Sunday, November 27, 2011

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पर्यावरण प्रदूषण से तितलियां हुईं दुर्लभ

Story Update : Sunday, November 27, 2011    12:01 AM
बांदा। फूलो  पर मंडराती रंग-बिरंगी खूबसूरत तितलियां अब मंडराती नहीं दिखती। इसी तरह सुबह को सुहावना बनाने वाली कोयल की कूक भी अब सुबह नहीं गूंजती। आखिर कहां गए धरती के ये नायाब आकर्षण। जवाब सिर्फ एक है पर्यावरण प्रदूषण। वातावरण में घुल रहे प्रदूषण के जहर ने प्रकृति के इन नायाब नमूनों समेत कई जीवों को धरती पर दुर्लभ-सा कर दिया है।
शनिवार को विश्व पर्यावरण संरक्षण दिवस के मौके पर एक बार फिर तितलियां और कोयल आदि की याद आईं। पार्को  और बगीचों में रंग-बिरंगी और लोगों को बेहद आकर्षक लगने वाली तितलियां अब नजर नहीं आतीं। बुंदेलखंड की सोन चिड़िया कहलाने वाली काली कोयल भी अब दुर्लभ हो गई है। कोयल के बारे में कहा गया है- ‘कागा कासों लेत है, कोयल काको देत, इक वाणी के कारणे, जग अपनो कर लेत।’ उधर, तितलियां धरती पर फूल खिलाने का काम करती हैं। परागण की जिम्मेदारी निभाती हैं लेकिन विकास की सरपट दौड़ में धरती पर चौतरफा प्रदूषण फैला दिया है। तितली जैसा नाजुक परिंदा प्रदूषण की भेंट चढ़ गया। पर्यावरण विद् कृष्ण कुमार मिश्रा बताते हैं कि तितली के खत्म होने की एक बड़ी वजह मोबाइल टेलीफोन टावर भी है। इनसे निकलने वाली रेडिएशन किरणें तितली की मौत का कारण हैं। जिन फूलों और पत्तियों को खाकर तितलियां जीवित रहती थीं, उन वनस्पतियों में जहर शामिल हो गया है। तितली की सैकड़ों प्रजातियां हैं लेकिन आजकल कुछेक ही नजर आती हैं। पर्यावरण विदों का कहना है कि पर्यावरण में होने वाले किसी भी बदलाव को तितली सबसे पहले समझ लेती है। स्वयंसेवी संगठन प्रवास के आशीष सागर का कहना है कि तितली-कोयल के संरक्षण के लिए कारगर कदम नहीं उठाए गए तो आगे आने वाली पीढ़ियां इन्हें किताबों में ही पढेगी।

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