेलखंड के उत्तर प्रदेश वाले क्षेत्र में कई ऐसे बांध हैं जहां पूरा पानी न भरने का एक कारण यह भी है कि मध्य प्रदेश के इलाके में नदियों पर बंधिया डाल दी गई हैं। इसके अलावा भी वर्षा और गैर वर्षा वाले मौसम में पानी का सही ढंग से बंटवारा करने की व्यवस्था नहीं है। ऐसे में उप्र और मध्य प्रदेश के सभी 13 जिलों को मिलाकर बुंदेलखंड जल नियामक प्राधिकरण बनाया जाए ताकि विवादों का निराकरण और जल का तर्कसंगत बंटवारा हो सके। ललितपुर जिला इसकी सबसे बडी मिसाल है जहां सात प्रमुख बांध होने के बावजूद गर्मी के मौसम में जिला मुख्यालय में पीने का पानी उपलब्ध नहीं हो पाता।
5- प्राप्त शिकायतों के आधार पर पीने के पानी की पाइप लाइन की मौजूदा हालत की जांच करा ली जाए और जरुरत के मुताबिक इसकी मरम्मत या नई पाइप लाइन डाली जाए। गर्मी के मौसम में मउरानीपुर शहर में पाइप लाइन से पीले रंग का पानी आने की शिकायत आम है। यह काम बडे खर्च का जरुर लग सकता है लेकिन गंदे पानी से होने वाली बीमारियों के इलाज पर हर साल खर्च होने वाली रकम के सामने यह कुछ भी नहीं है।
6- बुंदेलखंड में पूर्व में भी वाटर हारवेस्टिंग और वाटर शेड मैनेजमेंट के कार्य किए गए हैं। लेकिन इस बारे में कोई रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं हुई कि इन प्रयासों की सफलता की दर क्या रही। एक अध्ययन कराके इनकी सफलता और टिकाउपन की रिपोर्ट तैयार की जाए, पिछले अनुभवों के परिणाम से भविष्य में शुरु की जाने वाली जल संचयन योजनाओं को प्रभावी बनाने में मदद मिलेगी। इस कार्य के लिए जल निगम सिंचाई विभाग और मृदा संरक्षण विभाग में समन्वय की आवश्यकता होगी।
7- बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के साथ ही बुंदेलखंड के तालाबों के जीवंत दस्तावेजीकरण की भी सख्त आवश्यकता है। 1000 साल पुराने ये तालाब विश्व धरोहर होने के नाते अपने बारे में एक प्रामाणिक ग्रंथ के हकदार तो हैं ही, जो इन पर आज तक नहीं लिखा गया। ऐसी शोध परियोजना शुरु की जानी चाहिए जिसमें प्रमुख तालाबों जलाशयों का इतिहास, उनमें इस्तेमाल की गई तकनीक, उनके रखरखाव के तरीके, समाज और सभ्यता के विकास में इन जलाशयों की भूमिका का वैज्ञानिक तरीके से अध्ययन किया जा सके। यहां बताना प्रासंगिक होगा कि चंदेल कालीन तालाबों की इंजीनियरिंग तमिलनाडु के प्राचीन तालाबों से मेल खाती है और श्रंखलाबद्ध तालाबों राजस्थान के उदयपुर और चित्तौड के श्रंखलाबद्ध झीलों से समानता है। इस तरह की पुस्तक विश्व पटल पर बुंदेलखंड की नई छवि पेश करने में सहायक होगी। यदि शासन चाहे और आवश्यक वित्तीय मदद मुहैया कराए तो विषेशज्ञ दल के सदस्यों को इस परियोजना का हिस्सा बनने में बहुत प्रसन्नता होगी।
जिलेवार तुरंत अमल में लाई जाने योग्य परियोजनाएं -
बांदा - बांदा सदर में ही 11 में से छह तालाबों का अतिक्रमण तुरंत हटवाया जाए और इनका जीर्णोद्धार हो। इन जल इकाईयों में क्रमश नबाब टैंक जो नबाब अली बहादुर ने बनवाया था, वार्ड नंबर 11 में स्थित छाबी तालाब सेठ छविलाल अग्रवाल द्वारा सन 1960 के आसपास बनवाया था इसका रकबा करीब 7 दशक पूर्व 50 बीघा अर्थात 8.90 हेक्टेयर करीब 22 एकड़ क्षेत्रफल में महज अतिक्रमण के कारण 22 बीघा ही यह तालाब शेष बचा है। प्रागी तालाब सेठ प्रागीदास गहोई ने बनवाया, कंधरदास तालाब को स्थानीय कंधरदास व्यक्ति ने बनवाया, साहब तालाब - कंपनीबाग ब्रिटिश कालीन निर्माणकार्य है। इन जल इकाईयों के संरक्षण, संुदरीकरण की महती आवश्यकता है। इनके अतिरिक्त डिग्गी तालाब निकट रेलवे स्टेशन बांदा, लाल डिग्गी तालाब, परशुराम तालाब, हरदौल तलैया, बाबूराव गोरे तालाब, सेढू तलैया जल इकाईयां पूरी तरह से अवैध अतिक्रमण, रिहायसी मकानों की चपेट में मिट रहे हैं।
चित्रकूट - पवित्र मंदाकिनी नदी में गिर रहे सभी नालों पर ट्रीटमेंट प्लांट बनाए जाएं। चित्रकूट शहर आधा उत्तर प्रदेश और आधा मध्य प्रदेश में है। मध्य प्रदेश के इलाके में नदी का पानी आज भी पीने लायक है जबकि उप्र में इसकी गुणवत्ता गिरी है। इसका प्रमुख कारण मंदाकिनी को आरोग्य धाम से लेकर रामघाट तक जगह-जगह होटलों, दुकानदारों, समाजसेवियों ने निजी स्वार्थ हित बांध रखा है। नदी को जीवित करना ऐतिहासिक काम साबित होगा क्योंकि यह धार्मिक रुप से अति महत्वपूर्ण है। वाल्मीकि रामायण को आधार मानें तो भगवान राम 12 साल चित्रकूट में ही रहे। कर्वी-चित्रकूट नगर के प्रमुख तालाबों में 300 वर्ष पूर्व बनवाए गए विनायकराव पेशवा का गणेश बाग जो पुरातत्व के संरक्षण में है, गोल तालाब, दुर्गा तालाब, कोठी तालाब अतिक्रमण की मार झेल रहे हैं जिन्हें बचाया जाना नितांत आवश्यक है।
महोबा- मदन सागर:- जल संचय क्षेत्र 95 मिलियन घन फीट, क्षेत्रफल 2.3 वर्गमील और इसका क्षेत्रफल हेक्टेयर, नहरों की संख्या 2 है।
कीरत सागर:- जल संचय क्षेत्र 56 मिलियन घन फीट, तालाब का क्षेत्रफल 1.5 वर्गमील और इसका क्षेत्रफल 95 हेक्टेयर, नहरों की संख्या 2 है।
दशरापुर जलाशय:- जल संचय क्षेत्र 66 मिलियन घन फीट, तालाब का क्षेत्रफल 7.5 वर्गमील और इसका क्षेत्रफल 297.80 हेक्टेयर, नहरों की संख्या 3 है।
कल्याण सागर:- जल संचय क्षेत्र 18 मिलियन घन फीट, तालाब का क्षेत्रफल 1.4 वर्गमील और इसका क्षेत्रफल 150 हेक्टेयर, नहरों की संख्या 2 है।
बीजानगर जलाशय:- जल संचय क्षेत्र 246 मिलियन घन फीट, तालाब का क्षेत्रफल 3.7 वर्गमील और इसका क्षेत्रफल 233 हेक्टेयर, नहरों की संख्या 3 है।
रैपुरा जलाशय:- जल संचय क्षेत्र 254 मिलियन घन फीट, तालाब का क्षेत्रफल 10.5 वर्गमील और इसका क्षेत्रफल 298 हेक्टेयर, नहरों की संख्या 3 है।
बेलाताल:- जल संचय क्षेत्र 739 मिलियन घन फीट, तालाब का क्षेत्रफल 30.07 वर्गमील और इसका क्षेत्रफल 926 हेक्टेयर, नहरों की संख्या 18 है।
कुल पहाड़ जलाशय:- जल संचय क्षेत्र 98 मिलियन घन फीट, तालाब का क्षेत्रफल 3.6 वर्गमील और इसका क्षेत्रफल 256 हेक्टेयर, नहरों की संख्या 2 है।
कमालपुरा जलाशय:- जल संचय क्षेत्र 177 मिलियन घन फीट, तालाब का क्षेत्रफल 6.7 वर्गमील और इसका क्षेत्रफल 205 हेक्टेयर, नहरों की संख्या 2 है।
रहिल्य सागर:- जल संचय क्षेत्र 21 मिलियन घन फीट, तालाब का क्षेत्रफल 2.4 वर्गमील और इसका क्षेत्रफल 150 हेक्टेयर, नहरों की संख्या 3 है। इन बड़े जलाशयों के अतिरिक्त महोबा में टीकामउ, सलारपुर जैसे बड़े जलाशय अपने अस्तित्व का संघर्ष कर रहे हैं।
हमीरपुर:- हमीरपुर शहर में सर्वाधिक तालाब राठ तहसील के अर्तगत हैं। अन्य जिलों तरह यहां भी प्राचीन तालाबों में शहरी अतिक्रमण ने तालाबों से सुलभ होने वाली पेयजल व्यवस्था को पूरी तरह ध्वस्त कर रखा है। उदारणार्थ राठ तहसील के सागर तालाब का कुल क्षेत्रफल लगभग 3 बीघा के आसपास है। इस तालाब के क्षेत्र में बनाए गए आवास का सीवर युक्त गंदा पानी सीधे सागर तालाब में प्रवाहित किया जाता है जिसने इस तालाब के स्वच्छता एवं रख-रखाव के अस्तित्व पर संकट खड़ा कर दिया है। इस जैसे राठ तहसील के अन्य तालाबों को भी बचाए जाने की आवश्यकता है।
झांसी:- झांसी शहर में लक्ष्मी तालाब का पुनुरुद्धार कराया जाए। मउरानीपुर में सुखनई नदी और बाजपेयी तालाब का पुनुरुद्धार हो।
ल्लितपुर: - ललितपुर शहर में सुमेरा तालाब का जीणोद्धार और सुंदरीकरण किया जाए। तालबेहट के बडे तालाब का सुंदरीकरण किया जाए।
मऊरानीपुर:-
1- मऊरानीपुर, झांसी में शहर के बीच से बहने वाली सुखनई नदी को पुनर्जीवित करना, घाटों का निर्माण कराना और सुंदरीकरण करना:
अ- नदी के समांतर सीवेज पाइप लाइन का निर्माण करना ताकि शहर का गंदा पानी नदी में ना गिर सके।
ब- शहर से नदी में गिरने वाले नालों पर सीवेज ट्ीटमेंट प्लांट बनाए जाएं ताकि गंदा पानी नदी में न गिरे।
स- नदी पर चार जगह सीढ़ीदार घाटों का निर्माण कराया जाए ताकि जब नदी साफ हो चुके तो इसका सार्वजनिक उपयोग हो सके।
द- इतने प्रयासों के बाद स्वच्छ नदी के कुछ हिस्सों को पिकनिक स्थल की तरह विकसित किया जा सकेगा जहां नौकाबिहार और आप-पास हरियाली स्थापित की जा सकेगी।
इस संबंध में मऊरानीपुर नगर पालिका ने पूर्व में भी प्रस्ताव तैयार कर शाषन को भेजे हैं, उनका अवलोकन किया जा सकता है।
2 - मऊरानीपुर शहर में प्राचीन बाजपेयी तालाब स्थित है। इस तालाब का आर्किटेक्चर इस तरह डिजाइन किया गया था कि इससे एक छोटी नहर सी निकाली गई। इसका पानी कई जगह साफ होता है और यहां इस तरह की घास उगी है जो पानी को साफ करने में सहायक होती है। इस छोटी नहर पर आगे हांथा, एक तरह का पुराना स्वीमिंग पूल बना है। कोई 15 साल पहले तक यह जीवंत और सक्रिय जल संरचना थी जो अब तबाह हो चुकी है। ऐसे में तालाब का गहरीकरण, तलबंध का निर्माण और अतिक्रमण हटाकर तालाब को बचाया जा सकता है। साथ ही हांथा के वाटर चैनल के बुनियादी ढांचा को दुरुस्त कर इसे फिर से वह तरण ताल बनाया जा सकता है, जहां बच्चे वैसे ही तैर सकें जैसे उनके पिताजी की पीढी के लोग अपने बचपन में तैरते थे।
आशीष सागर दीक्षित (लेखक सदस्य विशेषज्ञ समिति, बुंदेलखंड जल पैकेज, बुंदेलखंड में सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर पिछले एक दशक से सक्रिय है, सूचना के अधिकार के क़ानून के प्रयोग व् प्रसार में विशेष योगदान, जल, जंगल जमीन के महत्त्व को उजागर करते इनके तमाम लेख प्रकाशित होते रहते है, बाँदा में निवास, इनसे ashishdixit01@gmail.com पर संपर्क कर सकते है )
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