Wednesday, December 12, 2012

सरकार राज में सिंडीकेट और रायल्टी का काला खेल !

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सरकार राज में सिंडीकेट और रायल्टी का काला खेल

बुन्देलखण्ड- सियासत के जमीन पर जब भ्रष्टाचार की फसल उगती है तो एक हाथ से बहुत कुछ बटोरने की जुगत पान्टी चड्ढा उर्फ गुरदीप सिंह जैसे लोगो से सीखना आसान सा लगता है।
उ0प्र0, पंजाब, हिमांचल प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान और उत्तराखण्ड में सरकार चाहे जिसकी रही हो 59 साल के पान्टी को सभी ने सत्ता संरक्षण और सिंडीकेट के बादशाह के रूप में आगे रखा। कुछ महीने पहले एक ज्योतिषी ने पान्टी के ऊपर काला साया होने की भविष्यवाणी की थी लेकिन शराब के चखने से शुरूवात कर रियल स्टेट, तहबाजारी, चीनी मिल, बालू माफिया (बुन्देलखण्ड) तक फैल चुके सम्राज्य को मजबूत करने की चिन्ता यकीनन पान्टी को अधिक थी। इसी का परिणाम था कि सरकार से सुरक्षा प्राप्त (पंजाब पुलिस ) व दर्जनों निजी सुरक्षा कर्मियों से घिरा रहने वाला यह व्यक्ति अपने ही सहोदर भाई हरदीप सिंह चड्ढा से मामूली दक्षिणी दिल्ली के फार्म हाउस की सम्पत्ति विवाद में नामधारी बुलेट की साजिश का शिकार हो गया। कभी अपनी मर्जी से उ0प्र0 में शराब की कीमत तय करने वाले करीब 20 हजार करोड़ की सम्पत्ति के मालिक पान्टी चड्ढा के लिए चन्द करोड की जायदाद का निपटारा करना क्या इतना मुश्किल था कि खून का रिश्ता ही कत्ल की इबारत लिख गया।
जानकार बताते है कि मुरादाबाद में शराब के ठेके के आगे मछली के पकोडे बेचने वाले इस शख्स की जिन्दगी फिल्म सिटी की रोमांचक क्राइम मिस्ट्री से कमतर नही है।
दक्षिणी दिल्ली के फार्म हाउस का समझौता पान्टी के भाई हरदीप के साथ 12 सौ कारोड रू0 देकर अलग होने से ज्यादा भारी पड़ा। क्या फार्म हाउस ही मात्र एक वजह थी दोनो भाईयों के कत्ल की या फिर इसके पीछे छुपी है अपराध की काली सुरंग में सरकार, साख और सिन्डीकेट के दबे हुये राज की लम्बी कहानी।
जानकारी के मुताबिक पान्टी ने बिना भाई को बतलाये ही इस फार्म हाउस पर ताला जड़ दिया था लिहाजा जिस दिन दोनो भाईयों के बीच सम्पत्ति के इस छोटे से टुकडे का निपटारा होना था उसी दिन दोने भाईयों की हत्या हो गयी। जांच ऐजेन्सी और पुलिस कब-कैसे इस प्रकरण को सुलझा पायेंगे ये तो वक्त ही तय करेगा मगर 6 राज्यों तक फैले पान्टी चड्ढा के पीछे सरकार -सिन्डीकेट का जो काला खेल चल रहा है उसे बेनकाब करना लाजमी है। हरियाणा के मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चैटाला, उत्तराखण्ड सरकार में अल्प संख्यक आयोग के अध्यक्ष सुखदेव सिंह नामधारी, नारायण दत्त तिवारी, बसपा सरकार की मुखिया मायावती, नसीमुद्दीन सिद्दकी, बाबू सिंह कुशवाहा व अन्य सांसदो, विधायको पर अच्छी पकड थी।
बेशक पान्टी का एक हाथ दुरूस्त नही था पर उ0प्र0 की बसपा सरकार में सुपर पावर के रूप में पाॅन्टी को स्थापित किया गया। सूत्रों की माने तो चार राज्यों के तीन प्रमुख राजनीतिक दल के रसूखदार नेताओं, नौकरशाहों ने अपनी ब्लैकमनी पान्टी के वेब गु्रप, रियल स्टेट व बालू खनन में निवेश कर रखी थी। दक्षिणी दिल्ली के फार्म हाउस में हुयी 54 राउन्ड गोलीबारी से भले ही 13 गोंलिया सुरूर उतरने से पहले पान्टी का काम तमाम कर गयी मगर सरकार में पल रहे माफिया- सिंडीकेट के लिए पांन्टी का चला जाना 13 सालो के दिये नासूर के जैसा है जिसका मरहम शायद ही किसी चुलबुल पाण्डे के पास होगा।
बुन्देलखण्ड के उरई (जालौन), बांदा, हमीरपुर में बालू माफियाओं के साथ पान्टी चड्ढा का गठजोड पूर्व बसपा सरकार से लेकर आज तक यथावत जारी है फर्क सिर्फ बस इतना है कि सरकार में बैठे हुये लोगो के चेहरे बदल गये है। बालू खदान से अकेले बुन्देलखण्ड की रायल्टी करीब 400 करोड़ रू0 सलाना है।
प्रदेश सरकार द्वारा उपखनिजो की रायल्टी दरों में किया गया भारी इजाफे के बाद अब खनन पट्टा धारको को बालू, मौरंग गिट्टी व बजरी आदि उपखनिजो के खनन पर 50 प्रतिशत अधिक रायल्टी देनी होगी। पिछली मायावती सरकार ने जून 2009 में रायल्टी की दरें बढ़ायी थी। इससे सरकार की आमदनी में 30 प्रतिशत इजाफा हुआ।
बालू खनन से बुन्देलखण्ड के बांदा, हमीरपुर, चित्रकूट, उरई और फतेहपुर बेन्दा घाट की नदियों का सीना लिफ्टर, पोकलैण्ड मशीनों से छलनी किया जा रहा है। जल संकट से जूझ रहे बुन्देलखण्ड को रेगिस्तान बनाने की साजिश में सरकार और सिन्डीकेट दोनो शामिल है या यू कहें की सरकार के समान्तर एक और सत्ता चल रही है।
नदियों का सीना चीरकर मनमाने ढंग से किया जा रहा अवैध खनन नदियों को कम किसानों को ज्यादा मुफलिस बना रहा है। सुप्रीमकोर्ट ने 27 फरवरी 2012 को और हाईकोर्ट इलाहाबाद ने 01 अक्टूबर 2012 व एक अन्य जनहित याचिका नम्बर 6798/ 2011 में न्यायधीश एफआई रिबेलो व जस्टिस प्रकाश कृष्णा ने ऐसी सभी खनन गति विधियां पर रोक लगाने के निर्देश दिये थे जिनके पास पर्यावरण विभाग से सहमति प्रमाण पत्र नही है। पहले यह रोक 5 हे0 से नीचे की बालू खदानो पर ही लगायी गयी थी लेकिन मामले की गम्भीरता को संज्ञान में लेकर सुप्रीम कोर्ट में सभी बालू खदानों को पर्यावरण सहमति प्रमाण पत्र लेना अनिवार्य कर दिया है यहां तक की ईंट भट्टो के लिए मिट्टी खुदायी व अन्य उपखनिजो के पट्टे आवंटित करने पर भी रोक लगा दी है। सूबे में अवैध खनन पर रोक लगाने के लिए हाईकोर्ट की अवमानना करने पर हाल ही में हाईकोर्ट इलाहाबाद द्वारा नराजगी जताते हुये जिलाधिकारी अलीगढ़ और बागपत को नोटिस भी जारी किया गया है सुमित सिंह की अवमानना याचिका पर न्यायमूर्ति विक्रम नाथ ने यह आदेश दिया याची के अधिवक्ता अनूप त्रिवेदी का कहना है कि न्यायालय के आदेश के बाद भी कई जिला में अवैध खनन किया जा रहा है।
01 जुलाई 2011 से सभी खदानों पर रोक लगा दी गयी थी जिनके पास पर्यावरण सहमति प्रमाण पत्र नही है। 29 जून 2011 तक बांदा जिले में ही 17 खदानें बालू की ऐसी थी जो कि 5 हे0 से नीचे की पायी गयी थीं। इन बालू खदानों के मालिको में ज्यादातर बसपा सरकार के करीबी और रसूखदार बालू माफिया ही रहें है।
रामयश द्विवेदी, प्रकाशचन्द्र द्विवेदी (छिबांव), वासिफ जमा खाॅं ( डी0एस0ए0 बंादा), शिवशरण सिंह, दिलीप सिंह ( रिलायन्स पेट्रोल पम्प संचालक, बांदा ), सोमेश भारद्वाज, बांदा का नम्बर 1 बालू माफिया सीरजध्वज सिंह, दलजीत सिंह, धीरेन्द्र सिंह, मनोज तिवारी, रामस्वयंवर मिश्र ये वो चर्चित नाम हैं जिन्हें बसपा सरकार में लाल सोना लूटने के लिए जाना जाता रहा है। बुन्देलखण्ड में करीब 2 सैकडा बालू खदाने है।
जन सूचना अधिकार 2005 से जिला खनिज अधिकारी बांदा ने पत्रांक संख्या 444/ खनिज-30, 29 नवम्बर 2012 को दी जानकारी में जो बताया है वह काफी चैकाने वाले तथ्य है। वित्तीय वर्ष 2012 के बाद चालू करवाये गये बालू खनन के पट्टों की सूची में रामस्वयंवर मिश्रा खंड सं0 9 क्षेत्रफल 8.90 एकड़ ग्राम पहाडिया खुर्द तहसील अतर्रा जिला बांदा, राजकुमार पांडेय गाटा सं0 886, 1481, 1482, 1505, 2031, 2039, 2047, 2247, 2270 व 2541 रकबा 10.75 एकड़ ग्राम महुटा तहसील अतर्रा जिला बान्दा को किया गया है।
इसी प्रकार रामस्वयंवर मिश्रा खंड सं0 9 क्षेत्रफल 18.90 एकड़ व आलोक कुमार शुक्ला ग्राम राधौपुर क्षेत्रफल 57.19 एकड़ तहसील बबेरू जिला बांदा के पास ही पर्यावरण अनापत्ति प्रमाणपत्र है। जिसकी छायाप्रति भी खनिज अधिकारी बांदा ने जानकारी के साथ उपलब्ध करायी है। इनके अतिरिक्त बांदा में किसी भी व्यक्ति के पास पर्यावरण प्रमाण पत्र नही है।
जिला खनिज अधिकारी का कहना है कि 5 हे0 से अधिक क्षेत्रफल वाले खनन पट्टो को जनपद में बंद करा दिया गया है। लेकिन तस्वीर अवैध बालू खनन की इससे कुछ अलग कहती है। राजघाट, बांदा बाईपास पुल, हरदौली घाट, पथरिया घाट, खेरापति हनुमान जी (दुरेड़ी), अछरौड़ घाट, नरैनी क्षेत्र के शेरपुर स्योढ़ा व म0प्र0 से लगे हुये नदी घाटों में नदियो को नदियो से प्रतिदिन सैकड़ो ट्रक अवैध बालू ओवरलोडिंग के बल पर निकलवायी जाती है जिनकी निकासी तयशुदा पुलिस कर्मी अपनी देखरेख मे करवाते है। जिलाधिकारी बांदा व एस0पी0 ज्ञानेश्वर तिवारी की पूरी जानकारी में किया जा रहा अवैध खनन महज इस बात से अनदेखा किया जाता है कि मालूम होने पर कार्यवाही की जायेगी। ग्राम उदयपुर क्षेत्र बदौसा निवासी सामाजिक कार्यकर्ता ब्रजमोहन यादव ने बताया कि भुसासी घाट में ओमप्रकाश यादव, शिवनारायन यादव, रामराम श्रीवास्तव, विराट सह भदौरिया जैसे बालू माफिया रात के अंधेरे में दम तोडती बागैन नदी में अवैध खनन करते है। इसके लिये बाकायदा 100 फुट बालू पर 20,000 रू0 महीना एस0ओ0 बदौसा को दिया जाता है। मालूम रहे कि सपा सरकार में बुन्देल्खन्द के हर जिले में तैनात ज्यादातर चैकी इंचार्ज यादव ही है।
पूर्व बसपा सरकार के समय केबिनेट मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दकी व खनिज मंत्री रहे बाबू सिंह कुशवाहा ने बालू और पत्थर खनन का सिंडीकेट पाॅन्टी चड्ढा के गुर्गो को उरई, बांदा, हमीरपुर में सौप रखा था। बसपा सरकार में ही आयकर विभाग द्वारा उरई जिले में मारे गये अचानक छापे के दौरान करोडो रू0 की नगदी पोन्टी चड्ढा के आफिस से मिली थी। सपा सरकार आते ही चेहरे बदल गये मगर सिस्टम में रायल्टी वसूलने का तरीका पहले की तरह है। लाल सोने (बालू) से लखपति और अरबपति बनने की चाहत को बानगी के रूप में बांदा जिले के वर्तमान सपा जिलाध्यक्ष समीम बानवी के रूप में देखा जा सकता है। सात महीने पहले साइकिल से चलने वाला यह समाजवादी कार्यकर्ता कभी देश भक्ति के मुशायरे के लिये अधिक जाना जाता था। ये पंक्तियां बताती है कि - फारसी पढा बेंच रहा तेल, ये देखो कुदरत का खेल ।
शमीम के शब्दो में - सरहद वाली तुमको जागीरे नही देगें, हम अपने मुकद्दर की लकीरे नही देंगें। सरकार बदली और सपा राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने शमीम बानवी को सपा का जिलाध्यक्ष उनकी ईमानदारी पर बना दिया। लेकिन महत्वाकांक्षा आदमी से जो कुछ कराये वो कम है। आज गुर्गो के दम से दस लाख की स्वीफ्ट से चलने वाले शमीम बानवी एक हफ्ते में चार दिन आर0टी0ओ0 कार्यालय पर ओवर लोडिंग बालू के ट्रको, ट्रैक्टरों को छुडवाने के बावत देखे जा सकते है।
पोन्टी चड्ढा के डमी ठेकेदार बीते मार्च माह में बांदा जिला परिषद तहबाजारी ठेके में खुद बोली लगाने आये थे ऐसा सूत्रों का कहना है। बात नही बनी और यह ठेका सपा सरकार के चहेते लोगो को दे दिया गया।
बालू वसूली में रायल्टी के रेट-
झांसी आर0टी0ओ - 4800 रू0 (इन्ट्री फीस)
नगर, देहात - 3100 रू0
जालौन, उरई - 4800 रू0
हमीरपुर - 2900 रू0
रमाबाई, कानपुर नगर - 3100 रू0
जिला परिषद की रसीद प्रति चक्कर - 60 के बजाय 150 रू0
तीन बैरियर चुंगी - 280 रू0 प्रति चक्कर
ट्रैफिक पुलिस इन्ट्री फीस शहर मे - 2000 रू0 प्रति चक्कर
नोट - मोरंग ढुलाई में लगे लगभग 3000 ट्रक। एक ट्रक पर इन्ट्री शुल्क हर
महीने 13800 रू0 । कुल वसूली एक महीने में 4.14 करोड़ रू0।
जनपद बांदा से एक दशक में प्राप्त बालू रायल्टी आय -
 
वित्तीय वर्ष
 प्राप्त आय
2002-03
3,85,62,162.00
2003-04
3,01,93,989.00
2004-05
4,06,94,597.00
2005-06
5,60,03,450.00
2006-07
4,96,31,570.00
2007-08
5,70,72,000.00
2008-09
7,87,44,262.00
2009-10
12,09,02,055.00
2010-11
17,07,46,215.00
2011-12
10,65,65,046.00
इस तरह बढी रायल्टी की दरे-
खनिज
 पहले
 अब
चूना पत्थर
143
215
मार्बल
216
324
साइज्ड डायमन्शनल
270
405
मिल स्टोन
 260
390
गिट्टी
68
102
नदी तल वाली
32
75
पहाड़ वाली लाल
24
36
प्रथम श्रेणी बालू
22
33
द्वितीय श्रेणी बालू
18
 27
कंकड़
18
 27
बजरी सिंगिल
 42
63
साधारण मिट्टी
9
14
बालू खदान से 14,000 रू0 मौरंग खरीद कर आम जनता को 26 से 27000 रू0 मे बेचने के गोरख धंधे के पीछे बडे - बडे खेल है। इसमे रायल्टी, गुंडा टैक्स की वसूली के लिये सिंडीकेट ने कोड वर्ड बना रखे है। इस धंधे से जुडे ट्रक चालक अपनी आप बीती बताते हुये अवैध वसूली के ऊपर सरकार और जिला प्रशासन दोनो पर सवालिया निशान खड़ा करते है।
नवम्बर 2012 तक मिले ट्रक चालको के कोड वर्ड के मुताबिक -
ओम नमः शिवाय - (आर0टी0ओ की इंट्री चुका दी गयी)
पी0आर0 - पिंटू परिहार आर0टी0ओ0 के लिये वसूली
करने वाले है।
ठाकुर साहब - ट्रैफिक इंट्री चुका दी गयी है।
जय सिया राम - सब कुछ ओके है।
मनन, एच0आर0एल0, सीताराम जैसे और भी तमाम कोर्डवर्ड है जो रायल्टी वसूलने के लिये उपयोग किये जाते है।
रेत के कारोबार मे लूटी जा रही नदियों की अस्मत बुदेलखंड के लिये आने वाले समय में खुशहाली का नही तबाही का मंजर है। पर्यावरण और ईको सिस्टम को विकास की अनसुलझी यात्रा मे जिस तरह उलट फेर किया जा रहा है। यह आने वाले पारिस्थतिकीय तंत्र के लिये खतरे की घंटी है। विज्ञान को बालू और पत्थर दोनो के विकल्प समय रहते खोजने चाहिये ताकि आदमी को अवशेष होने से रोका जा सके।
पान्टी चड्ढा के सफाये के साथ भी खत्म नही होता दिख रहा सरकार और सिंडीकेट का गठबंधन। क्या लोकतंत्र में माफिया, मीडिया, अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता सिर्फ रईसजादो के लिये रह गयी है यह गौर करने वाली बात है। क्यों कि इन्ही चारो की फिरका परस्ती में पिस रहा है, मर रहा है, लुट रहा है, आम आदमी।
लेखक - आशीष सागर , प्रवास 


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