Thursday, March 31, 2011

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(Story) - जल संकट और पलायन ने होली से महरूम किया


जल संकट और पलायन ने होली से महरूम किया !

  • जल आपदा के साथ दलित पलायन का गढ़ है गोखरही
  • त्रिस्तरीय ग्राम पंचायत चुनाव 2010-11 के समय 3500 मतदाता और अब हैं महज 1000 लोग
  • 700 हरिजन एवं अन्य ग्रामीणों का हो रहा गांव से पलायन
  • 15 कुओं में से 11 सूखे जिनमे से 1947 का हरिजन बन्धुओं को समर्पित कुआ भी शामिल
बुन्देलखण्ड़ी होली और यहां का फाग कभी आस पास भले ही चर्चा का विषय हुआ करता था मगर अब हालात इन काल खण्ड़ो से बहुत दूर खड़े हैं। पिछले 7 सूखे देख रहे बुन्देल खण्ड़ के जनपद बांदा में ग्रामीण क्षेत्रों पर जल आपदा और पलायन की त्रासदी लगातार जारी है। ग्राम गोखरही, तिन्दवारी विकास खण्ड़ में इस दफा होली नहीं मनाई गयी वजह साफ है जब गांव के मवेसी,जानवरों के लिये पीने का पानी नहीं अट रहा तो भला रंग और गुलाल का खुमार गांव के बुन्देलियों पर कैसे चढ़ता।
एक सरसरी नजर से इन आकड़ों पर देखे तो तस्वीर अपने आप जमीन की सूखती आखों का हाल बयान करती है। 2010-11 के त्रिस्तरीय ग्राम पंचायत चुनाव में कुल मतदाता गोखरही गांव 3500 थे लेकिन पिछले 3 माह से हो रहे पलायन के चलते जहां हरिजनों के सैकड़ो घरो में ताले जड़े है वहीं गांव में इस समय कुल आबादी मतदाता सूची के हिसाब से 1000 रह गयी है। 700 दलित परिवारो के लोगो के साथ 100 ब्राहृमण, क्षत्रिय परिवार में म0प्र0 के मुरैना, बहुआ (फतेहपुर), राजिस्थान के ईट भटटो मे मजदूरी करने के लिये पलायन कर चुके है जो अब आगामी उम्मीद पर निर्भर वर्षा ऋतु में ही घरो को वापस लौटेगें। पलायन करने वालो में शामिल हरिजन बिरादरी के गरीबां, बिन्दा, रामसिया, लालू, मांझिल, बिन्दा, बिसाली, भईयालाल और ऊचें कुनबो के प्रदीप शुक्ला, प्रहलाद तिवारी, आदेश अवस्थी, महदी, दयाराम, शिवप्रसाद, ब्रजकिशोर उन परिवारों के मुखियां है जिनके घरों बीते 3 महीने से पलायन की मोहर लगी है।
केन्द्र सरकार की मनरेगा योजना के विकास का पहिया चुनाव होने के 3माह गुजरने के बाद भी गोखरही में नहीं दौड़ा है। निर्वाचित ग्राम प्रधान महिला श्रीमती मालती देवी का कहना है कि उनका सारा काम गया तिवारी देखते है मतलब साफ है प्रधान पतियों की जमात में खड़े गया तिवारी गांव की प्रधानी करने का बीड़ा उठायें है। जाब कार्ड धारक सन्तराम यादव ने बताया कि इस वर्ष गोखरही से महुई सम्पर्क मार्ग एवं चन्दन तालाब के किनारे ही एक पुलियां मे मिटटी डालने का काम कराया गया है ग्रामीणों को समय पर काम और मजदूरी भुगतान न होने से गांव में रोजगार का संकट वर्ष भर बना रहता है जिससे पलायन ही इनके घरों में रोजी रोटी की जुगाड़ करने का एक मात्र जरिया है। उन्होनं बताया कि गांव बेरोजगार युवक शारदा प्रसाद,गुलाब चन्द्र, ज्ञान सिंह,अरबिन्द,कमल आदि ऐसे युवा साथीं है जो होली के त्यौंहार के बाद गुजरात चले जायेगें। जानकारों के मुताबिक इस गांव में कुल 15 कुऐ है जिनमें की 11 पूरी तरह सूख चुके है ज्यादातर सूखे कुओं को कूड़ेदान के लिये उपयोग किया जाता है। गौर तलब है कि सन् 1947 में बने हरिजन बन्धुओं को समर्पित एक मात्र कुआं भी अपनी बदहाली और दलित जल संकट की कहानी बिन पानी बुन्देलखण्ड़ के गोखरहीं गांव से बतलाने की शासन और प्रशासन को कोशिसे करता रहता है लेकिन यह सिर्फ नक्कारखाने में बजे तूती की तरह ही है जिसकी आवाज सरकारी अमलो को बेसुरी लगती है।
विश्व गोरैयां दिवस 20 मार्च 2011 पर गांव में जागरूकता गोष्ठी आयोजित करने गये स्वैच्छिक संगठन प्रवास को जल संकट के भयावह दौर से गुजर रहे गोखरही गावं के बाशिन्दों ने प्रकृति पे्रम की बानगी के तौर पर एक नन्ही गोरैयां मकानो की दरार में दिखलाने की कामयाब कोशिस की जिससे कही न कहीं उनकी पेयजल संकट की पीड़ा गोरैया के साथ यह प्रश्न चिन्ह लेकर संगठन और सरकार के सामने पूछने की कूबत रख रही थी कि विकास के मानक क्यां पलायन और जल संकट बुनियाद पर तय किये जाते है जिसने गोखरही के हजारों घरों में तालें जड़कर होली से महरूम कर दिया ? बुन्देलखण्ड़ क्षेत्र के जनपद चित्रकूट के जिला अधिकारी ने उ0प्र0 सरकार से सूखा क्षेत्र घोसित करने की सिफारिश की है लेकिन बताते चले कि जल संकट वाली 40 जनपदीय सूची में अन्तरमुखी अकाल का पर्याय बुन्देलखण्ड़ के किसी जनपद को शामिल नही किया गया है वहीं पिछले 3 वर्षा में जनपद बांदा,चित्रकूट,महोबा,हमीरपुर का जल स्तर 3 मी0 नीचे चला गया है और कहीं भी सूखी धरती पर बिना पत्तियों के खड़े हुये पेड़ो की बीच पानी की उम्मीद छोड़ चुके खेतो पर 200 से 800 मी0 तक 7 फुट गहरी दरारे पड़ चुकी है और इन सब की पीछे सरकार की आकड़ो पर विकास का माडल तैयार करने वाली योजनाओं के साथ साथ जलदोहन करने वाले कुटीर उद्योग बुन्देलखण्ड़ का अवैध ग्रेनाइट खनन् उद्योग प्रमुख रूप से दोषी है जिनसे सैकड़ो ली0 पानी 300 फिट गहरी और 200 ऊचीं पहाड़ खदानों व कृसिंग (पत्थर तोड़ने) मशीन के द्वारा पम्पिंग सेट से बाहर फेका जाता है लेकिन उ0प्र0 सरकार यह मानने को तैयार नहीं की बुन्देलखण्ड़ में खनन् उद्योग जल आपदा का हिस्सा है यहां तक कि उसने इन क्षेत्रों में क्रशर नहीं होने का भी दावा किया है। गोखरही जैसे सैकड़ो गांव आने वाले अप्रैल, मई में पलायन की हूबहू तस्बीर बनकर विकास और विनाश के बिचैलिये शाबित होगें। क्यां शहरों की तरफ ग्रामीणो का प्रवास उनके माकूल पुनर्वास की दस्तक बनेगा ?
-आशीष सागर

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