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नक्सली बन जाता कॉलिन गोन्साल्वेज
अगर में पड़ुवी ग्रामीण के नरैनी विकासखंड में पैदा हुआ होता और दलित होता तो निश्चित ही इन हालातों में नक्सली हो जाता। क्या करे यहां के हालात ही कुछ ऐसे हैं जिन्हें देखकर उच्चतम न्यायालय का वरिष्ठ अधिवक्ता और ह्यूमन राइट्स ला नेटवर्क का संस्थापक कालिन गान्साल्वेज आक्रोशित हो उठे और सीधे तौर पर कह डाला कि सरकार और पूंजीपतियों की मंशा गरीबी नहीं गरीबों को खत्म करना है। ग्लोबलाइजेशन के नाम पर अमीर को अमीर किया जा रहा है। गरीब को और भी ज्यादा गरीब बनाया जा रहा है। पत्रकारों से बातचीत के दौरान कहा कि आगे आने वाला समय और भी ज्यादा खतरनाक है। हालातों को सुधारने के लिए सरकार ने ध्यान न दिया तो बुंदेलखंड में भुखमरी की संख्या और भी ज्यादा बढ़ेगी और पलायन किसी भी तरह से रुकेगा नहीं।
बुंदेलखंड के इस चूहला बंदी जनांदोलन के सन्दर्भ में सामाजिक पैरो कार ही जब नक्सली होने की बाते कह सकता है
तो अप अनुमान लगा सकते है की ये बुंदेलखंड का किसान आन्दोलन जो आज विदर्भ के किसानो के लिए भी नज़र में
नजीर बनकर उतर गया है और वे इसको जारी भी रखे हुए है तो भला कैसे कह सकते है की बुंदेलखंड का आम किसान कभी
आदर्शात्मक नहीं बन सकता है ये चूहला बंदी की शब्द यात्रा भी कुछ ऐसी ही है जिसमे न सिर्फ मानवा अधिकारों जे हनन की अनदेखी हुई बल्कि हजारो किसानो को चुननी पड़ी आत्म हत्या !
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