वन विभाग ने लूट लिया बुंदेलखंड का पर्यावरण...
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वन विभाग ने लूट लिया बुंदेलखंड का पर्यावरण
जंगल, जमीन, संसाधन और समाज पर्यावरण के सम्बंध में ऐसा ही विषय है जिसे लेकर मीडिया प्रजातंत्र के चोथे स्तम्भ की भूमिका निभाने मे खासकर बुंदेलखंड जैसे चटियल ठेठ पट्टी पर तो लगभग असफल ही रही है। या यूं कहे मीडिया द्वारा निभायी गयी भूमिका ने यहां की दिशा और दशा को आबाद और खुशहाल बनाने के बजाय वन विभाग के संविधान, कानून, को मान्य किये जाने की मान्यताओं को बढावा देकर राज्य और केन्द्र सरकारो को बुंदेलखंड में जल, जमीन, जंगल की संपदा को अपने अधिकार क्षेत्र में लेने की भी प्रमुखता से कवायद की है।
आजादी के पहले समाज से छीने गये अधिकारों को आजादी के बाद लौटाये जाने की बजाय बचे खुचे अधिकारो को छीने जाने का सिलसिला प्रारम्भ हुआ। बुंदेलखंड जैसे क्षेत्र, अतिदोहित प्रांत महज दुष्प्रचार आधारित नीतियां और योजनायें बनाकर अधिकारों को शोषणवादी अपराध बोध प्रवृत्तियों से पोषित करने में अधिक कारगर रहे। समाज, समुदाय के हिस्से में अन्याय और सिर्फ अन्याय ही आया उस समुदाय को जो बुंदेलखंड जैसे अति पिछडे क्षेत्रों मे जीवन बसर करने के संसाधन खोजता है को राहत की योजनाओ से सहलाने और भरमाने का ही कार्य किया गया है। आजाद भारत से तो गुलाम भारत बेहतर था। यह अचरज की बात नही कि आजादी हमको मिली आधी रात के बाद मगर आज तक बुंदेलखंड जैसे बीहड़ की पगडंडियां में सबेरा हुआ ही नही।
आजादी के तत्काल बाद वन विभाग को वनो का कुशल प्रबंधक मानकर समाज के नियंत्रण के रहे सहे संसाधनो को भी वन विभाग के नियंत्रण में सौप दिया, वन विभाग वनों के नियंत्रण और प्रबंधन में असफल रहा और उससे उत्पन्न स्थितियों को ध्यान में रखकर 1980 में पर्यावरण संरक्षण के नाम पर वन संरक्षण कानून लागू कर दिया। वन विभाग इस कानून का पालन करने और करवाने में भी असफल रहा इस असफलता को नजरअंदाज कर जलवायु परिवर्तन एवं पयार्वरण संरक्षण का नाम दिया जाकर वन और वन भूमि की 12 दिसम्बर 1996 को व्याख्या एवं परिभाषा कर दी गयी।
बिट्रिश हुकूमत ने 1862 में संसाधनो के व्यवसायिक दोहन के लिये वन विभाग का गठन किया। 1865 मे पहला वन कानून बनाया और 1878 में उसे संसोधित किया गया। तीसरी बार संसोधन के साथ वर्तमान भारतीय वन अधिनियम 1927 लागू किया। इस कानून की पहली दो लाइनो मे लिखा है कि ‘‘यह कानून वनोपज के विदोहन और वनोपज पर शुल्क लगाये जाने के लिये लाया गया है’’। वन विभाग के चरित्र में आजादी के बाद कोई बदलाव नही आया बल्कि दिनो दिन उसकी नीतियां आम जन मानस के प्रति खासकर आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों मे और अधिक अप्रजातांत्रिक व दुष्प्रचार के चरित्र को बढावा देने वाली रही है।
वन विभाग आज भी व्यापक पैमाने पर जंगलो का कटान करवा रहा है जिसे वह वैज्ञानिक काष्ठ विज्ञान का नाम देता है, वन विभाग ने 1972 तक वन्य प्राणियों का जबरदस्त शिकार करवाया जिससे आज आधे से अधिक वन्य जीव प्रजातियां विलुप्त होने की कगार पर है। आज भी वन विभाग के वर्किंग प्लान वन्य प्राणियों को वनो की हानि का कारण मानते है। लेकिन इसके बाद भी वन विभाग वन्य प्राणियों का सबसे बड़ा और एक मात्र संरक्षणकर्ता मान लिया गया है।
वन विभाग जैव विविधता संरक्षण कानून 2002 के लागू होने तक जैव विविधता को कही शूद्र वन, कही बिगडे़ वन, कही निम्न कोटि के वन बताकर समूल नष्ट करने की कार्यवाही करते आया है और आज भी वन विभाग के वर्किंग प्लान अनेक बेलाओं, वन औषधियों, जडी बूटियों पेड पौधो को वनो की हानि का कारण बता रहे है। बावजूद इसके वन विभाग आज भी वन भूमि का सबसे बडा सरकारी सरंक्षणकर्ता है। वनविभाग के जबरदस्त फैलाव से कानून तो बने, अधिकार दिये गये लेकिन इन सबके बाद भी बदस्तूर जंगल कम हुये, वन भूमि कम हुयी, जैव विविधता खतरे में है, वन प्राणी विलुप्त होने की कगार पर है, आदिवासी अपनी आजीविका के जुगाड़ में जीवन यापन की जद्दोजहद में है।
बुंदेलखंड सैकडो साल से हरे भरे वन क्षेत्रों से आच्छादित रहा है। 1862 में जब वन विभाग उ0प्र0 और बुंदेलखंड में अस्तित्व की भूमिका में आया उस वक्त बुंदेलखंड के भू आच्छादित वन क्षेत्र को 58 प्रतिशत में आंका जाता था। समय गुजरा और हाशिये पर जा रहा बुंदेलखंड का वन क्षेत्र आज बांदा में 1.21 प्रतिशत, महोबा में 5.45 प्रतिशत, हमीरपुर में 3.6 प्रतिशत, झांसी में 6.66 प्रतिशत, चित्रकूट में सर्वाधिक 21.8 प्रतिशत, जालौन मे 5.6 प्रतिशत और ललितपुर में 6.5 प्रतिशत है। जब कि राष्ट्रीय वन नीति के मुताबिक किसी भी जिले में समान्यतः 33 प्रतिशत वन क्षेत्र अनिवार्य है।
वन विभाग द्वारा दिये गये सूचना अधिकार आंकड़ो पर गौर करे तो वर्ष 2005 से वित्तीय वर्ष 2012 तक वन विभाग ने बुंदेलखंड के सात जनपदो में 500 करोड रू0 का पौधरोपण कराया है। वहीं इससे इतर वर्ष 2002 से 2010 तक बुंदेलखंड के एन0एच0 76 जो कि अब नेशनल हाइवे 35 में तब्दील है के सडक किनारों पर 9 अरब के पौधे लगवाये गये थे। अगर इतने धनराशि के पौधे बुंदेलखंड की सूखी धरती में मौजूद है तो बड़ा सवाल यह भी है कि बुंदेलखंड के लोग रहते कहां होगे क्यांे कि सब जगह तो जंगल है। और बुंदेलखंड में जल संकट, सूखे से किसान आत्महत्यायें क्यों कर रहा है ?
उ0प्र0 वन संरक्षण अधिनियम 1976 के अनुसार किसी भी वृक्ष स्वामी को घर मे वनोपयोगी वृक्ष काटने की अनुमति वन विभाग से लेने के बाद 15 दिवस में काटे गये एक वृक्ष के स्थान पर दो पौधरोपण करने का प्रमाणपत्र देना पड़ता है अन्यथा कि स्थिति मे उसकी जमानत राशि जब्त कर ली जाती है। लेकिन वर्ष 2005 से बुंदेलखंड के सात जनपदो के बासिंदो ने 2012 तक एक भी पौध लगाने का प्रमाणपत्र वन विभाग को नही दिया है। सापेक्ष इसके गृह स्वामियों ने अपने घरो से वनोपयोगी 6531 पौध काटे है।
साल दर साल बांदा, चित्रकूट, ललितपुर, और झांसी क्षेत्र में बसर करने वाले कोल, सहरिया, गोड़ और मवेशी आदिवासी वन विभाग द्वारा बनाये गये कानूनो से ही उजाडे़ गये है बनिस्बत इसके कि वन क्षेत्रों मे उन्हे समनान्तर अधिकार देकर पुर्नवास कराया जाता।
सवाल यह भी है राज्य और केन्द्र सरकार की अनीतिगत योजनाओ से कि यदि बुंदेलखंड में वन क्षेत्र बढ़ रहा है तो लगातार गिरता हुआ भूगर्भ जलस्तर पर्यावरण के लिये क्या घातक नही है ? बांदा का तिंदवारी विकास खंड, चित्रकूट के रामनगर, पहाड़ी और महोबा का पनवाड़ी विकास खंड पूर्व बसपा सरकार ने डार्कजोन घोषित किया है। इन क्षेत्रों में सरकार ने सरकारी हैंडपंप, नलकूप लगाये जाने पर रोक लगा रखी है। जिसे लेकर आये दिन इन क्षेत्रो के किसान आंदोलनरत है उनके खेतो में सिचाई के लिये पानी उपलब्ध नही है। घटता हुआ वन क्षेत्र, सिमटते हुये जंगल, पटते हुये चंदेलकालीन तालाब, मरती हुयी नदियां इस बात की तस्दीक करती है कि बुंदेलखंड इको सिस्टम को सहजने मे नाकाम साबित हो रहा है और समय रहते इसके पुख्ता इंतजाम किये जाने की नैतिक जिम्मेदारी राज्य और केन्द्र सरकारो की हैै। मगर बुंदेलखंड की तबाही को सुनिश्चित करने और पर्यावरण को उजाड़ करने की पहल में केन बेतवा नदी गठजोड़ परियोजना, अर्जुन सहायक बांध परियोजना और बुंदेलखंड पैकेज से बनाये जा रहे चैक डेम, कूप, करोडो रू0 की धनराशि का बंदरबाट ही है।
राज्य सरकार हो या केन्द्र सरकार वन विभाग को जल जमीन जंगल का अधिकार सौपने से बेहतर है कि बुंदेलखंड का वास्तिविक भौगोलिक अध्ययन कर नीतियां निर्धारित करें और जंगलो को आबाद करने का जिम्मा समुदाय आधारित एक से प्रत्येक व्यक्ति को सौप दें।
आशीष सागर दीक्षित (आर0टी0आई कार्यकर्ता)
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