पहाड़ बचाने को “जुझार” गाँव का जुझारू संघर्ष
WRITTEN BY AMALENDU ON NOVEMBER 13TH, 2011 | NO COMMENTS
पहाड़ बचाओ
-शिशिर सिंह
महोबा; आसमान से बरसते पत्थर, उड़ती धूल, बंजर खेत, मटमैला पानी, करहाते लोग, धमाके और खौफजदा आंखे, खबर नरक से नहीं बुन्देलखण्ड से हैं। यह हाल है बरी और जुझार गाँव का। जहाँ नरक जैसी जिन्दगी जी रहे गाँव के लोग अब अब अवैध खनन के चलते खनन माफियों के विरोध में उतर आए हैं। पहाड़ को बचाने के लिए लोग मय पशुओं के घर छोड़कर पहाड़ों पर चले गए हैं। गाँव के दुधमुंहे बच्चे से लेकर शतायु बुजुर्ग सब आंदोलन का हिस्सा हैं। अहिंसक आंदोलन कर रहे ग्रामीणों की माँग है कि जुझार पहाड़ के खनन को तुरंत रोका जाए। 700 एकड़ में फैला यह पहाड़ बड़ा पहाड़ के नाम से भी जाना जाता है। ग्रामीणों के विद्रोह तेवर देख प्रशासन के भी हाथ-पाँव फूले हुए हैं। मीडिया में खबर आने के बाद एसडीएम सदर विन्ध्यवासिनी राय, सीओ अखिलेश्वर पांडेय व माइन्स सर्वेयर आरएन यादव ने गाँव का दौरा किया और ग्रामीणों की परेशानी जानने की कोशिश की। उत्तर प्रदेश सरकार के पूर्व श्रम मंत्री बादशाह सिंह भी गाँव वालों के समर्थन में धरने पर बैठे।
….जैसे नरक में रह रहे हों
जुझार पहाड़ ग्रामीणों की धार्मिक मान्यताओं से भी जुड़ा है, पहाड़ पर लाला हरदौल और महेश्वरी देवी का मन्दिर है। सबसे अनोखी बात यह है कि पहाड़ पर एक कुँआ है। पहाड़ पर पानी होना विलक्षण माना जाता है। लोगों के अनुसार यह कुँआ 850 वर्ष पुराना है और अब भी दुरूस्त है। लेकिन खनन माफियाओं की मनमानी और कारगुजारियों के चलते प्रकृति के गोद में बसा बरी और जुझार गाँव नरक बन गया है। लोग गंभीर बीमारियों का शिकार हैं। लगातार और तेज धमाकों से यहाँ कोई भी निर्माण करना संभव नहीं है। गाँव के सारे भवनों में धमक के चलते दरारें आ गई हैं। कोहरे की तरह धूल गाँव में छाई रहती है। घरों पर डस्ट की तीन से चार इंच मोटी धूल की परत हमेशा जमा रहती है। खेत पत्थरों से अटे पड़े हैं। घर के अन्दर हों या बाहर लोगों को हर समय हादसों का खौफ रहता है। यह बेजा नहीं है क्योंकि धमाके इतने तेज होते हैं कि 40-50 किलो तक के वजनी पत्थर एक किलोमीटर के दायरे तक उछल कर चले जाते हैं। ठेकेदारों ने मन्दिरों को भी नहीं बख्शा है, पहाड़ पर स्थित लाला हरदौल के मन्दिर को विस्फोट से जीर्ण-शीर्ण कर दिया है।
गंभीर बीमारियों का शिकार ग्रामीण
खनन से प्रदूषित हुई आबोहवा ने गाँववासियों को बीमार बना दिया है। धन के अभाव में यह बीमारियाँ जानलेवा सिद्ध हो रही हैं। बहुत अधिक धूल में रहने के कारण गाँव के लोग सिल्कोसिस बीमारी का शिकार हो रहे हैं। सिल्कोसिस फेफड़ो से जुड़ी एक बीमारी है जो लंबे समय तक धूल और प्रदूषण में रहने के कारण होती है। इसमें व्यक्ति के फेफड़ो में आवांछित और हानिकारक पदार्थ जमा हो जाते हैं, जिससे सांस लेने की क्षमता, लगातार घटती जाती है। गरीब ग्रामीणों के लिए इस बीमारी का इलाज करा पाना संभव नहीं है। वैसे सूचना तो यह भी है कि इसके चलते गांव में कुछ मौतें भी हुई हैं। यही नही पिछले कुछ समय से गाँव में मंदबुद्धि बच्चों की संख्या लगातार बढ़ी है, ग्रामीण इसके पीछे भी खनन से प्रदूषित हुए वातावरण को दोषी ठहराते हैं। लगातार धूल के संपर्क में रहने से रहवासियों की चमड़ी काली पड़ती जा रही है। इसके अलावा कान और पेट की बीमारियों से भी ग्रामीण परेशान हैं।
न कोई सुरक्षा न कोई नियम
सैयां भए कोतवाल तो डर काहे का, कुछ यही हाल है यहाँ के खनन माफिया का। जानकारी के लिए बता दें कि खनन माफिया खुद को बसपा नेता का रिश्तेदार बताता है। क्षेत्र में एक भी क्रशर ऐसा नहीं है जो नियमों के अनुरूप चल रहा हो। नियमानुसार दिन में केवल दो घंटे दोपहर बारह बजे से दो बजे तक ही विस्फोट की अनुमति है। लेकिन माफिया अपनी मर्जी और सहूलियत के हिसाब से विस्फोट करते हैं। यहाँ तक कि रात को भी विस्फोट होना आम बात है। एक अन्य नियमानुसार दो इंच छेद करके विस्फोट का प्रावधान है लेकिन छह इंच के छेद करके विस्फोट किए जा रहे हैं। विस्फोटक के रूप में अमोनियम नाइट्रेट के ज्यादा इस्तेमाल के चलते खुफिया एजेंसियाँ सक्रिय हो गई है। मीडिया में खबर आने के बाद एलआईयू की टीम ने गाँव में दौरा किया है। गौरतलब है कि पिछले कुछ धमाकों में आतंकवादियों द्वारा विस्फोटक के रूप में अमोनियम नाइट्रेट का प्रयोग किया गया है। खुफिया एजेंसी को शक है कि यह देश के अन्दर से ही आतंकवादियों को मुहैया कराया जा रहा है। सरकार भी अमोनियम नाइट्रेट की बिक्री पर नजर रख रही है और इसको सीमित करने के लिए योजना बना रही है।
आर या पार
गांववासी खनन से कितने परेशान हैं इसका अन्दाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने सब काम छोड़ आर या पार की लड़ाई का मन बना लिया है। फसल की सिंचाई को भी ग्रामीण नजरअंदाज कर रहे हैं। केवल पुरूष ही नहीं गाँव की महिलायें भी पहाड़ को बचाने की इस मुहिम में आगे आई हैं। गाँव के लोग अब अफसरों के कोरे आश्वासानों के बजाए ठोस कार्रवाई चाहते हैं उनकी माँग कि प्रशासन जल्द से जल्द इन पट्टों को निरस्त करे।
खामोश पर खौफ नहीं
ग्रामीणों के इस विद्रोह के चलते खनन माफिया खामोश तो हैं पर न उन्हें कार्रवाई का खौफ है और न ही पट्टे निरस्त होने की चिंता। खुद को बसपा नेता का रिश्तेदार बताने वाले माफियाओं की पहुंच काफी ऊपर तक है। ऊँची पहुँच के चलते प्रशासन इनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करता है। हालात इस कदर बिगड़े हैं कि जब-जब ग्रामीणों ने इसकी शिकायत पुलिस में की उन्हें या तो डाँट कर भगा दिया गया या जेलं डाल दिया गया। प्रशासनिक साँठगाँठ के चलते माफिया निरंकुश हो गए हैं।
समूचा बुन्देलखण्ड है इसका शिकार
ठीक यही पीड़ा बुन्देलखण्ड के अनेक क्षेत्रों की है। धरती पहले से ही बंजर है अब इसको खोखाला करने की जो साजिश दबंगो द्वारा की जा रही है प्रशासन उस पर ध्यान ही नहीं दे रहा है। ललितपुर, झाँसी, चित्रकूट आदि सहित वो सब इलाकों जहाँ खनिज मौजूद हैं वहाँ के लोग उन्हें शाप समझने लगे हैं। वह एक ऐसी नारकीय जिन्दगी जीने को विवश है, जिसके जिम्मेदार वो कहीं से नहीं है। खनन माफियाओं की कारगुजारियों की शिकायत प्रशासन पर लगातार पहुंचती रही है। लेकिन इस तरह का लंबा आंदोलन पहली बार देखने को मिल रहा है जहाँ ग्रामीण पूरे जी-जान से पहाड़ो को बचाने में लग गए हैं। पड़ोस के गाँव पचपहरा के लोगों ने भी यह देख गाँव में होने वाले खनन का विरोध शुरू कर दिया है।
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