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चालीस बालश्रम विद्यालय बन्द और बच्चे सड़कों पर
1. राष्ट्रीय बालश्रम परियोजना के संचालन में हुई 85,08,928.00 रूपयों की धांधली
2. समाज सेवी संगठनो पर था बालश्रमिको के भविष्य संवारने का दारोमदार
3. बुन्देलखण्ड में मौजूद हैं 8,880.00 बालश्रमिक, चित्रकूट मण्डल में नही खुला किशोर बालगृह
2. समाज सेवी संगठनो पर था बालश्रमिको के भविष्य संवारने का दारोमदार
3. बुन्देलखण्ड में मौजूद हैं 8,880.00 बालश्रमिक, चित्रकूट मण्डल में नही खुला किशोर बालगृह
बुन्देलखण्ड के सात जनपदो में से बालश्रमिको को लेकर चित्रकूट मण्डल के हलात कुछ अधिक ही बदहाल है। राष्ट्रीय बालश्रम परियोजना का संचालन जनपद बांदा में वर्ष 2005-06 में प्रारम्भ हुआ था जिसका कार्य फरवरी 2006 से जिलाधिकारी बांदा एवं शासन की संस्तुति पर चुने हुये कुछ समाज सेवी संगठनों द्वारा जनपद में किराये के भवनों, निजी स्तर पर बनाये गये बालश्रमिक विद्यालय में किया गया था। तीन वर्षा के लिये प्रारम्भ में आई केन्द्र सरकार की इस परियोजना के लिये जनपद को कुल धनराशि 1,50,70,101 रू0 प्राप्त हुये थे जिसमें की व्यय धनराशि 85,08,928.00 रू0 खर्च किये जा चुके है तथा अवशेष धनराशि 74,31,139.00 रू0 बजट में शेष बची है। इस योजना के लिये राज्य सरकार से किसी भी प्रकार की मदद उपलब्ध नही कराई गयी थी।
गौर तलब है कि बालश्रमिक अधिनियम 1986 के अन्तर्गत 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों को 13 व्यवसाय, 57 प्रक्रियाओं, खतरनाक व्यवसाय की श्रेणी में प्राविधानित किया गया है। इस अधिनियम के अनुसार इसका उल्लघंन करने वाले के विरूद्ध अपराधिक मुकदमा तथा अपराध सिद्ध होने पर 1000 रू0 से 20000 तक का जुर्माना हो सकता है और कम से कम तीन माह अधिकतम् एक वर्ष की सजा हो सकती है वहीं माननीय उच्चतम् न्यायालय के निर्णय के अनुसार बालश्रमिक को नियोजित करने सेवायोजक, फर्म, कम्पनी से 20000 रू0 प्रति बालश्रमिक की दर से प्रतिकर वसूल करने का प्राविधान है। बुन्देलखण्ड में बांदा के लिये संचालित राष्ट्रीय बालश्रमिक परियोजना के तहत ग्रामोदय विकास संस्थान, कालूकुआं जनपद बांदा, संचालक महेन्द्र सिंह गौतम अध्यक्ष बालकल्याण समिति जिला प्राबेशन अधिकारी बांदा, श्रद्धासमिति, इन्दिरा नगर बांदा संचालक राकेश मिश्रा, नवयुग सेवा संस्थान, मलहौसी, औरैया, जाग्रति समिति, कानपुर के अतिरिक्त अन्य संस्थाओं के द्वारा भी शहर के लिये 20 और विकास खण्ड स्तर पर 20 बालश्रम विद्यालय संचालित किये गये थें। जिसमें की ग्रामोदय विकास संस्थान द्वारा शहर बांदा, नवयुग सेवा संस्थान नुनियां मोहल्ला, दक्षिणी क्योटरा जेल रोड़ बांदा, जागृति समिति शहर बांदा एवं श्रद्धासमिति अर्तरा, बिसण्डा में विद्यालयों का संचालन किया गया था।
एक संस्था द्वारा 2 विद्यालयों चलवाये गये और ज्यादा तर किराये के भवनों या महज कागजी रूप में क्रियांवित किये गये। संस्थाओं ने एक वर्ष विद्यालयांे का संचालन सही रूप से किया लेकिन जिला प्रशासन की अनदेखी और बच्चों की करोड़ो की परियोजना पर आखिरकार भ्रष्टाचार की राख लग ही गयी। जनवरी 2007 में तत्तकालिक जिलाधिकारी रंजन कुमार ने मानको की अनदेखी पर राष्ट्रीय बालश्रम परियोजना के संचालन में की गयी हीला हवाली से शासन को अवगत कराते हुये जनवरी 2007 में विद्यालयों पर नियुक्ति किये गये संविदा कर्मी अनुदेशक मानदेय 1500, लिपिक 1400, आया 1200 का वेतन भुगतान रोक दिया और उचित कार्यवाही के आदेश संस्थाओं के विरूद्ध जारी कर दिये। एक गैर सरकारी सर्वेक्षण के मुताविक बुन्देलखण्ड केे चार जनपदों में 8,880.00 बालश्रमिक उपलब्ध है जो कि पत्थर की खदानों, क्रेशर उद्योग, होटल ढ़ाबो, कबाड़ बीनने का काम करते है। जनसूचना अधिकार 2005 के तहत जिला श्रम प्रवर्तन अधिकारी एस0के0 त्रिपाठी ने बताया कि वर्ष 2005 में प्राप्त आकडांे के मुताबिक बांदा में 9 से 14 आयु वर्ग के बालश्रमिक 1646 बालक तथा 425 बालिकायें खतरनाक व्यवसाय मंे चिन्हित किये गये थे वर्ष 2009 में एक पायलट सर्वेक्षण में 179 बालश्रमिक और पायें गये हैं। इस अवधि से अभीतक विभाग ने किसी प्रकार कोई सर्वे नही किया है।
वहीं राष्ट्रीय बालश्रम परियोजना संचालित करने वाले ग्रामोदय विकास संस्थान की माने तो बांदा में 4000, महोबा 1200, हमीरपुर 1480 बालश्रमिक 2010 तक सर्वे में पाये गये है जिनके पुर्नवास की कोई व्यवस्था नही है। बड़ी बात है कि बुन्देलखण्ड जनपदों में सिर्फ ललितपुर में ही किशोर बालगृह चल रहा है। किसी भी संज्ञेय अपराध के लिये सभी जनपदों के बच्चों को ललितपुर जाना पड़ता है। उक्त परियोजना के बाद दिसम्बर 2010 में शासन ने उ0प्र0 के लिये 17 बाल आश्रयेे केन्द्र संचालित करने का प्रस्ताव रखा था और विज्ञापन भी प्रकाशित किया गया। जिसमें की बांदा में भी 25 बच्चों के लिये आवासीय कम्प्यूटर शिक्षा युक्त आश्रयगृह खोेला जाना था। इसके लिये 12.58 लाख रूपयें एक वर्ष में बजट अनुदानित करने की सरकार की मंशा थी।
लेकिन 8 माह गुजर जाने के बाद भी परियोजना का कोई पता नही है और वहीं मई 2011 में बाल संरक्षण समिति के लिये भी प्रस्ताव मांगे गये थे मगर उसका भी पूर्व की तरह कोई संज्ञान नही है। बताते चले की राष्ट्रीय बालश्रम परियोजना संचालित करने वाले एक व्यक्ति विशेष को ही जनपद की बाल कल्याण समिति का अध्यक्ष बना दिया गया और आनन फानन मीटिंग भी बीते सप्ताह जिला पंचायत अध्यक्षा बांदा की मौजूदगी में सम्पन्न हुई। हर साल लाखों रू0 बच्चों के कल्याण के लिये आने वाले रू0 में सरकारी और समाजसेवी लोगो के भ्रष्टाचार का घुन बुन्देलखण्ड के बालश्रमिको पर भारी है। पूर्व जिलाधिकारी रंजन कुमार द्वारा 40 बालश्रम विद्यालयों के अनुदेशक, लिपिक, आया का मानदेय भुगतान नही होने पर संस्थाओं ने कई दफा राजनीतिक दौरों में आये हुये प्रतिनिधियों को भुगतान करवाये जाने के ज्ञापन भी दिये है। बरहाल उन बालश्रमिको का क्या होगा जिनकी इन संस्थाआंे ने पांचवी की बोर्ड परीक्षा भी नही कराई और तकरीबन बांदा में ही 800 बालश्रमिक ड्रापआउट होकर एक बार फिर अधेंरे की गलियों में धूल छान रहा है।
आशीष सागर, समाजिक कार्यकर्ता
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