Monday, August 09, 2010

खुदकुशी

अपने अहसासों को इतना मजहबी मत कीजिये ,
घर जलाकर बस्तियों में रोशनी मत कीजिये
जिसमे दिल ढहने लगे बूढी इमारत कि तरह ,
है यही बेहतर कि ऐसी बंदगी मत कीजिये
जब तलक है सास जीने का सलीका ढूढ़ लो ,
मरने के डर से कभी खुदकुशी मत कीजिये
दूर तक रस्ते और रिश्ते निभाने की यही एक शर्त है ,
जिसमे हो शर्मिंदगी ऐसा कभी मत कीजिये
दोस्ती कितने उसूलो से बंधी है जानिए ,
दुश्मनी करनी अगर हो दोस्ती मत कीजिये
दिल लगाने के लिए मिल जायेगे मुद्दे कई ,
आंसुओ के साथ कोई दिल्लगी मत कीजिये
बह रहा है रास्तो पार खून पानी की तरह ,
ऐसे आलम में सागर ये शायरी तो मत कीजिये

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1 Comments:

At September 18, 2010 at 10:08 AM , Blogger Unknown said...

घर जलाकर बस्तियों में रोशनी मत कीजिये

 

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