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(Story) - अमर शहीद मंगल पाण्डे
क्रान्तिवीर मंगल पाण्डे
विश्व का सिर मौर, वसुन्धरा का गौरव भारत माता की यह गोद जहां देवता भी जन्म पाने के लिये तरसते है। उस पावन भूमि मे जन्म लेने वाले प्रत्येक प्राणी की पुनीत अभिलाषा होती है कि मेरे देश की यह पावन भूमि स्वर्ग से भी सुन्दर वन कर विश्व मे सर्व श्रेष्ट हो। विश्व बन्धुत्व की हमारी संस्कृति भौतिक वादी दृष्टि कोण से परे हटकर आत्म ज्ञान से ओत प्रोत विश्व मानव के विकास का मार्ग युगो -युगो से प्रशस्त करने से अग्रणि रहा है। यही यहां के ऋषि मुनियो की सार्थक मीमांसा थी
सत्य अहिंसा करूणा क्षमा दया परोपकार एवं विश्वबन्धुत्व की भावना के अलोक से जगमगाता भारत देश पश्चात प्रहार से आधतितहोकर करूणा की उत्ताल हिलोरे ले रहा था अपनी स्वतंत्रता के लिये चिन्तन नव योजना वा उर्जा के संचार मे प्रयुक्त थी।
स्वतन्त्रता संग्राम 1857 का आयोजन प्रास्तवित किया जा रहा था। कमल एवं रोटी के माध्यम से अपदस्थ पेशवा नाना साहब के प्रतीकात्मक नेतृत्व मे आन्दोलन भूमिका बनाई जा रही थी क्रान्तकारी विभिन्न भेश धारण कर सौनिक छावनी मे भारतीय सिपाहियो को गुप्त संदेशों के द्वारा आन्दोलन की सूचना प्रेषित कर रहे थे ।
बाटिलियन एन्फ्रेन्टी रेजीमेन्ट 34वीं प्लाटून के सिपाही मंगलपाण्डे जिनका सिपाही न0 1446 था स्वधर्म एवं स्वराज्य की स्थापना हेतु क्रान्ति कि मशाल उनके मजबूत हाथो मे पकडा दी गयी। प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम के इतिहास पृष्ठ बनकर चिरस्मरणीय अपूर्व नायक हुतात्म मंगल पाण्डे का जन्म अवध क्षेत्र के पुण्य पावन सुरसरि क्षेत्र मे इस पुन्यात्मा का अवतरण 19 जुलाई 1827 को अषाण शुक्ल पक्ष द्वितीय शुक्रवार विक्रम संवत 1884 मे हुआ था। इनकी माता श्री मती अभयरानी देवी ने अभयप्रवृति के पुत्र का नामकरण सम्बोधन देवसेना नायक मंगल के नाम पर मंगल दिया। इनके पिता का नाम दिवाकर पाण्डे था इनके पिता पैतृक निवास अयोघ्या के समीप दुगुवा गांव मे था। मंगल पाण्डेय के उपरान्त इनके पिता अपने ननिहाल मे प्राप्त सम्पत्ति की देख रेख करने हेतु फैजाबाद के ग्राम सुरहुरपुर में रहने लगे। जहां उपरोक्त दिनांक को भारत के इस प्रथम स्वतंत्रता युद्ध के प्रथम बलिदानी का जन्म हुआ।
पेशवा नाना साहब के प्रधान मंत्री अजीमुल्ला के आहवान पर सैनिक छावनियों मे स्वतंत्र चेतना जागृत हो रही थी किन्तु इसके पूर्व ही मंगल पाण्डे के मनोमस्तिक मे विद्रोही भावनाएं पनप चुकी थी। क्योकि बाल काल मे ही मंगल पाण्डेय ने अंगे्रजी सेनाओ के द्वारा अपने गांव मे आग लगाने की घटना को अपनी आखो से देखा था तब से सदैव यह प्रश्न अपनी मां से करता रहता था कि मां हमारे घर मे आग किसने लगायी थी हम आर्य है अर्थात श्रेष्ठ है। फिर पराधीन क्यो मै उन्हे मार डालूगा जिन्होने गांव मे आग लगाई व लूट पाट की उन्ही से प्रतिशोध का भाव उस समय ज्वालामुखी की तरह फटकर बाहर आ गया। जब पेशवा ने स्वतंत्रता युद्ध का आवाहन किया था
बाल्य काल से ही मन मे ज्वालायें प्रज्वलित किये हुए वही बालक 22 वर्ष का तरूण हो चुका था। इनकी लम्बाई अब 8 फुट ढाई इंच थी। इनकी शरीर की बनावट वा लम्बाई ताकत वा शक्ति के बारे मे महान लेखक श्री अमृतलाल नागर की गादर के फूल नामक किताब मे वर्णीत है। घुटनो के नीचे तक लटकती हुई बाहुओं दीदीप्त सौर्य का प्रतीक उन्नतभाल उभर लिये हुये चैडा सीना वीरो की समस्त उपमाओं से सुसोभायमान यह बालक वीर तरूण बनकर बचपन की उस कल्पना की चित्कार को नही भूल पाया था।
एक समयमंगल पाण्डेय अपने ग्राम सुरहुरपुर से सहयोगीलाल सिंह जिन्हे वो प्यार से दादूका सम्बोधन करता था के साथ अकबर पुर आये थे। इनके स्वास्थ को देखकर जी0टी0 रोड से मार्च पास्ट करती हुई सेना जा रही थी उस सेना के एक अफसर की नजर इस 22 वर्षीय तरूण पर पडी जो उसके देह दृष्टि से प्रभावित होकर सेना मे भर्ती हो जनो का अनुरोध किया परन्तु आत्म अभिमानी मंगल पाण्डे ने उस अस्विकार कर दिया परन्तु दादू के समझाने के बाद 10 मई 1849 को कम्पनी सेना मे भर्ती हो गये जिनका यही से सौनिक जीवन प्रारम्भ हुआ।
क्रांति दूत ने 1857 की क्रान्ति हेतु हाथो मे शस्त्र धारण कर लिये। स्वधर्म की स्थापना हेतु समग्र क्रान्ति हिन्दुस्तान मे प्रभावी होने लगी इसकी गोपनीयता का पूर्ण रूपेण निर्वहन किया जा रहा था ऐसे मे इस क्रान्ति मही नायक क्रान्ति का अग्रणी क्रान्ति के समारंगण मे हिन्दू और मुसलमानो का पुनीत प्रणेता बन कर कूद पडा।
कारतूसो मे चर्बी केवल क्रान्ति का कारण बनी थी क्रान्ति की अवधारणा जिस गोपनीयता के साथ फैजाबाद मे बनायी गई बिठूर मे योजना बद्ध किया गया जिसकी गुंज समग्र हिन्दूस्तान मे फैल गई। बैरकपुर की 34 वीं बटालियन के स्वाभिमानी सिपाही मंगल पाण्डे अपने देशबन्धुओ का अपमान न सहन कर किमकर्तव्यविमूढ़ बने रहना ना स्वीकारा वीरवर सैनिक मंगल पाण्डे अंग्रेजो द्वारा बलात् थोपी जाने वाली आज्ञा का उल्लंघन कर म्यांन मे बंदी अपनी तलवार को बाहर निकल लेना चाहते थे। जमादार ईश्वरी प्रसाद एवं अन्य राजनितिक साथियो की सुलह पर इस बगावत को 31 मई 1857 तक टाल देना चाहते थे परन्तु मंगल पाण्डेय द्वारा 34 रेजी मेन्ट के सैनिको को भडकाने की सूचना एक गददार भारतीय सिपाही द्वारा सार्जेन्ट हूसन को दे दी गई सार्जेन्ट हूसन एवं लेफिटनेंट बाग ओनो मौके पर पहुच गये एवं मंगल पाण्डेय को खबरदार कर मृत्यु की चेतावनी दे डाली । परन्तु बेखौफ मंगल पाण्डे ने अपने सैनिक साथियो से दहाड कर कहा तुम सभी मेरा साथ दो मै इन गोरे अफसरो को धराशायी कर दूगा। सैनिको मे उत्तेजना का समुद्र तो था परन्तु अंग्रजो के कोप का भाजन नही बनना चाहते थे मि0 बाग ने पहला वार किया जिसे बचाते हुये मंगल पाण्डे ने एक वार मे धराशयी कर दिया। सार्जेन्ट हूसन के पहुचने पर मंगल पाण्डे की बन्दूक की पहली गोली चली। बन्दूक मे एक गोली बचने पर तथा साथियो के द्वारा साथ ना दिये जाने पर वह गोली मंगल पाण्डे ने स्वयं अपने सीने मे दाब दी परंतु दुर्भाग्यवश गोली सीने मे लगकर कंधे को चीरते हुये निकल गयी थोडे उपरांत के बाद वह ठीक हो गये उन पर विद्रोहात्मक कार्यवाही का मुकदमा सैनिक न्यायालय पर चलाया गया तथा मृत्यु दंड निर्धरित किया गया। 8 अप्रैल 1857 को फांसी की तारीख निर्धारित कि गयी अभियोग के निस्तारण के साथ इस वीर अग्रणी पुरूष से पूछा गया था कि इस विद्रोह मे और कौन-कौन व्यक्ति सामिल थे भांति -भांति के भय का प्रलोभन दिये गये परन्तु इस धैर्यवान पुरूष मुख से किसी का भी नाम नही निकला उसने स्पष्ट शब्दो मे घोषणा की जिन अधिकारीयो की मेरी गोली लगने से मृत्यु हुई हैं उनसे मेरी कोई व्यक्तिगत दुश्मनी नही थी यदि मैने किसी की हत्या व्यक्तिगत दुश्मनी के कारण की होती तो क्रूर हत्यारो की श्रेणी मे किन्तु मंगल पाण्डेय ने यह कृत्व तत्व निष्ठा व देश प्रेम, व स्वके रक्षार्थ किया है। जिसके लिये श्री कृष्ण ने गीता मे कहा हे-सुखो दुखो समे कृत्वा का अनुशरण करते हुये किया हैं अस्तु स्वदेश व स्वधर्म का अपमान होते हुये देखने के बजाय मृत्यु का वरण कर अनपा नाम हुतात्माओ की पावन श्रेणी मे लिखना श्रेयष्कर है।
स्वदेश व स्वधर्म की रक्षा हेतु प्राणों की आहुति देना मै अपना नैतिक कर्तव्य मानता हूं। जियो भी शान से मरो भी शान से तुम्हे शर्म आनी चाहिये मुठ्ठी भर गोरे तुम पर हुकुमत कर रहे है। मेरा साथ दो बन्दूक उठा लो इन्हे मार दो कोई भी जिन्दा बच कर भागने ना पाये मूर्खो हम पर औरते बच्चांे हसेगे गुलामी मे जिनकी अपेक्षा हसते-हसते देश के लिये बलिदान होना श्रेष्यकर है। तुम अपना खून दो खून की होली खेलो राष्ट्रहित सर्वोपरि है। ये गोरे फिरंगी जायेगे देश आजाद होगा हमे अजादी मिलेगी मुझे पूरा विश्वास है। मै बडा भाग्यशाली हूं कि भारत माता की सेवा मे मुझे अपने प्राणो की आहुति देने का अवसर सर्व प्रथम कुछ ही समय पश्चात प्राप्त होने जा रहा है। मै भारत माता से प्रार्थना करता हू कि मरा जन्म भारत मे हि हो मै सौ जन्मो तक राष्ट्र के लिये हसते हसते फांसी के फन्दे बालिदान होउ यही मेरी अन्तिम इच्छा वा ईश्वर से प्रार्थना है। ये मक्कार फिरगींओ झूठे दगाबाजो एक मंगल पाण्डे को फांसी पर चढाकर भारत का स्वतंत्रता संग्राम अब नही रूकेगा भारत माता के पास आज के बाद स्वतंत्रता संग्राम के लिये लाखो मंगल पाण्डे शहीद हो ने को तैयार हो जायेगे।
द टू स्टोरी आफ एन इंण्डियन रिवोल्यूशनरी 5 अप्रैल 1857 को कोर्ट मार्शल मे चल रही बहस के द्वारान तत्कालीन अंग्रेज न्यायधीश के समाने के विचार 8 अप्रैल 1857 को प्राची मे सूर्य की आभा को आलोकित होने सं पूर्व ही मंगल पाण्डे को वध स्थल पर ले जाकर कलकत्ता से बुलाये गये जल्लादो द्वारा फांसी दे दी गई । इस बलिदानी की दिव्य आत्मा अपने नश्वर कलेवर को त्यागकर 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के बीज रोपित कर उसके अंकुरण को सिंचित करने हेतु आपने पावन रक्तांजलि भेट कर दी।
चाल्र्सवल के आनुसार-‘‘पाण्डेय, यह नाम स्वतंत्रता आन्दोलन के सक्रिय भगीदार रत् सभी विदोही सिपाहियो का उपनाम बना कर प्रतिष्ठित हुआ।’’
‘‘ सिपाहियो को पाण्डे कह कर सम्बोधित किये जाने का उद्गम स्थाल यह नाम है।’’ स्वधर्म स्वराज्य एवं स्वाभिमानी के हुतु आत्मोत्सर्ग करने वाले मंगल पाण्डे 1857 समरागंण मे अपनी अंजली देकर जिस स्वतंत्रता के बीज का रोपण किया था आज वह बीज सशक्त वृक्ष बनकर कपोल युक्त शाखाओ से सुदृढ पुष्पित पल्लवित वृक्ष बन गया है। इस सघन वृक्ष की छाया मे हम स्वतंत्रता का प्राशय प्राप्त कर रहे है। आज भी इस वीर की हुतात्मा का साक्षात्कार करते हुये श्रद्धा की पुनीत मंदाकिनी के प्रवाह मे स्नान कर पवित्र हो जाती है।
आशीष सागर-प्रवास
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