Saturday, July 23, 2011

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                कर्ज और मर्ज से खुदकुशी है - बुन्देलखण्ड का सच !

  • भूख से लड़ रहे मृतक किसान के तीन अनाथ बच्चे 
  • दो बीघा जमीन बैंक के पास गिरवी कैसे जलेगा फांकाकसी में चूल्हा
  • मानवता ने बढ़ाया एक कदम मगर शासन और प्रशासन मौन है
बुन्देलखण्ड- ‘‘ जीकर मरो, मरकर मत जियो ’’ इस तल्खियत भरे शब्दों में छुपा है बुन्देलखण्ड का सच। कर्ज और मर्ज से खुदकुशी, आत्मदाह बुन्देलखण्ड की पिछले तीन महीनों में हकीकत बनके उभरी है। 18 जून 2011 को जनपद बांदा के बघेला बारी (नरैनी ब्लाक), थाना फतेहगंज के 42 वर्षीय युवा किसान सुरेश यादव ने सुबह 4 बजे अपने पीछे तीन बच्चों क्रमशः विकास यादव उम्र 15 वर्ष जो इस वर्ष 10वीं की कक्षा में बिना स्कूल गये 54 प्रतिशत अंकों के साथ विज्ञान वर्ग में उत्तीर्ण हुआ है, पुत्री संगीता उम्र 13 वर्ष ड्रापआउट, अन्तिमा उम्र 8 वर्ष ड्रापआउट सोता हुआ छोड़कर अपने बैंक के पास बन्धक बने दो बीघा जमीन की नोटिस जारी होने से दहशत में आकर आत्महत्या कर ली। सुरेश यादव पर त्रिवेणी ग्रामीण बैंक बदौसा का 21 हजार रूपये और गांव के साहूकार का 50 हजार रूपये कर्ज था। वर्ष 2008 में मृतक सुरेश यादव की पत्नी सरस्वती कैंसर की बीमारी से जूझती हुयी इस दुनिया को अलविदा कह चुकी है। मां के गुजर जाने के बाद तीन बच्चों में संगीता ही घर का चूल्हा चैका विद्यालय छोड़ने के बाद करती थी।
गौरतलब है कि पत्नी सरस्वती की मृत्यु के पश्चात् मृतक सुरेश यादव मानसिक रूप से तन्हा, अवसाद ग्रस्त और क्षय रोग से पीड़ित हो गया था। कुल चार बीघा जमीन में से दो बीघा जमीन उसने पहले ही पत्नी के इलाज में बेंच दी थी और इधर बच्चों के पालन पोषण व खेती को करने के लिये सुरेश ने त्रिवेणी ग्रामीण बैंक बदौसा से 21 हजार रूपये, साहूकार से 50 हजार रूपये बतौर कर्ज ऋण लिया था। किसान सुरेश के पुत्र विकास द्वारा ही शेष बची दो बीघा जमीन में रही सही खेती की जाती थी। क्योंकि सुरेश पत्नी के चले जाने के बाद से ही बिस्तर पकड़ चुका था। गांव वालों के बयानों के मुताबिक क्षय रोग से पीड़ित सुरेश को नरैनी प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र, जिला अस्पताल बांदा से नियमित रूप से डाट्स की दवायें भी उपलब्ध नहीं होती थी। बड़ी बिटिया संगीता की बढ़ती हुयी उम्र के साथ उसके ब्याह की चिन्ता और विकास, अन्तिमा के भविष्य की ऊहा-पोह में पिसते हुये सुरेश ने 18 जून 2011 को इस समाज और लोकतंत्र से हमेशा के लिये पीछा छुड़ाने का दुर्दान्त फैसला कर लिया। अपने ही खेत पर खून की उल्टियों के साथ मृतक सुरेश इस दुनिया से चला गया। जब बच्चे जागे और पिता को पास में नहीं पाया तो बाहर निकलकर चिल्लाने लगे। गांव वालों के सहयोग से जब पिता को ढूंढ़ा गया तो उसकी लाश अपने ही दो बीघा बन्धक बने बंजर खेत में पायी गयी।
बताते चले कि मृतक सुरेश के पुत्र विकास के पास इतना भी पैसा नहीं था कि वह अपने पित्रृ ऋण से मुक्त होने के लिये पिता को अन्तिम अग्नि समर्पित कर पाता। गांव वालों ने आनन-फानन में मृतक की लाश को एक चादर में लपेटकर रसिन बांध में प्रवाहित कर दिया।
मीडिया ने जब इस मुद्दे को तूल देना शुरू किया तो जनपद के तत्कालिक जिलाधिकारी कैप्टन ए0के0 द्विवेदी अपने लाव लशकर के साथ मौके पर पहुंचे और पीड़ित परिवार के तीन अनाथ बच्चों से बातचीत की। प्रदेश की मुखिया के दिशा निर्देश के अनुसार भूख से कोई मौत न होने पाये और कोई किसान कर्ज और मर्ज से आत्महत्या न करे इस फतवे के डर से जिलाधिकारी ने तुरन्त ही विकास को बरगलाना शुरू किया और सुरेश के क्षय रोग कार्ड को मीडिया के सामने दिखाते हुये कहा कि सुरेश की मौत कर्ज से नहीं बल्कि टी0वी0 के रोग से हुयी है क्योंकि उसने नियमित रूप से दवायें नहीं खायी हैं। जिलाधिकारी के साथ मौजूद अधिकारियों ने जब मृतक के घर जाने की जहमत उठायी तो मीडिया के सामने उनके भी होश फाक्ता हो गये। क्योंकि मात्र छः किलो चावल सुरेश यादव के घर में मौजूद था। ऐसे में भला कैसे जलता और कैसे चलता घर का चूल्हा ? जिलाधिकारी ने तुरन्त ही इन्दिरा आवास, पारिवारिक लाभ योजना, एक लाख रूपये मुआवजा कृषक बीमा योजना से और बी0पी0एल0 कार्ड द्वारा मुफ्त राशन का निर्देश कोटेदार को देते हुए बच्चों की शिक्षा की जिम्मेदारी जिला प्रशासन द्वारा वहन करने की घोषणा कर दी।
इधर 3 जुलाई 2011 को दिल्ली से आये अजय प्रकाश लेखक पब्लिक एजेण्डा के साथ जब मृतक सुरेश के घर जाना हुआ तो बघेला बारी के विकास और फतेहगंज की दस्यु प्रभावित समस्या से रूबरू होकर टीम किसान के घर पहुंची। लेकिन घर पर लटका हुआ ताला कुछ और ही कह रहा था। जब गांव वालों से पूछा गया तो उन्होंने बताया कि विकास बड़ी बहन को साथ लेकर नरैनी के कस्तूरबा गांधी आवासीय विद्यालय में एडमीशन के लिये गया है। मगर कुछ ही मिनट बाद विकास बहन के साथ आंखों के सामने था। उसने पूछने पर बताया कि मैं रास्ते से ही लौट आया। विकास ने जब घर का दरवाजा खोला तो यह देखकर कलेजा मुंह को आ गया कि छोटी बहन अन्तिमा बन्द ताले के भीतर बैठकर पिता की तेरहवीं संस्कार में बची हुयी बासी-सूखी पूड़ियां खा रही थी। चूल्हे की बुझी राख देखकर यह समझने में देर नहीं लगी कि 18 जून से 3 जुलाई तक उसके घर में चूल्हा नहीं जला है।
अपनी रोती हुयी आंखों में हजारों सवाल जिला प्रशासन और सरकार के सामने छोड़कर विकास ने ग्रामीणों के बीच बयान कलम बन्द कराये कि किस तरह कर्ज और मर्ज के बीच पिस गया दो बीघा बन्धक जमीन का मालिक सुरेश यादव। दिनांक 12 जुलाई 2011 को जनपद बांदा में अपर पुलिस अधीक्षक, जिलाधिकारी के समक्ष विकास ने उनकी चैखट पर दस्तक देकर ज्ञापन के रूप में पूर्व जिलाधिकारी कैप्टन ए0के0 द्विवेदी द्वारा किये गये वादों की दुहाई देते हुये वर्तमान जिलाधिकारी श्रीमती शीतल वर्मा के समक्ष बताया कि बीते मंगलवार को तहसील दिवस में एस0डी0एम0 अतर्रा ने आपसे मुलाकात नहीं करने दी। क्योंकि उन्हे डर था कि विकास अपनी बद नसीबी का दुखड़ा और बुन्देलखण्ड के किसानों का भयावह सच उनके सामने खोलकर रख देगा।
एक बार फिर मीडिया ने अपनी भूमिका को सही ठहराते हुये विकास की तस्वीर को प्रशासन के सामने उजागर किया। दिनांक 14.07.2011 को मीडिया चैनलों, समाचार पत्रों में खबर पढ़ने के बाद पसीजे विसप डा0 फेड्रिक डिसूजा, फादर रोनाल्ड डिसूजा (सन्त मेेरी सीनियर सेकण्डरी स्कूल) बांदा, शिवप्रसाद पाठक, आरती खरे, आई0बी0एन0-7 के सिटी रिपोर्टर आलोक निगम ने बदौसा के मृतक किसान प्रमोद तिवारी जिसने कि सुरेश यादव के पूर्व ही बैंक की ऋण वसूली दो लाख रूपये की आर0सी0 जारी होने के बाद गिरफ्तारी और कुर्की के डर से खुद को पेट्रोल डालकर जिन्दा फूंक लिया था कि विधवा और उसके पुत्र सत्यम तिवारी, शिवम तिवारी सहित बघेला बारी के मृतक किसान सुरेश यादव के तीन अनाथ बच्चों से सम्पर्क कर उन्हें फौरी तौर पर एक बोरा गेंहू, एक बोरी चावल, 50 किलो अरहर की दाल और बन्द लिफाफे में रूपयों की मदद मुहैया करायी जो कहीं न कहीं पूर्व जिलाधिकारी के दिये गये एक हजार रूपये से ज्यादा वजन के थे। उन्होंने मृतक किसानों के पारिवारिक सदस्यों से कोई कोरा वादा तो नहीं किया पर क्षमता अनुरूप सम्भव मदद करते रहने का भरोसा दिया।
इन तमाम आपा धापी के बीच उलझी हुयी उक्त दो किसानों की सच्चाई व बुन्देलखण्ड में तंगहाल किसान की वास्तविकता को बुद्धिजीवी वर्ग और समाज के सामने एक प्रश्न बनकर खड़े होने वाली इस जमीनी हकीकत से जो सवाल अब सुरेश यादव के तीन अनाथ बच्चों ने लोकतंत्र, सरकार, जिला प्रशासन और देशी विदेशी सहायता प्राप्त स्वयं सेवी संगठनों के सामने छोड़े हैं उनका उत्तर शायद ही किसी के पास होगा। आखिर क्या होगा भविष्य इन तीन अनाथ बच्चों का और कैसे इस समाज में जिन्दगी के संघर्ष को खेलने की उम्र मे शुरू कर पायेंगे मृतक किसान के मासूम बच्चे। बुन्देलखण्ड में जिस तरह से सरकार किसानों की आत्महत्याओं को कर्ज और मर्ज की वजह मानने से इन्कार कर रही है तथा हाल ही में उच्चतम न्यायालय इलाहाबाद ने स्वतः संज्ञान लेते हुये बुन्देलखण्ड की किसान आत्महत्याओं पर तैयार की गयी शोध रिपोर्ट को आधार मानकर 519 किसानों की आत्महत्याओं की खबर पर जनहित याचिका स्वीकार की है तथा 15 जुलाई तक किसानों से ऋण वसूली पर रोक लगायी है और उसके बाद भी किसानों को बैंक के नोटिस जारी किये जा रहे हैं वे प्रदेश सरकार की और केन्द्र सरकार की बुन्देलखण्ड के प्रति अमानवीय संवेदनहीनता को स्पष्ट करते हैं। क्या लाशों और मुर्दों की कब्र्रगाह में तय होगा बुन्देलखण्ड का भविष्य।
विशेष अनुरोध- उक्त दो किसान परिवार के सदस्यों और खासकर मृतक सुरेश के तीन अनाथ बच्चों की यदि कोई भला मानुष मदद करना चाहता है तो कृपया मोबाइल नम्बर 09621287464 तथा खाता संख्या- 21142394814 इलाहाबाद बैंक, शाखा सिविल लाइन्स जनपद बांदा में पहुंचा सकता है लेकिन मदद करने के बाद अपना नाम और मैसेज दिये गये मोबाइल नम्बर पर अवश्य छोड़ दे। 
आशीष सागर
 

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