बेटियों से बंजर बुन्देलखण्ड ?
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कन्या शिशु की धटती दर के लिहाज से पूर्वांचल और बुन्देलखण्ड के कई जिले पश्चमी उत्तर प्रदेश की राह पर हैं प्रदेश के नये जिले में तेजी से घटी कन्या शिशुओं की संख्या में बुन्देलखण्ड के ललितपुर, बांदा, चित्रकूट में तस्वीर चैंकाने वाली है, कन्या को बोेझ समझती दुनिया की एक रिपोर्ट……………
बांदा – पीसीपीएनडीटी एक्ट कानून के मुताबिक कन्या भ्रूण हत्या एक जघन्य अपराध है। जिला अस्पताल या फिर निजी चिकित्सा सर्विस सेन्टरों में यदि कन्या भ्रूण हत्या होते हुए मौके पर पाई जाती है तो ऐसा करने वाले परिवार के आरोपी लोगों और जिम्मेदार डाॅक्टर के ऊपर कानून का शिकंजा कसना कानून के मुताबिक तय है। लेकिन कागजो में दौड़ रहे तमाम कानूनों की तरह पीसीपीएनडीटी एक्ट (लिंग प्रतिनिशेध अधिनियम) भी सरकारी सूचना पट का निर्देश मात्र रह गया है।
समाज कल्याण बोर्ड उत्तर प्रदेश की जारी हालिया रिपोर्ट के अनुसार हरदोई, कुशीनगर, बहराईच, सोनभद्र, बिजनौर और बुन्देलखण्ड के ललितपुर जनपद में सर्वाधिक लड़कियां परिवार के लिए बोझ बनती जा रही हैं। गर्भ में हो रहे भ्रूण हत्या के आॅकड़े इन जिलो के तस्वीर बताने के लिए काफी हैं।
जनपद बादंा में सामाजिक संगठन अभ्युदय सेवा संस्थान द्वारा पीसीपीएनडीटी एक्ट पर उत्तर प्रदेश सरकार के अनुदान से लखनऊ की संस्था वात्सल्य के कोर्डिनेशन में तिंदवारी विकास खण्ड के ग्रामीण इलाकों में यह कार्यक्रम चलाया जा रहा है। संस्था संचालिका की मानें तो तिंदवारी विकास खण्ड के कुछ गांव में किये गये पायलट सर्वेक्षण के आधार पर 108 में से 35 महिलाओं ने सीधे तौर पर अपने घरो में मुखिया बने मर्दो के ऊपर बेेटियों को जबरन मरवाने का आरोप लगाया है।
उधर उत्तर प्रदेश समाज कल्याण बोर्ड ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश के संवेदनशील जिलों मे हो रहे कन्या भ्रूण हत्या की राह पर बुन्देलखण्ड और पूर्वांचल की दस्तक होने के संकेत दिये हैं। निजी जानकारी और मरीजों के तीमारदार व गर्भवती महिलाओं ने जिला-बांदा के सरकारी अस्पताल में कुछ डाक्टरों के ऊपर नाम न बताने की शर्त पर गर्भपात सुविधा शुल्क लेकर करने का भी खुलासा किया है।
जिले में चल रहे आधा दर्जन से अधिक निजी चिकित्सालय में गर्भपात किया जाता है यह पुख्ता तौर पर कहा जा सकता है।
बीते दिवस मुम्बई के अजंली ग्रुप (अजंली फाउन्डेशन) के फाउन्डर चेयर मैन आत्माराम के पटेल द्वारा महाराष्ट्र व अन्य राज्यों में डायरी लेखन के माध्यम से ‘‘चलो लिखते हैं जिन्दगी’’ अभियान के तहत उत्तर प्रदेश के बांदा जिले से इस अभियान की शुरूवात तेजी से बढ़ रहे कन्या भ्रूण हत्या के अपराधों को रोकने के लिए की गयी।
अजंली फाउन्डेशन के ट्रस्टी आशोक जैन के आतिथ्य में समन्वयक सुनील कुमार सनी ने होटल सांरग के सभागार मे चलों लिखते है जिन्दगी विषय पर विमर्श आयोजित कर गर्भावस्था के दौरान गर्भवती महिला को स्वस्थ चितंन व वैचारिक खेती के लिए डायरी लेखन को उपयोगी बताया है।
विमर्श में उपस्थित रहे समाज सेवियों, शिक्षकों, डाॅक्टरों, मनोचिकित्सक के उद्बोधन से निकले अंश यह बताते हैं कि सामाजिक विकृतियों, किशोर अवस्था में पनप रहे अपराध बोध, नशा खोरी, सेक्स के प्रति अधिक रुझान और आत्मदर्शन के अवमूल्यन को रोकने के लिए डायरी एक सशक्त माध्यम हो सकता है।
बकौल आशोक जैन डायरी में व्यक्ति वही सब कुछ लिखता है जो शब्द किसी से कह नहीं सकता। घर की महिलाएं और भाभी मां बनने वाली महिलाएं यदि गर्भ के समय डायरी से विचारों का सृजन करती हैं तो निश्चित ही उसका असर बच्चे पर जाता है। वेदों में लिखी गयी ऋचाएं, सूक्तियां और वाक्य इस बात का प्रमाण हैं कि अभिमन्यु को चक्रव्यूह तोड़ने की कला भी मां के गर्भ में ही प्राप्त हुयी थी।
स्वामी विवेकानन्द, आचार्य विनोबा, महात्मा गांधी, चाणक्य, पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम, प्रणव मुखर्जी भी डायरी लेखन विचारों के रचनात्मकता के लिए करते हैं। कन्या भ्रूण हत्या केा रोकने में डायरी इसलिए भी उपयोगी हो सकती है क्योंकि अगर मां अपनी संवेदना, अन्तर पीड़ा और अस्मिता के विचारों को स्वतः अपने लिए डायरी में लिखेगी तो यदि उसके गर्भ से लड़की ही जन्म लेती है बावजूद इसके वह लड़की की जरूरत और सुरक्षा के प्रति अधिक संवेदित होगी। प्रकृति के नियम को चलाने और बच्चों को जन्म देने का माद्दा भी लड़कियों के पास ही होता है यह जमीनी सच है। बच्चों को पैदा करने की फैक्ट्री न तो सरोगेट्स मां के पास है और न ही बीटी भ्रूण तकनीक इजाद करने वाले साइन्स के पास।
बांदा – पीसीपीएनडीटी एक्ट कानून के मुताबिक कन्या भ्रूण हत्या एक जघन्य अपराध है। जिला अस्पताल या फिर निजी चिकित्सा सर्विस सेन्टरों में यदि कन्या भ्रूण हत्या होते हुए मौके पर पाई जाती है तो ऐसा करने वाले परिवार के आरोपी लोगों और जिम्मेदार डाॅक्टर के ऊपर कानून का शिकंजा कसना कानून के मुताबिक तय है। लेकिन कागजो में दौड़ रहे तमाम कानूनों की तरह पीसीपीएनडीटी एक्ट (लिंग प्रतिनिशेध अधिनियम) भी सरकारी सूचना पट का निर्देश मात्र रह गया है।
समाज कल्याण बोर्ड उत्तर प्रदेश की जारी हालिया रिपोर्ट के अनुसार हरदोई, कुशीनगर, बहराईच, सोनभद्र, बिजनौर और बुन्देलखण्ड के ललितपुर जनपद में सर्वाधिक लड़कियां परिवार के लिए बोझ बनती जा रही हैं। गर्भ में हो रहे भ्रूण हत्या के आॅकड़े इन जिलो के तस्वीर बताने के लिए काफी हैं।
जनपद बादंा में सामाजिक संगठन अभ्युदय सेवा संस्थान द्वारा पीसीपीएनडीटी एक्ट पर उत्तर प्रदेश सरकार के अनुदान से लखनऊ की संस्था वात्सल्य के कोर्डिनेशन में तिंदवारी विकास खण्ड के ग्रामीण इलाकों में यह कार्यक्रम चलाया जा रहा है। संस्था संचालिका की मानें तो तिंदवारी विकास खण्ड के कुछ गांव में किये गये पायलट सर्वेक्षण के आधार पर 108 में से 35 महिलाओं ने सीधे तौर पर अपने घरो में मुखिया बने मर्दो के ऊपर बेेटियों को जबरन मरवाने का आरोप लगाया है।
उधर उत्तर प्रदेश समाज कल्याण बोर्ड ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश के संवेदनशील जिलों मे हो रहे कन्या भ्रूण हत्या की राह पर बुन्देलखण्ड और पूर्वांचल की दस्तक होने के संकेत दिये हैं। निजी जानकारी और मरीजों के तीमारदार व गर्भवती महिलाओं ने जिला-बांदा के सरकारी अस्पताल में कुछ डाक्टरों के ऊपर नाम न बताने की शर्त पर गर्भपात सुविधा शुल्क लेकर करने का भी खुलासा किया है।
जिले में चल रहे आधा दर्जन से अधिक निजी चिकित्सालय में गर्भपात किया जाता है यह पुख्ता तौर पर कहा जा सकता है।
बीते दिवस मुम्बई के अजंली ग्रुप (अजंली फाउन्डेशन) के फाउन्डर चेयर मैन आत्माराम के पटेल द्वारा महाराष्ट्र व अन्य राज्यों में डायरी लेखन के माध्यम से ‘‘चलो लिखते हैं जिन्दगी’’ अभियान के तहत उत्तर प्रदेश के बांदा जिले से इस अभियान की शुरूवात तेजी से बढ़ रहे कन्या भ्रूण हत्या के अपराधों को रोकने के लिए की गयी।
अजंली फाउन्डेशन के ट्रस्टी आशोक जैन के आतिथ्य में समन्वयक सुनील कुमार सनी ने होटल सांरग के सभागार मे चलों लिखते है जिन्दगी विषय पर विमर्श आयोजित कर गर्भावस्था के दौरान गर्भवती महिला को स्वस्थ चितंन व वैचारिक खेती के लिए डायरी लेखन को उपयोगी बताया है।
विमर्श में उपस्थित रहे समाज सेवियों, शिक्षकों, डाॅक्टरों, मनोचिकित्सक के उद्बोधन से निकले अंश यह बताते हैं कि सामाजिक विकृतियों, किशोर अवस्था में पनप रहे अपराध बोध, नशा खोरी, सेक्स के प्रति अधिक रुझान और आत्मदर्शन के अवमूल्यन को रोकने के लिए डायरी एक सशक्त माध्यम हो सकता है।
बकौल आशोक जैन डायरी में व्यक्ति वही सब कुछ लिखता है जो शब्द किसी से कह नहीं सकता। घर की महिलाएं और भाभी मां बनने वाली महिलाएं यदि गर्भ के समय डायरी से विचारों का सृजन करती हैं तो निश्चित ही उसका असर बच्चे पर जाता है। वेदों में लिखी गयी ऋचाएं, सूक्तियां और वाक्य इस बात का प्रमाण हैं कि अभिमन्यु को चक्रव्यूह तोड़ने की कला भी मां के गर्भ में ही प्राप्त हुयी थी।
स्वामी विवेकानन्द, आचार्य विनोबा, महात्मा गांधी, चाणक्य, पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम, प्रणव मुखर्जी भी डायरी लेखन विचारों के रचनात्मकता के लिए करते हैं। कन्या भ्रूण हत्या केा रोकने में डायरी इसलिए भी उपयोगी हो सकती है क्योंकि अगर मां अपनी संवेदना, अन्तर पीड़ा और अस्मिता के विचारों को स्वतः अपने लिए डायरी में लिखेगी तो यदि उसके गर्भ से लड़की ही जन्म लेती है बावजूद इसके वह लड़की की जरूरत और सुरक्षा के प्रति अधिक संवेदित होगी। प्रकृति के नियम को चलाने और बच्चों को जन्म देने का माद्दा भी लड़कियों के पास ही होता है यह जमीनी सच है। बच्चों को पैदा करने की फैक्ट्री न तो सरोगेट्स मां के पास है और न ही बीटी भ्रूण तकनीक इजाद करने वाले साइन्स के पास।
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