सरहदों पे आज कल
मेरे मुल्क में ये नफरतो का जेहाद क्यों है ,
आदमी अपनों के लिए नहीं अपने ही लिए बर्बाद क्यों है ?
एक अदना सा सुकून बस मिल जाये शायद इसलिए ही ,
उनका दिल और रूह का एक - एक जर्रा मशाद क्यों है ?
क्या वो खुद या फिर आदमियों के लाशों पर हुकूमते बनायेगे ,
मेरा देश कहने को इस तरह से आजाद क्यों है ?
अब तो घरो में प्यार का जलसा दिखाई नहीं देता सागर ,
ये नफरतो का बाज़ार सारे आम इतने बरस बाद भी क्यों है ? सरहदों पे आज कल मचा जैसे खुदा नहीं खून का हल्ला , इस तरह से इंसानीयत बेहया - बतजात क्यों है ?
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