खनन के खेल में मनी, मीडिया, माफिया का गठजोड़ !
बुंदेलखंड से लेकर सोनभद्र तक फैले खनन के कुनबे और उत्तर प्रदेश के खनन मंत्री गायत्री प्रसाद प्रजापति के अवैध खनन परिवार पर एक रिपोर्ट मेरी यह पढ़े भी पढ़े साथी ' प्रवासनामा ' के आने वाले अंक में विस्तार से पढ़े बीपीएल खनन मंत्री और सम्पति धन कुबेर ! - उत्तर प्रदेश का अवैध समाजवाद !
खनन के खेल में मनी, मीडिया, माफिया का गठजोड़
खनिज की रायल्टी से होगा विकास
बिना सत्यापन बालू खरीदने वालों को डीएम की चेतावनी
नदी की धार बांध कर हो रहा अवैध खनन
बिना सत्यापन बालू खरीदने वालों को डीएम की चेतावनी
नदी की धार बांध कर हो रहा अवैध खनन

प्रदेश के मुखिया ने बदल दिए मानक
खनिज से मिलने वाले रायल्टी से क्षेत्र का विकास किए जाने का दावा प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने किया है। नई खनिज नीति में संशोधन करते हुए खनिज नियामावली 2014 में यह व्यवस्था की गई है कि खनिज रायल्टी में अब 50 फीसदी उसी क्षेत्र के विकास में खर्च होगा, जहां से खनन किया जा रहा है। पट्टा धारक का चयन टेंडर से होगा। इसमें रायल्टी/डेड रेट के अलावा अधिक्तम संतोषजनक धन देने वाले आवेदक को चयनित किया जाना है। दूसरे शब्दों में कहें तो जो जितनी बड़ी बोली लगाएगा, टेंडर उसी के नाम निकाला जाएगा।
बुंदेलखंड की खनिज संपदा पर विदेशी कंपनियों की नजर
मध्य प्रदेश के सागर, दमोह, दतिया, छतरपुर, पन्ना, सतना और रीवा से पर्यावरण की लूट करके अपनी झोलियां भरने वाले अमेरिकी कंपनी रियोटिंटो, भारतीय कंपनी वेदांता की नजरें अब उत्तर प्रदेश के
बुंदेलखंड पर भी टिक चुकी हैं। गौरतलब है कि बुंदेलखंड के उत्तर प्रदेश वाले हिस्से से सालाना 510 करोड़ राजस्व 1311 खनन क्षेत्र के पट्टों से होता है। समाजवादी सरकार की बदली हुई खनिज नियमावली में टेंडर प्रक्रिया इन रसूखदार कंपनियों को न्योता देने की कवायद है। बानगी के लिए पूर्व बसपा सरकार ने प्रदेश में आबकारी विभाग के ठेकों से पैदा किया पोंटी चड्ढा और उसका जलजला मगौड़े की दुकान से शराब के ठेकों और रियल स्टेट तक फैला दिया था। सरकार चलाने में परोक्ष धन का निवेश ये रसूखदार करते हैं। अगर टेंडर प्रक्रिया कारगर हुई तो रूतबे वाली कंपनी और बड़े ठेकेदार बालू पत्थर के खेल में मालामाल हो जाएंगे। इससे छुटभैये ठेकेदारों की हैसियत महज पेटी कांटैक्टर की रह जाएगी। मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड में टीकमगढ़, पन्ना और छतरपुर में बालू पत्थर की खदानें इसकी गवाह हैं। यहां रियोटिंटों और वेदांता ने दुर्दांत मशीनों से पर्यावरण को तार-तार किया है। लोग कहते तो यह भी हैं कि मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के करीबी इस लाल सोने के खेल में सहभागी रहे हैं।

क्या है बालू खनन के मानक
- खनन क्षेत्र का सीमांकन किया जाता है।
- खनन कार्य गांव के मजदूरों द्वारा कराया जाता है जिससे उनको रोजगार मिले।
- बहती हुई नदी की जलधारा नहीं मोड़ी जाती।
- खनन कार्य जलधारा के अंदर नहीं किया जाता।
- खनन में मशीन का प्रयोग नहीं किया जाता।
- खनन केवल तीन मीटर की गहराई में ही किया जाएगा।
- नदी की जलधारा रोककर पुल का निमार्ण अवैध है।
- खनन पट्टे धारक को वन विभाग, खनिज विभाग, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, पर्यावरण विभाग से अनापत्ति प्रमाण पत्र लेना आवश्यक है।
- नदी में पोकलैंड और लिफ्टर जैसी मशीनों का खुलेआम होता है प्रयोग। लिफ्टर के प्रयोग से नदी की जलधारा के बीच से 50 फिट अंदर से जिंदा बालू की होती है निकासी। जिससे जिससे पूरी नदी में जगह जगह सैकड़ों फिट हो जाते हैं गड्ढे। गांव के लोगों, बच्चों की डूबने से होती हैं मौतें।
- लीज से कई गुना क्षेत्र में करते हैं खनन। जैसे 40 एकड़ के स्वीकृत पट्टे में आस पास के 400 से 500 एकड़ में करते हैं खनन। जिला प्रशासन और खनिज विभाग सबको होती है जानकारी।
- नदी की जलधारा को मोड़कर अवैध रूप से पूरी नदी में पुल बनाकर करते हैं खनन।
- दिन और रात धड़ल्ले से होता है खनन।
- पर्यावरण के नियमों को ठेंगा दिखाते हुए करते हैं खनन।
- पुल के ठीक नीचे पोकलैंड मशीनों से होता है खनन।
- खनिज विभाग एक एम एम-11 (रवन्ना या रॉयल्टी) पट्टाधारकों को 2500 रूपये में देता है जबकि पट्टाधारक अपनी मनमानी और गुंडा टैक्स के चलते एक रवन्ना के 10 से 12 हजार तक वसूलते हैं।
- पूरे जनपद में गुंडा टैक्स (सिंडिकेट) वसूलने की जिम्मेदारी शासन द्वारा किसी व्यक्ति विशेष को दी जाती है जिसकी शासन को करोड़ों की कीमत चुकाने के बाद हर वैध और अवैध खदानों से गुंडा टैक्स लेने का खेल शुरू हो जाता है। प्रति ट्रक 3.5 से 4 हजार रूपये गुंडा टैक्स वसूला जाता है जिसके चलते आम जनता जो बालू की कीमत दाम से दोगुनी तक चुकानी पड़ती है।

By: आषीश सागर
0 Comments:
Post a Comment
Subscribe to Post Comments [Atom]
<< Home